Friday, April 19, 2024
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देश की सबसे कठिन परीक्षा में संघर्ष और परिश्रम की स्याही से सफलता की कहानी लिखने वाले

सिविल सेवा परीक्षा में देशभर में शीर्ष रहे लखनऊ के आदित्य श्रीवास्तव ने 40 लाख का पैकेज छोड़ा। पहली बार विफल रहे। दूसरी बार आईपीएस बने, तीसरी कोशिश में आईएएस। यूपीएससी में यह उनका तीसरा प्रयास था। पहले प्रयास में वे प्रारंभिक परीक्षा में फेल हो गए थे। हालांकि, दूसरे प्रयास में 236वीं रैंक के साथ आईपीएस बने। आदित्य फिलहाल हैदराबाद में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के प्रशिक्षु अधिकारी हैं। आदित्य के पिता अजय श्रीवास्तव सेंट्रल ऑडिट डिपार्टमेंट में सहायक लेखाकार हैं। आदित्य की मां के मामा विनोद कुमार मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी (लबासना) के निदेशक रहे। वे ही आदित्य के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

आदित्य कहते हैं कि उन्होंने कभी कोचिंग से तैयारी नहीं की। खुद पढ़ाई पर जोर दिया। प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद वैकल्पिक विषय के रूप में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का चयन किया। तैयारी के दौरान थोड़ी देर गाने सुनते और फिर पढ़ाई में जुट जाते थे। सिर्फ खाना खाने के लिए वह कमरे से निकलते थे। आदित्य ने बताया कि उन्होंने पिछले साल में आए सवालों का जमकर अभ्यास किया। टेस्ट सीरिज हल करने से आत्मविश्वास बढ़ा। इसके साथ ही सिलेबस को देखकर उसे कवर करने की रणनीति बनाई। जो भी पढ़ा उसे बिलकुल स्पष्ट तौर पर तैयार किया। इससे परीक्षा में लिखना काफी आसान हो गया। आदित्य का कहना है कि सिविल सेवा की तैयारी काफी समय लेती है, इसलिए धैर्य न खोएं।

Ruhani

आईपीएस अधिकारी रुहानी का यह दूसरा प्रयास था। रुहानी ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया है। तीन वर्ष तक भारतीय आर्थिक सेवा की अधिकारी भी रह चुकी हैं। दो वर्ष तक उन्होंने नीति आयोग के लिए काम किया है। फिलहाल, वे प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी हैं। रुहानी कहती हैं कि दुनिया में कुछ भी हासिल करने के संकल्प और मेहनत लगती है।

बिना कोचिंग के UPSC परीक्षा में हासिल की ऑल इंडिया 5वीं रैंक। बनीं IAS अफसर ममता यादव ने भारत की सबसे कठिन यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा दो बार क्रैक की है। उन्होंने इस परीक्षा में ऑल इंडिया 5वीं रैंक हासिल की थी और वह अपने गांव की पहली आईएएस अफसर हैं।

Katyayani

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की एक छात्रा और एक छात्र ने जिले का नाम रोशन करने का कार्य किया है। मंगलवार को जारी हुए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के परीक्षा परिणाम में शहर निवासी कात्यायनी सिंह और रजत यादव ने सफलता हासिल की है। कात्यायनी सिंह ने परीक्षा में 592वीं रैंक हासिल की है तो वहीं रजत यादव ने 799वीं रैंक। शहर के मोहल्ला पुरोहिताना निवासी ऋषिराम कठेरिया की पुत्री कात्यायनी सिंह ने यूपीएससी परीक्षा में 592वीं रैंक हासिल कर जनपद व समाज का नाम रोशन किया है। कात्यायनी का कहना था कि यदि लगन और मेहनत से परीक्षा दी जाए तो सफलता अवश्य मिलती है।

कात्यायनी के पिता ऋषिराम सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर हैं। वहीं मां मंजू देवी गंगानगर में बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षिका हैं। परिवार वर्तमान में मेरठ में रह रहा है। वहीं कात्यायनी ने परीक्षा की तैयारी की। कात्यायनी दो बहनें और एक भाई हैं। बेटी की सफलता पर शहर के मोहल्ला पुरोहिताना में घर पर मौजूद ताऊ रामनरेश कठेरिया और रामशंकर कठेरिया को लोग बधाई देने के लिए पहुंच रहे हैं।

Swati Sharma

पूर्व थल सैनिक (सीएमपी) संजय शर्मा की पुत्री स्वाति शर्मा ने यूपीएससी की परीक्षा में जमशेदपुर का झंडा लहरा दिया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में स्वाति शर्मा ने ऑल इंडिया रैंकिंग में 17वां स्थान हासिल किया है। मंगलवार को जब परीक्षा का परिणाम निकला, तो स्वाति समेत पूरा परिवार रैंकिंग खोजने में जुट गया। जब स्वाति की रैंक17वीं दिखी तो खुद उसे भरोसा नहीं हुआ। स्वाति ने कहा कि सोचा जरूर था कि यूपीएससी क्रैक करुंगी, लेकिन यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि इतना बेहतर प्रदर्शन कर पाऊंगी। हर सफलता के पीछे माता-पिता का हाथ होता है। इसमें मेरे भाई टाटा स्टील में कार्यरत संजीव शर्मा ने भी काफी मदद की। पूर्व सैनिक सेवा परिषद के सुशील कुमार सिंह, राजीव रंजन सिंह और पूरी टीम ने उनके घर पर जाकर उन्हें बधाई दी।

यूपीएससी की परीक्षा में ऑल इंडिया 17वां रैंक लानेवाली स्वाति शर्मा ने बताया कि पिता सेना में थे, इसलिए आरंभिक पढ़ाई देश के कई हिस्सों में हुई। स्वाति ने मैट्रिक की परीक्षा आर्मी सैकेंडरी स्कूल कोलकाता से पास की। इसके बाद 12वीं की पढ़ाई उन्होंने साकची स्थित टैगोर एकेडमी से पूरी की। इसके बाद 2019 में उन्होंने बिष्टुपुर स्थित जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज से पॉलेटिकल साइंस में एमए किया। टैगोर एकेडमी में उनके एक शिक्षक जाकिर अख्तर ने उन्हें यूपीएससी एग्जाम के लिए मोटिवेट किया था। उनकी बातों से प्रभावित होकर माता-पिता से इस बात की जानकारी शेयर की, उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए सभी मार्ग प्रशस्त कर दिये। यह उनका तीसरा प्रयास था। पहले दो प्रयास में उन्होंने जमशेदपुर में ही रहकर पढ़ाई की, परीक्षा दी, लेकिन उनका सलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने तय किया अंतिम प्रयास करना है, लेकिन इसके लिए दिल्ली जाने का फैसला किया गया। नंवंबर 2022 में दिल्ली में जाकर पढ़ाई शुरू की। 2023 जून में परीक्षा हुई, अगस्त में परिणाम आया। जनवरी 20024 में उनका इंटरव्यू हुआ, जिसका परिणाम टॉप 17वां रहा।

यूपीएससी की परीक्षा में ऑल इंडिया 17वां रैंक लानेवाली स्वाति शर्मा ने बताया कि उन्होंने जो स्थान हासिल किया है, उसके पीछे एक मूलमंत्र रहा पुरानी गलतियों को दोबारा दोहराना नहीं है। आगे कैसे पढ़ना है, इसके बारे में सोचना है। टॉपर रहे छात्रों ने किस तरह सवालों का हल किया, उनकी पढ़ाई का पैटर्न क्या रहा, किस तरह खुद को बिना दवाब के पढ़ाई में व्यस्त रखना है, यह सीखा और इस पर काम किया, जिंदगी खुद बेहतर बनती गयी। पढ़ाई कभी भी बोझ या उबाऊ नहीं लगी। हर चीज अपने अनुरुप लगने लगी। उस दौरान यह समझ आने लग गया था कि अब पीछे मुंड़ कर देखने का समय खत्म हो गया, आगे बढ़ना है। यूपीएससी के परिणाम ने आपार खुशियां प्रदान की है, लगातार फोन आ रहे हैं। माता-पिता, भाई, रिश्तेदार सब काफी खुश हैं।

Uday Krishna Reddy

उदय कृष्ण रेड्डी आंध्र प्रदेश पुलिस में कॉन्सटेबल थे। सब ठीक चल रहा था, लेकिन एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उदय ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। नौकरी छोड़ने के बाद उदय ने 5 साल जमकर मेहनत की और 16 अप्रैल को जब देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी का रिजल्ट घोषित हुआ, तो मेरिट लिस्ट में उनका नाम था। आखिर साल 2018 में ऐसा क्या हुआ था कि उदय ने कॉन्सटेबल की नौकरी छोड़कर सीधे यूपीएससी करने का फैसला ले लिया? बात साल 2018 की है। उदय कृष्ण रेड्डी को पुलिस फोर्स ज्वॉइन किए पांच साल हो चुके थे। एक दिन उनके सर्किल इंस्पेक्टर ने किसी निजी विवाद को लेकर करीब 60 पुलिसकर्मियों के सामने उन्हें ऐसी अपमानजनक बातें कहीं, जो उदय के दिल को लग गईं।

उदय दिन भर अपने इस अपमान के बारे में सोचते रहे और आखिरकार शाम होते-होते एक बड़ा फैसला ले लिया। उन्होंने पुलिस फोर्स की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उदय ने तय कर लिया कि वो अब यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस अधिकारी बनेंगे। उदय कृष्ण रेड्डी ने पांच साल तक तैयारी की और 2023 में यूपीएससी की परीक्षा में बैठे। रिजल्ट आया तो उन्हें 780वीं रैंक मिली। रैंक के आधार पर उन्हें आईआरएस अधिकारी के तौर पर सेलेक्ट किया जा सकता है। हालांकि, उदय का मकसद आईएएस अधिकारी बनना ही है। उनका कहना है कि जब तक वो आईएएस अधिकारी नहीं बन जाते, अपनी पढ़ाई जारी रखेंगे। आपको बता दें कि 16 अप्रैल को घोषित हुए यूपीएससी के नतीजों में लखनऊ के आदित्य श्रीवास्तव ने पहली रैंक हासिल की है।

Shivansh

हरियाणा के झज्जर जिले के खरहर गांव के बेटे शिवांश ने एक बार फिर से कमाल कर दिया। दूसरे प्रयास में एसडीएम (SDM) बनने वाले शिवांश ने इस बार ऑल इंडिया में 63 वां रैंक हासिल कर आईएएस बनने का अपना सपना पूरा कर लिया। शिवांश बहादुरगढ़ के सेक्टर 6 में अपने माता-पिता और बहन के साथ रहता है। शिवांश ने 9 साल की उम्र से ही आईएएस (IAS Officer) बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। वह हर रोज 10 घंटे तक पढ़ाई करता था। पढ़ाई से जब थक जाता था तो व्यायाम के साथ शिव तांडव स्त्रोतम का पाठ किया करता। शिवांश ने बताया कि शिव तांडव स्त्रोतम के पाठ से उसे ऊर्जा मिलती थी। शिवांश का कहना है कि सही दिशा में लग्न से मेहनत करने से हर लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। शिवांश का कहना है कि आईएएस बनकर वो विकसित भारत के सपने को पूरा करने में अपना योगदान देना चाहता है।

शिवांश के पिता रविन्द्र राठी भी सिविल सर्विस में जाना चाहते थे। हरियाणा सिविल सर्विस की परीक्षा भी पास कर ली थी, लेकिन राजनीतिक चक्करों के चलते वो भर्ती पूरी नही हो पाई। शिवांश की माता डॉ. सुदेश राजकीय कन्या महाविद्यालय में प्रौफेसर हैं। माता-पिता अपने बेटे की उपलब्धि पर बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि जब भी शिवांश मायूस होता था तो वो उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे। उन्होंने कहा कि शिवांश ने अपने बचपन का सपना पूरा किया है और उन्हे यकीन है कि देश के विकास में शिवांश का अहम योगदान रहेगा। शिवांश भक्तिभाव से परिर्पूण रहता है। यूपीएससी का परिणाम आने से पहले भी वो मंदिर में बैठकर पूजा कर रहा था। शिवांश सेक्टर 6 के जिस घर में रहता है, उसका नाम शिवालय है और छोटी बहन का नाम शिवांगी है। शिवांश की छोटी बहन भी यूपीएससी की तैयारी कर रही है। शिवांश ने यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं से कहा है कि उन्हे नियमित तौर पर लग्न लगाकर पढ़ाई करने की जरूरत है।

Akanksha Singh

बनारस के बड़ालालपुर चांदमारी स्थित वीडीए कॉलोनी निवासी आकांक्षा सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 44वीं रैंक हासिल कर काशी का मान बढ़ा दिया। अपनी मेहनत से उन्होंने सफलता की वो इबारत लिखी जिसे हर किसी ने सलाम किया। आकांक्षा के पिता चंद्रकुमार सिंह मूल रूप से आजमगढ़ के बूढ़नपुर के रहने वाले हैं। उनके पिता झारखंड कैडर के पूर्व पीसीएस अधिकारी हैं। आकांक्षा शुरू से ही पढ़ाई में आगे रहीं।

जमशेदपुर से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने मिरांडा हाउस दिल्ली से यूजी किया। इसके बाद जेएनयू से भूगोल विषय में पीजी किया। इस समय वह रांची विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उनका भाई भी इंजीनियरिंग करने के बाद सिविल की तैयारी कर रहा है। आकांक्षा के पिता चंद्रकुमार ने कहा कि रामनवमी के मौके पर परिवार को जो खुशी मिली है, वह प्रभु की देन है। कहा कि आकांक्षा शुरू से ही धुन की पक्की थी।

Shashvat Agrawal

बनारस के सूटकेस व्यवसायी राजेश और दिव्या अग्रवाल के दूसरे बेटे शाश्वत अग्रवाल ने अपने दम पर तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की। दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाराजा अग्रसेन कॉलेज से स्नातक और जेएनयू से परास्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह तैयारी में लगे रहे और तीसरे प्रयास में सफल हो गए।

उनकी मां दिव्या अग्रवाल ने बताया कि उसे कोचिंग की मदद लेने के लिए कहा गया तो उसने सीधे मना कर दिया। कहा कि मम्मी मैं खुद से तैयारी करना चाहता हूं और निरंतर लगा रहा। शाश्वत पढ़ाई में शुरू से ही मेधावी रहे। स्कूल से लेकर कॉलेज तक वह बेहतर प्रदर्शन करते रहे। पहले प्रयास में प्रीलिम्स भी नहीं निकला तो थोड़ी निराशा हुई। दूसरे प्रयास में प्रीलिम्स निकला और तीसरे प्रयास में 121वीं रैंक। उन्होंने कहा कि वह आगे भी बेहतर करने का प्रयास करते रहेंगे। बड़े भाई बिजनेस करते हैं और बहन सीए हैं।

Niti Agrawal

ऋषिकेश की नीति अग्रवाल ने यूपीएससी परीक्षा में आल इंडिया 383वीं रैंक हासिल की, नीति का यह छठवां व अंतिम अटैम्प्ट था। वर्ष 2021 में नीति अग्रवाल अंतिम चरण इंटरव्यू तक पहुंची थी, सिर्फ एक अंक से रहने के कारण वह फाइनल चयन से चूक गई। परीक्षा में तीर्थनगरी ऋषिकेश की बेटी नीति अग्रवाल ने पूरे देश में 383वीं रैंक हासिल करके उत्तराखंड का नाम रोशन कर दिया है। उन्होंने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को दिया है और इस सफलता से पूरे परिवार में खुशी की का माहौल बना हुआ है। नीति अग्रवाल ने युवाओं को सफलता के लिए हार्डवर्क का मंत्र दिया है। नीति अग्रवाल हरिद्वार रोड़ पर स्थित जयराम आश्रम के अपार्टमेंट में निवास करने वाले व्यापारी संजय अग्रवाल की बिटिया हैं। यूपीएससी परीक्षा की सफलता के मौके पर परिवार के सदस्य काफी उत्साहित हैं। रिजल्ट घोषणा के बाद उनके घर में रिश्तेदारों और पड़ोसियों की भीड़ जुटी है। सभी लोग नीति को बधाई देने उनके घर आ रहे हैं और घर में ढोल बाजे के साथ जश्न मनाया जा रहा है।

नीति अग्रवाल के पिता संजय अग्रवाल घाट रोड के प्रतिष्ठित चाय व्यापारी हैं और उनकी मां ऋतु अग्रवाल एक गृहिणी हैं, नीति की छोटी बहन इंजीनियर हैं। नीति ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा मॉडर्न स्कूल, ऋषिकेश से उत्तीर्ण की हैं। नीति ने कहा कि वह दो बहनें हैं। उनके माता-पिता ने हमेशा दोनों बेटियों को बेटा मानते हुए प्रोत्साहित किया है। नीति ने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को दिया है, उन्होंने बताया कि पढ़ाई के साथ-साथ मेंटली रूप से प्रिपेयर करने के लिए परिजनों ने उन्हें बहुत सपोर्ट किया और उनका साथ दिया। नीति समय-समय कोचिंग लेकर इस मुकाम तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि यूपीएससी एग्जाम को पास करने के लिए युवा को हार्डवर्क करते रहना चाहिए और जो गलतियां हो रही हैं उन्हें पहचानकर दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। नीति ने अपनी स्ट्रैटेजी साझा करते हुए बताया कि वह रोजाना दस घंटे पढ़ाई करती थी और उन्होंने मनोरंजन के साधनों को पूरी तरह से छोड़ दिया था। उन्हें तैयारी में इंटरनेट से काफी मदद मिली, उनका यह छठवां व अंतिम अटैम्प्ट था। वर्ष 2021 में नीति अग्रवाल अंतिम चरण इंटरव्यू तक पहुंची थी, सिर्फ एक अंक से रहने के कारण उनका फाइनल में चयन नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि इस आखिरी अटैम्प्ट में उन्होंने पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए व गलतियां सुधारते हुए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का प्रयास किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें सफलता मिली। नीति ने कहा कि लक्ष्य कोई भी बड़ा नहीं, जीता वही जो डरा नहीं। आपका लक्ष्य स्पष्ट है तो आप एक ने एक दिन अपनी मंजिल तक पहुंच जाओगे।

Dr Prem Kumar

पिता की साधारण हैसियत। माता गृहणी। परिवार भी कोई बड़ा और पैसे वाला नहीं। मन के अंदर मेहनत करने का जज्बा और जुनून ने एक शख्स को उस कुर्सी तक पहुंचा दिया, जहां पहुंचने का सपना उसके पिता ने देखा था। औरंगाबाद के दाउदनगर के जम्महारा निवासी डॉक्टर प्रेम कुमार अब कलेक्टर बन गए हैं। डॉक्टर साहब को अब लोग कलेक्टर साहब बुलाने लगे हैं। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में 130 वां रैंक लाया है। उनकी इस सफलता पर पूरा जिला गौरवान्वित है।

प्रेम के पिता रविन्द्र कुमार चौधरी एक किसान हैं जबकि उनकी माता रीता देवी एक गृहणी हैं। बड़ी ही लगन और मेहनत के साथ इन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया और डॉक्टर बनाया। मगर प्रेम का जुनून कुछ और ही था। उसे भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बनना था। उसने एम्स में बतौर चिकित्सक की नौकरी से इस्तीफा देकर इसकी तैयारी करनी शुरू की। हालांकि, पिछले तीन प्रयासों में प्रेम को असफलता हाथ लगी। लेकिन चौथे प्रयास में प्रेम ने सफलता अर्जित कर ली। अब ये कलेक्टर रहते हुए भी डॉक्टर की योग्यता का प्रयोग लोगों की सेवा के लिए करेंगे।

Shaurya Arora

हरियाणा के बहादुरगढ़ के ही रहने वाले शौर्य अरोड़ा ने यूपीएससी परीक्षा में अपने दूसरे प्रयास में 14 वां रैंक हासिल किया है। शौर्य अरोड़ा की बात करें तो उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से मैकिनीकल इंजीनियरिंग की हुई है। आईआईटी में भी शौर्य ने 432वीं रैंक आई थी। पढ़ाई में शुरू से ही प्रतिभाशाली रहे शौर्य ने बचपन से ही आईएएस बनने का सपना देखा था। शौर्य के पिता भूषण अरोड़ा भी यूपीएससी की परीक्षा दे चुके हैं लेकिन सफलता नहीं मिली तो बेटे में अपना सपना जीने लगे थे। शौर्य का कहना है कि सही मार्गदर्शन में बिना कोचिंग के भी सफलता मिलती है।

शौर्य हर रोज करीबन 7 घंटे पढ़ाई किया करता था। पेपर के दिनों में 10 घंटे तक भी पढ़ाई की है। शौर्य का कहना है कि उसकी सफलता में उसके पूरे परिवार का सहयोग और भावनात्मक साथ रहा है। शौर्य ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई नॉन-मेडिकल स्ट्रीम से की है। आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई करते हुए ही उसने अपना पहला अटेम्पट दिया था लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन उस पहले अटेम्पट ने उसे सफलता का रास्ता दिखा दिया था। शौर्य का कहना है कि किसी भी लक्ष्य का हासिल करने के लिए जुनून और सही मार्गदर्शन बेहद जरूरी है।

डॉ. प्रेम प्रकाश ने अपना लक्ष्य को हासिल कर लिया है। अपने गांव पहुंचे प्रेम ने बताया कि इस सफलता का श्रेय माता-पिता, गुरुजनों तथा उनके मित्रों को जाता है। उन्होंने हर कदम पर उनका भरपूर साथ दिया और हौसला अफजाई करते रहे। ध्यान रहे कि डॉ. प्रेमप्रकाश ने दाउदनगर के ही विद्या निकेतन से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने यहां वर्ष 2001 से ही पढ़ाई की और लगातार अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए। वर्ष 2013 में भागलपुर से एमबीबीएस करने के बाद एम्स दिल्ली में अपनी सेवा दी। मगर उन्हें ये काम रास नहीं आ रहा था। इसी बीच प्रेम ने एम्स में चिकित्सक पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद घरवाले काफी नाराज भी हुए। उन्होंने लगी लगाई नौकरी छोड़ने को सही नहीं माना। लेकिन अब परिजन गर्व कर रहे हैं।

यूपीएससी की परीक्षा में टॉप 2 रैंक हासिल करने वाले अनिमेष मूल रूप से ओडिशा के रहने वाले हैं। उन्होंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री हासिल की है। उनका संस्थान इंजीनियरिंग कैटेगरी के तहत नवीनतम NIRF 2023 में 16वें स्थान पर है।

