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एस.एम.एस. से बन रही है एक नई दुनिया

पिछले लगभग दो वर्ष से प्रतिदिन सुबह लगभग 6 बजे मेरे मोबाइल पर एक टंकार बिना किसी नागा के बजती है और मैं उस टंकार के साथ आने वाले एस.एम.एस. को पढ़ने के लिये उत्सुक हो जाता हॅूं। इसी एस.एम.एस. के साथ मेरी दिन की शुरूआत शुभ और मंगलमय हो जाती है। ये एस.एम.एस. डाॅ. सी. आर. भंसाली भेजते हैं और उनका चिंतन रहा है कि हम अपनी खुशी की कामना के साथ-साथ अपने मित्रांे, पारिवारिकजनों, प्रियजनों एवं हितैषियों के लिए भी ऐसी ही कामना करें। मेरी दृष्टि में यह एक सराहनीय उपक्रम है, न केवल भंसाली बल्कि ऐसे अनेक लोग है जो अपने परिचितों एवं पारिवारिकजनों के लिये दिन की शुभता की कामना करते हुए एक प्रेरक संदेश भेजते है। लेकिन भंसाली जैसे कुछ ही लोग हैं जो दो वर्ष से लगातार बिना किसी नागा (अवरोध) के ये एस.एम.एस. भेज रहे हैं। प्रतिदिन भेजे जाने वाले एस.एम.एस. का उद्देश्य इस प्रकार है-ये एस.एम.एस. मोटिवेशनल (प्रेरणादायी) है। ये हमारी भावना और भाषा की अभिव्यक्ति है। नेटवर्किंग-आपसी संपर्क और संवाद का प्रेरक माध्यम है।

हम अपनी खुशी को बांटेंगे तो हमें दस गुणा ज्यादा खुशी प्राप्त होगी। यह बात इन एस.एम.एस के उपक्रम के दौरान महसूस की गई। प्रतिदिन इन एस.एम.एस. की प्रतिक्रिया के रूप में जिस तरह की अभिव्यक्तियां प्राप्त होती रही वह यही दर्शाती है कि खुशी की कामना या दूसरों के खुशी के बारे में सोचना स्वयं को कितना खुश करता है।

यह सर्वविदित है कि तेजी से फलते-फूलते इस इंटरनेट युग में जबकि हर आदमी के पास समय की कमी है, एस.एम.एस. एक सशक्त माध्यम है आपसी संवाद का, संपर्क का। दुनिया में सबसे संवेदनशील और मूर्ख लोग हमारे भीतर ही हैं। लेकिन उनमें एक नई संवेदना और एक नई जिजीविषा जगाना इन एस.एम.एस. का ध्येय है। ये संदेश जिंदगी को एक नया मौका देते हैं।

अक्सर हम बाहर की दुनिया को देखते हैं। बाहर जो हमें आकृष्ट, मुग्ध और चमत्कृत करता है उसकी तरफ दौड़ते हैं, उसे प्राप्त करने के लिए आतुर हो जाते हैं। यह आतुरता दुःख का कारण बनती है। स्वर्ण मृग के लिए सीता की आतुरता एक दृष्टांत है। इसलिए यदि संभव हो तो हर दिन कुछ देर के लिए बाहर की दुनिया से आंखें मूंदकर अपने भीतर की दुनिया में भी जाना चाहिए। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बाहर की लंबी सैर अच्छी है, पर अंदरूनी तंदुरुस्ती के लिए भीतर टहलना भी आवश्यक है। कभी-कभी अपने भीतर विराजमान ब्रह्म से भी तो बातचीत कीजिए।

पश्चिमी समाज सुख के फार्मूले तलाश रहा है। लेकिन सच्चा और स्थायी सुख शायद फार्मूलों की बाहों में समाता नहीं है। उसके असंख्य स्रोत हैं, उसके अनगिनत स्वरूप हैं। ये एस.एम.एस. उन सबसे साक्षात्कार की राह बताते हैं। अपनी राह स्वयं तलाशिए और उस राह के दीपक भी स्वयं बनिए। 

इन एस.एम.एस. मंे जीवन-आनंद समाहित है। इसमें बिछाई गई बिसातों पर खेलने वाले लोग यानी प्रेरणा लेने वाले लोग आनंद रस पाने की दृष्टि से बिल्कुल घाटे में नहीं रहेंगे। ईश्वर कहते हैं कभी आप दूसरों के लिए मांग कर देखो। आपको कभी अपने लिए मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

