Thursday, April 25, 2024
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प्राचीन मंदिरों के अजीब रहस्य 

प्रणय मोहन एक स्वतंत्र शोेधकर्ता हैं और उन्होंने देश व दुनिया के सैकड़ों मंदिरों पर शोध कर उनके वैज्ञानिक रहस्यों का पता लगाया है। वे आधुनिक डिजिटल तकनीक का सहारा लेकर मंदिरों के शिल्प में मौजद रहस्यों की परतें खोलते हैं। अपने यू ट्यूब चैनल पर वे अपने शोध व तथ्यों के बारे में विस्तार से बताते हैं। 
 
भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के प्राचीन मंदिरों में एक गुप्त भाग स्थापित होता है। इसे प्राणला अर्थात श्वास नली कहा जाता है। मंदिर में श्वासनली? ‘मकर प्रणाल’ की अजीब दुनिया के साथ ही इंडोनेशिया के एक मंदिर में एक प्राचीन श्वास नली का परीक्षण के बारे में भी जानिये।
हैलो दोस्तों, आज मैं आपको एक बहुत ही अजीब चीज दिखाने जा रहा हूं जिसे मकर प्राणला कहा जाता है। ठीक है दोस्तों, तो मुझे पुरातत्व में कुछ बहुत ही दुर्लभ चीज़ मिली, ठीक है? इसलिए मुझे नहीं पता कि आपमें से किसी को पता है कि यह क्या है। ज़रा बारीकी से देखें। यह एक अजीब जानवर जैसा दिखता है। ये दोनों टुकड़े एक जैसे ही हैं। वे वास्तव में काफी पुराने हैं, वे 1200 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। ये यहीं इंडोनेशिया में पड़े हैं। ये भारत भी नहीं है, बल्कि ये बेहद दुर्लभ वस्तुएं हैं, जो साबुत पाई जाती हैं। ठीक है? उनमें से अधिकतर टूटे हुए हैं। यदि वे काम कर रहे हैं तो वे बड़े मंदिरों का हिस्सा होंगे, इसलिए ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि आप पूरी चीज़ देख सकें। अब, इसे “मकर प्राणालय” कहा जाता है और यह बहुत दुर्लभ है, क्योंकि मकर प्राणालय हममें से किसी को भी इस तरह पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देते हैं, ठीक है? आप इन्हें कभी पहचान नहीं पाएंगे, लेकिन, अगर आप प्राचीन मंदिर देखेंगे…
मैं आपको दिखाऊंगा कि जब आप उन्हें मंदिरों में लगे हुए देखेंगे तो वे कैसे दिखते हैं, ठीक है। तो आप देख सकते हैं कि यह मकर प्राणालय है जो अभी भी मंदिर में बरकरार है। ये बहुत पुराना है। यह इंडोनेशिया का प्रम्बानन मंदिर है। मकर प्राणालय लगभग 1200 वर्ष पुराना है। इसलिए इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था। तो यह 21वीं सदी है, इसका मतलब है कि यह 1200 साल पुरानी है, लेकिन मकर प्राणालय अभी भी बरकरार है।
अब इस मंदिर के टॉवर में ही देखिये, इतने छोटे से क्षेत्र में आप एक ही पंक्ति में तीन मकर प्राणालय देख सकते हैं। यह प्रम्बानन मंदिर के एक मंदिर के ठीक एक तरफ है। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे मंदिर परिसर में कितने मकर प्राणालय कार्यरत होंगे। अगर आप यहां देखेंगे तो आपको एक अजीब सा अजगर या मगरमच्छ जैसा जानवर नजर आएगा। इसे संस्कृत में मकर कहा जाता है। इस प्राणी को संस्कृत में मकर कहा जाता है और इस पूरे टुकड़े को मकर प्राणालय कहा जाता है। तो मकर का मतलब यह जानवर है लेकिन प्राणालय का मतलब क्या है? प्राणालय का अर्थ है एक चैनल। प्राण का अर्थ है श्वास और आलय का अर्थ कभी-कभी घर होता है या आप जानते हैं, श्वास का स्थान। मोटे तौर पर मतलब मकर की श्वास नली। अब, जब आप उन्हें मंदिरों के हिस्से के रूप में देखते हैं, तो आपको लगता है कि वे केवल छोटे टुकड़े हैं। क्योंकि आप उन्हें केवल यहीं तक देख सकते हैं। लेकिन यहाँ, यह शानदार है क्योंकि आप वास्तव में देख सकते हैं कि वे कितने बड़े हैं।
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भारत के पहले आम चुनाव की दिलचस्प बातें

भारत में 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच आम चुनाव हुए, जो 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद पहला था। मतदाताओं ने संसद के निचले सदन, पहली लोकसभा के 489 सदस्यों को चुना। भारत की अधिकांश राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए।

सुकुमार सेन सन 1921 में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी बने थे। बंगाल के कई ज़िलों में काम करने के बाद वो पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के पद पर पहुंचे थे जहाँ से उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर दिल्ली लाया गया था.

भारत के पहले आम चुनाव में करीब 17 करोड़ लोगों ने भाग लिया था जिसमें 85 फ़ीसदी लोग लिख पढ़ नहीं सकते थे. कुल मिलाकर करीब 4500 सीटों के लिए चुनाव हुआ था जिसमें 489 सीटें लोकसभा की थीं।

रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में लिखते हैं, “पूरे भारत में कुल 2 लाख 24 हज़ार मतदान केंद्र बनाए गए थे. इसके अलावा लोहे की 20 लाख मतपेटियाँ बनाई गई थीं जिसके लिए 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया था. कुल 16500 लोगों को मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर रखा गया था।”

“उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी महिला मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में जोड़ना। बहुत सी महिलाओं को अपना नाम बताने में झिझक थी। वो अपने आप को किसी की बेटी या किसी की पत्नी कहलाना अधिक पसंद करती थीं. चुनाव आयोग का प्रयास था कि हर मतदाता का नाम मतदाता सूची में लिखा जाए।”

“इसका परिणाम ये हुआ कि करीब 80 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जा सका. चुनाव करवाने के लिए करीब 56000 लोगों को प्रेसाइडिंग आफ़िसर के तौर पर चुना गया था। उनकी मदद के लिए 2 लाख 28 हज़ार सहायकों और 2 लाख 24 हज़ार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था।”

जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा, दौड़ में अन्य लोगों में सोशलिस्ट पार्टी भी शामिल थी, जिसके नेताओं में जयप्रकाश नारायण भी शामिल थे; जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (KMPP); भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई); अखिल भारतीय जनसंघ (बीजेएस, भाजपा का पूर्ववर्ती); हिंदू महासभा (एचएमएस); करपात्री महाराज की अखिल भारतीय राम राज्य परिषद (आरआरपी); और त्रिदीब चौधरी की रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी)।

