1

ऐड़े पुलिस अफसरों को सामाजिक मान्यता दिलाती ‘सिम्बा’

यह बात सहज स्वीकार्य है कि अपने ज़माने के मशहूर गंजे विलेन शेट्टी के सुपुत्र रोहित शेट्टी बॉलीवुड में मसाला फिल्मों के शिखर पुरुष डेविड धवन की विरासत को सफलतापूर्वक आगे ले जा रहे हैं. पहली फिल्म ज़मीन को छोड़कर उनकी अभी तक बनाई सभी फिल्मों ने न केवल लागत निकालकर भारी मुनाफा कमाया है बल्कि गोलमाल और सिंघम तो फ्रेंचाईजी में तब्दील हो चुकी हैं. भले ही उनकी फिल्मों का स्वाद एकरसता को नहीं तोड़ता और दर्शक जाने पहचाने किरदारों को बार बार देखने के लिये लालायित रहते है. अजय देवगन, गोवा के लोकेशंस और हवा में उछलती कारों और एसयूवी के एक्शन सीन रोहित शेट्टी की फिल्मों की यूएसपी बन चुके हैं. पर 2018 के आख़िरी शुक्रवार को आई साल की आखिरी बड़ी फिल्म ‘सिम्बा’ बॉक्स ऑफिस पर बड़ा धमाका कर गई.

सिम्बा ने पहले ही दिन 20 करोड़ से अधिक कमाकर रणवीर सिंह की अब तक की सभी फिल्मों की पहले दिन की कमाई का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. गौर तलब है कि वर्ष की शुरुआत में रणवीर अभिनीत विवादों में घिरी पद्मावत ने भी पहले दिन 19 करोड़ का व्यवसाय कर लिया था. हालाँकि सिम्बा हिट तेलुगु फिल्म टेम्पर का ऑफिशियल रीमेक है. बावजूद इसके *रोहित शेट्टी ने इसे शिवगढ़ के बाजीराव सिंघम से जोड़कर रणवीर सिंह के रूप में एक और मूंछ वाला राऊडी राठौड़ अपनी टीम में जोड़ लिया है. अब 2019 में रोहित की अगली पुलिसिया फिल्म में सिंघम और सिम्बा के साथ एटीएस चीफ वीर सूर्यवंशी (अक्षय कुमार) वर्दी का मान बढ़ाएंगे.

सिम्बा की कहानी सिंघम श्रंखला की पिछली फिल्मो की तरह गोवा की पृष्ठभूमि में उभरती है. सिनेमा के टिकट ब्लैक में बेचता एक अनाथ बालक जब पकडे जाने पर अपने आका को भ्रष्ट पुलिस अधिकारी के आगे नतमस्तक देखता है तो आगे चलकर पुलिस में भर्ती होने की ठान लेता है. संग्राम भालेराव उर्फ़ सिम्बा (रणवीर सिंह) नाम का यह पुलिस इंस्पेक्टर मीरामार थाने का इन्चार्ज बनते ही अपनी उजबक हरकतों से पूरे महकमे की छवि धूमिल करता है. वहां पदस्थ ईमानदार कांस्टेबल नित्यानंद मोहिले (आशुतोष राणा) सिम्बा और उसके मुँह लगे एएसआई तावड़े (सिद्धार्थ जाधव) की छिछोरी हरकतों से मन ही मन काफी खिन्न रहता है. इस बीच थाने के सामने गुड फ़ूड कैटरिंग सर्विस चलानेवाली शगुन (सारा अली खान) पर सिम्बा का दिल आशना हो जाता है. इलाके के रसूखदार डॉन दुर्वा रानाडे (सोनू सूद) के भाई पब में रेव पार्टियाँ आयोजित कर ड्रग्स के धंधे में शामिल हो जाते हैं. निराश्रित बच्चों को पढ़ाने वाली मेडिकल स्टूडेंट आकृति दवे ( वैदेही) को जब बच्चों के जरिये ड्रग तस्करी की आहट लगती है तो वह सिम्बा से मदद की गुहार लगाती है. सिम्बा उसे छोटी बहन मानकर सुरक्षा का भरोसा दिलाता है. तभी एक दिन आकृति ड्रग तस्करों के रैकेट का पता लगाने की कोशिश में दूर्वा के भाइयों के पब में पहुँच जाती है जहाँ सामूहिक दुष्कृत्य के बाद अस्पताल में उसकी मौत हो जाती है. इस हृदय विदारक घटना से सिम्बा का सोया ज़मीर जाग उठता है. आगे की कहानी एक भ्रष्ट पुलिस अफसर के सही राह पर लौटने के नाटकीय संघर्ष को बयां करती है.

