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जवानों का बोलना मना है

‘जय जवान’, ‘जय किसान’ का नारा, लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। उन्होंने माना था कि देश जवानों और किसानों से चलता है। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो ‘जय जवान’, ‘जय किसान’ के साथ-साथ ‘जय विज्ञान’ को भी जोड़ा, यानी टैक्नोलॉजि की भी बातें होने लगी। ‘जय जवान’, ‘जय किसान’, ‘जय विज्ञान’ से जुड़े तीनों समूहों का हाल बेहाल है। जवानों को दिमागी रूप से पंगु बनाकर उनके वेतनमान में वृद्धि किया गया, लेकिन उनकी हालत भी एक नये गुलामों की तरह ही है। वहीं किसानों और मजदूरों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। हमारे देश के वैज्ञानिकों और विज्ञान के विद्यार्थियों की हालत भी सोचनीय है और मोदी जी के राज में वो भौतिक शास्त्र एवं रासायन शास्त्र के बजाय ज्योतिष शास्त्र पढाने पर जोर दिया जा रहा है।

नई आर्थिक नीति लाने वाले कांग्रेस सरकार अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय किसान’ के सपनों को नष्ट कर दिये। कांग्रेस शासित नरसिम्हा राव एवं मनमोहन सिंह द्वारा नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद किसानों की जमीन पूंजीपतियों को दी जाने लगी। बड़े पूंजीपतियों के लाभ पहुंचाने के लिये किसानों पर दबाव बनाया गया कि वह नई तरह की खेती करें। नई खेती के कारण किसान कर्ज के जाल में फंस कर आत्महत्या करने लगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1995 से अभी तक लगभग 3.5 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जबकि गैर सरकारी आंकड़े इससे अधिक हैं। सरकारी नीतियों ने इन किसानों को ‘जय किसान’ की जगह ‘मर किसान’ बना दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने के बाद किसानों की हालत सुधरी नहीं बल्कि बदतर ही हुई, और उन्हीं के शासन में जवानों का शव उठाने वाले ताबूत का घोटाला हो गया। ‘जय विज्ञान’ का नारा देने वाली अटल सरकार ने श्रम कानूनों में संशोधन किया और ठेकेदारी प्रथा को लागू किया। मजदूरों को न्यूनतम वेतन से भी आधे दर पर काम करना पड़ रहा है और उनकी श्रम की लूट ठेकेदारों को मालामाल कर रहा है। हालात यह हो गये कि सभी सरकारी दफ्तरों में फोर्थ क्लास के कर्मचारी ठेके पर रखे जाने लगे। यहां तक कि डॉक्टर और मास्टर भी ठेकेदारी प्रथा के शिकार होने लगे। यही हालात ‘श्रमेव जयते’ की है।

मोदी सरकार के आने के बाद देश में माहौल बनाया गया कि जवान ही ‘देश भक्त’ हैं और उन्हीं के बदौलत हम सुरक्षित और जिन्दा हैं। आप उन पर कोई सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि उससे उनका मनोबल गिरता है। वहां कोई भ्रष्टाचार नहीं है, जाति और धर्म का भेदभाव नहीं है। ड्यूटी के बाद बैंक या एटीएम की लाईन में अपनी तकलीफ जाहिर करने पर भी किसी व्यक्ति को ड्यूटी पर तैनात जवानों के साथ जोड़ कर देश भक्ति की पाठ पढ़ाते कुछ सिरफिरे मिल जाते हैं। झूठी देश भक्ति के जज़्बे दिखाकर सही सवालों को हमेशा छुपाया गया है। ऐसा नहीं है कि तेज बहादुर यादव का विडियो वाइरल होने से पहले मंत्रियों, अधिकारियों, मीडियाकर्मियों को इस तरह के दुर्व्यवहार का पता नहीं था। इस विडियो के आने से पहले भी कई बार जवानों की आत्महत्या, डिप्रेशन, अफसरों के बुरे बर्ताव, छुट्टियां नहीं मिलने व अपने साथियों पर गोली चलाने की खबरें कई बार आ चुकी हैं। यहां तक कि वीके सिंह ने माना है कि सेना के जनरल रहते हुए रक्षा सौदों में उन्हें घूस का ऑफर मिला था। डीजल बेचने या अन्य समानों की हेराफेरी के मामले भी आ चुके हैं। दबी जुबान में महिलाओं के साथ होने वाले लैंगिक/यौनिक हिंसा की बातें भी आती रही हैं।

तेज बहादुर ने अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिये सोशल साईट का प्रयोग किया, लेकिन यही बीएसएफ के अफसरों को नागवार गुजरी। अफसर इसे अनुशासनहीनता और तय किये गये गाइडलाइंस का उल्लंघन मान रहे हैं। यहां तक कि बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक जनरल प्रकाश सिंह का भी कहना है- ‘‘जवान ने नियमों का उल्लंघन किया है। कमांडेट से शिकायत करनी चाहिये, डीआईजी, आईजी से शिकायत की जा सकती थी।’’ उनको यह डर है कि जवान इस तरह से करने लगेंगे तो अनुशासन छिन्न-भिन्न हो जायेगा। तेज बहादुर का कहना है कि इसकी सूचना अपने कमांडेंट को पहले दी थी और बार-बार कहने पर भी एक्शन नहीं लिया गया। यादव की यही सब बातें ‘अनुशासनहीनता’ में आती हैं! बीएसएफ के जम्मू फ्रंटियर के आईजी डी के उपाध्याय ने यह बयान दिया है- ‘‘विडियो वायरल करने वाला जवान आदतन अनुशासनहीन है, उसके खिलाफ नशे में धुत रहने, सीनियर अफसरों के साथ बदसलुकी करने, यहां तक कि सीनियर अफसर पर बंदूक तानने की शिकायतें रही हैं। यादव को 2010 में कोर्ट मार्शल किया गया था लेकिन उसके परिजनों को ध्यान में रखते हुए बर्खास्त करने के बजाय 89 दिनों की कठोर सजा सुनाई गई।’’ तेज बहादुर इस तरह के आरोप के जवाब में कहते हैं- ‘‘उनको गोल्ड मेडल सहित 14 पदक मिल चुके हैं। उन्होंने कैरियर में कुछ गलतियां भी की हैं, लेकिन बाद में उनमें सुधार भी किये हैं।’’ तेज बहादुर के परिवार का कहना है कि जब भी वो आते थे तो खाने को लेकर शिकायत करते थे। यादव की पत्नी शर्मिला यादव अफसरों को कटघरे में खड़ा करती हुई पूछती हैं- ‘‘मेरे पति मानसिक तौर पर अस्वस्थ या अनुशासनहीन थे तो उनको देश के संवेदनशील ईलाके में बंदूक क्यों थमाई गई?’’ तेज बहादुर की ही तरह बाड़मेर के जागसा गांव के खंगटा राम चौधरी बीएसएफ में थे, जिन्होंने 30 दिसम्बर को वीआरएस ले लिया था। खंगटा राम कहते हैं कि ‘‘जवानों को ऐसा खाना खाने को दिया जाता है जिसे सामान्य आदमी नहीं खा सकता है; उस खाने को जवान मजबूरी में खाते हैं।’’ खंगटा राम के पिता एसके चौधरी का कहना है कि ‘‘पहले खुशी हुई कि बेटा फौज में गया है लेकिन वहां की परेशानियों को देखकर लगता है कि अच्छा है कि यहां आ गया है, और अब साथ में खेती का काम करेगा तो कम से कम भरपेट अच्छा खाना तो खायेगा।’’

तेज बहादुर द्वारा लगाये गये आरोप को जब मीडिया ने लोगों से जानने के लिये बात की तो श्रीनगर में सुरक्षा बलों के कैम्पों के आस-पास रहने वाले लोगों ने कहा कि मार्केट से आधे रेट पर पेट्रोल, डीजल, चावल, मसाले जैसी चीजें मिल जाती हैं। फर्नीचर के दुकानदार ने बताया कि फर्नीचर खरीदने की जिन लोगों की जिम्मेवारी है वे कमीशन लेकर उन लोगों को ऑर्डर देते हैं, पैसों के लिये समान की क्वालिटी से भी समझौता करने को तैयार हो जाते हैं।