चुनाव 26 नवंबर 1949 को अपनाए गए संविधान के प्रावधानों के तहत आयोजित किए गए थे। संविधान को अपनाने के बाद, संविधान सभा अंतरिम संसद के रूप में कार्य करती रही, जबकि एक अंतरिम कैबिनेट का नेतृत्व जवाहरलाल नेहरू ने किया।

एक महीने बाद संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किया जिसमें बताया गया कि संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कैसे आयोजित किये जायेंगे। लोकसभा की 489 सीटें 25 राज्यों के 401 निर्वाचन क्षेत्रों में आवंटित की गईं। 314 निर्वाचन क्षेत्रों में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके एक सदस्य का चुनाव किया जाता था। 86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्य चुने गए, एक सामान्य श्रेणी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से। तीन निर्वाचित प्रतिनिधियों वाला एक निर्वाचन क्षेत्र था। बहु-सीट निर्वाचन क्षेत्रों को समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित सीटों के रूप में बनाया गया था, और 1960 के दशक में समाप्त कर दिया गया था। इस समय के संविधान में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित दो एंग्लो-इंडियन सदस्यों का भी प्रावधान था।

लोकसभा की 489 सीटों के लिए कुल 1,949 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। मतदान केंद्र पर प्रत्येक उम्मीदवार को अलग-अलग रंग की मतपेटी आवंटित की गई थी, जिस पर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा हुआ था। मतदाता सूची को टाइप करने और मिलान करने के लिए छह महीने के अनुबंध पर 16,500 क्लर्कों को नियुक्त किया गया था और नामावली को मुद्रित करने के लिए 380,000 रीम कागज का उपयोग किया गया था। 1951 की जनगणना के अनुसार 361,088,090 की आबादी में से (जम्मू और कश्मीर को छोड़कर) कुल 173,212,343 मतदाता पंजीकृत थे, जिससे यह उस समय का सबसे बड़ा चुनाव बन गया। 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक मतदान करने के पात्र थे।

कठोर जलवायु और चुनौतीपूर्ण व्यवस्था के कारण चुनाव 68 चरणों में हुआ। कुल 196,084 मतदान केंद्र बनाए गए, जिनमें से 27,527 बूथ महिलाओं के लिए आरक्षित थे। अधिकांश मतदान 1952 की शुरुआत में हुआ, लेकिन हिमाचल प्रदेश में 1951 में मतदान हुआ क्योंकि फरवरी और मार्च में मौसम आमतौर पर खराब रहता था, जिससे भारी बर्फबारी होती थी। जम्मू और कश्मीर को छोड़कर शेष राज्यों में फरवरी-मार्च 1952 में मतदान हुआ, जहां 1967 तक लोकसभा सीटों के लिए कोई मतदान नहीं हुआ था। चुनाव के पहले वोट हिमाचल में चीनी की तहसील (जिला) में डाले गए थे।

परिणाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के लिए एक शानदार जीत थी, जिसे 45% वोट मिले और 489 में से 364 सीटें जीतीं। दूसरे स्थान पर रही सोशलिस्ट पार्टी को केवल 11% वोट मिले और उसने बारह सीटें जीतीं। जवाहरलाल नेहरू देश के पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधान मंत्री बने।

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भारतीय छात्र की फिल्म “सनफ्लॉवर्स वर फर्स्ट वन्स टू नो” 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में चुनी गई

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्‍थान (एफटीआईआई) के छात्र चिदानंद नाइक की फिल्म “सनफ्लॉवर्स वर फर्स्ट वन्स टू नो” को फ्रांस के 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल के ‘ला सिनेफ’ प्रतिस्पर्धी खंड में चुना गया है। इस फेस्टिवल का आयोजन 15 से 24 मई 2024 तक होने जा रहा है। ‘ला सिनेफ’ इस फेस्टिवल का एक आधिकारिक खंड है, जिसका उद्देश्य नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना और दुनिया भर के फिल्म स्कूलों की फिल्मों की पहचान करना है।

यह फिल्म दुनिया भर के फिल्म स्कूलों द्वारा प्रस्तुत कुल 2,263 फिल्मों में से चुनी गई 18 शॉर्ट फिल्‍मों (14 लाइव-एक्शन और 4 एनिमेटेड फिल्मों) में से एक है। यह कान्स के ‘ला सिनेफ’ खंड में चुनी गई एकमात्र भारतीय फिल्म है। 23 मई को बुनुएल थिएटर में जूरी सम्मानित फिल्मों की स्क्रीनिंग से पहले एक समारोह में ला सिनेफ पुरस्कार प्रदान करेगी।

“सनफ्लॉवर्स वर फर्स्ट वन्स टू नो” एक बुजुर्ग महिला की कहानी है जो गांव का मुर्गा चुरा लेती है, जिससे समुदाय में अव्‍यवस्‍था फैल जाती है। मुर्गे को वापस लाने के लिए एक भविष्यवाणी लागू की जाती है, जिसमें बूढ़ी महिला के परिवार को निर्वासन में भेज दिया जाता है।

यह पहला अवसर है जब 1-वर्षीय टेलीविजन पाठ्यक्रम के किसी छात्र की फिल्म को प्रतिष्ठित कान्स फिल्म फेस्टिवल में चुना गया है।

एफटीआईआई की अनूठी अध्‍यापन कला तथा सिनेमा और टेलीविजन के क्षेत्र में शिक्षा के लिए अभ्यास आधारित सह-शिक्षण दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के परिणामस्वरूप संस्थान के छात्रों और इसके पूर्व छात्रों ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सराहना बटोरी है।

एफटीआईआई की यह फिल्म टीवी विंग एक वर्षीय कार्यक्रम का निर्माण है, जहां विभिन्न विषयों यानी निर्देशन, इलेक्ट्रॉनिक सिनेमैटोग्राफी, संपादन, साउंड के चार छात्रों ने वर्षांत समन्वित अभ्यास के रूप में एक परियोजना पर एक साथ काम किया। फिल्म का निर्देशन चिदानंद एस नाइक ने किया है, फिल्मांकन सूरज ठाकुर ने किया है, संपादन मनोज वी ने किया है और साउंड अभिषेक कदम ने दी है।

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विश्व पुस्तक दिवस पर कोटा में बुकोथोन का आयोजन

कोटा। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा में विश्व पुस्तक एवं कोपीराईट दिवस को “बूकोथोन” का आयोजन किया गया जिसकी थीम – “डाईव इन्टू डाईवरसीटी – एक्सप्लोर, लर्न एण्ड एम्पावर” थी। इस अवसर पर डॉ दीपक की पुस्तक “ज्ञान संगठन, सूचना प्रसंस्करण एवं पुनप्राप्ति“ का विमोचन मुख्य अतिथि राजू गुप्ता पूर्व सीईओ फेडरलाइट ग्रुप इंडिया, अध्यक्ष सागर आजाद, फाउंडर प्रेसीडेंट चेंप रीडर एसोशिएशन एण्ड एनीकडोट पब्लिशींग हाउस दिल्ली, विशिष्ट अतिथि डॉ प्रीतिमा व्यास लाईब्रेरीयन अकलंक ग्रुप ऑफ कालेज कोटा, डॉ नीलम काबरा असीसटेंट प्रोफेसर पुस्तकालय एव सूचना विज्ञान, आशीष जैन वरिष्ठ प्रबंधक आईडीएफसी फर्स्ट बैंक कोटा एवं गेस्ट ऑफ ऑनर बिगुल कुमार जैन सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना राजस्थान एवं कीनोट स्पीकर डॉ शशि जैन पुस्तकालयाध्यक्ष द्वारा किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ सर्व धर्म ग्रंथ पूजन (बिब्लीयोमेट्री सेरेमनी) के साथ सम्पन्न हुआ| इस अवसर पर डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि पुस्तकों को पढ़ना तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। वे हमें नई दिशा में ले जाती हैं, समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं, और हमें आत्म-समझ में सहायक होती हैं।

