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नारी के छ: आभूषण

नारी की शोभा उसके आभूषणों से ही होती है| जो नारी सोने चांदी के आभूषणों से सर से लेकर पाँव तक लदी होती है, वह चाहे कुछ कुरूप ही क्यों न हो, उसकी सुन्दरता इन आभूषणों के कारण बढ़ जाती है| लोग उसके आभूषणों के कारण उसकी प्रशंसा करने लगते हैं किन्तु यह सब आभूषण और यह सब प्रशंसा केवल लोकिक ही होती है| इन आभूषणों को हमारे ऋषियों ने आभूषणों की श्रेणी में स्वीकार नहीं किया|

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नारी के असली आभूषण तो उसके गुण और उसके कर्म होते हैं| इस प्रकार के नारी के आभूषणों की चर्चा कल हमने नारी के दस आभूषण शीर्षक के अंतर्गत हमारे लेख में की थी| इस लेख में नारी के दस मुख्य गौfणक आभूषणों के साथ पंद्रह छोटे छोटे गुणों का भी वर्णन किया था| बताया गया था कि जिस नारी में यह सब आभूषण, यह सब गुण होंगे, उस का यश और कीर्ति दूर दूर तक जावेंगे| इस लेख के ही दूसरे भाग के रूप में आज हम यह लेख लेकर आये हैं, जिसके अन्तर्गत नारी के छ: अन्य गुणों का वर्णन कर रहे हैं| उसके यह गुण भी उसके सच्चे अर्थों में आभूषण होने के अधिकारी हैं| ऋग्वेद १०.१८.७ के अंतर्गत नारी के छ: अन्य आभूषणों की जो चर्चा की गई है, वह इस इस प्रकार हैं:-

इमा नारीरविधवा: सुपत्नीरान्जनें सर्पिषा सं विशन्तु|
अन्नश्रवोSनामीवा: सुरत्ना आ रोपन्तु जनयो योनिमग्रे||ऋग्वेद १०.१८.||
शब्दार्थ
(इमा: नारी) ये नारियां ( अविधवा) कभी विधवा न हों ( सुपत्नी) उत्तम पत्नी हो ( अनश्रव) अश्रु के बिना हो ( अनमीवा) नीरोग हो ( सुरत्ना) उत्तम रत्नों के सामान गुणों वाली ( जनय) जन्म देने वाली माता हो|
ये ( आ अंजनेन सर्मिषा ) अंजन और स्नेहन के साथ(अग्रे) पहिले ( सं-विशन्तु ) प्रवेश करें और (योनि आ-रोहन्ति ) सवारी पर आरोहन करें|

इस मन्त्र के आलोक में आलोक में मन्त्र की व्याख्या करने पर छ: नारी के आभूषणों के रूप में छ: बिंदु हमारे सामने आते हैं| जो इस प्रकार हैं:-
१. नारी का अविधवा होना:-
२. नारी का सुपत्नी होना:-
३. नारी का अश्रु विहीन होना:-
४. नारी का निरोग होना:-
५. नारी का सुरत्ना होना:-
६. नारी का जननी अथवा माता बनाना:-

इस सब व्याख्यान के आधार पर अब हम इस स्थिति में आ गए हैं कि इन छ: आभूषणों में से प्रत्येक आभूषण की अलग अलग व्याख्या करते हुए इन्हें समझ सकें| अत: आओ अब हम इन सब पर विस्तार से चर्चा करें:

१. नारी का अविधवा होना:-
नारी पुरुष ( अपने पति ) के अभिन्न अंग स्वरूप अपने जीवन को चलाती है| दोनों को प्रत्येक क्षण एक दूसरे की आवश्यकता होती है| हम यूँ कह सकते हैं कि यह दोनों एक दूसरे पर आश्रित होते हैं, पूरक भी होते हैं| दोनों में से एक भी नहीं रहता तो उसका जीवन कठिन हो जाता है किन्तु नारी के लिए तो यह अत्यधिक संकट की घड़ी मानी गई है| पति वियुक्ता, विधवा अथवा परित्यक्ता होने पर प्राचीन काल में तो नारी को कलंकिनी कहाने के योग्य माना जाता था| जहाँ तक आज का प्रश्न है आज के युग की नारी भी जब विधवा या परित्यक्ता हो जाती है तो उसका जीवन संकटों से भर जाता है| यह उसके जीवन की सब से दुर्भाग्य की स्थिति होती है| इस कारण कोई भी नारी नहीं चाहती कि उसे अपने जीवन में वैधव्य अथवा परित्यक्ता होना पड़े| वह जहाँ सुख में पति की सहयोगी बनी रहती है, वहां वह चाहती है कि पति के दु:ख में भी सदा ही उसकी सहयोगी बनी रहे| सब परिस्थितियों में वह पति से कभी दूर नहीं होना चाहती|

२. नारी का सुपत्नी होना:-
यह प्रत्येक नारी का दूसरा सबसे बड़ा आभूषण होता है| पत्नी गृह स्वामिनी होती है| इसका अर्थ ही इस बात को स्पष्ट करता है कि इसका अर्थ सुस्वामिनी है, सुपत्नी है और साधारण शब्दों में इसे हम स्वामिनी भी कह सकते हैं| इस सब का भाव यह है कि जो महिला अपने घर की सब व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चला पाने में सफल हो, वह सुस्वामिनी अथवा सुपत्नी कहलाने की अधिकारी होती है| जब यह महिलायें सुग्रह्स्वामिनी बन जाती हैं तो इस घर में स्वर्ग का निवास हो जाता है| इस परिवार पर धन ऐश्वर्य की सदा वर्षा होती रहती है| इस का कारण भी है कि सुग्रह्स्वामिनी कभी कलह क्लेश की अवस्था ही नहीं आने देती, इस कारण घर में सुख शान्ति बनी रहती है| जहाँ सुख शान्ति होती है, वहां प्रसन्न मन से सब कार्म किये जाते हैं| यह कर्म यह पुरुषार्थ ही घर के अन्दर धन ऐश्वर्य लाने वाले होते हैं| इस कारण जितनी प्रकार के भी देवता कहे गए हैं (देवता का अर्थ होता है देने वाला| अत; यहाँ परिवार को कुछ देने वालों के लिए कहा गया है) वह सब इस परिवार में निवास करने लगते हैं| जहाँ देवताओं का निवास होता है उस परिवार की प्रतिष्ठा, यश और कीर्ति दूर दूर तक जाती है|

३. नारी का अश्रु विहीन होना:-
नारी की आँखों में आंसुओं का होना घर के विनाश का कारण होता है| इसलिए नारी का अश्रु विहीन होना भी उसका एक उत्तम आभूषण होता है| हाँ! जब कभी वियोग की अवस्था आती है या कभी करुनणा की अवस्था आती है, उस समय भी आँख में आंसू आ जाते हैं, इस प्रकार के आंसू केवल मनुष्य की आँखों में ही दिखाई नहीं देते, अनेक बार पशु और पशुओं की आँखों में भी देखे जा सकते हैं किन्तु यदि बार बार आंसू बहाए जावें तो यह स्वभाव अच्छा नहीं माना गया है| इस प्रकार से बार बार रोने का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है|

जब कभी पुरुषों के द्वारा कष्ट या पीड़ा दायक शब्दों के कारण अथवा अपने परिवार में रह रही अपनी ही पत्नी को पुरुष पीटता है तो इस प्रकार के महिला की आँखों से निकलने वाले आंसू तो उसके ही नहीं, उसके पूरे परिवार के लिए ही विनाश का कारण होते हैं| इसलिए सुख के अभिलाषी पुरुषों का यह कर्ताव्य है कि वह अपनी पत्नी को कटु शब्द बोलकर रुलाया न करें| जहां या जिस परिवार में नारियां रोती रहती है, वहां से सब प्रकार के धन सुख एश्वर्य आदि यूँ गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सर से सींग और उसका स्थान जो खाली हो जाता है, वह भी भरना आवाश्यक होता है और इसे भरने के लिए आ जाती हैं विपत्तियाँ, रोग, कलह क्लेश आदि और यह परिवार अभावों में घिर कर अनेक प्रकार की विपत्तियों में निरंतर फंसता ही चला जता है| इसलिए गृहस्वामिनी के सदा प्रसन्न रहने की आवश्यकता है| इस में ही परिवार की उन्नति है|

४. नारी का निरोग होना:-
निरोगता नारी के आतंरिक आभूषणों में चौथा और बहुत बड़ा आभूषण होता है| निरोग नारी ही अपने परिवार को ठीक प्रकार से चलाते हुए उन्नति की और ले जा सकती है| यदि नारी रोगी हो जाती है और रोग भी कोई भयंकर हो जाता है तो उसके लिए परिवार का पालन संभव नहीं हो पाता| वह स्वयं अपने आप को ही ठीक से संभाल पाने में सफल नहीं हो पाती, परिवार को क्या संभालेगी? इस प्रकार वह एक तो रोग से दु:खी होती है और ऊपर से उसके रोगी होने के कारण परिजनों का जो दु:ख निरंतर बढ़ता ही रहा होता है, उसे देख कर भी वह दु:ख का अनुभव करती है| इस कारण वह अपने कर्तव्यों को ठीक से नहीं निभा सकती| उसके इस व्यवहार के कारण पूरा परिवार भी दु:खी रहने लगता है और यह दु:ख सब के लिए धीरे धीरे बढ़ता ही चला जाता है| वह न तो स्वयं को संभाल सकती है न ही अपने परिवार को और न ही देश की ही किसी प्रकार से सेवा कर सकती है| यह इस प्रकार की अवस्था होती है, जिसमे सौन्दर्य और धन दोनों का ही नाश हो रहा होता है किन्तु किसी में इसे रोकने की शक्ति नहीं होती| इन कारणों से घर के अन्दर से सुख भी भाग खडा होता है| यह तो स्वस्थ शरीर है जो सब प्रकार के धर्मों की साधना करवा सकता है| इसलिए नारी का स्वस्थ होना भी अत्यंत आवश्यक है|

