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राजस्थान में पर्यटन की दशा,दिशा और संभावनाएं

कला – संस्कृति और पर्यटन में राजस्थान देश में अपनी विशेष पहचान रखता है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस सन्दर्भ में राजस्थान दिवस स्थापना के 73 वे साल पर ” राजस्थान में पर्यटन की दशा,दिशा और संभावनाएं ” विषय पर ऑन मोबाइल राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। प्रसंग अद्भुत राजस्थान पुस्तक के प्रकाशन भी रहा।

राजस्थान की कला और संस्कृति देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी पहचान रखती है और यही कारण है कि परदेश से आने वाले प्रत्येक पावणें की यह दिली इच्छा रहती है कि वह राजस्थान ज़रूर जाये और यहाँ की पुरातन संस्कृति से साक्षात में रूबरू हों। चाहे यह कला व संस्कृति पर्यटन के रूप में हो चाहे उनके शोध का विषय हो। यह विचार व्यक्त करते हुए जयपुर के जनसंपर्क कर्मी, लेखक एवं पत्रकार प्यारे मोहन त्रिपाठी कहते हैं पुरातन कला, रेतीले धोरे, अपनी बहादुरी व वीरता का स्वत: ही बखान करते हुये यहां के किले, गढ़, प्राचीन इमारतें और पाँच- छ: फीट तक लंबी मूँछ रखने वाले लंबे चौड़े रणबाँकुरों पर जैसे ही देशी व परदेशी मेहमानों की नजर पड़ती है, राजस्थान का प्राचीन गौरवशाली इतिहास जिनको वे पर्यटन या इतिहास की पुस्तकों में पढ़कर राजस्थान की सैर पर आते हैं तीर्थराज पुष्कर वह पवित्र स्थान है जहां से जगत पिता श्री ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की। पुष्कर का होली महोत्सव भी पूरी दुनिया में अपना रंग जमाये हुये हैं। पूर्व की 23 रियासतों को मिलाकर राजस्थान का निर्माण हुआ।

पर्यटन सिर्फ हमारे जीवन में खुशियों के पलों को लाने में ही मदद नहीं करता बल्कि यह देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का माध्यम भी है। राजस्थान की पुरातात्विक विरासत या सांस्कृतिक धरोहर केवल दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थल के लिए नहीं है बल्कि यह राजस्व प्राप्ति का भी स्रोत है। यह विचार व्यक्त करते हुए दिल्ली के लेखक, पत्रकार, स्तंभकार ललित गर्ग ने कहा कि पर्यटन क्षेत्रों से कई लोगों की रोजी-रोटी भी जुड़ी है। राजस्थान देशीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों, दोनों के लिए एक सर्वाधिक आकर्षक पर्यटन स्थल है। वह कहते हैं कि राजस्थान असंख्य पर्यटन अनुभवों और मोहक स्थलों का प्रांत है। चाहे भव्य स्मारक हों, प्राचीन मंदिर या मकबरे हों, नदी-झरने, प्राकृतिक मनोरम स्थल हो, इसके चमकीले रंगों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रौद्योगिकी से चलने वाले इसके वर्तमान से अटूट संबंध है। यहां सभी प्रकार के पर्यटकों को चाहे वे साहसिक यात्रा पर हों, सांस्कृतिक यात्रा पर या वह तीर्थयात्रा करने आए हों, सबके लिए खूबसूरत जगह है।

“पधारो म्हारे देश ” की अपीलिंग और अपनापन से ओतप्रोत पंचलाइन से जिस पर्यटन की शुरुआत हो वह अपने आप मे निश्चित ही अनूठा है, हमारे देश मे तो पर्यटन के नज़रिये से राजस्थान का महत्व है, विदेशी सैलानियों के लिए भारत भृमण राजस्थान गए बिना अधूरा है। यह विचार व्यक्त करते हुए लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार विमल किशोर पाठक ने कहा कि राजस्थान में पर्यटन को विकसित करने की अभी असीमित संभावनाएं हैं,देश के पर्यटन त्रिकोण में शामिल गुलाबी नगरी जयपुर से केंद्रित होकर बात की जाए तो कई ऐतिहासिक किलों और वैश्विक धरोहरों को समेटे राजस्थान निश्चित ही सैलानियों की उन अपेक्षाओं को संतृप्त करने में सक्षम है जिसके लिये हज़ारो मील की दूरी तय करके लोग वहां पहुंचते हैं। चाहे विश्व पर्यटन सम्मेलन हो या दुनियां में पर्यटन को लेकर कहीं भी चर्चा,संगोष्ठी की जाए तो वह राजस्थान की चर्चा के बिना अधूरी रहती है। सरकारी स्तर पर पर्यटन को समृद्ध करने के तमाम प्रयास किये जा रहे हैं,लेकिन अभी भी अगर केंद्र और राज्य सरकार राजस्थान में पर्यटन पर केंद्रित परियोजना पर काम कर यहां पर्यटन की असीम संभावनाओ का लाभ उठा सकती है।

ऊँचे-ऊँचे रेत के टीले, मीलों तक फैला मरुस्थल, घुंघट के पीछे छुपी खूबसूरती के साथ घेवर और घुमर का मेल! क्योंकि बात राजस्थान की हो और यहाँ की रंगारंग संस्कृति और स्वादिष्ट व्यंजनों की बात न करें तो राजस्थान का जिक्र अधूरा है। राजस्थान का नाम से जहन में शौर्य के साथ त्याग और समृद्धि के साथ जीवंत संस्कृति व परंपराओं का मेल-जोल देखने को मिलता है। यह विचार व्यक्त करते हुए मुंबई की लेखिका और पत्रकार ज्योति विनोद कहती हैं कि इतनी सारी विशेषताएं और विविधताओं के बाद भी यहां पर्यटन के लिए कई संभावनाएं संभव है। आजादी के अमृत महोत्सव में राजस्थान की धरती को शौर्य व समृध्दि के साथ सैर के लिए बेहतर विकल्प के रूप में पहचान मिलनी चाहिए क्योंकि भाषा का बीज जीवित रहेगा, तभी तो संस्कृति का वृक्ष बचेगा!

हमारे देश में सभी राज्यों में पर्यटन स्थल हैं किंतु जब घूमने की बात आए तो सबसे पहले वीरों की भूमि, बलिदानों की भूमि राजस्थान का नाम आता है। हम नहीं भूल सकते महाराणा प्रताप को जिन्होने अपने प्राण न्योछावर कर दियें किन्तु मुगलिया शासन की आधीनता स्वीकार नहीं की, जिनकी शौर्य गाथा को आज भी हल्दीघाटी संजोय हुए है। यह विचार व्यक्त करते हुए जिला मुजफ़्फरनगर के चरथवाल की अध्यापिका श्रीमती पूनम सिंघल का कहना है कि महारानी पद्मावती का जौहर, बिश्नोई समाज मानव व पशु के बीच प्रेम के संबंध की अलग छाप,पन्नाधाय का त्याग जैसे प्रसंग सैलानियों को आकर्षित करते हैं। परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में राजस्थान की भूमि पोखरण का महत्व किस से छिपा है। पर्यटन संभावनाओं को देखते हुए राज्य सरकार अनेक कदम उठा रही है और अब एडवेंचर पर्यटन की अवधारणा पर बल दिया जा रहा है।

पर्यटन के क्षेत्र में राजस्थान का हस्तशिल्प विश्व विख्यात है। प्रदेश के हस्तशिल्प कलाकारों की आंचलिक पृष्ठभूमि, सौन्दर्यबोध और कला कौशल के प्रदर्शन का एक लम्बा इतिहास रहा है। यदि कोई कलाकार सड़क की फुटपाथ पर कलाकृति को आधुनिक रूचि के अनुरूप नया रूप देकर खरीददार को प्रभावित कर रहा है तो ऐसी कृति के नूतन शिल्प के पीछे भी कला साधना की एक पुरातन परम्परा है। यह विचार व्यक्त करते हुए पूर्व जनसंपर्क कर्मी, लेखक, पत्रकार उदयपुर के पन्ना लाल मेघवाल कहते हैं।
कि राजस्थान में एक तरफ महकती सौंधी मिट्टी से आकर्षक खिलौने बनाये जाते हैं, वहीं काष्ठ, प्रस्तर, कांच, धातु, चर्म एवं ब्ल्यू पाॅटरी की अनेकानेक मनमोहक कलाकृतियां सृजित की जाती हैं। इसके कारण देश को विदेशी मुद्रा भी अर्जित हो रही है।