इस कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में सागर आजाद, चेंप रीडर एसोशिएशन एवं एनीकडोट पब्लिशिंग हाउस के फाउंडर प्रेसीडेंट ने अपनी उपस्थिति से इस उत्सव को समृद्ध किया। मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व फेडरलाईट ग्रुप इंडिया के सीईओ, राजू गुप्ता ने उत्सव को गौरवित किया। उन्होंने विद्यार्थियों और प्रोफेशनल्स को पुस्तकों के महत्व को समझने की अपील की।

इस उत्सव में डॉ नीलम काबरा, असिस्टेंट प्रोफेसर, पुस्तकालय और सूचना विज्ञान, तथा डॉ प्रीतिमा व्यास, लाइब्रेरियन, अकलंक ग्रुप ऑफ कॉलेज, कोटा, जैसे विशिष्ट अतिथियों ने भी अपने अनुभवों और ज्ञान का साझा किया।

इस अवसर पर, बिगुल कुमार जैन, सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता, तापीय परियोजना, राजस्थान, को “बेस्ट लाइब्रेरी रीडर ऑफ दी यीयर अवार्ड-2024” से सम्मानित किया गया। इस उत्सव में कार्यक्रम के मंच संचालन के लिए केबी दीक्षित का योगदान महत्वपूर्ण रहा। डॉ शशि जैन, डॉ नीलम काबरा, और डॉ प्रीतिमा व्यास ने अपने अनुभवों को साझा किया। इस उत्सव के समापन में, मुख्य अतिथि ने उद्बोधन दिया और अध्यक्षीय उद्बोधन ने धन्यवाद व्यक्त किया।यह उत्सव पुस्तकों के महत्व को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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कांग्रेस के घोषणापत्र की फजीहत

लोकसभा चुनावों के प्रथम चरण का मतदान संपन्न हो चुका है । दूसरे चरण का प्रचार चरम पर है। प्रथम चरण के चुनावों में भाजपा नेतृत्व राम लहर और मोदी के करिश्माई नेतृत्व के बल पर अबकी बार चार सौ पार के नारे के साथ आगे बढ़ रहा था और चुनावी रैलियों में, “सबका साथ, सबका विकास, सबके विश्वास के साथ एक बार फिर मोदी सरकार” की बात की जा रही थी। भाजपा नेतृत्व अभी तक विपक्ष को परिवारवाद व उनके शासनकाल में किए गये अथाह भ्रष्टाचार और घोटालों की बात करके घेर रहा था लेकिन उसके मुस्लिम तुष्टिकरण पर सीधा प्रहार नहीं कर रहा था किन्तु कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र, राहुल गांधी व विपक्ष के नेताओं के कुछ आपत्तिजनक बयानों के बाद नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में पूरी भारतीय जनता पार्टी अब कांग्रेस तथा विरोधी दलों के घोर मुस्लिम तुष्टिकरण या कहें कि हिन्दू घृणा के खिलाफ बहुत आक्रामक हो गयी है। मोर्चा स्वयं नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के समय में प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के भाषण और कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने स्वयं खोला।

भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में पहली बार विरोधी दल कांग्रेस के घोषणपत्र को ही आधार बनाकर उस पर इतना तीखा हमला बोला गया है। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस और उसके साथी तिलमिला गए हैं और वह मुख्य धारा तथा सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी पर अर्मायदित शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं । कांग्रेस का एक प्रतिनिधि मंडल प्रधानमंत्री मोदी की शिकायत लेकर चुनाव आयोग भी पहुंचा है उधर भाजपा का प्रतिनिधि मंडल भी राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच गया है।

प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के सभी बड़े नेता कांग्रेस के मुस्लिम प्रेम पर एक के बाद एक तीखा प्रहार कर रहे हैं जिससे कांग्रेस तिलमिला गई है। प्रधानमंत्री मोदी एक के बाद एक कांग्रेस की सरकारों में हुए हिन्दू विरोधी घटनाओं, निर्णयों, विवादों को उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने सबसे पहले राजस्थान की एक जनसभा में कहा कि, “कांग्रेस की नजर आम लोगों की मेहनत की कमाई पर है, प्रापर्टी पर है महिलाओं के मंगलसूत्र पर है। कांग्रेस ने इरादा जाहिर कर दिया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों के घरों, प्रापर्टी और गहनों का सर्वे कराएगी फिर लोगों की कमाई कांग्रेस के पंजे में होगी। कांग्रेस की नजर देश की महिलाओं के गहनों पर है, माताओं-बहनों के मंगलसूत्र पर है वो उसे छीन लेना चाहती है। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में उसके इरादे साफ जाहिर हो रहे हैं। अगर कांग्रेस की सरकार आई तो लोगो के बैंक एकाउंट में झांकेगी, लॉकर खंगालेगी, जमीन-जायदाद का पता लगायेगी और फिर सब कुछ छीनकर उसे घुसपैठियों और ज्यादा बच्चे वालों में बांट देगी। प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि कांग्रेस यह संपत्ति उन लोगों को बांटेगी जिन्हें मनमोहन सरकार ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इस बयान ने चुनाव के मैदान में तूफ़ान आ गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को धार्मिक आधार पर मुस्लिम आरक्षण को लेकर भी घेरा है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में 2004 से 2010 के बीच मुसलमानों को दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों का हिस्सा काटकर उसमें से ही विशेष आरक्षण देने का भरसक प्रयास किया किंतु न्यायपालिका के हस्तक्षेप से कांग्रेस का यह विकृत पायलट प्रोजेक्ट लागू नहीं हो सका जबकि अब यही कांग्रेस भारत का संविधान बदलकर दलित, पिछड़ों, अतिपिछड़ों के अधिकारों में कटौती करके मुस्लिम आरक्षण देने की बात कर रही है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने ही बयानों से फंस जाते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फुल टॉस गेंद फेंक कर चुनाव के मैदान में चौके-छक्के लगाने का अवसर दे बैठते हैं। राहुल गांधी ने कांग्रेस का घोषणापत्र जारी हो जाने के बाद एक जनसभा में कहा कि, “सत्ता में आने पर वह देश का एक्सरे कर देंगे। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। पिछड़े, दलित, आदिवासी, गरीब, सामान्य वर्ग के लोगों को पता चल जाएगा कि इस देश में उनकी भागीदारी कितनी है। इसके बाद हम वित्त और संस्थागत सर्वे करेंगे और यह पता लगाएं कि हिंदुस्तान का धन किसके हाथों में है और इस ऐतिहासिक कदम के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे।“ इस बयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रन बनाने का सुनहरा अवसर दे दिया और वे हिंदुत्व को लेकर आक्रामक हो गए।