अनन्या रेड्डी दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से जियोग्राफी में ग्रेजुएट हैं। उन्होंने यूपीएससी-सीएसई की परीक्षा में टॉप 3 रैंक हासिल की है। एनआईआरएफ रैंकिंग में कॉलेज टॉप स्थान पर रहा। वर्ष 2021 में ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने हैदराबाद में यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी।

केरल के रहने वाले सिद्धार्थ यूपीएससी की परीक्षा में चौथे स्थान पर रहे हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई केरल विश्वविद्यालय से की है। यहां से वह आर्किटेक्ट में ग्रेजुएट हैं। वह हैदराबाद में आईपीएस अकादमी में ट्रेनिंग ले रहे हैं।

यूपीएससी की परीक्षा में टॉप 5 रैंक हासिल करने वाली रुहानी दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट हैं। उन्होंने अपने छठे प्रयास में यूपीएससी एग्जाम क्रैक करने में सफल रहे हैं। रूहानी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की हैं। उन्होंने भारतीय आर्थिक सेवा अधिकारी के रूप में नीति आयोग में दो साल तक काम भी किया है।

दिल्ली की रहने वाली सृष्टि ने पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की हैं। वह वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक के मुंबई कार्यालय में ह्यूमन रिसोर्स ऑफिसर की रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में भी काम किया है। उनके पिता भी दिल्ली पुलिस में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर थे। उन्होंने पहले प्रयास में ही टॉप 10 में जगह बनाई है।

जम्मू-कश्मीर की रहने वाली अनमोल ने गुजरात की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट की हैं। उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की हैं किश्तवाड़ की लड़की ने पिछले साल जेकेएएस परीक्षा में भी टॉप किया था। वह जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) के तहत JKAS ऑफिसर के तौर पर ट्रेनिंग ले रही हैं।

आशीष कुमार ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (IIT Kharagpur) से डुअल डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने अपने पांचवें प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा को पास करने में सफल रहे हैं। वह खाना पकाने को अपनी ताकत में से एक मानते हैं।

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साइकिल

दूर सुदूर गाँव
गाँव की पगडंडी
पर सड़क है पक्की
सीमेंट की डामर की
रौंदती सड़क को
बेख़ौफ़ मोटरें
और बाईं ओर चल रहीं है
तीन साइकिलें
बेफिक्र बेपरवाहकुछ गज की दूरी पर
ठीक उनके पीछे
तीन और साइकिलें
बेफिक्र बेपरवाह
दौड़ता है एक ट्रक
रंभाते हुए
चिल्लाते हुए
डराते हुए

सड़क के बीचोंबीच
बेख़ौफ़ है साइकिलें
न मुड़ती है पीछे
न देखती पलटकर
निडर सी बढ़ रही है
आगे और आगे
कंधे उसके सम्भाले हैं
एक भारी बस्ता
जिसमें सुग़बुगा रही है
सभ्यता
कुलबुला रही है
संस्कृतिदबी रही है वह
झुकी रही है
जिस बोझ से
सदियों से
पर रुकी नहीं है
चलती रही है
डगमगाती हुई
लड़खड़ाती हुई
गाँव की पगडंडी पर
सदियों सेपर अब नहीं
निकल चुकी है वह
डर के आगे के
जीत की ओर
नहीं रुकेगी
न पलटेगी पीछे
न देखेगी मुड़कर
न फँसेगी जाल में
उन रंभाते ट्रकों के
सरसराती मोटरों के
जो रोके उसे
फँसाए फिर से
और ले जाये सदियों पूर्व

उसी खंडहर में
जहां से निकल भागी है वह
इस साइकिल पर
सड़क के बीचोंबीच
दूर सुदूर गाँव में
(डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ साहित्यिक पत्रिका ‘पुष्पक साहित्यिकी’ की संपादक है।)
संपर्क : शांडिल्य सार्त्रम, E-54, मधुरा नगर, हैदराबाद – 5000038
फोन : 9908855400
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विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल 2024ः धरोहर – तथ्य और कथ्य

आज जब की विश्व विरासत दिवस मना रहे है ऐसे में इस दिवस की सार्थकता के लिए जरूरी है समुदाय और सरकार सदियों से उपेक्षित धरोहरों को संभालने, संवारने और जीवित रखने पर भी विचार करें। यही नहीं यूनेस्को ने जिन स्थलों को विरासत स्थल घोषित किया है उनमें भी अधिकांश की स्थिति अच्छी नहीं हैं। हमारे देश भारत में अभी तक 40 विश्व धरोहर घोषित की गई हैं। इनके अलावा भी हजारों विरासत स्थल है जो उपेक्षा की वजह से अस्तित्व का संघर्ष कर रही हैं। कई तो धूल धूसरित हो अपना अस्तिव्व खो चुकी है।

देश को छोड़ हम राजस्थान की ही चर्चा करें तो अनेक धरोहरों की हालत के बारे में समय – समय पर लेखकों और मीडिया द्वारा समाचार पत्रों की सुर्खियों में देखने को मिलता है। अकेले हाड़ोती में ही राज्य पुरात्व विभाग के अधीन करीब 55 संरक्षित स्मारक है और इससे कहीं अधिक असंरक्षित हैं। जो संरक्षित हैं उनमें से नमूने के तौर पर विश्व विरासत में शामिल झालवाड़ के गागरोन दुर्ग की हालत देख कर आने वालों की जुबानी सुनी जा सकती है या जा कर देखी जा सकती है। अटरु का गडगच मंदिर पत्थरों का ढेर बन गया है अन्य मंदिर खंडहर बन रहे हैं। दरा घाटी में गुप्तकालीन शिव मंदिर के चार स्तंभ मंदिर होने का अहसास कराते हैं। संरक्षित स्मारकों के हालात ऐसे हैं तो इस सूची के बाहर अन्य स्मारकों का तो क्या कहें। ऐसे स्मारकों को खोजबीन कर लेखक प्रकाश में लाते रहते हैं। आजादी के 75 सालों में और 42 वें विश्व धरोहर दिवस के संदर्भ में देश में सबसे ज्यादा हास विरासत का हुआ और आज भी उपेक्षित ही बनी हुई है।

सवाल उठता है कि आखिर हमारी गौरवशाली धरोहर का संरक्षण, रखरखाव और जीर्णोधार कैसे हो? एक कदम यह हो सकता है की पुरातत्व विभाग के स्मारकों के बारे में एक कील भी नहीं लगेगी जैसे नियमों का सरलीकरण किया जाना चाहिए। स्मारकों के जीर्णोधार और रख रखाव में जनभागीदारी को व्यापक रूप से जोड़ा जाने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में बेस कीमती मूर्तियां चोरी चली जाती हैं। सुरक्षा की दृष्टि से स्थानीय स्तर पर समुदाय और संस्थाओं जेसे पंचायत, नगरपालिका आदि का सहयोग लिया जा सकता है।

जरूरी है की संरक्षण और जीर्णोधार के लिए दो स्तर पर कार्ययोजना बनाई जाए , एक लघु अवधि की तात्कालिक योजना और दूसरी लंबी अवधि की दीर्घकालिक योजना। व्यापक सर्वेक्षण किया जा कर धरोहरों की सूची बने और उसके आधार पर स्थिति का आंकलन करते हुए एक ब्लू प्रिंट तैयार हो और कार्यकारी योजना बनाई जाए। जो बीत गया,जितना क्षरण हो चुका उसकी भरपाई तो संभव नहीं पर जो कुछ बचा है उसी को बचाने और संरक्षित रखने पर आज के दिन विचार हो तो यहीं इस दिवस की सार्थकता हो सकती है।

विश्व धरोहर दिवस के संदर्भ में चर्चा करें तो सांस्कृतिक धरोहर स्थलों में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, शिलालेख, गुफा आवास, विश्व महत्व वाले स्थान, इमारतों का समूह, मूर्तिकारी-चित्रकारी-स्थापत्य की झलक वाले स्थल, ऐतिहासिक, सौन्दर्य एवं मानव विज्ञान तथा विश्व दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को शामिल किया जाता है। प्राकृतिक धरोहर स्थल में वन क्षेत्र, जीव, प्राकृतिक स्थल, भौगोलिक महत्व के ऐसे स्थान जो नष्ट होने के करीब हैं, वैज्ञानिक महत्व की जगह आदि को शामिल किया जाता है। जो स्थल सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, उन्हें मिश्रित धरोहर में शामिल किया जाता है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को देखें तो संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को संस्था की पहल पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि की गई, जो विश्व के सांस्कृतिक, प्राकृतिक स्थलों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। वर्ष 1982 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ माउंटेस एंड साईट (ईकोमार्क) नामक संस्था ने टयूनिशिया में अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया गया तथा इसी सम्मेलन में सर्वसम्मति से निर्णय लेकर विश्व में प्रतिवर्ष ऐसी संरक्षित धरोहर के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए 18 अप्रेल को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत दिवस आयोजित करने की घोषणा की गई।

किसी भी स्थान विशेष की धरोहर को संरक्षित करने के लिए ’अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिसर’ तथा ’विश्व संरक्षण संघ’ द्वारा आंकलन कर विश्व धरोहर समिति से सिफारिश की जाती है। समिति की बैठक वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है।

करीब 142 राष्ट्रीय पार्टियों में स्थित समस्त विश्व धरोहरों का वर्गीकरण पांच भूगोलिय भूमंडलों में किया गया है। भूगोलिय भूमंडलों में अफ्रीका, अरब राज्य जिनमें आस्ट्रेलिया और ओशनिया भी शामिल हैं, यूरोप और उत्तरी अमेरिका विशेषतः संयुक्त राज्य और कनाडा तथा दक्षिणी अमेरिका एवं कैरीबियन आते हैं। रूस एवं काॅकेशस राष्ट्र यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका भूमंडल में शामिल किए गए हैं। यूनेस्को द्वारा अब तक विश्व में 1157 धरोहर स्थलों का चिन्हिकरण कर उन्हें विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। इनमें ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक संपदा से भरपूर हमारे अपने भारत देश में 40 स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।

विश्व धरोहर में शामिल होने का सिलसिला वर्ष 1983 से अनवरत चल रहा है। भारतीय सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से भारत में वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश में आगरा का ताजमहल एवं किला, महाराष्ट्र में अजंता एवं एलोरा की गुफाएं, वर्ष 1984 में उडीसा राज्य का कोणार्क मंदिर व तमिलनाडु के महाबलीपुरम के स्मारक, वर्ष 1985 में असम का कांजीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य तथा असम का मानस राष्ट्रीय अभ्यारण्य, वर्ष 1986 में गोवा का पुराना चर्च, कनार्टक में हम्पी के स्मारक, मध्यप्रदेश में खजुराहो के मंदिर एवं स्मारक व उत्तर प्रदेश में फतेहपुर सीकरी, वर्ष 1987 में महाराष्ट्र में एलीफैंटा की गुफाएं, तमिलनाडु का चोल मंदिर, कर्नाटक में पट्टाइक्कल के स्मारक, पश्चिम बंगाल का सुंदरवन राष्ट्रीय अभ्यारण्य को विश्व धरोहर में शामिल किया गया।