फिल्म में रणवीर सिंह ने सिम्बा के किरदार को दिल से जीया है. नवोदित सोहा अली खान नसीबवाली हैं कि उन्हें एक महीने में दो बड़ी फिल्मों केदारनाथ और सिम्बा से बॉलीवुड में प्रवेश का अवसर मिला. अब आगे उन्हें खुद को साबित करना होगा तभी वे टिक पाएंगी. सहायक भूमिकाओं में सोनू सूद से ज्यादा प्रभावित करते हैं आशुतोष राणा. जॉली एलएलबी के बाद सिम्बा में महिला जज की भूमिका में अश्विनी कल्सेकर ध्यान खींचती हैं. गीत संगीत अनुकूल है. आला रे आला और लड़की आँख मारे गीत लोकप्रिय हो चुके हैं. मधुर एवं कर्णप्रिय तेरे बिन गीत का फिल्मांकन कशिश जगाता है.

*फिल्म के एक्शन दृश्य रोहित शेट्टी की पिछली फिल्मों से थोड़ा अलग हैं क्योंकि इसमें उन्होंने हवा में गाड़ियाँ उड़ाने के रोमांचक अतिरेक से परहेज किया है.* इस बार निर्देशक ने अपना ध्यान फिल्म के भावुक कर देने वाले दृश्यों पर केन्द्रित किया है. *निर्भया काण्ड के बाद हर साल देश में महिलाओं के साथ दुष्कर्म की लगातार बढती घटनाओं का सन्दर्भ फिल्म को सामयिक और प्रासंगिक बनाता है.*
फिल्म के संवाद माहौल को गर्माते हैं- ये वो फटाका है जो एक दिन बड़ा धमाका करेगा.. वैसे भी साहब को खाने का बहुत शौक है.. दर्द है घुटने में तो तकलीफ है उठने में.. ऑटो वाला तू है और रास्ता मुझसे पूछ रहा है.. सर सैल्यूट आदमी को नहीं वर्दी को किया जाता है.. चाँद पर बरफ और पानी की खोज तो हो गयी बस अब ये ले जाना बाकी है.. मैं आपके जैसा आदमी नहीं हूँ जो पैसे के लिये इतना गिर जाए.. ईगो हर्ट हो गया तो क्या लड़की से रेप करेगा तू.. देश की एक बेटी दूसरी बेटी के लिये इतना तो कर सकती है न.. सर अब बात पोस्ट और पैसे की नहीं आकृति की है.. देश की बेटियों को इन हैवानो से बचाएगा कौन.. इन हैवानो में डर पैदा करना जरुरी है.. बीच सड़क पर उनका सबके सामने काट देना चाहिए.. जब तक ये रेपिस्ट लोग को अपन पोलिस वाले ठोकेंगे नहीं तब तक.. अब मैं भी जाने से पहले इस पोलिस स्टेशन को हिस्टोरिक बना देना चाहता हूँ.. वो सारे माँ-बाप गुनाहगार हैं जो अपने बच्चों को औरतों की इज्जत करना नहीं सिखाते..

 

 

 

 

 

 

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक हैं)