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो अभी तक केवल अयोध्या, मथुरा, काशी और विरोधी दलों के माफिया प्रेम व कानून व्यवस्था की बात कर रहे थे वो भी बोल पड़े, “कांग्रेस देश में शरिया कानून लागू करना चाहती है लेकिन यह देश संविधान से ही चलेगा शरिया से नहीं। योगी का कहना है कि बीजेपी को मिलने वाल एक-एक वोट कर्फ्यू से मुक्ति और बेटियों की सुरक्षा से गारंटी देता है। वही असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा का बयान आता है कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर पाकिस्तान की छाप है।

कांग्रेस के घोषणा पात्र और उसके स्टार प्रचारक के बयानों से तो यह तो स्पष्ट ही था कि अब कांग्रेस पूरी तरह से टुकड़े- टुकडे गैंग और शहरी नक्सलियों के हाथ में चली गयी है लेकिन कन्हैया कुमार को टिकट देकर उसने इस बात को साबित भी कर दिया। एक समय था कि राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी व दादी इंदिरा गांधी ने जातिगत जनगणना को देश के लिए घातक माना था आज राहुल गांधी उन्हीं के विरुद्ध जाकर जातिगत जनगणना की बात कह रहे हैं। राहुल गांधी की असली मंशा जगजाहिर हो चुकी है।

एक बात ध्यान देने योग्य यह भी है कि विपक्ष का गठबंधन तो बन गया है और उनकी तीन रैलियां भी हो चुकी हैं किंतु उसके पास प्रधानमंत्री कौन बनेगा इस बात को लेकर असमंजस है।विपक्षी दलों के घोषणा पत्रों में वैसे तो विरोधाभास है किंतु मुस्लिम तुष्टिकरण के मामले पर सब एक हैं। आज भाजपा को हिंदुत्व पर आक्रामक होने का अवसर किसी ने दिया है तो वह केवल और केवल कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेता ही हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में मुसलमानों से कई वायदे किये हैं जिसमें उसने कहा है कि सत्ता में आने पर फैसले बहुसंख्यकवाद पर नहीं अल्पसंख्यकवाद पर आधारित होंगे।

कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि हम अल्पसंख्क छात्रों और युवाओं को शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, सेवाओं, खेल, कला और अन्य क्षेत्रों मे बढ़ते अवसरों का पूरा परा लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित और सहायता करेंगे। कांग्रेस नेता चिदंबरम सत्ता में आने के बाद सीएए और एनआरसी को न लागू करने की बात कह रहे हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे का मानना धारा 370 से देश के दूसरे भागों का क्या लेना देना? कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराने के बाद 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को भी बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। भूलना नहीं चाहिए यही कांग्रेस की सरकार सांप्रदायिक हिंसा बिल लेकर आई थी जो अगर लागू हो जाता तो हिन्दुओं का जीवन दुरूह हो जाता, भाजपा के अथक प्रयासों से वह बिल लागू नहीं हो सका।

एक समय था जब कांग्रेस के इंदिरा गांधी सरीखे नेता वामपंथियों को महत्व नहीं देते और कांग्रेस की अपनी विचारधारा थी। उस समय की कांग्रेस वामपंथी नेताओं का अपने हितों के लिए उपयोग भर करती थी, उन्हें अपने पास फटकने तक नहीं देती थी जबकि आज हालात ऐसे हो गये कि शहरी नक्सलियों ने कांग्रेस के भीतर ही अपनी जड़ों को मजबूत कर लिया है। राहुल गांधी पूरी तरह से शहरी नक्सलियों के शिकंजे में आ चुके हैं। नक्सलियों व मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते ही कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर डाला।

कांग्रेस “संविधान बचाओ” के नाम पर भाजपा को घेरने का प्रयास कर रही थी किन्तु उसके घोषणापत्र ने उसकी कलई खोल दी और भाजपा को हिंदुत्व की राजनीति करने का अवसर दे दिया। वैसे भी आम नागरिक और भाजपा कार्यकर्ता दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आक्रामक छवि को अधिक पसंद करते है। परिणाम तो चार जून को आएगा किन्तु अभी कांग्रेस बैकफुट पर है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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पंचायती राज की चुनौतियां

1950 के दशक में सुप्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु ने ‘पंचलाइट’ नामक कहानी लिखे थे। तत्कालीन ग्रामीण समाज के संदर्भ में स्थापित यह कहानी एक ऐसे युग को दर्शाती है, जिसमें अधिकांश भारतवर्ष में बिजली नहीं थी। अधिकांश ग्रामीण घरों में प्रकाश के लिए ढिबरी या छोटा दीपक जलाया जाता था। कहानी का सार यह है कि ग्रामीणों को दरकिनार करके विकास नहीं हो सकता है।

भारत के मूल संविधान के भाग चार (4) में पंचायती राज व्यवस्था को एक नीति-निर्देशक सिद्धांत के रूप में समाहित किया गया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 40 में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों के गठन करने के लिए प्रयास करेगी और उन्हें ऐसे अधिकार और सत्ता प्रदान करेगा जो कि उनके द्वारा स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने की योग्य बनाने के लिए अति आवश्यक हो।

संविधान का निर्माण करने वाले पंचायती राज व्यवस्था की आवश्यकता एवं सार्थकता के विषय में एकमत नहीं थे और उन्होंने गांधीवादियों की पंचायती राज की मांग को गंभीरता से नहीं लिए। संभवत यही कारण था कि पंचायती राज व्यवस्था का उल्लेख नीति-निर्देशक सिद्धांतों के रूप में किया गया जो न्याय योग्य नहीं है। इसके परिणाम स्वरुप पंचायती राज व्यवस्था को स्थापित करने के लिए नागरिकों द्वारा सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता है और पंचायतों को स्थापित करना राज्यों का स्व विवेक का मामला बना रहा था।

ब्रिटिश उपनिवेशवादी व्यवस्था में सत्ता केंद्रित थी जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 में पूरी तरह  व्यक्त थी। इसी व्यवस्था के अंतर्गत कांग्रेस ने 1937 का चुनाव लड़ा था और तत्कालीन कांग्रेस के नेता इसी व्यवस्था के हिमायती थे। भारत के संविधान के अनुच्छेद 40 के अंतर्गत ग्राम पंचायत का उल्लेख किया गया था।