तेज बहादुर का विडियो प्रचारित होने के बाद सीआरपीएफ और वायु सेना और सेना के जवानों ने भी अपनी-अपनी बात रखी है। रोहतक के वायु सेना के एक पूर्व जवान ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मौत की गुहार लगाई है ताकि उसे जलालत भरी जिन्दगी से छुटकारा मिल सके। इस जवान का आरोप है कि वायु सेना के अधिकारियों को 14 हजार रू. नहीं देने पर उसे कई झूठे आरोप लगाकर नौकरी से निकाल दिया। इसी तरह सीआरपीएफ, मथुरा के जवान जीत सिंह ने मिलने वाली सुविधाओं में भेद-भाव का आरोप लगाया है। सेना के जवान यज्ञ प्रताप ने विडियो जारी कर सेना के अफसरों पर अरोप लगाया है कि- ‘‘अफसर सैनिकों से कपड़े धुलवाते, बूट पॉलिस करवाते हैं; कुत्ते घुमवाने और मैडमों के समान लाने जैसे काम करवाते हैं।’’

यह खबर जब मीडिया में आ ही रही थी तो उसी समय यह खबर भी आयी कि बिहार के औरंगाबाद में सीआईएसएफ के जवान बलबीर कुमार ने अपनी इंसास राइफल से अपने चार सहकर्मियों की हत्या कर दी। पुलिस अधीक्षक सत्यप्रकाश ने घटना की जानकारी देते हुये बताया कि बलबीर ने छुट्टी पर जाने के लिये आवेदन किया था; उसे छुट्टी नहीं मिल पाई और दूसरे जवानों ने उस पर तंज कसा तो उसने गुस्से में आकर गोली-बारी कर दी। उसी दिन पुलवामा जिले में सीआरपीएफ का जवान वीरू राम रैगर ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या करने की कोशिश की।

जवानों को इस तरह से अपने दर्द को बयान करने पर सेनाध्यक्ष ने जवानों से कहा है कि वह अपनी बात सोशल मीडिया पर नहीं उठाये उसके लिये सेना मुख्यालय, कमान मुख्यालय तथा निचले स्तर के कार्यालयों में शिकायत पेटी रखने की घोषणा की और कहा कि इन पेटियों के माध्यम से उठाए गए मुद्दों को मैं खुद देखूंगा। हम सभी जानते हैं कि जेल, थानों या अन्य ऑफिसों में इस तरह के बॉक्स पहले से रखे गये हैं और उस पर भी यही लिखा होता है कि आपकी पहचान गुप्त रखी जायेगी और इसको अधिकारी ही खोलेंगे। लेकिन हम इस तरह के बॉक्स के परिणाम को भी जानते हैं। सेना के दफ्तरों में शिकायत निवारण बॉक्स अभी तक क्यों नहीं था? जवानों के दर्द को गृह मंत्रालय ने बेबुनियाद बता कर खारिज कर दिया है। यानि एक शब्द में कहा जाये तो गृह मंत्रायल और अधिकारी जवानों को झूठा बता रहे हैं। यह आश्चर्य है कि तेज बहादुर और इरफान ने विडियो बना कर जो सबूत सरकार और जनता तक पहुंचाया है उसको सरकार मानने से इनकार कर रही है। क्या जवानों के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं होता है?

उपरोक्त घटनायें सोशल मीडिया पर आ जाने से पूंजीवादपरस्त मीडिया घराने भी इस मामले को उठाने के लिये मजबूर हुये। बीएसएफ का एक जवान इरफान ने 29 अप्रैल को वाराणसी में प्रेस कान्फ्रेंस कर के बताया था कि भारत-बंग्लादेश सीमा पर अधिकारी तस्करी कराते हैं और जो जवान मुंह खोलने की बात करता है उसे फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाता है। इरफान ने बताया कि 15 जनवरी, 2016 को 50 बंगलादेशी भारत में आना चाहते थे, तो उसने घुसपैठ कराने से इनकार कर दिया। इसी बीच एक घुसपैठिये ने बीएसएफ कमांडर को फोन करके इरफान से बात कराया। कमांडर ने इरफान को सभी घुसपैठियों को आने देने के लिये आदेश दिया। इरफान ने जब इस घटना की शिकायत अधिकारियों से की तो उसे चुप रहने की नसीहत दी गई। 19 जनवरी की रात को जब उसकी तैनाती का गेट रात में खोला गया था तो उसका विडियो इरफान ने बनाया था। उसकी शिकायत भी अधिकारियों से की लेकिन कोई असर नहीं हुआ। इरफान ने घुसपैठियों को सीमा की बाड़ को काटते और जोड़ते हुये भी कुछ लोगों को पकड़ा था। उन लोगों ने भी कमांडर के आदेश पर ऐसा करने की बात कबुली थी। इसका विडियो भी इरफान ने मीडिया के सामने दिखाया था। इरफान का कहना है कि बीएसएफ के अधिकारी सीमा पार तस्करी कराते हैं। उसके लिए अधिकारी कहते हैं कि ‘‘जी और एच क्लास के लिये सामान जा रहा है’’। जी और एच क्लास की श्रेणी बीएसएफ ने उन लोगों के लिये बनायी है जो सीमा पर लाबिंग करने का काम करते हैं। इरफान ने यह भी बताया कि उसने लंगर में बंगलादेशी घुसपैठी को काम करते हुये देखा था और पूछने पर उसने बताया कि कमांडर ने रखा है।

