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अमेरिकी बैंक क्यों हो रहे दिवालिया?

अमेरिका में वर्ष 2023 में 3 बैंक (सिलिकन वैली बैंक, सिगनेचर बैंक, फर्स्ट रिपब्लिक बैंक) डूब गए थे एवं वर्ष 2024 में भी एक बैंक (रिपब्लिक फर्स्ट बैंक) डूब गया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी केंद्रीय बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व, द्वारा ब्याज दरों में की गई वृद्धि के चलते बैंकों के असफल होने की यह परेशानी बहुत बढ़ गई है।

सिलिकन वैली बैंक ने कई तकनीकी स्टार्ट अप एवं उद्यमी पूंजी फर्म को ऋण प्रदान किया था। इस बैंक के पास वर्ष 2022 के अंत में 20,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सम्पत्तियां थी और यह अमेरिका के बड़े आकार के बैंकों में गिना जाता था और हाल ही के समय में डूबने वाले बैंकों में दूसरा सबसे बड़ा बैंक माना जा रहा है। इसी प्रकार, सिगनेचर बैंक ने न्यूयॉर्क कानूनी फर्म एवं अचल सम्पत्ति कम्पनियों को ऋण सुविधाएं प्रदान कर रखी थीं। इस बैंक के पास वर्ष 2022 के अंत में 11,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सम्पत्ति थी और अमेरिका में हाल ही के समय में डूबने वाले बड़े बैंकों में चौथे स्थान पर आता है। 31 जनवरी 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, रिपब्लिक फर्स्ट बैंक की कुल सम्पत्तियां 600 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं जमाराशि 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर थीं। न्यू जर्सी, पेनसिल्वेनिया और न्यूयॉर्क में बैंक की 32 शाखाएं थीं जिन्हें अब फुल्टन बैंक की शाखाओं के रूप में जाना जाएगा क्योंकि फुल्टन बैंक ने इस बैंक की सम्पत्तियों एवं जमाराशि को खरीद लिया है।

पीयू रिसर्च संस्थान के अनुसार, चार शताब्दी पूर्व, वर्ष 1980 एवं वर्ष 1995 के बीच अमेरिका में 2,900 बैंक असफल हुए थे। इन बैंकों के पास संयुक्त रूप से 2.2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की सम्पत्ति थी। इसी प्रकार, वर्ष 2007 से वर्ष 2014 के बीच अमेरिका में 500 बैंक, जिनकी कुल सम्पत्ति 95,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी, असफल हो गए थे। ऐसा कहा जाता है कि विशेष परिस्थितियों को छोड़कर अमेरिका में सामान्यतः बैंक असफल नहीं होते हैं। परंतु, इस सम्बंध में अमेरिकी रिकार्ड कुछ और ही कहानी कह रहा है। वर्ष 1941 से वर्ष 1979 के बीच, अमेरिका में औसतन 5.3 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं।

वर्ष 1996 से वर्ष 2006 के बीच औसतन 4.3 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं एवं वर्ष 2015 से वर्ष 2022 के बीच औसतन 3.6 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं। वर्ष 2022 में अमेरिकी बैंकों को 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ था। इसके पूर्व, वर्ष 1921 से वर्ष 1929 के बीच अमेरिका में औसतन 635 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं। यह अधिकतर छोटे आकार के बैंक एवं ग्रामीण बैंक थे और यह एक ही शाखा वाले बैंक थे। अमेरिका में आई भारी मंदी के दौरान वर्ष 1930 से वर्ष 1933 के बीच 9,000 से अधिक बैंक असफल हुए थे। इनमें कई बड़े आकार के शहरों में कार्यरत बैंक भी शामिल थे और उस समय इन बैंकों में जमाकर्ताओं की भारी भरकम राशि डूब गई थी। वर्ष 1934 से वर्ष 1940 के बीच अमेरिका में औसतन 50.7 बैंक प्रतिवर्ष बंद किए गए थे।

अमेरिका में इतनी भारी मात्रा में बैंकों के असफल होने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल है कि वहां छोटे छोटे बैंकों की संख्या बहुत अधिक होना है। बैकों के ग्राहक बहुत पढ़े लिखे और समझदार हैं। बैंक में आई छोटी से छोटी परेशानी में भी वे बैंक से तुरंत अपनी जमाराशि को निकालने पहुंच जाते हैं, जबकि बैंक द्वारा इस राशि से खड़ी की गई सम्पत्ति को रोकड़ में परिवर्तित करने में कुछ समय लगता है।

इस बीच बैंक यदि जमाकर्ता को जमाराशि का भुगतान करने में असफल रहता है तो उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और इस प्रकार बैंक असफल हो जाता है। कई बार बैंकों द्वारा किए गए निवेश (सम्पत्ति) की बाजार में कीमत भी कम हो जाती है, इससे भी बैंकें अपने जमाकर्ताओं को जमाराशि का भुगतान करने में असफल हो जाते हैं। अभी हाल ही में अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार बढ़ौतरी की गई है, जिससे इन बैकों द्वारा अमेरिकी बांड में किये गए निवेश की बाजार में कीमत अत्यधिक कम हो गई है।
अब इन बैंकों को बांड में निवेश की बाजार कीमत कम होने के स्तर तक प्रावधान करने को कहा गया है और यह राशि इन बैकों के पास उपलब्ध ही नहीं है, जिसके चलते भी यह बैंक असफल हो रहे हैं। एक सर्वे में यह बताया गया है कि आने वाले समय में अमेरिका में 190 अन्य बैंकों के असफल होने का खतरा मंडरा रहा है क्योंकि ब्याज दरों के बढ़ने से ऋण की मांग बहुत कम हो गई है। विभिन्न कम्पनियों ने अपने विस्तार की योजनाओं को रोक दिया है, इससे निर्माण की गतिविधियों में कमी आई है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व, का पूरा ध्यान केवल मुद्रा स्फीति को कम करने पर है एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विकास दर को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उत्पादों की मांग कम हो और मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाया जा सके। इसके चलते कई कम्पनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रही है एवं देश में युवा वर्ग बेरोजगार हो रहा है।

पूंजीवाद पर आधारित आर्थिक नीतियां अमेरिका में बैंकिंग क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं का हल नहीं निकाल पा रही हैं। अब तो अमेरिकी अर्थशास्त्री भी मानने लगे हैं कि आर्थिक समस्याओं के संदर्भ में साम्यवाद के बाद पूंजीवाद भी असफल होता दिखाई दे रहा है एवं आज विश्व को एक नए आर्थिक मॉडल की आवश्यकता है। इन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का स्पष्ट इशारा भारत की ओर है क्योंकि इस बीच भारतीय आर्थिक दर्शन पर आधारित मॉडल भारत में आर्थिक समस्याओं को हल करने में सफल रहा है।

अमेरिका में बैकों के असफल होने की समस्या मुख्यतः मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में की गई वृद्धि के कारण उत्पन्न हुई हैं। दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उत्पादों की मांग को कम करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करने के स्थान पर बाजार में उत्पादों की उपलब्धता बढ़ाई जानी चाहिए ताकि इन उत्पादों की कीमत को कम रखा जा सके। प्राचीन भारत में उत्पादों की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता था, जिसके कारण मुद्रा स्फीति की समस्या भारत में कभी रही ही नहीं है। बल्कि भारत में उत्पादों की प्रचुरता के चलते समय समय पर उत्पादों की कीमतें कम होती रही हैं।
 ग्रामीण इलाकों की मंडियों में आसपास ग्रामों में निवास करने वाले ग्रामीण व्यापारी एवं उत्पादक अपने उत्पादों को बेचने हेतु एकत्रित होते थे, सायंकाल तक यदि उनके उत्पाद नहीं बिक पाते थे तो वे इन उत्पादों को कम दामों पर बेचना प्रारम्भ कर देते थे ताकि गांव जाने के पूर्व उनके समस्त उत्पाद बिक जाएं एवं उन्हें इन उत्पादों को अपने गांव वापिस नहीं ले जाना पड़े। इस प्रकार भी विभिन्न उत्पादों की भारतीय मंडियों में मांग से अधिक आपूर्ति बनी रहती थी। अतः उत्पादों की कमी के स्थान पर उत्पादों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता पर ध्यान दिया जाता था, इससे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मुद्रा स्फीति का जिक्र ही नहीं मिलता है। दूसरे, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक मॉडल एवं नियमों को बहुत जटिल बना दिया गया है। इससे भी कई प्रकार की आर्थिक समस्याएं खड़ी हो रही है जिसका हल विकसित देश नहीं निकाल पा रहे हैं।



वैदिक धर्म में तलाक नहीं हो सकता

आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

वेद की सम्मति में एक बार पति-पत्नी रूप में जिसका हाथ पकड़ लिया, जीवन भर उसी का हो कर रहना चाहिए।

वैदिक धर्म में तलाक की भी जगह नहीं हैं। वर-वधू को विवाह से पूर्व भली-भाँति देख-भाल और पड़ताल करके अपना साथी चुनने का आदेश दिया गया है – खूब अच्छी तरह परख कर अपना साथी चुनो। पर जब एक बार विवाह हो गया तो फिर विवाह टूट नहीं सकता – तलाक नहीं हो सकता। फिर तो एक दूसरे की कमी और दोषों को दूर करते हुए प्रेम और सहिष्णुता से गृहस्थ में रहो। एक पुरुष की एक ही पत्नी और एक स्त्री का एक ही पति होना चाहिये तथा विवाहित पति-पत्नी में कभी तलाक नहीं होना चाहिये इस विषय पर प्रकाश डालने वाले वेद के कुछ स्थल पाठकों के अवलोकनार्थ यहाँ उद्धृत किये जाते हैं –