इस पर शासन के तीसरे स्तर/मूल स्तर पर विकेंद्रीकरण की मांग उठने लगा था। 1957 में बलवंत राय मेहता समिति ने एक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रतिवेदन किया, जिसे कार्य, कर्मचारियों और कार्य पूंजी आवंटित किया जाए; लेकिन इसके सुखदाई प्रतिफलित होने के लिए जनता, सरकार एवं नागरिक समाज को 35 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी जब 1992 में संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायत को संघीय ढांचे के तृतीय स्तर के रूप में स्वीकार किया गया था, संविधान के संरचनात्मक ढांचे में एक मौलिक उलट-फेर करना पड़ा जिससे अधिक से अधिक लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सम्मिलित हो सके।

पंचायती राज प्रक्रिया के तीन प्रमुख अवयव हैं; राजनीतिक वैधता, सत्ता का विकेंद्रीकरण और संसाधनों का विकेंद्रीकरण। राजनीतिक वैधता का आशय है कि इस प्रक्रिया के लिए नीचे से जनता मांग कर रही है जो इसे संपन्न कराने की राजनीतिक शक्ति देती है। जनता के बिना मांग का राजनीतिक शक्ति को हस्तांतरित कर दिया जाए तो यह शक्ति उतनी प्रभावी नहीं होती है। अतः जनता की मांग और शक्ति पर सत्ता हस्तांतरण अधिक प्रभावी होती है, पर उसके लिए उसे उस स्तर पर लोकतंत्र का संस्थात्मक स्वरूप होना जरूरी है जिसके माध्यम से जनता अपनी इच्छा और मांग को व्यक्त कर सके। जनता की यह मांग ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों पर निर्भर करती है।

लोकतांत्रिक इतिहास में शासन में जन सहभागिता कम रही है; इसलिए महात्मा गांधी जी के पंचायती राज मॉडल के लिए कोई जन चेतन या जन समर्थन नहीं रहा है; हालांकि देश में एक केंद्रीकृत लोकतंत्र मौजूद था, लेकिन समाज के वंचित वर्ग के लोग पंचायती राज के लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में स्वतंत्रता पूर्वक ढंग से हिस्सा ना ले सके। स्वतंत्रता के पश्चात उनका आर्थिक विकास का लाभ नहीं मिल सका था।

भारत में लोक चेतना जमीनी स्तर पर सुशासन के लिए एक जन आंदोलन और जन चेतना को जन्म दिया था, इसी का सुखद परिणाम 1992 का 73 वा संविधान संशोधन था, जिसमें पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान किया गया था। ग्राम पंचायत पंचायती ढांचे में सबसे निचले स्तर पर मौजूद है। इसका उद्देश्य ग्रामीण आबादी को एक ऐसे अवसर मुहैया कराना है जिससे वह ग्राम सभा  स्तर से स्थानीय स्तर पर शासन प्रणाली में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकें।

ये ग्राम सभाएं लोगों के लिए प्रत्यक्ष मंच मुहैया कराती हैं, जहां ग्राम पंचायत के मतदाता शामिल होते हैं और उन्हें ग्रामीण कार्य, कार्यक्रम और परियोजनाओं की सीधे तौर पर निगरानी और ग्राम पंचायत की जवाब देही और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने का अधिकार होता है।

73वें संविधान संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं को विस्तृत अधिकार और वित्तीय संसाधन दिए, लेकिन इन संस्थाओं ने पहले से चली आ रही केंद्रित व्यवस्थाओं के अंतर विरोध को नहीं स्पर्श किया था। अधिकतर स्थानों पर जनता की कोई जन चेतन नहीं थी जो तत्कालीन राज्य सरकारों से पंचायत के लिए सत्ता और संसाधनों के लिए प्रभावी मांग कर सकें।

भारतीय संघवाद का वित्तीय स्वरूप ऐसा है कि राज्य सरकार ने खुद ही संसाधनों का रोना रोती रहती हैं; और इसलिए अपने सीमित संसाधनों को पंचायती राज संस्थाओं से सहयोग करने से कतराते हैं, क्योंकि संघवाद के अंतर्गत राज्यों को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है और केंद्र द्वारा आवंटित राशियों पर भी अपना नियंत्रण चाहती हैं। भारत संघ शक्तियों का वितरण है; लेकिन शक्तियों का पद सोपानिक हस्तांतरण अति कमजोर प्रक्रिया में हैं।

73वें संविधान संशोधन के प्रावधानों के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित अधिकारों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया को ऊर्जित करने के लिए 2004 में एक नवीन मंत्रालय का गठन किया गया। इस मंत्रालय ने पंचायती राज के संबंध में अनेक कदम उठाए हैं तथा राज्यों को प्रोत्साहन एवं चेतावनी की मिश्रित शैली द्वारा पंचायत को शक्तिशाली होने का प्रयास किया है। इस हेतु मंत्रालय वर्ष में दो मूल्यांकन करता है। पंचायत की स्थिति का प्रतिवेदन और पंचायत के सशक्तिकरण हेतु हस्तांतरण सूचकांक रिपोर्ट।

इस तरह पंचायत के सशक्तिकरण के लिए जन सहभागिता होना आवश्यक है।पंचायत को राज्य सरकार शक्तिशाली हेतु कैसे शक्तियों का हस्तांतरण कर सके?

सवाल यह है कि राज्य और पंचायत के राजनीतिक हितों में सामंजस्य से कैसे बैठाया जाए? इन सामंजस के पीछे प्रमुख कारण वितीय है।केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों में पंचायती राज संस्थाओं के साथ मध्यस्थ करके दोनों के बीच संतुलन स्थापित किया जाए, जिससे पंचायती राज संस्थाएं अति मजबूत स्थिति में हो सके।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा

बात उन दिनों की है जब मेरा तबादला किसी दूरदराज़ स्थान पर हुआ था। घर-परिवार और परिजनों से दूरी असहनीय होती जा रही थी। सरकारी तंत्र ऐसा था कि खूब गुहार लगाने के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही थी।तब मुझे किसी हितैषी ने सलाह दी कि मैं हनुमान-चालीसा का कुछ दिनों तक नियमित पाठ करूँ। बजरंगबली ने चाहा तो मेरा तबादला वापस अपने स्थान पर ही जायेगा। अत्यधिक परेशानी और कठिनाई में घिरा व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।

मैं उसी दिन हनुमान चालीसा की एक सुन्दर प्रति कहीं से खरीद लाया और नित्य दो बार सुबह-शाम हनुमान चालीसा का मनोयोगपूर्वक पाठ करने लगा।

मेरे आश्चर्य की सीमा तब नहीं रही जब कुछ ही दिनों में बजरंगबली ने मेरी पुकार सुन ली और मेरे पास सरकारी आदेश आ गए कि मेरा स्थानांतरण मेरे चाहे गए स्थान पर हो गया है।तभी से बजरंगबली हनुमान पर मेरी आस्था और भक्ति का भाव दृढतर होता चला गया।

