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सैनिक की पाती

मेरे लहू की गर्मी से जब बर्फ पिघलने लगें
पानी जब लाल रंग में बहने लगे
तब समझ लेना तेरा एक और बेटा शहीद होगया
तेरी रक्षा की ख़ातिर एक और भगत सिंह खोगया

लौटना चाहता हूँ घर मैं भी माँ पर देश को मेरी जरूरत है
सिखाया था तूने ही इस माँ से पहले वह माँ है
मारतेहैं सैनिक ही चाहे इस पार हो या उस पार
फिर है ये कौन जो बीज नफरत के बो गया

तिरंगे में लिप्त लौटूँ तो गले ुझ्को लगा लेना
आँसू आये आँखों में तो आँचल में उसको सूखा लेना
मान से उठे पिता के मस्तक पर तिलक लगा देना
हर जाता सैनिक रख बंदूक पर सर सो गया।

सावन की हरियाली जब घर तेरा महकाये
राखी पर जब बहन कोई घर लौट कर आये
यादों के झुरमुट से तब चेहरा मेरा झांकेगा
समय की धार ने था जिसको अभी धो दिया

(रचना श्रीवास्तव अमरीका में रहती है)