√ अथर्ववेद (7.37.1) में पति से पत्नी कहती है – “हे पति तुम मेरे ही रहो, अन्य नारियों का कभी चिन्तन भी मत करो।”
√ अथर्ववेद (2.30.2) में पति पत्नी से कहता है – “हे पत्नी ! तू मुझे ही चाहने वाली हो, तू मुझ से कभी अलग न हो ।”

√ अथर्ववेद के चौदहवें काण्ड और ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 85 वें सूक्त में विवाह के समय नव वर-वधू को उपदेश दिया है कि – “तुम दोनों पति-पत्नी सारी आयु भर इस विवाहित जीवन के बन्धन में स्थिर रहो, तुम कभी एक दूसरे को मत छोड़ो।”

√ अथर्ववेद में वहीं चौदहवें काण्ड में (14.2.64) कहा है – “ये नव विवाहित पति-पत्नी सारी आयु भर एक दूसरे के साथ इस प्रकार इकट्ठे रहें जिस प्रकार चकवा और चकवी सदा इकट्ठे रहते हैं।”

√ ऋग्वेद (10.85.47) में विवाह के समय वर-वधू अपने आप को पूर्ण रूप से एक-दूसरे में मिला देने का संकल्प करते हुए कहते हैं – “सब देवों ने हम दोनों के हृदयों को मिला कर इस प्रकार एक कर दिया है जिस प्रकार दो पात्रों के जल परस्पर मिला दिये जाने पर एक हो जाते हैं।

√ अथर्ववेद (14.1.50) में वर अपनी वधू को सम्बोधन कर के कहता है – “हे पत्नि ! तू मुझ पति के साथ बुढ़ापे तक चलने वाली हो।” “हे पत्नि ! तू मुझ पति के साथ सौ वर्ष तक जीवित रह।” (अथर्ववेद 14.1.52)

वेद के इन और ऐसे ही अन्य स्थलों में स्पष्ट रूप से प्रतिपादन किया गया है कि आदर्श स्थिति यह है कि एक स्त्री का एक पति और एक पुरुष की एक ही पत्नी रहनी चाहिये तथा उनमें कभी तलाक नहीं होना चाहिये।

विवाह वास्तव में वह दिव्य सम्बन्ध है जिस में दो व्यक्ति अपना हृदय एक-दूसरे को प्रदान कर देते हैं। हृदय एक ही बार और एक ही व्यक्ति को दिया जा सकता है। एक बार दिया हुआ हृदय फिर वापिस नहीं लिया जा सकता। इसीलिये वेद एक-पति और एक-पत्नी के व्रत का विधान करते हैं तथा तलाक का निषेध करते हैं। वेद की सम्मति में एक बार पति-पत्नी रूप में जिसका हाथ पकड़ लिया, जीवन भर उसी का हो कर रहना चाहिये। यदि एक-दूसरे में कोई दोष और त्रुटियां दीखने लगें तो उनसे खिन्न हो कर एक-दूसरे को छोड़ नहीं देना चाहिये।

प्रत्युत स्नेह और सहानुभूति के साथ सहनशीलता की वृत्ति का परिचय देते हुए परस्पर के दोषों को सुधारने का प्रयत्न करते रहना चाहिये। जो दोष दूर ही न हो सकते हों उन के प्रति यह सोच कर कि दोष किस में नहीं होते, उपेक्षा की वृत्ति धारण कर लेनी चाहिये। स्नेह और सहानुभूति से एक-दूसरे की कमियों को देखने पर वे कमियां परस्पर के परित्याग का हेतु कभी नहीं बनेंगी।

इसी अभिप्राय से वैदिक विवाह संस्कार में वर-वधू मिल कर मन्त्र-ब्राह्मण के वाक्यों से कुछ आहुतियां देते हैं जिन का भावार्थ इस प्रकार हैं – “तुम्हारी मांग में, तुम्हारी पलकों में, तुम्हारे रोमा आवर्तों में, तुम्हारे केशों में, देखने में, रोने में, तुम्हारे शील-स्वभाव में, बोलने में, हंसने में, रूप-काँति में, दाँतों में, हाथों और पैरों में, तुम्हारी जंघाओं में, पिंडलियों में, जोड़ों में, तुम्हारे सभी अङ्गों में कहीं भी जो कोई दोष, त्रुटि या बुराई है, मैं इस पूर्णाहुति के साथ उन सब तुम्हारी त्रुटियों और दोषों को शान्त करता हूं।” विवाह संस्कार की समाप्ति पर ये वाक्य पढ़ कर आहुतियें दी जाती हैं।

इन आहुतियों द्वारा वर-वधू यह संकल्प करते हैं कि हमने एक-दूसरे को उसके सारे गुण-दोषों के साथ ग्रहण किया है। हम एक-दूसरे के दोषों से खिन्न हो कर परस्पर झगड़ेंगे नहीं, और न ही कभी एक-दूसरे का परित्याग करने की सोचेंगे। हम तो विवाह-संस्कार की इन पूर्णाहुतियों के साथ यह संकल्प दृढ़ करते हैं कि हम सदा परस्पर के दोषों को स्नेह और सहानुभूति से सुधारने और सहने का प्रयत्न करते रहेंगे। विवाह से पहले हमने अपने साथी को इसलिये चुना था कि वह हमें अपने लिये सब से अधिक उपयुक्त और गुणी प्रतीत हुआ था। अब विवाह के पश्चात् हमारी मनोवृत्ति यह हो गई है कि क्योंकि मेरी पत्नी मेरी है और मेरा पति मेरा है, इसलिये मेरे लिये मेरी पत्नी सब से अधिक गुणवती है और मेरा पति मेरे लिये सब से अधिक गुणवान् है। अब हमारे हृदय मिल कर एक हो गये हैं। अब हमें एक-दूसरे के गुण ही दीखते हैं, अवगुण दिखते ही नहीं। और यदि कभी किसी को किसी में कोई दोष दीख भी जाता है तो उसे स्नेह और सहानुभूति से सह लिया जाता है तथा सुधारने का यत्न किया जाता है। विवाह की इन पूर्णाहुतियों में हमने ऐसा संकल्प दृढ़ कर लिया है और अपनी मनोवृत्ति ऐसी बना ली है। जब हमारे दिल और आत्मा एक हो गये हैं तो हमारा ध्यान आपस की ऊपरी शारीरिक त्रुटियों की ओर जा ही कैसे सकता है?

इस प्रकार वैदिक धर्म में न तो अनेक-पत्नी प्रथा (Polygamy) का स्थान है और न ही अनेक-पति प्रथा (Poliandry) का। इसके साथ वैदिक धर्म में तलाक का भी विधान नहीं है। यह ऊपर दिये गये वेद के प्रमाणों से अत्यंत स्पष्ट है।

[स्रोत : मेरा धर्म, प्रथम संस्करण 1957 ई., पृ 15-18, प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]




ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुए थे महान ऋषि मरिचि

सृष्टि के प्रारंभिक  दिनों में मरीचि नाम के एक महान ऋषि हुए थे। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र तथा सप्तर्षियों में से एक थे। ये ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुए थे। मरीचि का शाब्दिक अर्थ चंद्रमा या सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरण है। और मरीचि का अर्थ मरुतों (‘चमकदार’) का प्रमुख होना भी होता है। गीता के अनुसार मरीचि वायु देव है और कश्यप ऋषि के पिता हैं। इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सम्भूति के साथ हुआ था। इन्हें मरीचि या मारिषि के नाम से भी जाना जाता है। प्रकाश की किरण के संदर्भ में, ऋषि मरीचि को सप्तर्षियों में से एक माना जाता है, जिन्हें प्रथम मन्वंतर में सात महान ऋषियों के रूप में भी जाना जाता है।

महर्षि मरीचि ब्रह्मा के अन्यतम एक प्रधान प्रजापति हैं। इन्हें द्वितीय ब्रह्मा ही कहा गया है। ऋषि मरीचि पहले मन्वंतर के पहले सप्तऋषियों की सूची के पहले ऋषि है। यह दक्ष के दामाद और शंकर के साढू भी थे। इनकी पत्नि दक्ष-कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्नियां थी- कला और उर्णा। संभवत: उर्णा को ही धर्मव्रता भी कहा जाता है जो एक ब्राह्मण कन्या थी। दक्ष के यज्ञ में मरीचि ने भी शंकर जी का अपमान किया था। इस पर शंकर जी ने इन्हें भस्म कर डाला था।

इन्होंने ही भृगु को दण्डनीति की शिक्षा दी है। ये सुमेरु के एक शिखर पर निवास करते हैं और महाभारत में इन्हें चित्रशिखण्डी कहा गया है। ब्रह्मा ने पुष्करक्षेत्र में जो यज्ञ किया था उसमें ये अच्छावाक् पद पर नियुक्त हुए थे। दस हजार श्लोकों से युक्त ब्रह्मपुराण का दान पहले-पहल ब्रह्मा ने इन्हीं को किया था। वेद और पुराणों में इनके चरित्र का चर्चा मिलती है।