भंसाली के एस.एम.एस. आध्यात्मिक एवं मोटिवेशनल है लेकिन एसएमएस की दुनिया अब बहुत व्यापक हो गयी है, बहुत ही रोमांचक है और निराली भी है। इसके माध्यम से चुटकुला, जोक्स, कथन, लघुकथा से लेकर कविता, शायरी और जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ की बधाई, त्योहारों की शुभकामनाएं और महापुरुषों के जन्मदिन से जुडे़ सन्देश भेजे जाते हैं। कुछ खास वर्ग के लोग प्रेम एवं संवेदनाओं को भी संदेश का माध्यम बनाते हैं तो कुछ अश्लील सन्देशों से इसे दूषित भी करते हैं। अब ये एस.एम.एस.  किसी छोटे गु्रप का मोहताज नहीं, मिनटों में लाखों लोगों तक पहुंच जाता है और पलक झपकते ही समुद्र व देश की सीमाओं को पार कर पूरी दुनिया में घूम जाता है। स्वयं का भेजा एसएमएस लौट कर उसी दिन फिर से खुद को पढने को मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। 

एसएमएस के माध्यम से कम शब्दों में लिखने की कला आ जाती है। वैसे इसे भाषा की टांग तोडना कह सकते हैं। मगर यह आज के युवा वर्ग की भाषा है। उनकी अपनी। उसके अपने सिद्धांत है। यहां कभी-कभी व्याकरण के जंजाल से भाषा छूटती प्रतीत होती है। डरने की आवश्यकता नहीं, यह आम बोलचाल की भाषा बनती जा रही है। फिर भाषा और लिपि में बंटे समाज को एक सूत्र में जोडने का कितना जबरदस्त काम हुआ कि इन एस.एम.एस. के माध्यम से।

सुबह-सुबह आने वाले एसएमएस का उद्देश्य जीवन को आनंद और मंगलमय बनाने प्रार्थना से जुड़ा है जैसे सुबह-सुबह किसी मन्दिर में आरती हो या मस्जिद में अजान, गुरुद्वारे में गुरुवाणी का संगान हो या गिरजाघर में प्रार्थना। उसी तरह प्रतिदिन भेजे जाने वाले ये एस.एम.एस. मनुष्य को उसके सामथ्र्य का बोध कराते हैं। सदियों से योग, ध्यान, धर्म, कर्म, पूजा, त्योहार, गुरु और महापुरुषों की वाणी यही करने की कोशिश करते आ रहे हैं। लेकिन समय के साथ उनमें से अधिकतर रूढ़ प्रतीकों और कर्मकाण्डों में बदल गये हैं। प्रतिदिन भेजे जाने वाले एस.एम.एस. में पवित्र त्योहारों, महापुरुषों के जन्मतिथियों, विशेष अवसरों- मदर्स डे, फादर्स डे और शुभता श्रेयस्करता के लिए प्रेरक सन्देश होते हैं। ये संदेश किसी चमत्कारी प्रभाव या जादुई शक्तियों के बारे में न होकर सीधे मनुष्य की अंतर्मन की शक्तियों को जाग्रत करने के लिए और उन्हें प्रेरित करने के लिए लिखे जाते रहे हैं। इनका उद्देश्य होता है कि मनुष्य अपने भीतर निहित उस शक्ति से परिचित हो और इस तरह अंततः उस व्यक्ति का सशक्तिकरण ‘एम्पावरमेंट’ होता है। हर एस.एम.एस.- एक प्रेरणा है, एक मार्ग है, एक दृष्टि है उस दिव्य शक्ति संपन्नता यानी स्वयं को पहचानने की। अपने भीतर छुपी ऊर्जा को पहचाने।

संभवतः यह दुनिया के इलेक्ट्रोनिक़ आविष्कारों से जुड़े उपकरणों की यानी मोबाइल की प्रेरकता है कि इसके माध्यम से एक नवीन दुनिया निर्मित हो रही है। इस दुनिया में दुनिया को जीतने, ऊर्जा से भरपूर होने, जीवन का अंदाज बदलने, नया बनने और नया सीखने, विश्वास की शक्ति को जागृत करने, विजेता की तरह सोचने, महान बनने, आत्मविश्वास- दृढ़ता को प्रगट करने, अपनी योग्यताएं बढ़ाने, व्यावसायिक श्रेष्ठता साबित करने, वैचारिक विनम्रता को प्रगट करने- ये वे बाते हैं जो इस एसएमएस के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति में विकसित हो रही हैं। प्रेषक:

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25, आई0पी0 एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोन: 22727486