ऐसे ही वर्ष 1989 में मध्यप्रदेश स्थित सांची के बौद्ध स्तूप, वर्ष 1993 में दिल्ली का हुमायूं का मकबरा एवं कुतुबमीनार तथा मध्यप्रदेश में भीमवेटका, वर्ष 2002 में बिहार में महाबोधि मंदिर बौधगया, वर्ष 1999 में पश्चिम बंगाल में भारतीय पर्वतीय रेल दार्जिलिंग, वर्ष 2004 में गुजरात में चंपानेर पावागढ़ का पुरातत्व पार्क तथा महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, वर्ष 2005 में उत्तराखंड में फूलों की घाटी एवं तमिलनाडु में भारतीय पर्वतीय रेल नीलगिरी, वर्ष 2007 में दिल्ली का लाल किला, वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश में भारतीय पर्वतीय रेल कालका-शिमला, वर्ष 2012 में पश्चिमी घाट कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, वर्ष 2014 में गुजरात में रानी की वाव पाटन तथा हिमाचल प्रदेश में ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान कुल्लू एवं वर्ष 2016 में चंडीगढ़ केपिटल काॅम्पलेक्स, कंचनजंगा नेशनल पार्क सिक्किम,नालंदा, बिहार, 2017 में अहमदबाद का ऐतिहासिक शहर,गुजरात, 2018 में विक्टोरिया गोथिक एंड आर्ट मुंबई महाराष्ट्र, 2021 में कालेश्वर मंदिर तेलंगाना और 2022 में हड़प्पा सभ्यता, धोलावीरा, गुजरात को विश्व विरासत घोषित किया गया।

राजस्थान में वर्ष 1985 में भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय अभ्यारण्य प्रथम बार विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। इसके उपरांत वर्ष 2010 में जयपुर के जंतर-मंतर तथा वर्ष 2013 में पहाड़ी किलों में आमेर का किला, झालावाड़ में गागरोन का किला, चित्तौड़गढ़ किला, राजसमंद का कुंभलगढ़, सवाई माधोपुर का रणथंभौर दुर्ग तथा जैसलमेर का सोनार किला तथा 2000 में जयपुर की चारदीवारी को विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।

पुरातत्व और संग्रहालय विभाग राजस्थान वर्ष 1950 में स्थापित, कला और वास्तुकला के विभिन्न रूपों में सन्निहित सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित, संरक्षित, प्रदर्शित और व्याख्या करता है। इसके नियंत्रण 17 संग्रहालय और 322 संरक्षित स्मारक हैं,जिनमें उत्कृष्ट मंदिर, विशाल मस्जिद, बड़े किले, कलात्मक स्मारक, नक्काशीदार और चित्रित हवेलियाँ आदि शामिल हैं।

विश्व विरासत दिवस पर संरक्षित धरोहरों का स्मरण अच्छा है और प्रत्येक का प्रयास होना चाहिए कि वह इस दिवस को आवश्यक रूप से मनाए। इसके लिए आप अपने शहर या शहर के नजदीक स्थल को देखने जा सकते हैं, अपने बच्चों को दिखा सकते हैं तथा आपके यहां आने वाले मेहमानों को भी इन स्थलों की सैर करा सकते हैं। विद्यालय प्रबंधक भी ऐसे स्थलों या उपलब्ध संग्रहालय का अवलोकन बच्चों का सामूहिक रूप से करा सकते हैं। राजस्थान में सरकार द्वारा संचालित संग्रहालयों को देखने के लिए इस दिन किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। इसका उद्देश्य यही है कि बच्चे और वहां के नागरिक अधिकाधिक संग्रहालयों में जाएं तथा वहां संजोई गई अपनी समृद्ध विरासत को देखें और समझें। ऐसे स्थलों को देखकर हमें हमारी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं भौगोलिक संपदा पर गर्व होगा और हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हम जिस देश-प्रदेश के निवासी हैं, वह कितनी समृद्ध विरासत अपने में संजोए है। साथ ही विरासत को बचाने, संवारने, जीर्णोधार और सुरक्षा की भी चिंता और चिंतन कर उपायों को कारगर बनाए।

(लेखक मान्यताप्राप्त वरिष्ठ पत्रकार हैं कोटा में रहते हैं और ऐतिहासिक साहित्यिक, सासंस्कृतिक व पर्यटन से जुड़े विषयों पर नियमित लेखन करते हैं। )

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पश्चिम रेलवे का 69वाँ रेल सप्ताह पुरस्कार समारोह सम्पन्न

मुंबई। पश्चिम रेलवे के 69वें रेल सप्ताह पुरस्कार समारोह का आयोजन सोमवार, 16 अप्रैल, 2024 को नरीमन पाॅइंट स्थित यशवंतराव चव्हाण ऑडिटोरियम में किया गया। यह पुरस्कार समारोह हर साल पश्चिम रेलवे के अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम की कड़ी मेहनत और समर्पण को सम्मानित करने के लिए आयोजित किया जाता है, जो हमेशा चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। रेल सप्ताह के दौरान विभिन्न श्रेणियों में मंडलों/इकाइयों को दक्षता शील्डें प्रदान की गईं।

इस महत्वपूर्ण अवसर पर महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र ने उन मंडलों और इकाइयों को  प्रतिष्ठित महाप्रबंधक की समग्र कार्यकुशलता शील्ड सहित  27 दक्षता शील्डें प्रदान कीं, जिन्हें वर्ष 2023-24 के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सबसे कुशल पाया गया। अहमदाबाद मंडल ने सर्वश्रेष्ठ समग्र कार्य-निष्पादन के लिए वर्ष 2023-24 के लिए महाप्रबंधक महाप्रबंधक की समग्र दक्षता शील्ड हासिल की। बेस्ट इंप्रूवमेंट शील्ड भावनगर मंडल को प्रदान की गई जबकि रनर-अप शील्ड मुंबई सेंट्रल मंडल को प्रदान की गई।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री सुमित ठाकुर द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मुंबई सेंट्रल मंडल ने रोलिंग स्टॉक और सुरक्षा शील्ड हासिल की। सिगनल और टेलीकॉम शील्ड संयुक्त रूप से मुंबई सेंट्रल और अहमदाबाद मंडलों को मिली, जबकि कमर्शियल शील्ड मुंबई सेंट्रल और रतलाम मंडलों को संयुक्त रूप से प्रदान की गई। बांद्रा टर्मिनस के रनिंग रूम को सर्वश्रेष्ठ रखरखाव वाले रनिंग रूम के रूप में चुना गया, जबकि परेल वर्कशॉप को सर्वश्रेष्ठ वर्कशॉप शील्ड (मैकेनिकल) का गौरव प्राप्त हुआ।

वडोदरा मंडल ने ट्रैक मशीन (सिविल इंजीनियरिंग), ट्रैक्शन शील्ड, मेडिकल शील्ड, कार्मिक शील्ड और सुरक्षा शील्ड के लिए इंटर डिवीजनल शील्ड हासिल की। अहमदाबाद मंडल के साथ वडोदरा मंडल ने इंटर डिवीजनल स्वच्छता शील्ड्स (वाणिज्यिक शाखा) हासिल की। अहमदाबाद मंडल ने सिविल इंजीनियरिंग शील्ड और लेवल क्रॉसिंग (सिविल इंजीनियरिंग) को खत्म करने की दिशा में सर्वश्रेष्ठ रोड सेफ्टी कार्यों के लिए  इंटर डिवीजन शील्ड के साथ-साथ ईएनएचएम ट्रॉफी भी हासिल की। सर्वश्रेष्ठ मंडल के लिए स्क्रैप मोबिलाइजेशन शील्ड संयुक्त रूप से अहमदाबाद और भावनगर मंडलों को मिली है। सर्वश्रेष्ठ लोडिंग एफर्ट शील्ड संयुक्त रूप से अहमदाबाद और राजकोट मंडलों द्वारा प्राप्त की गई है, जबकि सर्वे एंड कंस्ट्रक्शन शील्ड संयुक्त रूप से अहमदाबाद और रतलाम मंडलों को दी गई है।

अहमदाबाद मंडल के कांकरिया कोचिंग (KKF) डिपो ने ट्रेन संख्या   12957/58 अहमदाबाद-नई दिल्ली स्वर्ण जयंती राजधानी एक्सप्रेस के लिए सर्वश्रेष्ठ रखरखाव वाली मेल/एक्सप्रेस ट्रेन की शील्ड जीती। साबरमती-कारखाने को राजभाषा शील्ड प्राप्त हुई है। रतलाम मंडल ने अकाउंट्स शील्ड, ऑपरेटिंग शील्ड और स्टोर्स शील्ड (दाहोद जिला) हासिल की। सर्वश्रेष्ठ मंडल शील्ड के लिए ऊर्जा दक्षता शील्ड संयुक्त रूप से रतलाम और भावनगर मंडलों को मिली है। श्री अशोक कुमार मिश्र द्वारा संबंधित मंडल रेल प्रबंधकों, मुख्य निर्माण प्रबंधकों और डिपो प्रभारियों को शील्ड प्रदान की गईं।

फोटो कैप्शन: पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र अहमदाबाद मंडल को उनके उत्कृष्ट समग्र प्रदर्शन के लिए 2023-24 के लिए महाप्रबंधक की समग्र दक्षता शील्ड प्रदान करते हुए।

इस अवसर पर पश्चिम रेलवे महिला कल्याण संगठन (WRWWO) की अध्यक्षा श्रीमती क्षमा मिश्र, पश्चिम रेलवे के अपर महाप्रबंधक सहित प्रमुख विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ रेल अधिकारी उपस्थित थे। अपने संबोधन में श्री मिश्र ने 69वें रेलवे सप्ताह के अवसर पर शुभकामनाएं दीं। उन्होंने उल्लेख किया कि पश्चिम रेलवे ने कई चुनौतियों के बावजूद कई उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने वर्ष 2023-24 में पश्चिम रेलवे की विभिन्न उपलब्धियों को भी गिनाया और कार्यबल को संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार और इतिहासकार श्री राजेन्द्र बी. अकलेकर द्वारा लिखित “द लाइन्स ऑफ प्रॉस्पेरिटी” नामक पुस्तक का विमोचन भी हुआ। कार्यक्रम में श्री राजेन्द्रर बी. अकलेकर भी उपस्थित थे। पुस्तक का विमोचन महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र, अपर महाप्रबंधक श्री प्रकाश बुटानी, वरिष्ठ उप महाप्रबंधक श्री शलभ गोयल, प्रमुख मुख्य कार्मिक अधिकारी श्री एस. के. अलबेला एवं मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री सुमित ठाकुर द्वारा किया गया। इस पुस्तक में पश्चिम रेलवे के स्वर्णिम इतिहास, बीबी एंड सीआई रेलवे के गठन और देश के पश्चिमी हिस्से में रेलवे के विस्तार को दर्शाया गया है, जिसे सौंदर्य की दृष्टि से अलग-अलग अध्यायों में पिरोया गया है। इसमें पश्चिम रेलवे के मुख्यालय भवन के इतिहास के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। यह पुस्तक चर्चगेट स्थित पश्चिम रेलवे मुख्यालय भवन के 125 वर्ष पूरे होने के उत्सव को यादगार बनाने का एक प्रयास है, जो जनवरी 2024 में आयोजित किया गया था।

इस अवसर पर, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए और पश्चिम रेलवे की उपलब्धियों पर केंद्रित एक लघु फिल्म “बुलंदियों भरा सफर” की स्क्रीनिंग भी की गई। प्रारंभ में, पश्चिम रेलवे के प्रधान मुख्य कार्मिक अधिकारी ने अतिथियों का स्वागत किया और उप महाप्रबंधक (सामान्यय) ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छू सकता है