मारीचि का जीवन उनके वंशजों के विवरण से अधिक जाना जाता है, विशेष रूप से ऋषि कश्यप से। मारीचि का विवाह कला से हुआ और उन्होंने कश्यप को जन्म दिया था।  कश्यप की माता ‘कला’ कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिल देव की बहन थी। कश्यप को कभी-कभी प्रजापति के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, जिसे अपने पिता से सृजन का अधिकार विरासत में मिला था। माना जाता है कि वह हिंदू भगवान विष्णु की निरंतर ऊर्जा से बने हैं। माना जाता है कि उन्होंने ब्रह्मा की तपस्या पुष्कर में की थी। माना जाता है कि वे नारद मुनि के साथ, महाभारत के दौरान भीष्म को मिलने गए थे, जब वह तीर बिस्तर पर लेटे थे। मारीचि को तपस्या करने के लिए युवा महाराजा ध्रुव के सलाहकार के रूप में भी उद्धृत किया गया है। उनका नाम कई हिंदू धर्मग्रंथों जैसे ब्रह्मांड पुराण और वेदों में भी पाया जाता है।


(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)




रानी दुर्गावती के साथ 700 क्षत्राणियों ने अपने बच्चों के साथ किया था अग्नि में प्रवेश

सल्तनत काल के इतिहास में भारत का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ हमलावरों से अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा केलिये भारतीय नारियों ने अग्नि में प्रवेश न किया हो। फिर कुछ ऐसे जौहर हैं जिनकी गाथा से आज भी रोंगटे खड़े होते हैं। ऐसा ही एक जौहर रायसेन के किले में 6 मई 1532 को हुआ जिसमें सात सौ से अधिक महिलाओं ने अपने छोटे बच्चों के साथ अग्नि में प्रवेश कर लिया था जिसकी लपटें मीलों दूर तक देखीं गईं।

यह जौहर महारानी दुर्गावती की अगुवाई में हुआ। ये महारानी दुर्गावती मेवाड़ के इतिहास प्रसिद्ध यौद्धा राणा संग्रामसिंह की बेटी थी। इतिहास की कुछ पुस्तकों में उनकी बहन भी लिखा है। वे चित्तौड़ के सिसोदिया वंश की बेटी थी। स्वाभिमान और स्वत्व रक्षा उनके रक्त की प्रत्येक बूँद में था। शस्त्र चलाना भी जानती थी। चित्तौड़ में उन्होंने वीराँगनाओं की टोली गठित की थी। उनका विवाह रायसेन के शासक शीलादित्य के साथ हुआ था। शीलादित्य ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर के भाई थे। शीलादित्य ने खानवा के युद्ध में राणा संग्रामसिंह के साथ बाबर का मुकाबला किया था। खानवा के युद्ध में भारतीय शासकों का भारी नुकसान हुआ था।

खानवा युद्ध के बाद बाबर ने कालिंजर पर धावा बोला और गुजरात के सुल्तानों ने मालवा और रायसेन पर। गुजरात के हमलावर रायसेन के किले को जीत तो न सके पर सैन्य शक्ति बहुत कमजोर हो गई थी। कमजोर शक्ति के बाद भी रायसेन में शीलादित्य की सत्ता बनी रही। तब रायसेन जीतने और लूटने के लिये गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह अपनी कुटिल योजना बनाई। वह धार आया। उसने नालछा में कैंप किया और अनेक भेंट रायसेन भेजी।

महाराजा शीलादित्य को मित्रता संदेश भेजकर धार आमंत्रित किया और धोखे से कैद कर लिया। उन दिनों रायसेन की सीमा उज्जैन और तक लगती थी। उज्जैन में शीलादित्य के भाई लक्ष्मण सिंह किलेदार थे। उन्हें यह समाचार मिला तो वे अपनी सेना लेकर रायसेन की रक्षा के लिये चल दिये। यह समाचार बहादुरशाह को मिला। वह बंदी शीलादित्य को साथ लेकर उज्जैन आया और बंदी शालादित्य को आगे करके उज्जैन पर धावा बोल दिया। यह घटना दिसम्बर 1531 की है। उज्जैन के रक्षकों ने शीलादित्य को बंदी देखा तो बिना संघर्ष के समर्पण कर दिया। उज्जैन में भारी लूट हुई और स्त्रियों का हरण भी।

उज्जैन पर अधिकार करने के बाद उसने यही तरकीब सारंगपुर, आष्टा आदि स्थानों पर अपनाई। फिर विदिशा आया। सभी स्थानों पर जमकर लूट हुई। मंदिर ध्वस्त किये और स्त्रियों का हरण किया। अंत में रायसेन आया। उसने रायसेन किले पर घेरा डाला। और बंदी शीलादित्य को भारी यातनाएँ देकर किला समर्पित करने का आदेश दिया। बहादुरशाह ने महारानी दुर्गावती को संदेश भेजा कि वे अपने पूरे रनिवास के साथ समर्पण कर दें। समर्पण की अंतिम बातचीत 4 मई 1532 को हुई।

यह प्रस्ताव लेकर बहादुरशाह ने अपने एक सिपहसालार मलिक शेर को भेजा। उसके प्रस्ताव को महारानी दुर्गावती एवं किले में मौजूद शीलादित्य के भाई लक्ष्मण सिंह ने इंकार कर दिया। बल्कि उसे बंदी बनाकर मौत के घाट उतार दिया। महारानी ने जौहर करने एवं लक्ष्मण सिंह ने साका करने का निर्णय लिया। 5 मई से जौहर तैयारी आरंभ हुई और 6 मई 1532 को सूर्योदय के साथ अग्नि की लपटें धधक उठीं। किले में जितनी स्त्रियाँ थीं सबने अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अग्नि में प्रवेश कर लिया। अग्नि की लपटें आसमान छूने लगीं। जौहर की यह अग्नि दिनभर प्रज्जवलित रही। स्वाभिमानी क्षत्राणियों और उनके सहयोगी सभी स्त्रियों ने समर्पण करने की बजाय बलिदान होने को प्राथमिकता दी। यह रायसेन के इतिहास में पहला जौहर हुआ। इसके बाद दो और जौहर का उल्लेख मिलता है।

अगले दिन 7 मई प्रातः लक्ष्मण सिंह की कमान में निर्णायक युद्ध हुआ और अपनी रक्षा सैन्य टुकड़ी सहित बलिदान हुये। अंत में दस मई को बहादुर शाह का रायसेन के किले पर आधिपत्य हो गया। इतिहास की कुछ पुस्तको शीलादित्य का नाम सलहदी और लक्ष्मण सिंह का नाम लक्ष्मण सेन लिखा है। कुछ ने यह भी लिखा है कि बहादुर शाह ने शीलादित्य को धोखे से बंदी बनाकर धर्मान्तरण करके नाम सलाहुद्दीन कर दिया था। पर बात सही नहीं लगती। यह बात सल्तनकाल के इतिहासकारों ने मन से जोड़ी होगी। चूँकि यदि शीलादित्य धर्मान्तरण कर लेते तो जौहर क्यों होता। साका क्यों होता। जो हो पर रायसेन के किले में इस जौहर का शिलालेख है। आज भी उस स्थल पर स्थानीय नागरिक जाकर शीश नवाते हैं।

(लेखक एतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं।) 



ऐंग्लो इंडियन समुदाय की दुनिया 

विकास कुमार झा
आजादी के बाद जब देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई तो भारत में रह रहे एंग्लो-इंडियन समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद-79 के तहत इस समुदाय के दो लोगों को देश की लोकसभा में और एक-एक प्रतिनिधि को हरेक प्रान्त की विधानसभा में नामजद करने का प्रावधान किया गया था। इसी प्रावधान के तहत लम्बे समय तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हेक्टर एंगस ब्राउन की आज 29वीं पुण्यतिथि है। राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, दुनिया के एकमात्र एंग्लो इंडियन गाँव पर आधारित विकास कुमार झा के उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ का एक अंश, जिसमें उन्होंने हेक्टर एंगस ब्राउन के व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से लिखा है।
शाम के साथ घर की याद ज्यादा आती है, उसे यहाँ आकर महसूस हो रहा है। ऐसा क्यों होता है भला? शाम में ही क्यों? साँझ और घर का क्या सम्बन्ध है? गहरे आकाश में सफ़ेद पक्षियों का आख़िरी झुंड उड़ा जा रहा है। वह अपलक पक्षियों के उस दल का उड़ना बरामदे पर खड़ा होकर निहारता रहा। पक्षियों के पंखों में कितनी विचित्र आतुरता है! जल्दी घर पहुँचने की, अपने गाँव पहुँचने की…! वह भी तो अपने गाँव पहुँच गया है। वह भला इस साँझ में क्यों आतुर या उदास हो? पापा-मम्मी से कल सुबह साढ़े नौ बजे की बस से राँची जाकर फ़ोन पर वह बात कर लेगा। फ़िलहाल तो ‘गंज’ की यह शाम उसे अपने में समेट रही है। गेट पर हल्की-सी आहट हुई है। धीरे-धीरे डग भरते हुए मि. मेंडेज़ अन्दर दाखिल हो रहे हैं। रॉबिन ने सीढ़ियाँ उतरकर आगे बढ़ते हुए कहा, ‘अंकल, यू आर टू लेट… कब से इन्तजार कर रहा हूँ…!’
मि. मेंडेज ने झेंपते हुए कहा, ‘दरअसल, हम लोग आराम पार्टी हैं रॉबिन! खाने के बाद थोड़ी आँख लग गई। अभी कुछ देर पहले जब आँख खुली, तो देखा, शाम काफ़ी चढ़ गई है। तुम इन्तजार कर रहे होगे। बस, सीधा चला आ रहा हूँ। तुम्हारी आंटी ने कहा भी कि चाय तो पीते जाइए लेकिन मैंने कहा— नहीं, पहले ही देर हो गई है मुझसे। रॉबिन वहाँ कब से मेरी राह देख रहा होगा।’ कहते हुए मि. मेंडेज बरामदे पर आ गए हैं। मि. मिलर ने कहा, ‘मि. मॅडेज, बैठिए, मैं आपको अच्छी चाय पिलवाता हूँ—जैक के हाथ की स्पेशल चाय…। वैसे भी काफ़ी देर हो चुकी है। मिलने-जुलने का प्रोग्राम कल-परसों… अब तो लगातार चलता ही रहेगा यह सब।’ फिर रॉबिन की तरफ सहमति पाने की मुद्रा में मि. मिलर ने कहा, ‘है न रॉबिन? धीरे-धीरे सबसे तो मिल ही लोगे।’ रॉबिन ने कहा, ‘हाँ, अंकल! कोई जल्दबाज़ी नहीं। वैसे अभी आप अच्छी चाय पिलवाने की बात कह रहे थे।’
मि. मिलर हँस पड़े, ‘हाँ, प्योर दार्जिलिंग टी।’ उन्होंने जैक को आवाज लगाई, ‘जैक! सुनना तो जरा…।’
जैक आ गया। बगैर कुछ बोले अपनी प्रश्नवाचक आँखों से मि. मिलर की तरफ एक विनम्र सेवक की तरह उसने देखा।
मि. मिलर ने कहा, ‘जैक, जरा दिल लगाकर कुछ चाय-पाय तो करो। दार्जलिंग लीफ़….।’ जैक ने अपनी ख़ास फ़रमाबरदारी मुद्रा में सिर हिलाया और चला गया।
मि. मेंडेज ने बातचीत की बागडोर अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘तब मि. मिलर और कोई नई ख़बर? लेटेस्ट न्यूज़ ?’
मि. मिलर ने स्थायी मन्द स्वर में कहा, ‘मि. ब्राउन की चिट्ठी आई है। गाँव में पानी की समस्या को ख़त्म कराने के लिए मि. ब्राउन ने एश्योरेंस दिया है। ‘गंज’ में कुछ किलोमीटर रोड़ भी वे बनवा देंगे। पहले भी अपने असेम्बली फंड से उन्होंने यहाँ थोड़ी दूर तक सड़क बनवाई ही थी।’
मि. मेंडेज ने मुँह बनाते हुए कहा, ‘लगता है, मि. ब्राउन को हजारीबाग से कुछ फुरसत मिली है।’
मि. मिलर ने कुर्सी पर पहलू बदलते हुए कहा, ‘यही बीमारी है हम लोगों में मि. मेंडेज। हम कभी सटिस्फायड ही नहीं हो पाते। हजारीबाग में भी तो कुछ एंग्लो-इंडियन परिवार रहते हैं। उनके लिए भी तो मि. ब्राउन की ज़िम्मेदारी बनती है कि सिर्फ़ एक यही… मैकलुस्कीगंज ही है उनके लिए…? फिर हजारीबाग में वे ख़ुद रहते भी तो हैं… वहाँ घर है उनका…।’
मि. मिलर की नाक की टुनगी जैसे कुछ और नुकीली हो गई है, ‘कुछ ही दिन पहले कोई बता रहा था कि पटना के डॉनबास्को स्कूल वाले मि. ब्राउन से जाकर मिले थे कि स्कूल के सामने की सड़क बेहद ख़राब है…। अपनी ही कम्यूनिटी के मि. रोजारियो द्वारा चलाये जा रहे इस स्कूल में जबकि पटना के एक-से-एक अफ़सर और बड़े लोगों के बच्चे पढ़ते हैं…। ‘सबसे सड़क ठीक करवाने के लिए रिक्वेस्ट किया पर कुछ नहीं हो सका आज तक…। कहाँ जाते… आपके पास आए हैं,’ डॉनबास्को स्कूल के लोगों की बात सुनकर मि. ब्राउन ने अपने फंड से वहाँ के लिए सड़क की मंजूरी तुरन्त करवा दी। अब एक आदमी से कहाँ तक उम्मीद करेंगे आप? मि. ब्राउन की भी एक सीमा है न! बिहार सरकार की जो हालत है…. उसमें मि. ब्राउन जो भी करा लेते हैं, वह कम नहीं।’ मि. मिलर के प्रवचन का असर मि. मेंडेज पर शायद धर्मवाक्य की तरह पड़ा, सो गहरी साँस लेकर वे बोले, ‘ठीक कह रहे हैं। इस माहौल में वे जो ही काम करा देते हैं, वही बहुत है।’
जैक चाय मेज पर रख गया है।
मि. मिलर ने कहा, ‘लीजिए मि. मेंडेज…लो रॉबिन…।’
रॉबिन ने चाय की प्याली उठाते हुए कहा, ‘अंकल, कौन हैं मि. ब्राउन?’ मि. मेंडेज ने चाय की पहली घूँट का स्वाद लेकर कहा, ‘राबिन, मि. ब्राउन इकलौते एम.एल.ए. हैं बिहार के हम एंग्लो-इंडियनों के। कभी आनेवाले किसी महीने में सम्भव हो तो हजारीबाग या पटना जाकर मिल लेना उनसे भी…। वैसे, छठे-छमासे ब्राउन साहब ‘गंज’ भी आते रहते हैं। बिहार क्या, पूरे देश में एंग्लो-इंडियन कम्यूनिटी की स्थिति के बारे में तुम्हें इनसे काफी जानकारी मिलेगी…।’
रॉबिन ने थोड़ी हैरानी से पूछा, ‘क्या बिहार में एंग्लो-इंडियंस का कोई सुरक्षित चुनाव क्षेत्र भी है?’
मि. मिलर ने मन्द मुस्कान के संग हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘अरे नहीं, ऐसा नहीं है। बिहार असेम्बली में एंग्लो-इंडियन मि. हेक्टर एंगस ब्राउन ही एक ऐसे विधायक है, जिनका कोई चुनाव क्षेत्र नहीं है। जो बिना चुनाव लड़े एम.एल.ए. बनते हैं।’ मि. मेंडेज ने बिहँसते हुए कहा, ‘पटना में, बिहार असेम्बली में उनको देख बड़ा तमाशा लगता रहता है, रॉबिन। कुछेक बार जब सेशन के दौरान में पटना गया, तो मैंने भी देखा। अपनी बुर्राक गोराई और लम्बी-चौड़ी क़द-काठी के कारण लगभग बहत्तर-तिहत्तर वर्षीय मि. हेक्टर एंगस ब्राउन ख़ालिस अंग्रेज़ लगते हैं। उन्हें देखकर जो लोग उनके बारे में ठीक से नहीं जानते, वे हैरानी में पड़ जाते हैं।
बिहार के ठेठ देहाती इलाक़ों से अपने काम के चक्कर में आम लोग अपने क्षेत्र के विधायकों के पीछे-पीछे भटकते हुए बिहार की राजधानी पटना में क़ायम बिहार असेम्बली की लॉबी में सेशन के दौरान पहुँचते हैं और अचानक जब देहात के वे लोग ब्राउन साहब को विधानसभा की बैठक में शरीक होने के लिए जाते हुए देखते हैं, तो एकदम से ठक्क रह जाते हैं। सहसा उन लोगों को अपनी आँखों पर यकीन नहीं होता। दूर-दराज के गाँवों से वहाँ आए वे निपट देहाती लोग उधेड़बुन में उलझ जाते हैं कि आख़िर अंग्रेज-सा दिखनेवाला यह आदमी बिहार के किस चुनाव क्षेत्र से जीत कर आता है? उन लोगों को लगता है, जैसे ऐलिस के आश्चर्यलोक से ही यह अंग्रेजों सरीखे हुलियेवाला बूढ़ा एम.एल.ए. सीधा यहाँ चला आ रहा है। उन लोगों का कोई अनुमान अन्त तक काम नहीं करता है। यहाँ तक कि बहुत से दूसरे एम.एल.ए. भी, जो नये-नये जीत कर आए होते हैं, मि. ब्राउन को असेम्बली में देखकर शुरू में चौंक पड़ते हैं। मि. ब्राउन दरअसल कई टर्म से एम.एल.ए. हैं।’
मि. मिलर ने कहा, ‘रॉबिन, मि. ब्राउन ज्यादातर अंग्रेजी में ही बात कर पाते हैं। हिन्दी उनकी बहुत अच्छी नहीं। इसलिए बिहार के मैक्सिमम एम.एल.ए. अपनी कमजोर अंग्रेजी के कारण मि. ब्राउन से बातचीत करने का सिरदर्द मोल लेना ही नहीं चाहते हैं।’ मि. मिलर की यह बात सुनकर रॉबिन को हँसी आ गई, ‘अच्छा… ऐसा…!’
मि. मेंडेज ने गम्भीर स्वर में कहा, ‘मि. ब्राउन सन् 1969 से ही बिहार में लगातार एम.एल.ए. होते आ रहे हैं। इस लिहाज से रॉबिन, उनका यह चौथा पाँचवाँ टर्म है। पर इन बीते वर्षों में उनकी शैली में कोई चेंज नहीं आया है। खामोशी से वे असेम्बली जाते हैं। कुछ देर चुपचाप अपनी सीट पर बैठते हैं और चले आते हैं।’
‘पर अंकल, ये बिहार असेम्बली में भला चुनकर…?’ रॉबिन ने जैसे वाक्य पूरा नहीं करना चाहा, वैसे ही।
मि. मॅडेज ने मुस्कुराकर मि. मिलर की तरफ देखा, ‘कुछ समझ रहे हैं..? अंग्रेजी डिक्शनरी में एक वर्ड है ‘नैकर— के…एन…ए…सी…के….इ…आर…। इसका माने होता है— बूढ़े घोड़ों को मार डालने… किल करने के लिए खरीदनेवाला आदमी…। लगता है, रॉबिन सवाल पूछ-पूछकर हम दोनों बूढ़ों को मार डालेगा…।’
मि. मिलर ने तब बिहँसकर शब्दों को जैसे दाँत से कूचते हुए कहा, ‘अब इन लद्दू घोड़ों का क्या? रेस से ख़ारिज हम बूढ़े घोड़े अब किस यूज के हैं? हम लोग तो अब इस धरती पर ऊपरवाले का आटा ही गीला कर रहे हैं न…!’ बात बहकती देख रॉबिन ने हँसते हुए कहा, ‘अंकल, ओल्ड इज गोल्ड…।’
बस, मि. मेंडेज़ धीरे-धीरे विस्तारपूर्वक शुरू हो गए, ‘बिहार असेम्बली में 324 एम.एल.ए. खुले चुनाव में जबरदस्त जोर-आजमाइश का इस्तेमाल कर आ पाते हैं। इसलिए, बहुत लोगों को आज तक यही भ्रम है कि बिहार असेम्बली में सिर्फ 324 सीट ही हैं। पर रॉबिन, एक सीट और है, जिस पर बगैर चुनाव लड़े एंग्लो-इंडियन कम्यूनिटी का एक प्रतिनिधि नामजद किया जाता है यानी 325वीं सीट। इसके लिए ‘एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन’ नाम प्रपोज़ करता है।
बिहार असेम्बली में यही तीन सौ पच्चीसवें एम.एल.ए. हैं अपने हेक्टर एंगस ब्राउन। दरअसल, आज़ादी के बाद ‘ऑल इंडिया एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन’ के प्रेजिडेंट मि. फ्रैंक एंथोनी की पहल पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने भारत में रह रही एंग्लो-इंडियन कम्यूनिटी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संविधान के आर्टिकिल-79 के तहत इस कम्यूनिटी के दो लोगों को देश की लोकसभा में और एक-एक प्रतिनिधि को हरेक प्रान्त की असेम्बली में नामजद करने का प्रविजन कराया था, जो आज तक चल रहा है। रॉबिन, इसी प्रविज़न के तहत मि. ब्राउन लगातार बिहार असेम्बली के सदस्य के रूप में नामजद किये जाते रहे हैं। आजादी के बाद से अब तक बिहार असेम्बली में मि. ब्राउन तीसरे एंग्लो-इंडियन एम.एल.ए. हैं।’
देर से सुन रहे मि. मिलर ने कहा, ‘बिहार में सबसे पहले एंग्लो-इंडियन एम.एल.ए. के रूप में नॉमिनेट किये गए थे मि. माइकेल मॉरिस, जो कभी ब्रिटिश शासन में सीनियर पुलिस अफ़सर हुआ करते थे। क्यों, है न मि. मेंडेज़?’
मि. मिलर ने तनिक आँखें सिकोड़ते हुए मि. मेंडेज़ से अपनी बात की पुष्टि चाही, तो मि. मॅडेज़ ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘बिलकुल। आपने ठीक कहा, मि. मॉरिस ही बिहार असेम्बली के पहले एंग्लो-इंडियन एम.एल.ए. नामजद हुए थे। और आपको मालूम? नामजद होने के पहले वे हजारीबाग म्यूनिसिपैलिटी के चेयरमैन थे। उनका बड़ा बेटा एरिक भी तो हजारीबाग़ का एस.पी. था। मि. मॉरिस की इकलौती बेटी मिस मेरी मॉरिस अभी भी हज़ारीबाग़ में रहती हैं। मेरी ने हेयर ड्रेसिंग की ट्रेनिंग लन्दन में ली थी और बहुत दिनों तक जयपुर महारानी की हेयर ड्रेसर रही थीं। पर देश-दुनिया घूमने के बाद वह हजारीबाग़ चली आईं। अस्सी साल पार कर चुकीं मेरी मॉरिस के बारे में आज हजारीबाग में कौन जानता है कि किस ग्रेट हस्ती की बेटी हैं यह। खैर, यही दुनिया है… पर मि. मिलर, एक गुजारिश करना चाहूँगा आपसे, अगर आप परमिशन दें तो?’
मि. मिलर ने तनिक चौंकते हुए कहा, ‘परमिशन की क्या जरूरत है? आप कहिए।’ मि. मेंडेज ने मुस्कुराकर कहा, ‘आपकी ऑर्थोडॉक्स दार्जलिंग-टी वाकई बहुत अच्छी थी। अगर एक बार वही फ़ाइनल-टी हो जाए, तो मजा आ जाए।’
मि. मिलर अपनी स्थायी मन्द मुद्रा के हिसाब से ही ठठाकर हँस पड़े, ‘ओह, मि. मेंडेज, मैं तो डर ही गया था कि ऐसी कौन-सी बात कहने की इजाजत माँग रहे हैं आप।’ फिर मि. मिलर ने जैक को आवाज लगाई।
जैक आया तो मि. मिलर ने कहा, ‘जैक मि. मेंडेज तुम्हारी चाय के फैन हैं। एक बार और हो जाए तो..।’
जैक हल्के से मुसककर रसोईघर में चला गया, ‘हाँ, क्यों नहीं। अभी तुरन्त।’
जैक गया तो रॉबिन ने मि. मेंडेज को कुरेदते हुए कहा, ‘हाँ, तो अंकल…।
मि. मेंडेज भभाकर हँस पड़े, बोले, ‘मान गया कि खुरच-खुरचकर बातों को निकालने में तुम्हारा जवाब नहीं। मि. मिलर ने ठीक ही कहा, बिहार में सबसे पहले एंग्लो-इंडियन संग एल.ए. मि. माइकेल मॉरिस हुए थे। पर मि. मॉरिस जब गुजर गए, तो मिसेज ओसिया चामक एक महिला, जो कभी वन विभाग में अधिकारी रह चुकी थीं, को एंग्लो-इंडियन नाम से बिहार में एम.एल.ए. बनाया गया। एक दिन जब मिसेज ओसिया भी इस दुनिया से कूच कर गई, तो नये सिरे से एंग्लो-इंडियन नस्ल के एक प्रॉपर आदमी की तलाश शुरू हुई। उसी समय ब्राउन महाशय को ढूँढ़ निकाला गया और बिहार असेम्बली में एम.एल.ए. के पद पर नोमिनेट कर दिया गया।’
मि. मिलर ने चश्मा उतारकर उसे रूमाल से पोंछते हुए कहा, ‘रॉबिन, ब्रिटिश राज में मि. ब्राउन सेट्लमेंट अफसर हुआ करते थे। उनकी नौकरी का ज्यादातर समय बिहार के मुजफ्फरपुर, बक्सर और हज़ारीबाग़ में बीता था। नौकरी से रिटायरमेंट के कुछ पहले मि. ब्राउन बिहार के सहरसा जिले में एक्टिंग डी.एम…. जिलाधिकारी भी बनाये गए थे।’ मि. मॅडेज ने तभी हल्की हुंकार के साथ कहा, ‘कुछ समय के लिए तो वे डी.एम. भी हुए ही थे। और हाँ, एक बात और बता दूँ कि मि. ब्राउन के फ़ादर मि. के.सी. ब्राउन कई वर्षों तक पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार थे।’
जैक ने चाय की ट्रे कुर्सियों के बीच पड़ी पुरानी-सी मेज पर लाकर फिर रख दी।
मि. मेंडेज ने आभार भरे स्वर में कहा, ‘थैंक्यू जैक! कुछ ज़्यादा परेशान कर दिया न तुम्हें।’  जैक ने रसोई घर की तरफ़ जाते हुए किंचित् हँसी के संग कहा, ‘हरगिज नहीं…। क्या कहूँ, यह सब कितना अच्छा लग रहा है। आप सबके साथ रॉबिन बाबू भी हैं। ऐसे दिन क्वींस कॉटेज में बराबर बने रहें।’
चाय का प्याला तीनों ने बारी-बारी से उठा लिया। रॉबिन ने चाय की पहली घूँट भरकर सरल भाव से पूछा, ‘मि. ब्राउन के बेटे-बेटियाँ क्या करते हैं?’ मि. मेंडेज तनिक मायूस स्वर में बोले, ‘परिवार कहाँ? मि. ब्राउन तो अनमैरेड हैं। हजारीबाग़ के अपने पुश्तैनी मकान में वे एक नौकर के साथ निपट अकेला जीवन गुजारते हैं। पटना में भी उन्हें बतौर एम.एल.ए, प्रेजिडेंट चैम्बर में एक छोटा-सा फ़्लैट मिला हुआ है, जिसमें वे सेशन के दौरान आकर टिकते हैं। बड़े मस्तमौला आदमी हैं वे। हालाँकि, लोगों से वह कम ही मिलते-जुलते हैं। या तो किताब पढ़ते रहेंगे या म्यूज़िक सुनते रहेंगे, बस, यही उनका जीवन है। रॉबिन, एक बार की रोचक घटना तुम्हें बताता हूँ।
किसी काम से मैं पटना गया हुआ था। मि. ब्राउन के फ़्लैट पर गया, तो पाया कि बाहर दरवाजे पर बड़ा-सा ताला लटक रहा है। मैंने सोचा कि निकले होंगे कहीं। एक घंटे बाद फिर गया। पर ताला ज्यों-का-त्यों लटक रहा था। ठीक बगल के फ़्लैटवाले से मैं पूछने हो जा रहा था कि कहीं मि. ब्राउन हजारीबाग तो नहीं चले गए, तभी मि. ब्राउन का पुराना नौकर अलबर्ट पीटर मुझे आता दिख गया। पूछने पर उसने जो कुछ भी बताया, सुनकर तो हँसते-हँसते मेरा बुरा हाल हो गया था। दरअसल रॉबिन, उनके नौकर अलबर्ट पाकर में बताया कि वह जब सब्जी वगैरह खरीदने बाजार जाता है तो अन्दर फ़्लैट में ब्राउन साहब के होने पर भी बाहर गेट पर ताला मार जाता है, क्योंकि यही उनका आदेश है। मैंने बताया न तुम्हें कि वह लोगों से ज्यादा मिलना-जुलना पसन्द नहीं करते।’
रॉबिन को हँसी आ गई. ‘मि. ब्राउन तो अद्भुत इनसान हैं।’
मि. मिलर ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा, ‘अद्भुत? रॉबिन, ऐसे इनसान विरले ही मिलेंगे। दुनियादारी से कोसों दूर। एक तो परिवार में बेचारे का कोई रहा नहीं। वैसे भी पूरे हजारीबाग में अब सिर्फ चार एंग्लो-इंडियन परिवार ही रह गए हैं। परिवार के नाम पर कह लो तो मि. ब्राउन की एक बहन थी और इस बहन की भी बस, एक लड़की थी। उसका नाम था—प्रिया। मि. ब्राउन की बहन तो बहुत पहले ही गुजर गई थीं। इस संसार में अपना कहने को बस बहन की वह बेटी प्रिया रह गई थी। बेहद प्यार करते थे प्रिया को वे। प्रिया ने एक फ़िल्म एक्टर इंदर ठाकुर से शादी की थी। एक बच्चा भी हुआ था उसे इंदर से। पर कनिष्क हवाई दुर्घटना में वे सभी दुनिया से चल बसे। इंदर, प्रिया और उसका बच्चा तीनों ‘एयर क्रैश’ में ख़त्म हो गए। मि. ब्राउन उस दिन से बुरी तरह टूट गए। प्रिया की मौत ने उन्हें बुढ़ापे में तोड़कर रख दिया।’
मि. मिलर का स्वर कहते-कहते डूब-सा गया। एक हल्की-सी उदासी पल भर के लिए तिर गई। रॉबिन ने उसाँस लेकर कहा, ‘ओह, दुनिया में कोई पूरी तरह सुखी नहीं। एक न एक दुःख सबके जीवन में नत्थी है।’
मि. मेंडेज़ ने चाय ख़त्म कर प्याली मेज पर रखते हुए कहा, ‘हाँ, ऐसा है रॉबिन! पर आदमी हरदम दुःखों में नहीं रह सकता। रहेगा, तो जी नहीं पाएगा। जीने के लिए इनसान कोई-न-कोई प्यारी शगल या बहाना तलाश ही लेता है। जैसे मि. ब्राउन की ही बात कर रहे हैं न हम लोग। सही है कि प्रिया की मौत का गहरा सदमा उन्हें लगा, पर कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपने को इससे उबारा और म्यूजिक सुनने… किताबों को पढ़ने के अलावा बागबानी के शौक़ में जुट गए। ब्राउन महाशय को म्यूजिक से तो बेहद लगाव है ही, अमरीकी उपन्यासों को भी पढ़ने का नशा है। यही नहीं, हजारीबाग़ में अपनी एक एकड़ जमीन में फल उपजाने के शौक़ में भी वे जुनून की हद तक जुटे रहते हैं।’
साभार- https://rajkamalprakashan.com/blog/



मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने ग्राम बगिया में सपरिवार किया मतदान

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने आज सवेरे जशपुर जिले में अपने गृहग्राम बगिया के मतदान केंद्र क्रमांक 49 में अपनी माताजी, धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय और अन्य परिवारजनों के साथ मतदान किया। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय दोपहर 11.45 बजे अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय और अपने परिवारजनों के साथ मतदान क्रमांक 49 पहुंचे। उन्होंने मतदाताओं के साथ कतार में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया और बारी आने पर मतदान किया। उन्होंने मतदान केंद्र के बाहर परिवारजनों के साथ सेल्फी भी ली। मुख्यमंत्री ने लोकतंत्र के इस महापर्व पर आम जनता से अधिक से अधिक संख्या में मतदान करने की अपील भी की।



विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर डॉ. सुभाष चंद्रा का संदेश

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे’ के मौके पर पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा ने देशवासियों को संदेश दिया और बताया कि कैसे जी ग्रुप ने भारत में पहले निजी सेटेलाइट टीवी इंडस्ट्री की नींव रखकर भारत के टेलीविज़न मनोरंजन व मीडिया के क्षेत्र में क्रांति कर दी थी।

3 मई को हर साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। यह दिन लोगों को मीडिया के महत्व से रूबरू करवाने और सच सामने लाने के लिए कई चुनौतियों का सामना कर रहे पत्रकारों को सम्मानित करने के मकसद से मनाया जाता है। ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ के मौके पर पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा ने ‘जी न्यूज’ के ‘डीएनए’ कार्यक्रम से देशवासियों को संदेश दिया और बताया कि कैसे जी ग्रुप ने ही भारत में सेटेलाइट टीवी इंडस्ट्री की नींव रखी थी। उन्होंने बताया कि कैसे देश में दूरदर्शन के बाद जी ग्रुप ने ही मनोरंजन और खबरें देखने के अधिकार को लोकतांत्रिक रूप दिया था।

डॉ. सुभाष चंद्रा ने कहा कि ये दुर्भाग्य है कि प्रेस फ्रीडम में विश्व में भारत की रैकिंग 180 देशों में 159 नंबर पर है। जब इस बारें में मैं सोच रहा था, तो मेरे दिमाग में पूरी एक फिल्म रीप्ले कर गई। इस देश में मैं निजी सेटेलाइट टेलिविजन के फाउंडर के रूप में भी जाना जाता हूं। 1991 में दूरदर्शन के अलावा कोई दूसरा टेलीविजन चैनल नहीं था और तब मैंने इसकी शुरुआत की थी और आज ये एक इंडस्ट्री बन चुकी है। आज भारत में शायद पांच सौ से ज्यादा निजी टेलीविजन चैनल हैं। लगभग आठ लाख से ज्यादा लोग सीधे तौर पर इस इंडस्ट्री से रोजगार के तौर पर जुड़े हुए हैं। अप्रत्यक्ष रूप से यह संख्या लगभग सत्रह से बीस लाख के करीब हो सकती है, जो लाभार्थी हुए हैं।

इस दौरान डॉ. चंद्रा ने एक पुरानी घटना का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे 1991 के दिवाली के समय का वो दिन याद आया, जब उस समय के भारत सरकार के सूचना-प्रसारण मंत्रालय के तत्कलीन सचिव स्वर्गीय श्री महेश प्रसाद जी से उनके दफ्तर में मिलने गया था और जब उनसे कहा कि मैं एक निजी सेटेलाइट टीवी चैनल शुरू कर रहा हूं, लिहाजा कानून के न होते हुए मैं आपको समर्पित करता हूं। जिस तरह से आप दूरदर्शन को निर्देशित करते हैं, उसी तरह से आप इस चैनल को भी निर्देशित कर सकते हैं। इस पर वह नाराज हो गए और नाराजगी भरे लहजे में उन्होंने कहा कि डॉ. चंद्रा मैं आपको यह नहीं करने दूंगा और यदि आप ऐसा करेंगे तो मैं आपको जेल में डाल दूंगा। उन्होंने बताया कि यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया और मैं उनसे यह कहकर निकल आया, मैं तो ऐसा करूंगा, आपको जो करना हैं आप करिए और मुझे जो करना है, वो मैं करूंगा।

डॉ. चंद्रा ने आगे कहा कि आज करीब तेतीस वर्ष बाद भी ऐसा ही कुछ महसूस हो रहा है, पर इसका जिक्र मैं फिर कभी करूंगा, लेकिन आज इतना ही कहूंगा कि जी नेटवर्क को देश-विदेश भारतीय भाषाओं में और दस विदेशी भाषाओं में मिलाकर हर रोज करीब 150 से 155 करोड़ लोग देखते हैं।

इस दौरान डॉ. चंद्रा ने दर्शकों से अपील की कि आप सबका प्यार जी नेटवर्क के साथ, जी न्यूज के साथ बना रहे। इसके लिए मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि हम भरसक प्रयास करेंगे कि सीधी, सच्ची न्यूज आपके घर तक, आपके मोबाइल्स में हर जगह पहुंचती रहे।

पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा का ये पूरा संदेश आप यहां सुन सकते हैं-

पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा का ये पूरा संदेश आप यहां सुन सकते हैं-




हिंदुओं और राष्ट्र प्रेमियों, जागो, उठो, मोदी के लिये नहीं, राष्ट्र रक्षा के लिए १०० % मतदान करो

२०२४ का लोकसभा चुनाव हमारी सभ्यता और संस्कृति को बचाने का चुनाव है। ये अन्यान्य प्रकार के जिहादों से समाज को सुरक्षित रखते हुए एक सक्षम, समर्थ और शक्तिशाली भारत के उद्भव का चुनाव है जिसे विश्व में अग्रणी बनना है। आप का मत बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है ऐसी परिस्थिति में। मतदान न करने का पाप अपने सिर पर न लें। उस पाप की भरपाई नहीं कर पायेगें अपने आगे के सौ जन्मों में भी क्यों कि आप का अस्तित्व ही न बचेगा। जो आत्मसम्मान खो कर भी जी सकते हैं वो दिन रात लतियाये और दुरदुराये जायेगें जिहादी जमातों द्वारा जैसे पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान , और बंगलादेश में हो रहा है। यहां भारत के अंदर भी तो कर्नाटक से ले कर बंगाल तक यही हो रहा है। ये भी ध्यान रहे भारत माता की गोद में ही हिंदु सुरक्षित हैं। जिस दिन ये गोद नहीं रही हम भी मारे मारे फिरेगें विश्व में रोमा बंजारों की तरह।

विदेश मंत्री डा. जय शंकर ने क्या कहा- विश्व एक बहुत ही गंभीर दौर से गुजर रहा है। भारत को कमजोर करने की कोशिशें निरंतर चल रही हैं। आने वाले दिनों में ये कोशिशें और षड्यंत्र और तेज होगें। देश को एक बहुत ही समर्थ नेतृत्व व शक्तिशाली सरकार की आवश्यकता है जो इन भारत विरोधी शक्तियों से प्रभावशाली ढंग से लड़ सके। पिछले १० वर्षों में मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने विश्व में एक ऐसा स्थान बना लिया है कि वो अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा दिखाई देता है। वह विश्व कि पांचवी अर्थ व्यवस्था से चौथी बनने के कगार पर है।

२०% की एक जिहादी, खालिस्तानी, और वामी देशतोड़कों की आबादी है जो तय कर के बैठी है कि हिंदु भारत को नीचा दिखाना है। कुछ अन्य भी स्वार्थी तत्व हैं जो भारत को तहस नहस करना चाहते हैं सत्ता में अाने के लिये। ये हिंदु परिवारों को तोड़ देना चाहते हैं और पूरे समाज को अमीर-गरीब, जात-पांत, भाषा, क्षेत्र, वर्ग, आदि के नाम पर बांट कर सत्तानशीन होना चाहते हैं इनके षडयंत्र अब ढके छुपे भी नहीं है। देश के बाहरी शत्रु इन तत्वों को अब खुला समर्थन दे रहे हैं।

आप सब जानते हैं और साफ देख सकते हैं कि पिछले दस वर्षों में देश कितनी तीव्र गति से आगे बढ़ा है। मैने अपने जीवन काल में विकास की ऐसी रफ्तार नहीं देखी। पिछले दस वर्षों में हमने किसानों की आत्महत्या या भूखमरी की खबरें नहीं पढ़ीं । सड़कों पर भिखारी नहीं मिलते। घर के काम के लिये किसी बढ़ई, कारीगर, प्लंबर, पेंटर, इलेक्ट्रिशियन। आदि को खोजने जाइये तो कोई नहीं मिलता। सब्ज़ी भाजी और फलों के रंग बिरंगी ठेले भरे पड़े हैं। सब संपन्न हो रहे हैं। गरीबी घटी है, मिटने की कगार पर है। भ्रष्टाचार कम होता जा रहा है। सरकारी योजनायों का लाभ आम जन तक पहुंच रहा है।

दिल्ली में हिंदू सरकार बनानी है। प्रत्याशी से वैसे भी हमारा काम कम ही पड़ता है। उसे देखने से बस आँख को सुकून भर ही मिलता है। वह प्रत्याशी जीत कर देश के नेतृत्व के साथ खड़ा रहे यही आवश्यक है। आप की बात ऊपर तक पहुंचाता रहे। देश की रीतियों और नीतियों को देखना है। उन्हीं के कारण देश का सम्मान बढ़ा है और सही अर्थों में विकास की बहार दिखने लगी है। चाहे वो मुंबई हो या बनारस, आमूल चूल परिवर्तन हो रहे हैं। इसीलिये पूरे उत्साह के साथ बाहर निकलिये। EVM पर कमल या राजग के दलों के चुनाव चिन्ह देखिये और बटन दबा दीजिये।

बहुत सिद्धांतवादी मत बनिये। यदि प्रभु राम और कृष्ण बहुत सिद्धांतवादी बनते तो अधर्म पर धर्म की जीत नहीं होती, न रामायण में न महाभारत में। व्यक्तिगत नहीं वृहत्तर सामाजिक और राष्ट्रीय स्वार्थ के लिये मतदान किजिये। हरदम मुझे ये नहीं मिला, वो नहीं मिला करने में कोई सुख नहीं है। प्रत्याशी की मीन मेख निकालने निकलेगें तो सब में कमी निकलेगी। वो हमारे समाज से ही आते हैं। उनका दूध का धुला होना संभव नहीं है। वो किन नीतियों के साथ खड़े होंगे आगामी लोकसभा में वह महत्वपूर्ण है।

सोचने की बात ये भी है कि क्या कट्टर मुसलमान और कुटिल ईसाईयों का एक बड़ा वर्ग प्रत्याशी देख कर या विकास के नाम पर मतदान कर रहा है? नहीं न। वो मोदी को अपदस्थ करने के लिये मतदान केंद्र पर लंबी कतार में खड़ा दिखता है। वो माफिया सरगनाओं और भ्रष्टाचारी मक्कारों तक को बेहिचक वोट देता है।

उसे बस यही लगता है कि मोदी राज में हिंदुओं का वर्चस्व है और उसे अभ्यास नहीं है हिंदु राज में रहने का। यथार्थ है कि मोदी ने उनका कोई बुरा नहीं किया। फिर भी वो मोदी विरोध में खड़े हैं, अपने मुल्ला मौलवियों और पादरियों की पुकार पर।

हिंदुओं में तो ऐसी कोई संस्था नहीं है जो ऐसी पुकार लगाये। इसीलिये हिंदुओं को स्वप्रेरणा से ऐसा करना होगा। जब ईसाई और मुसलमानों का एक बड़ा तबका १००% मतदान कर सकता है केवल मोदी को हटाने के लिये तो हम हिंदू और राष्ट्रवादी कौन से गये गुजरे हैं कि १००% मतदान नहीं कर सकते मोदी को जिताने के लिये? तो टूट पड़िये मतदान केंद्रों पर, धर्म और अधर्म की लड़ाई के इस कुरुक्षेत्र में धर्म की पताका फहरानी है।

ईमान (इस्लाम) के लिये हिंदुस्तान को भी बर्बाद कर देगें ये। ऐसे ही मुल्ला मौलवी हिंदु नेताओं का सिर तन से जुदा करने का षड़यंत्र रच रहे हैं। ये ज़ोर शोर से हिम्मत कर के बोल रहे हैं। इनका नंगा नाच तब दिखेगा जिस दिन मोदी और योगी जैसे नहीं रहेगें। ये स्वयं ऐसा कहते चलते हैं।

फिर हम देख रहे हैं कर्नाटक, बंगाल, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु में ऐसा होता हुआ। गरीब हिंदुओं को ये मुस्टंडे भैंसानुमा मौलाना डरा कर रखते रहे हैं अपने डील डौल से। अब जा कर उनका आत्म सम्मान लौटने लगा है, ये दुखी और विचलित हैं।

जहाँ भी मूलत: इनके वोटों से चुनी हुई सरकारें हैं वहां ये किसी कानून को नहीं मानते। वो सरकारें इनके अतिवादियों को सुरक्षा प्रदान करती हैं। मुख्यमंत्री स्तर के जातिवादी नेता भी इनके सामने नतमस्तक रहते हैं। चाहे वो मुलायम या अखिलेश हों, लालू या तेजस्वी हों, ममता बनर्जी हों, या सोनिया-राहुल हों, सब नतमस्तक रहते रहे हैं अतीक, मुख्तार, शहाबुद्दीन, बुखारी, और शाहजहां जैसों के आगे। सारा यदुवंशी, बंगाली, और नेहरु खानदानी आत्मसम्मान इस जिहादी माफिया के आगे दंडवत् लेट जाता है।

इनका विकास से कुछ नहीं लेना देना। ये सपना देखते हैं गजवा-ए-हिंद का। एक फ़तवे पर ये टिड्डी दलों की तरह मतदान की पंक्ति में जा खड़े होते हैं। ये प्रत्याशियों के जीवन चरित्र नहीं पढ़ते मतदान करने से पहले। इनके मतदान का बस एक ही आधार है, मोदी और योगी को हराना और हिंदुओं का मान-मर्दन। हिंदु इनके इलाकों से सिर उठा कर न निकल पाये यही चाहते हैं ये। इन्हें यही दुख सालता है कि मोदी और योगी राज में हिंदु सिर उठा कर घूमने लगा है।

तो जात पाँत भूल जाइये, और मंहगाई-बेरोज़गारी के झूठे रोने धोने के नाटक में मत फँसिये। राम घर घर और कण कण में हैं, राम मंदिर तो व्यापार है ये क़िस्सा भी सुनाया जायेगा आप को लेकिन ये कोई नहीं बतायेगा कि ख़ुदा की इबादत के लिये बाबरी मस्जिद ही क्यों चाहिये।

ध्यान रखिये जिद दिन आप अपने आराध्य का सम्मान करना और ऊनके लिये लड़ना छोड़ देगें, ये जिहादी आप के सीने पर मूंग दलेगें; आप की माता, बहन, और बेटियों का सम्मान और उनका शील क्षत् विक्षत् होगा। ये हो चुका है, और हो रहा है। जब पप्पू, अखिलेश, तेजस्वी राज में लव जिहादियों के झूंड निकलेगें आप सहन नहीं कर पायेगें और ना ही उनको रोक पाएँगें।

मतदान कीजिये जिससे कि आप अपने आराध्य की निर्बाध पूजा कर सकें, अपना अत्म सम्मान बचा सकें। आत्म सम्मान के आगे सब कुछ नगण्य है।

हिंदुओं और राष्ट्र प्रेमियों, निकलो बाहर मतदान के लिये। ये धर्म और राष्ट्र रक्षा का युद्ध है। पुरानी गलती नहीं दुहरानी है। घूस खा कर अपने क़िले के दरवाज़ों को नहीं खोलना है।

इससे संबंधित वीडियो इस लिंक पर उपलब्ध हैं https://khullamkhulla.wordpress.com/



जन्म कुंडली में मांगलिक दोष

तहक्षी

मांगलिक दोष क्या है? मांगलिक दोष तथा विवाह का संबंध मंगल दोष से मुक्ति के उपाय कुंडली में मंगल की स्थिति के कारण मांगलिक दोष होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8 तथा 12 वें भाव में होता है तो माना जाता है कि व्यक्ति मांगलिक है।

मंगल (ग्रहों का सेनापति) मंगल को शक्ति, साहस, पराक्रम और ऊर्जा का कारक माना जाता है। कुंडली में इसकी शुभ स्थिति किसी भी व्यक्ति के लिए शुभ साबित होती है। लेकिन अगर कुंडली में इसका स्थान पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में हो तो इस स्थिति को मांगलिक दोष कहते हैं। यह दोष वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है और इसके कारण व्यक्ति के विवाह में अनेक रूप की बाधाएं भी आती हैं।

मांगलिक दोष तथा विवाह का संबंध ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल का विवाह से बहुत संबंध है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल की स्थिति कमजोर होती है तो वह मांगलिक होता है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति की शादी गैर मांगलिक लड़के या लड़की से हो जाती है तो वैवाहिक जीवन में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं। कई बार कलह इतनी बढ़ जाती है कि जीवनसाथी से अलगाव हो जाता है।

मंगल दोष से मुक्ति के उपाय ज्योतिष शास्त्र में लड़का या लड़की के मांगलिक होने पर कई उपाय बताए गए हैं। इन्हें अपनाकर मांगलिक समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। अगर लड़की मांगलिक है तो विवाह से पहले कुंभ विवाह, विष्णु विवाह या अश्वत्थ विवाह कराया जाता है। हर मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें। प्रतिदिन शिवलिंग पर जलाभिषेक और दूधाभिषेक के साथ लाल फूल भी चढ़ाएं। घर आने वाले मेहमानों को मिठाई खिलाने से भी मंगल दोष काफी हद तक कम हो सकता है। हर मंगलवार को भगवान शिव को शहद चढ़ाएं। इससे भी मंगल दोष से राहत मिलती है।

हनुमान जी को केसरिया रंग का चोला चढ़ाएं। मंगलवार को घर में केसरिया आकार के छोटे गणपति लाएं और उनकी नियमित पूजा करें। मंगल दोष से मुक्ति पाने के लिए आप हर मंगलवार को मंगल ग्रह स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। मंगल दोष को कम करने के लिए आप किसी कर्मकांडी पंडित जी से मंगल की शांति के लिए हवन करवा सकते हैं। हवन में भगवान मंगल को कुछ आहुति देने से यह दोष जल्द ही कम हो जाता है। ग्रहों का संबंध रंगों से भी होता है। लाल रंग भी मंगल का प्रतिनिधित्व करता है।

इसलिए मंगल दोष से मुक्ति पाने के लिए आप लाल रंग के कपड़े पहन सकते हैं। मंगलवार के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल रंग के कपड़े पहनें और मूंगे की माला से मंगल के मंत्र का जाप करें। मंत्र इस प्रकार है- ॐ अंग अंगारकाय नमः। ऐसा करने से आपको मंगल के दुष्प्रभावों से कुछ हद तक राहत मिलेगी।

साभार- https://twitter.com/yajnshri से




मनुष्य इसी वन में जंगली जानवरों के बीच फँसा हुआ है

एक बार विदुर जी संसार भ्रमण करके धृतराष्ट्र के पास पहुँचे तो धृतराष्ट्र ने कहा, “विदुर जी ! सारा संसार घूमकर आए हो आप, कहिये कहाँ-कहाँ पर क्या देखा आपने ?”
विदुर जी बोले, “राजन् ! कितने आश्चर्य की बात देखी है मैंने। सारा संसार लोभ शृंखलाओं में फँस गया है। काम, क्रोध, लोभ, भय के कारण उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, पागल हो गया है। आत्मा को वह जानता ही नहीं।”

तब एक कथा उन्होंने सुनाई। एक वन था बहुत भयानक। उसमें भूला-भटका हुआ एक व्यक्ति जा पहुँचा। मार्ग उसे मिला नहीं। परन्तु उसने देखा कि वन में शेर, चीते, रीछ, हाथी और कितने ही पशु दहाड़ रहे हैं। भय से उसके हाथ-पाँव काँपने लगे। बिना देखे वह भागने लगा।

भागता-भागता एक स्थान पर पहुँच गया। वहाँ देखा कि पाँच विषधर साँप फन फैलाये फुङ्कार रहे हैं। उनके पास ही एक वृद्ध स्त्री खड़ी है। महाभयंकर साँप जब इसकी और लपका तो वह फिर भागा और अन्त में हाँफता हुआ एक गड्ढे में जा गिरा जो घास और पौधों से ढका पड़ा था।

सौभाग्य से एक बड़े वृक्ष की शाखा उसके हाथ में आ गई। उसको पकड़कर वह लटकने लगा। तभी उसने नीचे देखा कि एक कुआँ है और उसमें एक बहुत बड़ा साँप ―एक अजगर मुख खोले बैठा है। उसे देखकर वह काँप उठा। शाखा को दृढ़ता से पकड़ लिया कि गिरकर अजगर के मुख में न जा पड़े। परन्तु ऊपर देखा तो उससे भी भयंकर दृश्य था। छः मुख वाला एक हाथी वृक्ष को झंझोड़ रहा था और जिस शाखा को उसने पकड़ रखा था, उसे सफेद और काले रंग के चूहे काट रहे थे। भय से उसका रंग पीला पड़ गया, परन्तु तभी शहद की एक बूँद उसके होंठों पर आ गिरी।

उसने ऊपर देखा। वृक्ष के ऊपर वाले भाग में मधु-मक्खियों का एक छत्ता लगा था, उसी से शनैः–शनैः शहद की बूँदें गिरती थीं। इन बूँदों का स्वाद वह लेने लगा। इस बात को भूल गया कि नीचे अजगर है। इस बात को भूल गया कि वृक्ष को एक छः मुख वाला हाथी झंझोड़ रहा है। इस बात को भी भूल गया कि जिस शाखा से वह लटका है उसे सफेद और काले चूहे काट रहे हैं और इस बात को भी कि चारों ओर भयानक वन है जिसमें भयंकर पशु चिंघाड़ रहे हैं।

धृतराष्ट्र ने कथा को सुना तो कहा, “विदुर जी ! यह कौन से वन की बात आप कहते हैं? कौन है वह अभागा व्यक्ति जो इस भयानक वन में पहुँचकर संकट में फँस गया?”

विदुर जी ने कहा―”राजन् ! यह संसार ही वह वन है। मनुष्य ही वह अभागा व्यक्ति है। संसार में पहुँचते ही वह देखता है कि इस वन में रोग, कष्ट और चिन्तारुपी पशु गरज रहे हैं। यहाँ काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के पाँच विषधर साँप फन फैलाये फुफकार रहे हैं।

यहीं वह बूढ़ी स्त्री रहती है जिसे वृद्धावस्था कहते हैं और जो रुप तथा यौवन को समाप्त कर देती है। इनसे डरकर वह भागा। वह शाखा, जिसे जीने की इच्छा कहते हैं, हाथ में आ गई। इस शाखा से लटके-लटके उसने देखा कि नीचे मृत्यु का महासर्प मुंह खोले बैठा है।

वह सर्प, जिससे आज तक कोई भी नहीं बचा, ना राम, न रावण, न कोई राजा न महाराजा, न कोई धनवान न कोई निर्धन, कोई भी कालरुपी सर्प से आज तक बचा नहीं; और छः मुख वाला हाथी जो इस वृक्ष को झंझोड़ रहा था वह वर्ष है― छः ऋतु वाला। छः ऋतुएँ ही उसके मुख हैं। लगातार वह इस वृक्ष को झंझोड़ता रहता है; और इसके साथ ही काले और श्वेत रंग के चूहे इस शाखा को तीव्रता से काट रहे हैं; ये रात और दिन आयु को प्रतिदिन छोटा कर रहे हैं, यही दो चूहे हैं।