विशाल भौगोलिक संरचना तथा समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के कारण यहाँ पर्यटन क्षेत्र के विकास की पर्याप्त संभावनाओंं को देखतेे हुए सरकार काम भी कर रही है जैसे ई-वीजा, धरोहरों को गोद देना , ऊँचाई वाले स्थलों के लिए रोप वे बनाना इत्यादि काम किये जा रहे हैैं। यह विचार व्यक्त करते हुए सम्पादक गीतांजलि पोस्ट समाचार-पत्र वर्तमान निवासी वड़ोदरा गुजरात रेणु शर्मा ने कहा कि भारत भ्रमण के लिए आए हर तीसरा पर्यटक रंगीले राजस्थान की छटा जरुर निहारने आता है। पिछले कुछ सालों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में राजस्थान गुजरात और महाराष्ट्र को टक्कर दे रहा है।
भारतीय संस्कृति के फलक पर मरु प्रदेश, राजपूताना और अब राजस्थान का अव्वल स्थान है। मरुस्थल में फलती फूलती शूर वीरों की यह शात्र धर्मी धरा में रण के साथ ही रंग की साधना, शूरता की साधना, जौहर व्रत, अतिथि सत्कार, शरणागत रक्षा, त्योहार और उत्सव, साहित्य एवं कला के प्रति प्रेम, धार्मिक प्रवृत्ति आदि इस धरा की विशेषता है। यह विचार व्यक्ति करते हुए जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरैना, मध्य प्रदेश की व्याख्याता हिंदी विभाग निशा गुप्ता कहती हैं कि 33 जिलों को अपने आंचल में समेटे, पधारो म्हारे देश के निमंत्रण की संवाहक राजस्थान की धरा में राजस्थानी संस्कृति एक कलकल करती बहती नदी के समान है जो गांव, ढाणी, चौपाल, पनघट, झोपड़ी, महल, किले, खेत खलियान, पर्व, मेले, तीज त्योहार, नृत्य, पहनावा, रीति रिवाज आदि में अपनी इंद्रधनुषी छटा बिखेरती है।

कोटा के पत्रकार सुनील माथुर का कहना है की संभावनाओं की दृष्टि से कोटा एवं बूंदी आने वाले समय में विश्व पर्यटन में अपनी पहचान बनाएगा। चंबल नदी और वन्यजीव अभयारण्य नए पर्यटक केंद्र बनने जा रहे हैं। अकेला चम्बल रिवर फ्रंट दुनिया का एक मात्र आकर्षण होगा। पत्रकार के. डी.अब्बासी कहते हैं जयपुर के हवामहल, जन्तर मन्तर, जैसलमेर का सोनार किला, धूल के टीलें, ऊँट की सवारी, जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग, उदयपुर के महल एवं किले यहाँ के मुख्य आकर्षण के केंद्र रहे हैं।

रंग बिरंगी संस्कृति, वेशभूषा,परमपराएं,लोक जीवन, पर्यटन उत्सव भी राजस्थान में सैलानियों के आकर्षण का महत्वपूर्ण आधार है। कोटा की एडवोकेट रेखा देवी यह विचार व्यक्त कर कहती हैं कि सरकार पर्यटन विकास पर कई परियोजनाओं पर कार्य कर रही है। एडवोकेट अख्तर खान कहते हैं सवाई माधोपुर,सरिस्का अभ्यारण्यो में वन्य जीवों को स्वच्द विचरण करते वन्य जीवों को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के संभागीय पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक श्रीवास्तव का कहना है कि पर्यटन पर लिखने वाले लेखकों की पर्यटन विकास में अहम भूमिका है। पर्यटन पर खूब लिखा जा रहा हैं। सोशल मीडिया पर विभिन्न ग्रुपों में पर्यटन की विविध विधाओं के प्रति अनुराग दिखाई देता हैं। कोटा जिले में जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ० प्रभात कुमार सिंघल निरन्तर लिख रहे हैं और उन्होंने सेवा निवृति के अल्प समय में पर्यटन के विविध क्षेत्रों को आधार बना कर 16 पुस्तकें लिख कर पर्यटन को देश – दुनिया में प्रोत्साहित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।