इरफान बताते हैं कि जब अधिकारियों के सामने तस्करी की कलई खोली थी तो उसे कमरे में बंद करके पीटा गया और सिगरेट से दागा गया। उसके बाद इरफान बीएसएफ छोड़ कर गांव आ गया। उसने बताया कि अधिकारी उसके पीछे पड़े हुये हैं और उसे भगोड़ा घोषित करने की धमकी दे रहे हैं। वह बीएसएफ में नहीं जाना चाहता था। उसके बाद इरफान के साथ क्या हुआ किसी को नहीं पता है। इस घटना को मीडिया ने महत्व नहीं दिया, जिसके कारण यह घटना दब गई।
तेज बहादुर, खंगटा राम, जीत सिंह या इरफान का न तो यह पहला मामला है और न ही अंतिम। ऐसा होता रहा है और होता रहेगा।

जब किसान अपनी जमीन को तथाकथित विकास के लिये पूंजीपतियों को नहीं देना चाहते तो इन्हीं जवानों को भेजा जाता है कि जाओ तुम ‘देशभक्त’ होने का परिचय दो। मजदूर जब अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन करते हैं या आदिवासी, दलित अपनी जीविका के साधन की मांग करते हैं तो इन्हीं ‘देशभक्तों के द्वारा उनका कत्लेआम करवाया जाता है। उस समय इन जवानों को ‘देशभक्त’ का तमगा दे दिया जाता है। जब यही जवान अपनी मांगों को उठाते हैं तो इनको भगोड़ा, अनुशासनहीन, नसेड़ी बना कर सजा मुकरर की जाती है। ये जवान उन्हीं मजदूर-किसान के बेटे हैं जिन पर अफसरों के कहने पर वे लाठियां और गोलियां बरसाते हैं। अफसरों का वर्ग अलग होता है। वे सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, नौकरशाहों के घर से आते हैं जिसकी न तो जमीन जाती है और न ही जान। इस समाज में जवान, किसान और विज्ञान से जुड़े तीनों समूहों को मिलकर लड़ना होगा, वे तभी जीत सकते हैं। नहीं तो किसी दिन किसान मारा जायेगा, किसी दिन जवान मारा जायेगा और किसी दिन विज्ञान को टोकरी में फेंक दिया जायेगा। इसकी झलकी तेज बहादुर और इरफान के वक्तव्यों में भी देखी जा सकती है। जवान, किसान और विज्ञान की जय तभी होगी जब वे मिलकर शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ लड़ेंग। तभी सही मायने में ‘जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान’ का नारा सार्थक हो पायेगा।
जवानों पर ज्यादती का मामला हो या जवानों द्वारा जनता पर ज्यादती का, उसे यह कहकर दबा दिया जाता है कि इससे जवानों का मनोबल कम होगा, देश कमजोर होगा। इस तरह के मामले जब हम उठाते रहेंगे तो उससे जवानों का मनोबल न तो कम होगा और न ही देश कमजोर होगा, बल्कि इससे देश सही जनवाद की तरफ बढ़ेगा। जब देश में जनवाद होगा तो जवानों का मनोबल भी ऊंचा रहेगा और देश का भी विकास होगा। इसलिए हमें तेज बहादुर, इरफान, रोहित वेमुला, सोनी सोरी जैसे लोगों पर होने वाले अत्याचारों और साथ ही कश्मीर में पिलेट गन चलाने वाले जवानों के खिलाफ बोलना, लिखना होगा। तभी हम सही लोकतांत्रिक और जनवादी समाज बना सकते हैं।
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