Saturday, April 20, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेदरकते रिश्तों से खण्डित होता समाज

दरकते रिश्तों से खण्डित होता समाज

अपनी ही बेटी-बहू के साथ बलात्कार की रोंगटे खड़ी कर देने वाली दर्दनाक, वीभत्स, डरावनी खबरों को पढ़कर देश की संवेदना थर्रा जाती है, खौफ व्याप्त हो जाता है और हर कोई स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। ऐसी घटनाएं देशभर में बढ़ रही हैं। क्या हो गया है लोगांे को-सोच ही बदल चुकी है। रिश्ते और उनकी मर्यादाएं भारतीय संस्कृति पहचान हुआ करते थे, आज उनकी मर्यादा एवं शालीनता खंडित हो रही है। यही वजह है कि आपसी रिश्तों में मिठास अब नाममात्र की रह गई है। बेटी-बहू के साथ बलात्कार के अलावा महिलाओं पर हो रहे तरह-तरह के अत्याचार, हिंसक वार और स्टाॅकिंग की घटनाएं समाज के संवेदनाशून्य और क्रूर होते जाने की स्थिति को ही दर्शाता है। रिश्तों की बुनियाद का हिलना एवं विखण्डित होना एक गंभीर समस्या है।

लगातार समाज के बीमार मन एवं बीमार समाज की स्थितियांे ने केवल रिश्तों को कमजोर किया है बल्कि नारी के सम्मुख बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। उन्माद एवं कुत्सित वासना के आगे असहाय निरुपाय खड़ी नारी पूछती है-इस जिस्म के लिये कब तक नारी संहार होगा? कब तक संस्कृति एवं मूल्यों को तार-तार किया जाता रहेगा? क्या समाज खुद से हार चुका है? क्या समाज के सुधरने की उम्मीद खत्म हो चुकी है? ऐसे सवालों के जवाब या तो हमारे पास होते नहीं या फिर हम खुद को इनसे बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं। लेकिन कब तक? कभी न कभी तो हमें इनसे रूबरू होना ही पड़ेगा। जिन कंटीले एवं उबड़-खाबड़ रास्तों पर आज का समाज चल पड़ा है, उसमें अस्थिरता, टूटन, बिखराव के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता।

घर की चार-दीवारी में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं है, उनके साथ हो रही क्रूरता और विलासिता तो घोर चिंताजनक है ही, संवेदना से रिक्त होते समाज का व्यवहार भी विचलित करता है। देश और दुनिया के स्तर पर देखा जाए तो किसी भी देश का, किसी भी दिन का अखबार उठाकर देख लें, महिला अपराध से संबंधित समाचार प्रमुखता से मिलेंगे। कहीं राह चलते उनके साथ दुव्र्यवहार हो रहा है तो कहीं घरों में ही उनकी अस्मिता को नौंचा जा रहा है। कहीं कार्यालय के सहयोगी, बाॅस व अड़ोस-पड़ोस के लोग उनका गलत रूप में शोषण कर रहे हैं तो कहीं पिता या ससुर के द्वारा बलात्कार की घटना घटित हो रही है, कहीं अपनी अवांछित इच्छाएं एवं कुत्सित भावनाएं थोपने के लिये स्टाॅकिंग किया जाता है। लेकिन मूल प्रश्न है कि कब तक यह सब होता रहेगा? कब तक संस्कृति को शर्मसार होते देखते रहेंगे? कब तक रिश्तों को खोखला करते रहेंगे?

पिछले दिनों एक पिता ने अपनी चार बेटियों को चलती ट्रेन से फेंक दिया। यह घटना ऐसे ही दरकते रिश्तों की बानगी थी। कैसे कोई बाप इतना क्रूर हो सकता है कि अपनी ही बेटियों को ट्रेन से फेंक दे? कहीं असंतोष, विद्रोह या आक्रोश से भड़के व्यक्ति तंदूर कांड जैसे हत्याकांड करने से और कहीं अपनी वासनाओं के लिये निर्भया को गैंगरेप का शिकार बनाने से भी नहीं चूकते। महिला अपराध संबंधी कितनी ही कुत्सित, घृणित एवं भत्र्सना के योग्य घटनाएं आज हम अपने आसपास के परिवेश में देखते हैं। एक बेटी को आत्महत्या इसलिए करनी पड़ी कि उसका पिता उसे खाने को कुछ नहीं देता था। रुपए-पैसे-जमीन के लिए अपने ही भाई-बंधु का कत्ल कर देना-साधारण बात है। प्रेम-प्रसंगों पर होने वाली घटनाओं की तो जाने ही दीजिए। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता है जब किसी प्रेमी-युगल की आत्महत्या या झूठी इज्जत के नाम पर हत्या की खबरें अखबारों में न आती हों। समझा जा सकता है कि जिस समाज में प्रेम करना ही गुनाह बना दिया गया हो, उसमें रिश्तों की डोर को बांधे या साधे रखना कितना कठिन है।

वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा कितना बड़ा होगा, आकलन कर पाना भी कठिन है। सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं, स्कूल में पढ़नेवाली दस-बारह साल की कन्याओं के साथ ही ऐसी घटनाएं सुनने में आती हैं, जिसकी कल्पना कर पाना भी असंभव है। खास तौर पर काॅलेज में एवं उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवाली छात्राएं तो आज इतनी चिंतनीय स्थिति में पहुंच गई हैं, जहां रक्षक ही भक्षक के रूप में दिखाई पड़ते हैं। वे इतनी असुरक्षित और इतनी विवश हैं कि कोई भी ऊंची-नीची बात हो जाने के बाद भी उनके चुप्पी साध लेने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। परिस्थितियों से प्रताड़ित होकर कुछ तो आत्महत्या तक कर लेती हैं और कुछ को मार दिया जाता है। आधुनिक समाज कैसे इतना दकियानूसी हो सकता? कैसे कोई अपने ही रिश्तों का बलात्कार करने को उतावला हो सकता है? ये कृत्रिम सामाजिक आधुनिकता शहरों को विकसित तो कर रही है पर हमें अपने ही रिश्तों से काट भी रही है, हमें बीमार बना रही है, हमारी संस्कृति को धुंधला रही है। शायद इस अहसास को हम समझ कर भी समझने की कोशिश नहीं करना चाहते। कभी-कभी इस बात पर यकीन कर लेने का मन करता है कि समाज की मानसिकता को समझ पाना बेहद कठिन है। आखिर हम इतने संवेदनहीन कैसे हो गये है, इतने अव्यावहारिक कैसे हो गये है?

सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री डाॅ. मृदुला सिन्हा ने महिलाओं की असुरक्षा के संदर्भ में एक कटु सत्य को रेखांकित किया है- ‘अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी महिलाएं ऐसे हादसों का प्रतिकार करती हैं, किन्तु पढ़ी-लिखी लड़कियां मौन रह जाती हैं।’ सचमुच यह एक चैंका देनेवाला सत्य है। पढ़ी-लिखी महिला इस प्रकार के किसी हादसे का शिकार होने के बाद यह चिंतन करती है कि प्रतिकार करने से उसकी बदनामी होगी, उसके पारिवारिक रिश्तों पर असर पड़ेगा, उसका कैरियर चैपट हो जाएगा, आगे जाकर उसको कोई विशेष अवसर नहीं मिल सकेगा, उसके लिए विकास का द्वार बंद हो जाएगा। वस्तुतः एक महिला प्रकृति से तो कमजोर है ही, शक्ति से भी इतनी कमजोर है कि वह अपनी मानसिक सोच को भी उसी के अनुरूप ढाल लेती है। शायदसमाज और हमारे बीच लगातार टूटते रिश्ते का कारण भी यही है। सोचिए कि जब हमारे बीच रिश्ते ही नहीं ठहर पाएंगे तो अपना कहने को यहां रह क्या जाएगा! इतना कमजोर होना भी ठीक नहीं कि खुद से बिछड़ने का गम न रहे। यह दुनिया तेजी से भाग रही है, लेकिन अपने पीछे कितना कुछ छोड़ती भी जा रही है, इसका अहसास किसी को नहीं है। एक बड़ा चिंतनीय पहलू समाज की संवेदनहीनता से भी जुड़ा है। आखिर हमारा समाज किधर जा रहा है!

भारतीय संस्कृति एवं पारिवारिक रिश्तों के कारण ही भारत को स्वर्णभूमि कहा जाता था। महात्मा गांधी ने कहा भी है कि भारतभूमि एक दिन स्वर्णभूमि कहलाती थी, इसलिये कि भारतवासी स्वर्णरूप् थे। भूमि तो वही है, पर आदमी बदल गये हैं, इसलिये यह भूमि उजाड़-सी हो गयी है। इसे पुनः स्वर्ण बनाने के लिये हमें सद्गुणों द्वारा स्वर्णरूप बनाना है। सद्गुणों के विकास से ही रिश्तों की बुनियाद भी मजबूत होगी। रिश्तों के उपेक्षा के प्रति हमारी यह चुप्पी टूटनी जरूरी है। कब टूटेगी हमारी यह मूच्र्छा? कब बदलेगी हमारी सोच। यह सब हमारे बदलने पर निर्भर करता है। हमें एक बात बहुत ईमानदारी से स्वीकारनी है कि गलत रास्तों पर चलकर कभी सही नहीं हुआ जा सकता।

प्रेषक
(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला, डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051
फोनः 22727486, 9811051133

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार