1

लघु कथा:गुरु महिमा

 प्रात: की बेला में नित रोज की भांति घूमने के दौरान एक कोचिंग केंद्र के सामने से गुजर रहा था, एक सज्जन मौके पर निगरानी कर रहे सुरक्षा प्रहरी से पूछ रहा था सम्यक कहां है ? प्रहरी ने कहा आपके दाईं ओर का भवन ही है, इधर गाड़ी पार्क कर चले जाए। वह सज्जन उन्हें धन्यवाद देकर आगे बढ़ा ही था की प्रहरी अपने दूसरे साथी से बोला लगता है गुरु जी भी नए – नए आए हैं।
 प्रहरी आपस में चर्चा कर रहे थे, कुछ भी यार शिक्षक गुरु ही होता है। किसी ने हमें भी पढ़ाया था और आज हम उन्हीं की बदौलत नौकरी कर रहे हैं। एक ने कहा आज के समय में कुछ शिक्षकों के कारनामों ने शिक्षकों के सम्मान में कमी ला दी हैं। दूसरा बोला सही है यार ऐसे शिक्षकों को छोड़ दें जो समाज के लिए कलंक बन जाते हैं पर अधिकांश का तो आज भी वही सम्मान बरकरार है। हम हर रोज यहां खड़े – खड़े देखते ही हैं की जो शिक्षक अच्छा पढ़ाते हैं स्टूडेंट्स उनकी खूब चर्चा करते हैं और पूरी श्रद्धा से गुरुजी कह कर संबोधित करते हैं। दूसरे ने कहा याद आया अपने एक बड़े अधिकारी भी तो कई बार उन्हें पढ़ाने वाले अध्यापक को आज तक गुरु मानते हैं। एक बार मैने अपनी आंखों से देखा था कई लोगों की उपस्थिति में उन्होंने अपने गुरु जी के चरण स्पर्श किए थे। गुरु जी ने उनसे कहा था सबके सामने तो ऐसा मत करो, तुम इतने बड़े अधिकारी हो ।
 पता है तब उन्होंने क्या कहा, उन्होंने कहा था आज आपकी शिक्षा की वजह से ही यह सब कुछ है। मेरे लिए गुरु जी आपका स्थान सबसे पहले हैं। उनकी बात सुनने में मुझे भी आनंद आ रहा था, पर एक का मोबाइल बजने से चर्चा का यह सिलसिला टूट गया और मैं भी आगे बढ़ गया।

——

डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार,कोटा