५. नारी का सुरत्ना होना:-
नारी के जो छ: आंतरिक आभूषण बताये गए हैं, उनमे से उसका सुरत्ना होना उसका पांचवां आभूषण होता है| सुरत्न से अभिप्राय अत्यधि सुन्दर रत्नों से लिया जाता है किन्तु हमारे ऋषियों ने रत्न आदि का स्वामी होने को धन नहीं माना| ऋषियों के लिए तो नारी को रत्न कहते हुए कहा गया है कि वह उत्तम गुणों की स्वामिनी हो| इससे स्पष्ट होता है कि जिस नारी में उत्तम गुण अधिक मात्रा में होंगे, उसे हम सुरत्ना कह सकते हैं| इन गुणों में विद्या, उत्तम शिक्षा का होना, स्वर में मधुरता का भरा होना, सब प्रकार से सुशील स्वभाव का होना, सदाचारी व्यवहार वाली होना, सदा पवित्रता रखने वाली हो सब प्रकार के सौन्दार्यों से युक्त हो आदि अनेक प्रकार के रत्न हैं, जो उसमें होने चाहियें| हमारे घरों की महिलाओं के लिये आवश्यक है कि वह उत्तम गुणों की स्वामिनी हों, यदि कुछ गुण कम हैं तो प्रयास कर के उन्हें भी पाने के लिए पुरुषार्थ किया जावे तो निश्चय ही वह सुरत्ना होने का गौरव प्राप्त कर सकेगी|

६. नारी का जननी अथवा माता बनाना:-
नारी के इन आतंरिक आभूषणों में अंतिम और सबसे मुख्य गुण या फिर आभूषण है उसका माता बनना| नारी को मातृशक्ति कहा गया है| यह इसलिए कि वह धरती जिस प्रकार फसल का उत्पादन करती है, उस प्रकार ही नारी भी संतान का पालन करने वालीहो ती है| यदि उसकी गोद में कोई संतान ही नहीं है तो वह संतां वाली माता कैसे कहालावेगी? आज के युग में अधिक संतानों का होना आपत्ति स्वरूप देखा जाता है| इसके उलट यदि कोई नारी पूरी तरह से नि:संतान है तो यह भी पाप के रूप में देखा जाता है| माता बनना प्रत्येक नारी का सबसे बड़ा स्वप्न होता है, जिसे वह हर अवस्था में पूरा करना चाहती है| इस सबके साथ ही जब कोई नारी कुसंतान की माता बन जाती है, तो यह उसके लिए सबसे बड़े दुर्भाग्य का कारण होता है| कुसंतान को प्रत्येक माता अपने लिए दुर्भाग्य समझती है तो सुसंतान अर्थातˎ उत्तम व्यवहार वाली, आज्ञाकारी संतान उसके गौरव को बढाने का कारण होती है| इस कारण प्रत्यके माता की इच्छा रहती है कि उसकी संतान सदा ही उन्नति करने वाली, सुशिक्षित और आज्ञाकारी हो|

जहां तक वेद का प्रश्न है, वेद ने नारीकेलिये बहुत सुन्दर और ऊँचे आदर्शों को स्थापित किया है| वेद तो यहाँ अक भिकहता है कि देवियाँ अपने घरों में अंजन आदि लगा कर और उत्तम आभूषण पहन कर सदा सुशोभित रहें| वह स्नेहिल जल से सदा भरी रहें| वह सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों, सुरमा काजल,मेहंदी,सिंदूर लगाने के अतिरिक्त स्नेहल तेल जैसे स्निग्ध पदार्थों का भी सदा उपयोग कराती रहें| विशेष रूप से जब वह किसी सारवजनिक कार्य से अथवा सार्वजनिक स्थल प् जावें तो उनकी वेशभूषा और रूप सौन्दर्य उत्तम होना चाहिए|

जब भी कभी किसी गृह में प्रवेश करना हो, किसी उत्सव का आरम्भ होना हो अथवा कोई अन्य उत्तम अथवा धर्म का कार्य हो, सबसे पूर्व देवियों का ही प्रवेश होना चाहिए| इस प्रकार ही जब कभी किसी प्रकार की यात्रा में जाने के लिए सवारी आई हो तो इस सवारी पर सबसे पहले नारी को ही चढ़ाया जाना चाहिए, उसके उपरांत ही पुरुष इस स्वारी पर चढ़ें| नारी के सम्मान के लिए यह कुछ साधारण सी बाते हैं, जिनका ध्यान और सम्मान रखने से परिवार समृद्ध होता है और उसका यश दूर दूर तक जाता है|

डॉ. अशोक आर्य
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