वर्ष 1991 में भारत के पास केवल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बच गया था जो केवल 15 दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त था। वहीं, आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है एवं यह पूरे एक वर्ष भर के आयात के लिए पर्याप्त है। आज भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चीन, जापान, स्विजरलैंड के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है। कोरोना महामारी के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से कम हुआ था, परंतु वर्ष 2022 के बाद से यह अब लगातार उतनी ही तेज गति से आगे भी बढ़ रहा है। और, अब तो यह उम्मीद की जा रही है कि आगे आने वाले समय में यह एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा।

भारत में वित्तीय एवं बैंकिंग क्षेत्र में लागू किए गए सुधार कार्यक्रमों के बाद से पिछले 33 वर्षों में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता रहा है। यह वर्ष 2004 में 14,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था, वर्ष 2014 में 32,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2024 में 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। भारत के पड़ौसी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम है, जैसे बंगलादेश के पास 2,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, नेपाल के पास 1,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर, पाकिस्तान के पास 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं श्रीलंका के पास 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। अतः भारत समय समय पर अपने पड़ौसी देशों (पाकिस्तान को छोड़कर) की इस संदर्भ में लाइन आफ क्रेडिट उपलब्ध कराकर मदद करता रहता है।

हाल ही के समय में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल हैं, भारत में लगातार बढ़ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। केंद्र सरकार द्वारा चालू किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के चलते भारत में अब व्यापार करना बहुत आसान हुआ है अतः विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं, जिसके लिए वे भारत में भारी मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ला रही हैं। दूसरे, भारतीय मूल के नागरिक जो विदेश में जाकर बस गए हैं अथवा वे वहां पर रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से गए हैं, वे इन देशों में अपनी बचत की राशि को भारत भेज रहे हैं। यह राशि पूरे विश्व में किसी भी देश में भेजने वाली राशि में सबसे अधिक है। वर्ष 2023-24 में विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों ने 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी थी।

दूसरे स्थान पर मेक्सिको रहा था जहां पर 6,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी और तीसरे स्थान पर चीन रहा था, जहां 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी। कितना बड़ा अंतर है प्रथम एवं द्वितीय स्थान के देशों में। तीसरा, कारण है कि अब भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात तेजी से बढ़ रहे हैं जबकि विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात कम हो रहे हैं। और, अब तो भारत रक्षा के क्षेत्र में भी हवाई जहाज एवं अन्य रक्षा सामग्री का निर्यात करने लगा है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में रक्षा के क्षेत्र में 21,083 करोड़ रुपए का निर्यात भारत द्वारा किया गया था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में निर्यात की गई राशि 15,920 करोड़ रुपए से 32.5 प्रतिशत अधिक था।

विश्व में अब विभिन्न देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने के पास स्वर्ण के भंडार भी बढ़ाते जा रहे हैं। आज पूरे विश्व में अमेरिका के पास सबसे अधिक 8133 मेट्रिक टन स्वर्ण के भंडार है, इस संदर्भ में जर्मनी, 3352 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ, दूसरे स्थान पर एवं इटली 2451 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है। फ्रान्स (2437 मेट्रिक टन), रूस (2329 मेट्रिक टन), चीन (2245 मेट्रिक टन), स्विजरलैंड (1040 मेट्रिक टन) एवं जापान (846 मेट्रिक टन) के बाद भारत, 812 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत ने हाल ही के समय में अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करना प्रारम्भ किया है एवं यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 मेट्रिक टन स्वर्ण भारतीय रुपए में खरीदा था।

दरअसल, किसी भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार के अधिक होने के चलते उस देश में विदेशी व्यापार करने का आत्मविश्वास जागता है क्योंकि अन्य देशों से किये गए व्यापार के एवज में विदेशी मुद्रा में भुगतान करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। साथ ही, विदेशी निवेशकों में भी विश्वास जागता है कि जिस देश में वे निवेश कर रहे हैं उस देश की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और उनका उस देश में विदेशी मुद्रा में निवेश किया गया पैसा सुरक्षित है एवं उन्हें उनका निवेश वापिस मिलने में कोई परेशानी नहीं आएगी। विदेशी मुद्रा भंडार उच्च स्तर पर होने से कोई भी विदेशी संस्थान ऋण उपलब्ध कराने में नहीं हिचकता है, क्योंकि उसे भरोसा रहता है कि ऋण का पुनर्भुगतान होने में आसानी रहेगी।

विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर पर रहने से उस देश की मुद्रा की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरने से बचाया जा सकता है। जैसे भारत में भारतीय रिजर्व बैंक ने कोरोना महामारी के दौरान एवं इसके बाद अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरने से रोकने में सफलता पाई है। जब कभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत पर दबाव दिखाई दिया है, भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को बाजार में बेचकर रुपए की कीमत को स्थिर बनाये रखा है। इस प्रकार, पिछले लगभग दो वर्षों के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत को स्थिर बनाए रखा जा सका है।

अब तो भारत लगातार यह भी प्रयास कर रहा है कि जिन देशों से विभिन्न वस्तुओं का आयात भारत द्वारा किया जा रहा हैं उन्हें इसके एवज में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर भारतीय रुपए में भुगतान किया जाए। 32 से अधिक देशों ने इस संदर्भ में अपनी स्वीकृति भारत सरकार को दे दी है एवं कई देशों ने तो भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना नोस्ट्रो खाता भी खुलवा लिया है ताकि उन्हें भारत को निर्यात किए गए सामान की राशि भारतीय रुपए में भुगतान लेने में आसानी हो सके। यदि भारत और अन्य देशों के बीच इस प्रकार की व्यवस्था सफल होती है तो इन देशों में बीच अमेरिकी डॉलर की मांग कम होगी और अमेरिकी डॉलर की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत स्थिर रखने में और भी आसानी होगी, जो कि भारत के विदेशी व्यापार को गति देने में सहायक होगी।

जिस तेज गति से भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, भारत से विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात बढ़ रहे हैं एवं आयात कम हो रहे हैं, भारत में विदेशी निवेश बढ़ रहे हैं, भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा भारत में विदेशी मुद्रा में भारी मात्रा में राशि भेजी जा रही है, इससे अब यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि आगे आने वाले समय में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा।

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“आर्य” हिन्दू राजाओं का चारित्रिक आदर्श

भारत देश की महान वैदिक सभ्यता में नारी को पूजनीय होने के साथ साथ “माता” के पवित्र उद्बोधन से संबोधित किया गया हैं।

मुस्लिम काल में भी आर्य हिन्दू राजाओं द्वारा प्रत्येक नारी को उसी प्रकार से सम्मान दिया जाता था जैसे कोई भी व्यक्ति अपनी माँ का सम्मान करता हैं।

यह गौरव और मर्यादा उस कोटि के हैं ,जो की संसार के केवल सभ्य और विकसित जातियों में ही मिलते हैं।
महाराणा प्रताप के मुगलों के संघर्ष के समय स्वयं राणा के पुत्र अमर सिंह ने विरोधी अब्दुरहीम खानखाना के परिवार की औरतों को बंदी बना कर राणा के समक्ष पेश किया तो राणा ने क्रोध में आकर अपने बेटे को हुकम दिया की तुरंत उन माताओं और बहनों को पूरे सम्मान के साथ अब्दुरहीम खानखाना के शिविर में छोड़ कर आये एवं भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की प्रतिज्ञा करे।

ध्यान रहे महाराणा ने यह आदर्श उस काल में स्थापित किया था जब मुग़ल अबोध राजपूत राजकुमारियों के डोले के डोले से अपने हरम भरते जाते थे। बड़े बड़े राजपूत घरानों की बेटियाँ मुगलिया हरम के सात पर्दों के भीतर जीवन भर के लिए कैद कर दी जाती थी। महाराणा चाहते तो उनके साथ भी ऐसा ही कर सकते थे पर नहीं उनका स्वाभिमान ऐसी इजाजत कभी नहीं देता था।

औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। हिन्दू या काफ़िर होना तो पाप ही हो गया था। धर्मान्ध औरंगजेब के अत्याचार से स्वयं उसके बाप और भाई तक न बच सके , साधारण हिन्दू जनता की स्वयं पाठक कल्पना कर सकते हैं। औरंगजेब की स्वयं अपने बेटे अकबर से अनबन हो गयी थी। इसी कारण उसका बेटा आगरे के किले को छोड़कर औरंगजेब के प्रखर विरोधी राजपूतों से जा मिला था जिनका नेतृत्व वीर दुर्गादास राठोड़ कर रहे थे।

कहाँ राजसी ठाठ-बाठ में किलो की शीतल छाया में पला बढ़ा अकबर , कहाँ राजस्थान की भस्म करने वाली तपती हुई धुल भरी गर्मियाँ। शीघ्र सफलता न मिलते देख संघर्ष न करने के आदि अकबर एक बार राजपूतों का शिविर छोड़ कर भाग निकला। पीछे से अपने बच्चों अर्थात औरंगजेब के पोता-पोतियों को राजपूतों के शिविर में ही छोड़ गया। जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसे अपने पोते पोतियों की चिन्ता हुई क्योंकि वह जैसा व्यवहार औरों के बच्चों के साथ करता था कहीं वैसा ही व्यवहार उसके बच्चों के साथ न हो जाये। परन्तु वीर दुर्गा दास राठोड़ एवं औरंगजेब में भारी अंतर था। दुर्गादास की रगो में आर्य जाति का लहू बहता था। दुर्गादास ने प्राचीन आर्य मर्यादा का पालन करते हुए ससम्मान औरंगजेब के पोता पोती को वापिस औरंगजेब के पास भेज दिया जिन्हें पाकर औरंगजेब अत्यंत प्रसन्न हुआ। वीर दुर्गादास राठोड़ ने इतिहास में अपना नाम अपने आर्य व्यवहार से स्वर्णिम शब्दों में लिखवा लिया।

वीर शिवाजी महाराज का सम्पूर्ण जीवन आर्य जाति की सेवा, रक्षा, मंदिरों के उद्धार, गौ माता के कल्याण एवं एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के रूप में गुजरा जिन्हें पढ़कर प्राचीन आर्य राजाओं के महान आदर्शों का पुन: स्मरण हो जाता हैं। जीवन भर उनका संघर्ष कभी बीजापुर से, कभी मुगलों से चलता रहा। किसी भी युद्ध को जितने के बाद शिवाजी के सरदार उन्हें नजराने के रूप में उपहार पेश करते थे। एक बार उनके एक सरदार ने कल्याण के मुस्लिम सुबेदार की अति सुन्दर बीवी शिवाजी के सम्मुख पेश की। उसको देखते ही शिवाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हो गए और उस सरदार को तत्काल यह हुक्म दिया की उस महिला को ससम्मान वापिस अपने घर छोड़ आये। अत्यंत विनम्र भाव से शिवाजी उस महिला से बोले ” माता आप कितनी सुन्दर हैं , मैं भी आपका पुत्र होता तो इतना ही सुन्दर होता। अपने सैनिक द्वारा की गई गलती के लिए मैं आपसे माफी मांगता हूँ”। यह कहकर शिवाजी ने तत्काल आदेश दिया की जो भी सैनिक या सरदार जो किसी भी ऊँचे पद पर होगा अगर शत्रु की स्त्री को हाथ लगायेगा तो उसका अंग छेदन कर दिया जायेगा।