कहा जाता है कि हनुमानजी की महिमा और भक्तों के प्रति उनका परोपकारी स्वभाव के कारण ही श्री तुलसीदास जी ने संकट मोचन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए श्री हनुमान चालीसा की रचना की। भक्तों में मान्यता है कि इस चालीसा का नियमित रूप से पाठ करना ना सिर्फ सरल और आसान है, बल्कि इसके कई अद्भुत लाभ भी हैं।हनुमान चालीसा में हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नवनिधि के दाता कहा गया है। इसका अर्थ है कि जो नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है, हनुमानजी उसको आठ सिद्धियां और नौ निधियों से संपन्न होने का आशीष प्रदान करते हैं।हनुमानजी स्वयं ‘विद्यावान गुणी अति चातुर/बुद्धिमान’ हैं। जो लोग भक्ति-भाव से हनुमान-चालीसा का पाठ करते हैं उनमें हनुमानजी इन गुणों का संचार करते हैं।

विश्वास किया जाता है कि मानव-जीवन का अंतिम लक्ष्य मुक्ति यानी शरीर त्यागने के बाद परमधाम की प्राप्ति माना जाता है। हनुमान चालीसा में लिखा है ‘अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई। और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।

अर्थात जो व्यक्ति हनुमानजी का ध्यान करता है, उनकी पूजा करता है और नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसका सर्वोच्च स्थान का मार्ग आसान हो जाता है।

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ईद पर प्रदर्शित हु़ई दोनों फिल्में मैदान और बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुपर फ्लॉप

अजय देवगन की फिल्म ‘मैदान’ ने दूसरे सप्ताह में सात करोड़ से भी अधिक की कमाई की लेकिन सोमवार, 22 अप्रैल को फिल्म ने सिर्फ 80 लख रुपये कमाए हैं। ईद के मौके पर रिलीज हु़ई ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही। हालांकि बड़े मियां छोटे मियां भी फ्लॉप हो चुकी है।

शुक्रवार शनिवार और रविवार को मिलाकर फिल्म ने 7 करोड़ से भी अधिक की कमाई की लेकिन सोमवार यानी की 22 अप्रैल को फिल्म ने सिर्फ 80 लख रुपये कमाए हैं और फिल्म ‘मैदान’ का घरेलू बॉक्स ऑफिस कलेक्शन सिर्फ 36 करोड रुपए ही हो पाया है। यानी कि इस फिल्म को भी फ्लॉप माना जा सकता है।

आपको बता दें, अजय देवगन की फिल्म मैदान एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है, जिसमें भारतीय फुटबॉल टीम की उस यात्रा को दिखाया गया है जहां उन्होंने एशियाई गेम्स में जीत हासिल की थी। फिल्म का निर्देशन अमित शर्मा ने किया है। इसके अलावा साउथ की अभिनेत्री प्रियामणि भी इस फिल्म में अहम किरदार में नजर आई हैं। ‘मैदान’ फुटबॉल के कोच सैयद अब्दुल रहीम के जीवन पर आधारित है।

अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ की फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ ईद के मौके पर ही रिलीज हुई थी। दर्शकों ने इसे बुरी तरह नकार दिया है और यह फिल्म सुपर फ्लॉप के तमगे की ओर बढ़ रही है। ईद की छुट्टी पर रिलीज़ होने के बाद भी फिल्म का पहले दिन का कलेक्शन सिर्फ 16 करोड़ था और 9 दिन के बाद बॉक्स ऑफिस पर 60 करोड़ के लिए भी तरस गई है।

अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनी इस मूवी को पांच भाषाओं में रिलीज किया गया। फिल्म में कई स्टार्स भी एक साथ नजर आए, लेकिन किसी भी चीज का फायदा फिल्म की कमाई को नहीं होता नजर आ रहा है। पहले हफ्ते में ही इस मूवी को 50 करोड़ के पास पहुंचने में हालत खराब हो गई।

‘बड़े मियां छोटे मियां’ फिल्म ने शुक्रवार को सिर्फ 1.50 करोड़ रुपये का बिजनेस किया है और इसे मिलाकर अभी तक इस फिल्म की कमाई सिर्फ 51.40 करोड़ रुपये हुई है। ऐसे में फिल्म के निर्माताओं को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है

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मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था महावीर स्वामी का विचार

हमारे देश में अनेक ऐसे संत ज्ञानी महापुरुष हुए हैं जिन्होंने न केवल भारत वरन पूरे विश्व में अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया है महावीर स्वामी उनमें से एक थे। जैन अनुश्रुतियों और परंपराओं के अनुसार जैन धर्म की उत्पत्ति और विकास में 24 तीर्थंकर सम्मिलित हैं इनमें से 22 तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता स्पष्ट और प्रमाण रहित है। अंतिम दो तीर्थंकर पार्श्वनाथ (23वें) एवं महावीर स्वामी (24वें) एवं अन्तिम तीर्थकर की ऐतिहासिकता को जैन धर्म के ग्रंथों में प्रमाणित किया गया है।

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें और अन्तिम तीर्थंकर थे। जैन धर्म की स्थापना का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है क्योंकि इस धर्म के सुधार तथा व्यापक प्रचार प्रसार इनके समय में ही हुआ था। महावीर स्वामी का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले ईसा से 540 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के कुंड ग्राम में ज्ञागृत वंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ कुंड ग्राम की क्षत्रिय कुल के प्रधान तथा माता त्रिशला लक्ष्मी नरेश चेटक की बहन थी। इनका जन्म तीसरी संतान एवं वर्द्धमान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ।

वर्द्धमान को वीर, अतिवीर और समंती भी कहा जाता था। वर्द्धमान को लोग श्रेयांश और यशस्वी भी कहते थे। इनके बड़े भाई का नाम नंदीवर्धन एवं बहन का नाम सुदर्शना था। वर्द्धमान का बचपन राजमहल में राजसी सुखसुविधा में बीता वो बड़े निर्भीक और साहसी थे। जब यह आठ वर्ष के हुए तो उन्हे पढ़ने, शिक्षा लेने, शस्त्र शिक्षा लेने के लिए शिल्प शाला में भेजा गया। वर्द्धमान का विवाह यशोदा नामक राजकान्या से हुआ इनकी अंवद्धा नाम की बेटी भी थी, कालांतर में जिसका विवाह जमालि से हुआ जो इनके शिष्य भी थे। 30 वर्ष की आयु में वर्द्धमान ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और सन्यास धारण कर आत्म ज्ञान और कल्याण के पथ पर निकल गए। वर्षों की कठिन तपस्या के बाद उन्हें कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ इसी कारण इन्हें केवलिन भी कहा जाता है। जिसके पश्चात उन्होंने संवत शरण में ज्ञान प्रसारित किया।

अपनी सभी इंद्रियों पर विजय पाने के कारण वे “जिन” अर्थात विजेता कहलाए और इसी कारण उनके अनुयाई जैन कहलाते हैं। अपनी साधना में अडिग रहने तथा पराक्रम दिखाने के कारण इन्हें महावीर नाम से संबोधित कर महावीर स्वामी बना दिया गया। 72 वर्ष की आयु में इन्हें पावापुरी में मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयाई बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिंबिसार कुदिक और चेतन भी शामिल थे।

