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सिंह साहब द ग्रेट

दो टूक : कहते हैं दुनिया में बुरे लोग इस लिए नहीं जीतते कि उनके हाथ में ताकत और दौलत होती है बल्कि इसलिए जीतते हैं कि दुनिया में अच्छे लोग एक साथ मिलकर उनका मुकबला नहीं करते . लेकिन अगर वो एक जुट हो जाएँ तो दुनिया से बुरे लोग और बुराई जड़ से ख़तम हो जायेगी . बस इतना सा सन्देश देती है निर्देशक अनिल शर्मा की सनी देओल, अमृता राव, प्रकाश राज, उर्वशी रॉतेला, जॉनी लीवर, संजय मिश्रा, अंजली एब्रॉल, शाबाज खान, रजित कपूर के अभिनय वाली फ़िल्म सिंह साहब द ग्रेट.

कहानी : सिंह साहब द ग्रेट कहानी है भ्रष्टचार के खिलाफ लड़ने वाले  सिंह साहेब उर्फ़ सरन जीत तलवार  [सनी देओल ] की है। लेकिन जब उसकी   भिड़ंत स्थानीय सामंत भूदेव [प्रकाश राज ] से हो जाती  है तो उसकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है . इस जंग में उसकी पत्नी मिन्नी [उर्वशी रौतेला ] मारी जाती है और उसे जेल हो जाती है . लेकिन समय से पहले ही बाहर आकर सिंह बदला लेने की ठान लेता है। उसका एक ही मिशन है भूदेव को ख़त्म करना लेकिन बदले से नहीं बदलाव से . हालात  कुछ ऐसे बदलते हैं कि उसे बदलाव की जगह खुद को उसी तरह सामने लाना पड़ता  है जैसे भूदेव उसके सामने आता है . इसमें उसकी मदद करती है न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर [अमृता राव] उसका दो दोस्त [संजय मिश्रा और जॉनी लीवर ] . जिनके साथ  अंजलि अब्रोल , यशपाल शर्मा , मनोज पाहवा और शाहबाज खान के पात्र और चरित्र भी आते जाते रहते हैं.

गीत संगीत : फ़िल्म में सोनू निगम और आनंद राज आनंद राज का संगीत है और गीत कुमार एक साथ समीर और आनंद राज आनंद के हैं . फ़िल्म का शीर्षक गीत सिंह साहेब द ग्रेट लोगों की जुबान पर पहले ही है और बाकी के गीत भी बुरे नहीं हैं . फ़िल्म का संगीत बढ़िया बन पड़ा है। गानों में पंजाबी तड़का और आइटम सॉन्ग खइके पलंग तोड़ पान, तूने ले ली मेरी जान दर्शकों को ज़रूर पसंद आएंगे।एक गाने में सनी के  पापा धर्मेंद्र और भाई बॉबी देओल भी नाचते दिख गए लेकिन उनकी जरुरत नहीं थी ।

अभिनय :  फ़िल्म के केंद्र में सनी हैं और वो पूरी तरह फ़िल्म में छाये रहे हैं . ये भी गौरतलब है कि जब जब वो किसी  फ़िल्म में सिख पात्र की भूमिका में दिखे हैं जमे हैं . फ़िल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो उनके और अंजलि अब्रोल के साथ आँखे गीली करते हैं . उर्वशी रौतेला उनके साथ वैसे कम उम्र दिखी हैं और ये एक खतरा था कि अपने से आधी उम्र की नायिका के साथ वो कैसे लगते हैं पर उन्होंने ही नहीं बल्कि उर्वशी ने भी काम सम्भाल लिया . वो सुंदर दिखी हैं और चंचल भी .. प्रकाश राज कुछ नया नहीं करते सिवाय अपनी खलनायकी में हास्य उत्पन करने के .उनमे अब दोहराव दीखता है . जॉनी लीवर और संजय मिश्रा के पास कुछ भी करने को नहीं था और मनोज पाहवा, यशपाल शर्मा के साथ अमृता राव भी ठीक हैं लेकिन सबसे अलग दिखी हैं अंजलि अब्रोल . रजित कपूर और शाहबाज के चरित्रों को कुछ और विस्तार  दिया जाना चाहिए था.

निर्देशन : गौर से देख जाए तो फ़िल्म में कहानी के तौर पर लेखक शक्तिमान ने कुछ नया नहीं लिखा है लेकिन फ़िल्म में बदला नहीं बदलाव के विचार को उन्होंने  अनिल शर्मा के साथ नए ढंग से बुना है . फ़िल्म में  प्रसंग और घटनाएं रोचक हैं और   एक्शन के साथ कुछ भावनातमक प्रसंग अच्छे हैं . फिल्म में पात्रों की भरमार हैं लेकिन उन्हें ठीक से जगह नहीं मिली है पर संवाद प्रभावित करते हैं . फ़िल्म में अशफाक मकरानी का कैमरावर्क ठीक है और टीनू वर्मा के एक्शन भी लुभाता है लेकिन ये एक रूटीन फ़िल्म है हाँ . सनी पाजी ने कोई कमी नहीं की अपनी तरफ से.

फ़िल्म क्यों देखें : सनी देओल के लिए .

फ़िल्म क्यों न देखें :  ऐसा मैं नहीं कहूंगा .

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