कहाँ औरंगजेब की सेना के सिपाही जिनके हाथ अगर कोई हिन्दू लड़की लग जाती या तो उसे या तो अपने हरम में गुलाम बना कर रख लेते थे अथवा उसे खुले आम गुलाम बाज़ार में बेच देते थे और कहाँ वीर शिवाजी का यह पवित्र आर्य आदर्श। नीचे दिए चित्र मैं मुहम्मद कासिम के सिंध के दरबार का चित्र व् शिवाजी महाराज का चित्र देखें
इतिहास में शिवाजी की यह नैतिकता स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं।

इन ऐतिहासिक प्रसंगों को पढ़ कर पाठक स्वयं यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं की महानता और आर्य मर्यादा व्यक्ति के विचार और व्यवहार से होती हैं। धर्म की असली परिभाषा उच्च कोटि का पवित्र और श्रेष्ठ आचरण हैं। धर्म के नाम पर अत्याचार करना तो केवल अज्ञानता और मूर्खता हैं।

(लेखक ऐतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)

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गीतों की चांदनी में एक माहेश्वर तिवारी का होना

गीतों की चांदनी में एक माहेश्वर तिवारी का होना दूब से भी कोमल मन का होना है। गीतों की चांदनी में चंदन सी खुशबू का होना है। मह-मह महकती धरती और चम-चम चमकते आकाश का होना है। माहेश्वर तिवारी के गीतों की नदी में बहना जैसे अपने मन के साथ बहना है। इस नदी में प्रेम की पुरवाई की पुरकशिश लहरें हैं तो चुभते हुए हिलकोरे भी। भीतर के सन्नाटे भी और इन सन्नाटों में भी अकेलेपन की महागाथा का त्रास और उस की फांस भी। माहेश्वर के गीतों में जो सांघातिक तनाव रह-रह कर उपस्थित होता रहता है। निर्मल वर्मा के गद्य सा तनाव रोपते माहेश्वर के गीतों में नालंदा जलता रहता है। खरगोश सा सपना उछल कर भागता रहता है। घास का घराना कुचलता रहता है। बाहर का दर्द भीतर से छूता रहता है, कोयलों के बोल/ पपीहे की रटन/ पिता की खांसी/ थकी मां के भजन बहने लगते हैं। भाषा का छल, नदी का अकेलापन खुलने लगता है। और इन्हीं सारी मुश्किलों और झंझावातों में किलकारी का एक दोना भी दिन के संसार में उपस्थित हो मन को थाम लेता है।

क्या बादल भी कभी कांपता है? यक़ीन न हो तो माहेश्वर तिवारी के गीत में यह बादल का कांपना आप देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। बादल ही नहीं, जंगल और झील भी कांप-कांप जाते हैं। और इतनी मासूमियत से कि मन सिहर-सिहर जाता है। वास्तव में माहेश्वर तिवारी के गीतों में प्रेम और प्रकृति की उछाह, उस की विवशता, उस की मादकता का रंग अपनी पूरी गमक के साथ अपनी पूरी उहापोह के साथ उपस्थित मिलता है कि मन उमग-उमग जाता है। माहेश्वर तिवारी की गीत यात्रा के इतने मधुर, इतने मादक, इतने मनोहर मोड़ प्रेम, प्रकृति और मनुष्यता की सुगंध में इस तरह लिपटे मिलते हैं कि जैसे मन की समूची धरती झूम-झूम जाती है। माहेश्वर के गीतों में प्रेम इस धैर्य और इस उदात्तता के साथ उपस्थित मिलता है गोया वह किसी उपन्यास का धीरोदात्त नायक हो। माहेश्वर के गीतों के रूप विधान और विलक्षण बिंब अपनी पूरी व्यंजना में प्रेम के आलोक में गुंजायमान तो होते ही हैं प्रेम का एक अलौकिक संसार भी रचते हैं। इतने देशज और मिट्टी में सने बिंब माहेश्वर तिवारी के यहां अनायास मिलते हैं, जो औचक सौंदर्य रचते हुए ठिठक कर प्रेम का एक नया वितान भी उपस्थित कर देते हैं तो यहीं माहेश्वर के गीत हिंदी गीत में ही नहीं वरन विश्व कविता में भी एक नया प्रतिमान बन जाते हैं। उन के गीतों में ही प्रेम का रूपक, बिंब और व्यंजना का अविकल पाठ अपने पूरे विस्तार के साथ प्रेम के वेग का रेशा- रेशा मन में एक तसवीर की तरह पैबस्त हो जाता है। अब सोचिए कि, लौट रही गायों के/ संग-संग/ याद तुम्हारी आती/ और धूल के/ संग-संग/ मेरे माथे को छू जाती! गायों के संग लौटती माथे को छूती धूल में सन कर जब प्रिय की याद घुलती हो तो प्रेम का यह रूप कितना उदात्त और कितना मोहक मोड़ उपस्थित कर मन में किस रुपहली तसवीर का तसव्वुर मन में दर्ज होता है। फिर एक अकेली किरण का पर्वत पार करने की जिजीविषा के भी क्या कहने! और तो और इस चिड़िया हो जाने के मन का भी क्या करें। माहेश्वर के गीतों में प्रेम की कोंपलें फूटती है तो यातना के अनगिन स्वर भी। यह स्वर कभी थरथरा कर तो कभी भरभरा कर गिरते उठते है और मन को उद्वेलित करते हैं, मथते हैं। पानी में पड़े बताशे सा गलाते यह स्वर गुमसुम-गुमसुम, हकलाते संवाद की तरह उपस्थित होते हैं। चांदनी की झुर्रियां गिनते माहेश्वर के गीतों में बिना आहट संबंधों के टूटने का महीन व्यौरा भी है और झील के जल में डूबने गए कई भिनसारे भी। ऐसे जैसे कड़ाही के गरम तेल में पानी की कोई बूंद अचानक पड़ कर छन्न से बोल जाए, ऐसे ही माहेश्वर के गीत बोलते हैं। माहेश्वर तिवारी अपने गीतों में चाबुक मारते हुए घुटन के अनगिन सांकल ऐसे ही खोलते हैं। और इन खुलती संकलन को जब माहेश्वर तिवारी का मधुर कंठ भी नसीब हो जाता है तो जैसे घुटन और दुःख की नदी की विपदा पार हो जाती है। वह लिखते ही हैं, धूप में जब भी जले हैं पांव/ घर की याद आई। हिंदी गीतों की चांदनी में माहेश्वर तिवारी का यही होना, होना है। माहेश्वर के गीतों का कंचन कलश इतना भरा-भरा है, इतना समृद्ध है कि क्या कहने:
याद तुम्हारी जैसे कोई
कंचन कलश भरे।
जैसे कोई किरन अकेली
पर्वत पार करे।

लौट रही गायों के
संग-संग
याद तुम्हारी आती
और धूल के
संग-संग
मेरे माथे को छू जाती
दर्पण में अपनी ही छाया-सी
रह-रह कर उभरे,
जैसे कोई हंस अकेला
आंगन में उतरे।

जब इकला कपोत का जोड़ा
कंगनी पर आ जाए
दूर चिनारों के
वन से
कोई वंशी स्वर आए
सो जाता सूखी टहनी पर
अपने अधर धरे
लगता जैसे रीते घट से
कोई प्यास हरे।

फिर वह जब नदी, झील, झरनों सा बह कर चिड़िया हो जाने की खुशी भी किसी बच्चे की बेसुध ललक की तरह बांचते हैं और मौसम पर छा जाने की बात करते हैं तो मन वृंदावन हो जाता है:
नदी झील
झरनों सा बहना
चाह रहा
कुछ पल यों रहना

चिड़िया हो
जाने का मन है

फिर जब मूंगिया हथेली पर एक और शाम रचते हुए बांहों में याद के सीवान कसने का जो रूपक गढ़ते हैं, जो सांसों को आमों के बौर में गमकाते हैं तो उन का यह चिड़िया हो जाने का मन का मेटाफर मदमस्त हो कर मुदित हो जाता है:
भरी-भरी मूंगिया हथेली पर
लिखने दो एक शाम और।

कांप कर ठहरने दो
भरे हुए ताल
इंद्र धनुष को
बन जाने दो रूमाल
सांसों तक आने दो
आमों के बौर।

झरने दो यह फैली
धूप की थकान
बांहों में कसने दो
याद के सिवान
कस्तूरी-आमंत्रण जड़े
ठौर-ठौर।

और वह अजानी घाटियों में शीतल-हिमानी छांह के छोड़ आने का विलाप भी जब माहेश्वर अपनी पूरी मांसलता में दर्ज करते हैं तो मन के भीतर जैसे अनगिन घंटियां बज जाती हैं। मंदिर की निर्दोष घंटियां। भटका हुआ मन जैसे थिर हो जाता है प्यार की उस हिमानी छांह में। और विदा की वह बांह जैसे थाम-थाम लेती है:
छोड़ आए हम अजानी
घाटियों में
प्यार की शीतल-हिमानी छांह।

हंसी के झरने,
नदी की गति,
वनस्पति का
हरापन
ढूढ़ता है फिर
शहर-दर-शहर
यह भटका हुआ मन
छोड़ आए हम हिमानी
घाटियों में
धार की चंचल, सयानी छांह।

ऋचाओं-सी गूंजती
अंतर्कथाएं
डबडबाई आस्तिक ध्वनियां,
कहां ले जाएं
चिटकते हुए मनके
सर्प के फन में
पड़ी मणियां,
छोड़ आए हम पुरानी घाटियों में
कांपते-से पल, विदा की बांह।

और नंगे पावों में नर्म दूब की जो वह छुअन जाग जाए तो? मन में रंगोली रच जाए तो? तब कोयल बोलती है महेश्वर के गीतों में। स्वर की पंखुरी खुलती है, हंसते-बतियाते:
बहुत दिनों के बाद
आज फिर
कोयल बोली है

बहुत दिनों के बाद
हुआ फिर मन
कुछ गाने का
घंटों बैठ किसी से
हंसने का-बतियाने का

बहुत दिनों के बाद
स्वरों ने
पंखुरी खोली है

शहर हुआ तब्दील
अचानक
कल के गांवों में
नर्म दूब की
छुअन जगी
फिर नंगे पांवों में

मन में कोई
रचा गया
जैसे रंगोली है।

माहेश्वर के यहां तो पेड़ों का रोना भी इस चुप और इस यातना के साथ दर्ज होता है कि पत्ता, टहनी, सपना, शहर, जंगल सब के सब एक लंबी ख़ामोशी के साथ साक्ष्य बन कर उपस्थित हो जाते हैं:
कुहरे में सोये हैं पेड़
पत्ता पत्ता नम है
यह सबूत क्या कम है

लगता है
लिपट कर टहनियों से
बहुत बहुत
रोये हैं पेड़

जंगल का घर छूटा
कुछ कुछ भीतर टूटा
शहरों में
बेघर होकर जीते
सपनों में खोये हैं पेड़

वह एक गहरी उदासी में खींच ले जाते है आहिस्ता-आहिस्ता और कच्ची अमियों वाली उदासी शाम पर इस तरह तारी हो जाती है गोया; भीतर एक अलाव जला कर/ गुमसुम बैठे रहना/ कितना/ भला-भला लगता है अपने से कुछ कहना, हो जाता है। अब घरों से खपरैल भले विदा हो गए हैं, खेतों से बैल और रात से ढिबरी भी अपने अवसान की राह पर हैं लेकिन माहेश्वर के गीतों में इन का धूसर और मोहक बिंब अपने पूरे कसैलेपन, सारी कड़वाहट और पूरी छटपटाहट के साथ एकसार हैं ऐसे जैसे भिनसार का कोई सपना टूट गया हो, अपनेपन की कोई ज़मीन दरक गई हो:
गर्दन पर, कुहनी पर
जमी हुई मैल-सी।
मन की सारी यादें
टूटे खपरैल-सी।