जैन धर्म को मानने वाले प्रमुख राजा थे उदायिन, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग का शासक खारवेल, राष्ट्रकूट शासक अमोघ वर्ष, चंदेल शासक इत्यादि। महावीर स्वामी के उपदेशों उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों, विधानों का जनमानस पर बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ा उनके समय में उत्तरी भारत में तो इस धर्म के प्रचार प्रसार हेतु कई केदो की भी स्थापना की गई सामान्य जनों के अतिरिक्त बिंबिसार तथा उनके पुत्र अजातशत्रु जैसे राजा भी महावीर स्वामी के उपदेशों से प्रभावित हुए। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।

जैन ग्रंथों के अनुसार समय-समय पर जैन धर्म के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है। जो सभी जीवो को वास्तविक आत्मिक सुख व शांति प्राप्ति का उपाय बताते हैं। तीर्थंकरों की संख्या 24 ही कही गई है जिसमे महावीर वर्तमान पीढ़ी के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे। हिंसा, पशु, बलि जात-पात का भेदभाव जिस युग में बढ़ गया उसी युग में महावीर स्वामी का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य ,अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताएं जो अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, असतेय और ब्रह्मचर्य हैं।

उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए। महावीर के सर्वोदय तीर्थ में जाति की सीमाएं नहीं थी। महावीर स्वामी का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक सी है इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो यही महावीर स्वामी का जियो और जीने दो का सिद्धांत था।

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के प्रतिमान, प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्हें एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं था। उन्हें हिंसा, पशु बलि, जाती, पद के भेदभाव से घृणा थी। महावीर स्वामी के माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जो महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे उनके अनुयाई थे। महावीर स्वामी ने चातुर्याम धर्म में ब्रह्मचर्य जोड़कर पांच महाव्रत रूपी धर्म चलाया। यह सबसे प्रेम का व्यवहार करते थे उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इंद्रियों का सुख विषय वासनाओं का सुख दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाया जा सकता है इसलिए वह इंद्रिय सुख को महत्व नहीं देते थे।

महावीर जी की 28 वर्ष की उम्र में उनके माता-पिता का देहांत हो गया जेष्ठ बंधु नंदीवर्धन के अनुरोध पर वे दो बरस तक घर पर रहे बाद में 30 वर्ष की उम्र में वर्धमान ने श्रावणी दीक्षा लेकर वह श्रवण बन गए उनके शरीर पर परिग्रह के नाम पर एक लंगोटी भी नहीं रही अधिकांश समय वे ध्यान में ही मगन रहते, हाथ में ही भोजन कर लेते, गृहस्थों से कोई चीज नहीं मांगते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पूर्ण आत्म साधना प्राप्त कर ली।

महावीर स्वामी ने 12 वर्ष तक मौन साधना, तपस्या की और तरह-तरह की कष्ट झेले अंत में उन्हें कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ। कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद महावीर ने जन कल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया। वह अर्धमगधी भाषा में भी उपदेश करने लगे ताकि जनता उसे भली-भांति समझ सके। महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, असते, ब्रह्मचर्य और परिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम प्रेम और करुणा सील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।

महावीर स्वामी ने श्रमण और श्रमणी, श्रावक और श्राविका सबको लेकर चतुर्विद् संघ की स्थापना की उन्होंने कहा जो जिस अधिकार का हो वह उसी वर्ग में आकर सम्यकतत्त्व पाने के लिए आगे बढ़े। जीवन का लक्ष्य शांति पाना है। धीरे-धीरे देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूम कर महावीर स्वामी ने अपना पवित्र संदेश फैलाया, महावीर स्वामी ने 72 वर्ष की अवस्था में ईसा पूर्व 527 में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक (अश्वनी) कृष्ण अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया। इनके निवार्ण दिवस पर जैन धर्म के अनुयाई घर-घर दीपक जला कर दीपावली मनाते है।

जैन धर्म का कोई संस्थापक नहीं है बल्कि जैन धर्म 24 तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षा पर आधारित धर्म है। तीर्थंकर यानी वह आत्माएं जो मानवीय पीड़ा और हिंसा से परे इस सांसारिक जीवन को पार कर आध्यात्मिक मुक्ति के क्षेत्र में पहुंच गई हैं। सभी जैनियों के लिए 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी जैन धर्म में खास महत्व रखते हैं। महावीर इन आध्यात्मिक तपस्वियों में से अंतिम तीर्थंकर थे लेकिन जहां औरों की ऐतिहासिकता अनिश्चित है वही महावीर के बारे में पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने इस धरती पर जन्म लिया। अहिंसा के इस उपदेश का जन्म क्षत्रिय जाति में हुआ वह गौतम बुद्ध के समकालीन थे। महावीर के अनुयायियों के लिए मुक्ति का मार्ग त्याग और बलिदान ही है लेकिन इसमें जीवात्माओं की बली शामिल नहीं है।

कुछ बौद्ध ग्रंथों में महावीर का उल्लेख है लेकिन आज हम इसके बारे में जो कुछ भी जानते हैं उसका आधार जैन ग्रंथ है। प्रचारआत्मक कल्पसूत्र यह ग्रंथ महावीर के सदियों बाद लिखा गया है। इससे पहले लिखे गए आचरंगसूत्र हैं इस ग्रंथ में महावीर को भ्रमण करने वाले एकांकी साधु के रूप में दिखाया गया है। कहा जाता है कि महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में भ्रमण करना शुरू किया और वह 42 साल की उम्र तक भ्रमण करते रहे।

ज्ञान की खोज में गृह त्याग कर महावीर ने अपनी यात्रा की शुरुआत एक भयानक पीड़ा दायक संकल्प से की थी। कल्पसूत्र में अशोक वृक्ष के नीचे घटित उस क्षण का वर्णन है। वहां उन्होंने अपने अलंकार, मालाएं और सुंदर वस्त्र ,वस्तुओं को त्याग दिया। आकाश में चंद्रमा और ग्रह नक्षत्र के शुभ संयोग की बेला में उन्होंने ढाई दिन के निर्जल उपवास के बाद दिव्य वस्त्र धारण कर लिए। वह उस समय बिल्कुल अकेले थे। अपने केस लूंछित कर अर्थात तोड़कर, अपना घर छोड़कर वह सन्यासी हो गए थे। जैन खुद अपनी मुट्ठियों से अपने बाल का लुंचन करते हैं। महावीर और जैन परंपरा की शिक्षाएं 20वीं सदी के भारत में तब राजनीतिक रूप से औरभी महत्वपूर्ण हो गई थी जब महात्मा गांधी ने इतिहास के शक्तिशाली ब्रिटिश राज को हटाने के लिए अहिंसा का प्रयोग किया। गांधी जी ने जैन धर्म के सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान की भावना का बेहद आदर करते थे।

महावीर के पवित्र उपदेश संपूर्ण भारत में विशेषकर पश्चिमी भारत के गुजरात, राजस्थान में और दक्षिण भारत में अधिक संख्या में लोगों ने जैन धर्म अपनाया। कर्नाटक के श्रावण बेलगोला में आपको सबसे प्रसिद्ध जैन तीर्थ मिलेगा एक विशालकाय प्रतिमा जो एक पर्वत की चोटी को काटकर गढी गई है बाहुबली। जैन परंपरा के अनुसार बाहुबली या गोमट पहले तीर्थंकर के पुत्र थे।

17 मीटर ऊंची और 8 मीटर चौड़ी यह प्रतिमा एक चट्टान से बनी है जो विश्व की सबसे विशाल मानव निर्मित प्रतिमा है। जैन प्रतिमाओं में सहज रूप से तप की अंतिम अवस्था को दर्शाता है। कठोर जैन निरामिष भोजन में न केवल मांस और अंडों का सेवन निषेध है बल्कि कंद मूल भी वर्जित है शायद इसीलिए कि उन्हें उखाड़ने से जमीन के अंदर आसपास के पौधों और छोटे जीव जंतुओं को कष्ट पहुंचता है। जैन समुदाय आज अपनी व्यावहारिक कुशलता और व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाना जाता है। आज वह देश के सबसे धनी अल्पसंख्यक समुदाय में से एक है।

जैन धर्म द्वारा ही सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था की जटिलता और कर्मकांड की बुराइयों को रोकने के लिए महावीर स्वामी द्वारा सकारात्मक प्रयास किए गए। संस्कृत के स्थान पर आम जन की भाषा प्रकृति में उपदेश दिए जैन धार्मिक ग्रंथ अर्धमगधी भाषा में लिखे गए। जैन धर्म द्वारा प्राकृत भाषा के प्रयोग के कारण इस भाषा का विकास हुआ तथा साहित्य समृद्धि हुआ । जैन परंपरा के अनुसार हर्यक वंशी उदयन जैन धर्म का अनुयाई था। चंद्रगुप्त मौर्य भी जैन धर्म को मानते थे। उन्होने भद्रबाहु के साथ दक्षिण में श्रावण बेलगोला, वर्तमान कर्नाटक में प्रवास किया तथा जैन निर्वाण विधि संलेखना द्वारा प्राण त्याग किया। पहले सादी में उज्जैन और मथुरा जैन धर्म के प्रमुख केंद्र थे।

महावीर स्वामी के अहिंसा पर अत्यधिक बल देने के कारण उनके अनुयाई कृषि तथा युद्ध में संलग्न न होकर व्यापार एवं वाणिज्य को महत्व देते थे। जिससे व्यापार एवं वाणिज्य की उन्नति हुई तथा नगरों की संपन्नता बढी। महावीर स्वामी के सीधे एवं सरल उपदेशों ने सामान्य जन मानस को आकर्षित किया तथा उत्तर वैदिक कालीन कर्मकांडीय जटिल विचारधारा के सम्मुख जैन धर्म के रूप में जीवन यापन का सीधा-साधा मार्ग प्रस्तुत किया।

महावीर स्वामी के उपदेश हमें जीवो पर दया करने की शिक्षा देते हैं उन्होंने मानव समाज को एक ऐसा मार्ग बताया जो सत्य और अहिंसा पर आधारित है और जिस पर चलकर मनुष्य आज भी बिना किसी को कष्ट दिए हुए मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।

(लेखिका उत्तर प्रदेश-बेसिक शिक्षा परिषद में शिक्षिका हैं।)

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पिताजी और उँगलियों के निशान 

पिताजी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। परिणामस्वरूप दीवारें उस स्थान पर बदरंग हो जाती जहां-जहाँ वे उसे छूते थे और उनकी उंगलियों के निशान दीवारों पर छप जाते थे।मेरी पत्नी गंदी दीखने वाली दीवारों के बारे में अक्सर मुझ से शिकायत करती रहती।

एक दिन पिताजी को सिरदर्द था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर तेल की मालिश कराई थी और फलस्वरूप दीवार थामते समय उस  पर तेल के गहरे धब्बे पड़ गए थे।
मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लायी और मैं भी अपने पिता पर क्रोधित हुआ और उन्हें  ताकीद की कि आगे से वे चलते समय दीवार को न छुआँ करें और न ही उसका सहारा लिया करें।
पिताजी ने अब चलते समय दीवार का सहारा लेना बंद कर दिया और एक दिन वे धड़ाम से नीचे गिर पड़े। अब वे बिस्तर पर ही पड़े रहने लगे और थोड़े समय बाद हमें छोड़कर चले गए।मारे पश्चाताप के मेरा दिल तङप उठा और मुझे लगा कि मैं अपने को कभी माफ़ नहीं कर सकूँगा, कभी नहीं।
कुछ समय बाद हम ने अपने घर का रंग-रोगन  कराने की सोची। जब पेंटर लोग आए तो मेरा बेटा, जो अपने दादा से बहुत प्यार करता था, ने रंगसाज़ों को अपने दादा के उंगलियों के निशानों को मिटाने और उन क्षेत्रों पर पेंट करने से रोका।
पेंटर बालक की बात मान गए। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वे उसके दादाजी यानी मेरे पिताजी के उंगलियों/हाथों के निशान नहीं हटाएंगे, बल्कि इन निशानों के आसपास एक खूबसूरत गोल घेरा बनाएंगे और एक अनूठा डिजाइन तैयार करेंगे।
इस बीच पेंट का ख़त्म हुआ मगर वे निशान हमारे घर का एक हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे इस अनूठे डिजाइन की प्रशंसा करने लगा।
समय के साथ-साथ मैं भी बूढ़ा हो गया।अब मुझे चलते समय दीवार का सहारा लेने की जरूरत पड़ने लगी थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कही गई बातें याद आईं और मैंने बिना सहारे चलने की कोशिश की। मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझसे दीवार का सहारा लेने को कहा और चिंता जताई कि मैं सहारे के बिना गिर जाऊंगा। मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मेरा सहारा बन गया था।
मेरी बिटिया तुरंत आगे आई और प्यार से मुझसे कहा कि मैं चलने के लिए उसके कंधे का सहारा लूं। मैं रोने लगा। अगर मैंने भी अपने पिता के लिए ऐसा किया होता तो वे और लंबे समय तक जीवित रह सकते थे, मैं सोचने लगा।मेरी बिटिया मुझे साथ लेकर गई और सोफे पर बिठा दिया।फिर  मुझे अपनी ड्राइंग बुक दिखाने लगी ।
उसकी टीचर ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की थी और उत्कृष्ट रिमार्क दिया था।स्केच मेरे पिता के दीवार पर हाथों के निशानों का था।
उसकी टिप्पणी थी – “काश! हर बच्चा बुजुर्गों से इसी तरह प्यार करे”।
मैं अपने कमरे में वापस आया और खूब रोया, अपने पिता से क्षमा मांगी, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।
हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाएंगे । आइए, हम अपने बुजुर्गों की देखभाल करें और अपने बच्चों को भी यही सिखाएं।
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