आलों पर जमे हुए
मकड़ी के जाले,
ढिबरी से निकले
धब्बे काले-काले,
उखड़ी-उखड़ी साँसे हैं
बूढे बैल-सी।

हम हुए अंधेरों से
भरी हुई खानें,
कोयल का दर्द यह
पहाड़ी क्या जाने,
रातें सभी हैं
ठेकेदार की रखैल-सी।

माहेश्वर के गीतों में इतवार भी इस कातरता के साथ बीतता है गोया किसी नन्हे बच्चे का गीत कोई कीड़ा कुतर गया हो:
मुन्ने का तुतलाता गीत-
अनसुना गया बिल्कुल बीत
कई बार करके स्वीकार।
सारे दिन पढ़ते अख़बार।
बीत गया है फिर इतवार।

और थके हारे लोगों का साल भी ऐसे क्यों बीतता है भला, जैसा माहेश्वर बांचते हैं:
बघनखा पहन कर
स्पर्शों में
घेरता रहा हम को
शब्दों का
आक्टोपस-जाल

कहीं पास से/ नया-नया फागुन का/ रथ गुज़रा है जैसे गीतों में उन की बेकली जब इस तरह उच्चारित होती है; जिस तरह ख़ूंख़ार/ आहट से सहम कर/ सरसराहट भरा जंगल कांप जाता है। तो यह सब अनायास नहीं होता है:
मुड़ गए जो रास्ते चुपचाप
जंगल की तरफ़,
ले गए वे एक जीवित भीड़
दलदल की तरफ़।

आहटें होने लगीं सब
चीख़ में तब्दील,
हैं टंगी सारे घरों में
दर्द की कन्दील,

मुड़ गया इतिहास फिर
बीते हुए कल की तरफ़।

नालंदा जलता है तो बर्बरता का कोई नया अर्थ पलता है। तक्षशिला और नालंदा की यातना एक है। एकमेव है। नदी का अकेलापन कैसे तो तोड़ता है माहेश्वर के गीतों में और मन उसे बांचते हुए क्षण-क्षण टूटता है, दरकता है:
सूरज को
गोद में
बिठाये अकुलाना
सौ नए बहनों में
एक सा बहाना

माहेश्वर तिवारी के गीतों में सांघातिक तनाव के इतने सारे तंतु हैं, इतने सारे पड़ाव हैं, इतने सारे विवरण हैं कि वह मन में नदी की तरह बहने लगते हैं। देह में नसों के भीतर चलने और नसों को चटकाने लगते हैं:
लगता जैसे
हरा-भरा चंदन वन
जलता है
कोई पहने बूट
नसों के भीतर
चलता है

मन ही नहीं माहेश्वर घर भर की स्थितियों को बांचने लगते हैं। उन का तापमान दर्ज करने लगते हैं।
सुबह-सुबह
किरनों ने आ कर
जैसे हमें छुआ
सूरज उगते ही
घर भर का माथा गर्म हुआ

माहेश्वर के गीतों में बेचैनी, प्यार और उस की धार और जीवन की अनिवार्य उदासियां इस सहजता से गश्त करती हैं गोया सड़क पर ट्रैफिक चल रही हो, गोया किसी राह में कोई गुजरिया चल रही हो, गोया नदी में नाव चल रही हो, गोया किसी मेड़ पर चढ़ते-उतरते कोई राही अपने पैरों को साध रहा हो और अपनी बेचैनियों को बेवजह बांच रहा हो:
धूप थे, बादल हुए, तिनके हुए
सैकड़ों हिस्से गए दिन के हुए
उदासी की पर्त-सी जमने लगी
रेंगती-सी भीड़ फिर थमने लगी
हम कभी उन के, कभी इन के हुए

माहेश्वर के गीतों में बतकही, उम्मीद और तितलियों के किताबों से निकलने की तस्वीरें और उन की गंध भी हैं। फूल वाले रंग भी हैं और बदहाल वैशाली और आम्रपाली भी। तक्षशिला और नालंदा की यातना भी। डराता हस्तिनापुर भी झांकता ही है। यातना और तनाव के इन व्याकुल पहर में लेकिन उत्सव मनाती दूब भी है अपनी पलकें उठाती, घुटन की सांकलें खोलती और एक गहरी आश्वस्ति देती हुई। और इन सब में भी प्यार और उस की बारीक इबारत बांचती साहस और उम्मीद की वह किरण भी जो अकेली पर्वत पार करती बार-बार मिलती है ऐसे जैसे देवदार के हरे-हरे, लंबे-लंबे वृक्ष मन के पर्वत में उग-उग आते हों। सारी अड़चनें और बाधाएं तोड़-ताड़ कर। माहेश्वर तिवारी के गीतों की यही ताकत है। हम इसी में झूम-झूम जाते हैं। फिर जब इन गीतों को माहेश्वर तिवारी का मीठा कंठ भी मिल जाता है तो हम इन में डूब-डूब जाते हैं। इन गीतों की चांदनी में न्यौछावर हो-हो जाते हैं। माहेश्वर तिवारी हम में और माहेश्वर तिवारी में हम बहने लग जाते हैं। अजानी घाटियों में, प्यार की शीतल-हिमानी छांह में सो जाते हैं। माहेश्वर तिवारी के गीतों की तासीर ही यही है। करें तो क्या करें?

साभार-https://sarokarnama.blogspot.com/2015/07/blog-post_21.html

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वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा 36 प्रतिशत कम हुआ

विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के व्यापार घाटे में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है।

यह विशेष रूप से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में की गई कमी के चलते सम्भव हो सका है। केंद्र सरकार लगातार पिछले 10 वर्षों से यह प्रयास करती रही है कि भारत न केवल विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने बल्कि विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन भी भारत में ही प्रारम्भ हो। अब यह सब होता दिखाई दे रहा है क्योंकि भारत के आयात तेजी से कम हो रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराईल-हम्मास युद्ध, लाल सागर व्यवधान, पनामा रूट पर दिक्कत के साथ ही वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के हिचकोले खाने के बावजूद भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में मामूली बढ़ौतरी दर्ज हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत के व्यापार घाटे में आई 36 प्रतिशत की कमी के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है।

भारत का कुल व्यापार घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 के 12,162 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम होकर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 7,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में वस्तुओं का कुल आयात 67,724 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 71,597 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.41 प्रतिशत कम है। जबकि वस्तुओं के कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मामूली 3.11 प्रतिशत गिरकर 43,706 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं। देश के कुल निर्यात एवं आयात के बीच के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान देश में वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के अंतर का व्यापार घाटा 24,017 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। परंतु, यदि वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़ों में सेवाओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़े भी जोड़ दिए जाएं तो स्थिति बहुत अधिक सुधर जाती है।

भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष के उच्चत्तम रिकार्ड स्तर से भी आगे बढ़कर 77,668 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है, यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में 77,640 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। इसमें वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान किया गया सेवाओं का निर्यात, जो 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 33,962 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, भी शामिल है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, औषधियों एवं इंजीनीयरिंग वस्तुओं का अच्छा प्रदर्शन रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,355 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 2,912 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.64 प्रतिशत अधिक है।

इसी प्रकार, दवाओं एवं औषधियों का निर्यात भी 9.67 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,539 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 2,785 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, इंजीनीयरिंग वस्तुओं का निर्यात भी 2.13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10,932 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। कुल मिलाकर, भारत से वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान निर्यात में वृद्धि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, दवाएं एवं चिकित्सा, इंजीनियरिंग उत्पादों, लौह अयस्क (वृद्धि दर 117.74 प्रतिशत), सूती धागा (यार्न एवं फैब्रिक में वृद्धि दर 6.71 प्रतिशत), फल एवं सब्जी (वृद्धि दर 13.86 प्रतिशत), तम्बाकू (19.46 प्रतिशत), मांस, डेयरी और पौलट्री उत्पाद (12.34 प्रतिशत), अनाज एवं विविध प्रसंस्कृत वस्तुएं (8.96 प्रतिशत), मसाला (12.30 प्रतिशत), तिलहन (7.43 प्रतिशत), आयल मील्स (7.01 प्रतिशत), हथकरघा उत्पाद एवं सेरेमिक उत्पाद तथा कांच के बर्तनों (14.44 प्रतिशत) के निर्यात के चलते सम्भव हो सकी है। साथ ही, यह वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के प्रमुख निर्यात बाजार में अमेरिका, यूनाइटेड अरब अमीरात, यूरोपीयन यूनियन देशों, ब्रिटेन, सिंगापुर, मलेशिया, बांग्लादेश, नीदरलैंड, चीन व जर्मनी जैसे देशों के शामिल होने से भी सम्भव हो सका है।

वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव के चलते भी विशेष रूप से मार्च 2024 माह में तो भारत से वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने उच्चत्तम स्तर 4,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि वस्तुओं के आयात मार्च 2024 माह में 5.98 प्रतिशत की कमी दर्ज करते हुए हुए 5,728 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर नीचे आ गए हैं। इस प्रकार मार्च 2024 माह में वस्तुओं का व्यापार घाटा लगातार कम होकर केवल 1,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रह गया है। इसकी पूर्ति सेवाओं के क्षेत्र से निर्यात में हो रही लगातार बढ़ौतरी से सम्भव हो रही है।

अब तो सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत कुल विदेश व्यापार में आधिक्य की स्थिति भी हासिल कर ले। वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में वृद्धि के साथ एवं वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात में लगातार हो रही कमी के चलते यह सम्भव हो सकता है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कुल व्यापार घाटे (वस्तुओं एवं सेवाओं को मिलाकर) में आई भारी कमी के चलते अब यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि आगे आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की मांग भी बढ़ सकती है और पिछले कई दशकों के दौरान भारतीय रुपए में आ रही लगातार गिरावट को रोककर अब भारतीय रुपया न केवल स्थिर हो जाएगा (वैसे पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान भारतीय रुपया 83 रुपए प्रति डॉलर के आसपास लगभग स्थिर तो हो ही चुका है) बल्कि भारतीय रुपए की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती है। भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के साथ विनिमय दर वर्ष 1982 में 9.46 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर से 31 मार्च 2023 में 82.17 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई थी। परंतु, पिछले एक वर्ष के दौरान यह विनिमय दर लगभग स्थिर ही रही है। दूसरे, अब कई देश भारत के साथ विदेशी व्यापार को रुपए एवं उन देशों की स्वयं की मुद्रा में करने को सहमत हो रहे हैं। जिसके कारण भारत एवं इन देशों के बीच होने वाले विदेशी व्यापार का भुगतान करने हेतु अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम होगी, बल्कि भारतीय रुपए में ही भुगतान सम्भव हो सकेगा। इस प्रकार के व्यवहार यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते हैं तो विश्व में विडालरीकरण की प्रक्रिया को भी गति मिल सकती है। भारतीय रुपए में व्यापार करने हेतु रूस, सिंगापुर, ब्रिटेन, मलेशिया, इंडोनेशिया, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, कतर सहित लगभग 32 देशों ने भारत के साथ समझौता किया है एवं भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना वोस्ट्रो खाता भी खोल लिया है ताकि इन देशों को भारत के साथ किए जाने वाले विदेशी व्यवहारों के निपटान को भारतीय रुपए में करने में आसानी हो सके।

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आखिर लोग मोदीजी के दीवाने क्यों हैं…

प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रशंसक होने और उनकी राजनीतिक शक्ति और इच्छा के अतिरिक्त उनका पक्ष लेने के कई कारण हैं।

1.मोदी कभी भी फटे-पुराने कपड़ों,बिखरे बालों या गन्दी स्थिति में नहीं दिखेंगे!

2.उनकी बॉडी लैंग्वेज बहुत प्रभावशाली है। चाल मर्दानगी भरी है।

3.वो भगवा वस्त्र में एक साधु लगते हैं,सैन्य पोशाक में सैनिक दिखते हैं,साधारण कपड़ों में भी एक दिव्य राजकुमार लगते हैं।

4.देशभक्ति उनकी सांस है और अनुशासन उनका ब्लड ग्रुप है।

5.भले ही वो दुनिया के किसी भी महान हस्ती के साथ खड़े हों,पर उनकी प्रतिभा मोदी के सम्मुख मुट्ठीभर लगती है। अन्य प्रतिभाएँ भी बौनी लगती हैं।

6.हमने अतीत में ऐसा कोई नेता नहीं देखा जिसने चुनाव से पहले इतने असंभव वादों को पूरा किया हो।

7.देश के शीर्ष नेता होते हुए भी वो अपने परिवार पर कोई विशेष उपकार नहीं करते। उनके भाई-बहन उनके आसपास कभी नहीं देखे जाते।

8.वो कभी भी एक छुट्टी तक नहीं लेते।

9.वो कभी रोगग्रस्त ही नहीं होते।

10.वो जानते हैं-कितना कहना है,कब चुप रहना है और कैसे दूसरे व्यक्ति को चुप करना है।

11.सारी व्यस्तता के बीच भी वो कोई वेदी नहीं है,उनका सेंस ऑफ ह्यूमर अद्भुत है।

12.उनका उदबोधन तेज और अद्वितीय होता है। अभिव्यक्ति के लिए भाषा का प्रवाह बहुत अच्छा है। वे एक निष्णात कवि भी हैं।

13.वो विरोधियों के धोखे या चुनौतियों से कभी नहीं डरते।

14.वो विरोधियों या आरोपी की बकवास पर प्रतिक्रिया देने में समय व्यर्थ नहीं करते,बल्कि कूटनीति के साथ अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहते हैं।

15.न सिर्फ सही निर्णय बल्कि उसकी सतर्कता और समर्पण पर भी सर्वाधिक ध्यान देते हैं।

16.उनका व्यक्तित्व हिंदू संस्कृति का एक पवित्र प्रतीक प्रतीत है।

17.उनकी आँखों में चारित्रिक चमक इतनी शक्तिशाली है कि वो किसी को भी सम्मोहित कर सकता है।

18.उनको कोई लोभ,कोई डर नहीं एवं स्वार्थ भी मायने नहीं रखता है।

19.अंतिम रूप से 70 वर्ष साल की आयु में भी वो प्रतिदिन 15 से 20 घंटे काम करते हैं,फिर भी हमने उन्हें कभी जम्हाई लेते नहीं देखा!

मैं बहुत ही कोशिश करता हूं कि मोदी जी की तारीफ ना करूं उनमें कमियां ढूंदू। आप लोग भी मोदी जी में कोई कमी हो तो मुझे जरूर बताएं मोदी जी से कारनामे ही कुछ ऐसे हो जाते हैं कि सूडान के 5000 भारतीय नागरिक भी एक ही रात में मोदी के अंध भक्त बन गए है। सूडान में गृह युद्ध ऑपरेशन कावेरी चल रहा है सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं लेकिन लगभग 5000 भारतीय लोग सूडान से सुरक्षित जब तक भारत नहीं पहुंच जाते तब तक के लिए 72 घंटे तक यह गृह युद्ध भी रोक दिया गया है इसी तरह हमने रूस और यूक्रेन का युद्ध भी 72 घंटे रुका हुआ देखा था। यह विदेशी ताकतवर मूर्ख लोग भी मोदी के अंध भक्त क्यों बन रहे हैं।

मोदी है तो सब कुछ मुमकिन क्यों है आप ही बताइए।

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श्रीराम नवमी – एक युगारंभ..!

आज दोपहर
अभिजीत मुहूर्त पर, अयोध्या मे,
जब प्रभु श्रीराम जी के
पुनर्निर्मित भव्य मंदिर मे
पहला श्रीरामनवमी उत्सव
संपन्न हो रहा होगा,
तब
नियति अपने देश, भारत, के भाल पर
सुवर्णाक्षरों से
इस नए युग का
सुनहरा भविष्य लिख रही होगी!
आज का दिन
सभी अर्थों में
एक ऐतिहासिक दिवस हैं.
सैकड़ों वर्षों के बाद,
इस देश के
स्वाभिमान की, आत्मगौरव की, आत्मसम्मान की
धधकती अभिव्यक्ति
प्रकट होती दिख रही हैं।
मात्र अपना भारत देश ही नहीं,
अपितु
विश्व के कोने कोने मे,
जहां भी हिन्दू बसे हैं,
वे सारे, आज अपने अपने स्थान पर
आनंदोत्सव मना रहे हैं।
उनका रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, विजयादशमी, दीवाली….
सब कुछ आज ही हैं…!

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अपने ही देश मे,
अपने ही आराध्य के, अपने ही राष्ट्रपुरुष के
स्मारक के लिए, मंदिर बनाने के लिए,
दसियों करोड़ो देशवासियों को
सैकड़ों वर्षों से संघर्ष करना पड़ा हों…
ये भारत में ही संभव हैं।
किसी जमाने में
पुरुषपुर (पेशावर) से पापुआ न्यू गिनी तक
जिन श्रीराम की गाथाएं
रोज गायी जाती थी,
रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त
आदि जिनकी दिनचर्या का हिस्सा था,
आज भी
विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम राष्ट्र
इंडोनेशिया मे,
जिन श्रीराम की कथाओं पर
रोज खेल खेले जाते हैं, उनकी लीलाएं होती हैं,
उनके गीत गाएं जाते हैं,
जिस थाईलैण्ड के राजवंश के नाम
प्रभु श्रीराम के नाम पर दिये जाते हैं,
मलेशिया, मॉरीशस, त्रिनिनाद, फ़िजी, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार…
आदि अनेक देशों के लोकजीवन में
जो राम
रच – बस गए हैं…
उन प्रभु श्रीराम के
अस्तित्व को ही भारत में नकारा जा रहा था…
मुस्लिम आक्रांताओं का तो
उद्देश्य साफ था…
उन्हे काफिरों के श्रध्दास्थानों कों नष्ट करना था।
उन्होने किया।
पर १९४७ मे,
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात तो,
अपने गौरवशाली इतिहास की पुनर्स्थापना
आवश्यक थी।
अनेक देशों ने ऐसा किया भी।
किसी जमाने मे,
स्पेन के एक बड़े हिस्से पर,
मुस्लिम आक्रांताओं ने
कब्जा कर लिया था।
ताकतवर ग्रेनाडा नामक मुस्लिम साम्राज्य ने
स्पेन के ५०० से ज्यादा
प्रमुख चर्चेस को तोड़कर, उन्ही स्थानों पर
मस्जिदे बनवाई।
किन्तु,
जिस वर्ष,
कोलंबस अमेरिका पहुंचा था,
उसी वर्ष, अर्थात २ जनवरी १४९२ को,
स्पेनिश शासकों ने
मुस्लिम आक्रांताओं को भगाकर,
स्पेन को पुनः इस्लाम मुक्त किया।
और उन ५०० से ज्यादा
मस्जिदों को तोड़कर,
वहां पुनः चर्चेस बनाएं गए!
यही तो,
इस विश्व का नियम हैं।
हम इस नियम को भूल गए।
इसलिए,
पहले इस्लामी शासकों से
प्रभु श्रीराम के
जन्मभूमि स्थान को मुक्त करने के लिए,
हमने अनेकों बार संघर्ष किए।
लाखों लोगों ने अपने प्राण त्यागे –
मीर बाकी और जलाल शाह से भिड़ने वाले
बाबा श्यामननंद जी,
मंदिर को बचाने के लिए
बाबर की चतुरंग सेना से लड़ते लड़ते
बलिदान देने वाले
भिटी के राजा महताब सिंह और
उनके चौहत्तर हजार वीर सैनिक…
मीर बाकी की सेना से
नब्बे हजार रामभक्तों के साथ लोहा लेकर
वीरगति प्राप्त करने वाले
पंडित देवीदीन पांडे,
हंसवर के राजा रणविजय सिंह,
उनके वीरमरण प्राप्त
चौबीस हजार सैनिक,
बीस हजार नारी शक्ति के साथ
छापामार युध्द करते हुए, मृत्यु को वरण करने वाली
राणा रणविजय सिंह की पत्नी,
जयराजकुमारी…
महेश्वरानंद, बलरामचारी, सरदार गजराज सिंह,
राजा जगदंबा सिंह, कुंवर गोपाल सिंह,
बाबा वैष्णवदास जी और उनकी
चिमटा वाली सेना….
उनकी मदत करने वाले सीख गुरु,
अमेठी के राजा गुरुदत्त, पीपरपुर के राजा राजकुमार,
बाबा रामचरण दास,
राम कोठारी, शरद कोठारी…..
कितने नाम गिनाएं…?
प्रभु श्रीराम के लिए
अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले
इन कारसेवकों के रक्त से,
सरयू नदी पवित्र हुई हैं।
अयोध्या के कण कण मे,
इन बलिदानी राम भक्तों की अनगिनत गाथाएं
लिखी गई हैं….
आज इन सभी पुण्यात्माओं की आत्माएं,
स्वर्ग से, कृतार्थ भाव से,
नीचे अयोध्या को निहार रही हैं…!
इन सब का आशीर्वाद
हमारे देश को मिल रहा हैं!

__ __ __

प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने,
त्रेता युग में
इस भरतवर्ष में फैला हुआ
आतंक का जबरदस्त नेटवर्क,
आतंक के सरगना रावण को मारकर
समाप्त किया था।
वह एक नए युग की शुरुआत थी.
इस युग में स्थापित रामराज्य यह
स्वाभिमान का, समता, समानता का,
समरसता का,
समृध्दी का, निर्भयता का,
न्याय का राज्य था !
आज भी वैसी ही परिस्थिति बन रही हैं.
हमारी कमजोरियों ने
हमे पांच सौ वर्ष,
हमारे ही आराध्य का मंदिर बनाने,
हमे संघर्ष करने विवश किया।
किन्तु अब नहीं…
अब संक्रमण काल समाप्त हुआ हैं।
आत्मग्लानि का कोहरा छट रहा हैं।
परावलंबिता के, हीन भावना के, उपनिवेशिक मानसिकता के,
बादल हट रहे हैं…..
आत्मगौरव का सूरज चमक रहा हैं…
जी, हां !
जन्मभूमि पर पुनर्निर्मित भव्य
श्रीराम मंदिर मे
पहली बार
श्रीराम नवमी उत्सव
संपन्न हो रहा हैं…!
एक नए युग का आरंभ हो रहा हैं…!!
जय श्रीराम

(प्रशांत पोळ ऐतिहासिक विषयों पपरशोधपूर्ण लेख लिखते हैं, उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।)

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