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कहानी हाथी और महावत की

वो हाथी वाली कहानी तो आपको याद होगी जिसमें एक हाथी जब बच्चा हुआ करता था तब उसके पैर में एक मामूली रस्सी बांध दी गई थी। बचपन में उसने जोर लगाया तो वह टूट नहीं पाई। हाथी बड़ा हो गया लेकिन रस्सी के प्रति उसकी सोच वही रही। फिर रस्सी को तोड़ने की उसने कभी कोशिश ही नहीं की।
2014 में एक महावत आया और उसने हाथी को बताया कि “तुझे इतने साल मूर्ख बनाया गया है। तू कोशिश करके तो देख, यह रस्सी तो क्या तू अब बड़ी से बड़ी जंजीर भी तोड़ सकता है।” महावत ने आगे कहा “मुझ पर नहीं तु अपने आप पर भरोसा कर।”

बहुत समझाए जाने के बाद हाथी ने आखिर अपना पैर उठाकर बढ़ा दिया, आश्चर्यजनक रूप से वह रस्सी किसी धागे की तरह टूट गई। हाथी बहुत खुश हुआ, महावत को धन्यवाद कहा और आजाद जिंदगी जीने लगा।

यह सब देख पुराने महावत परेशान हो उठे कि हाथी को अपनी ताकत का अहसास हो गया तो यह आगे हमारी बात कभी नहीं सुनेगा।

पुराने महावतों ने हाथी को समझाना शुरू किया कि “वह रस्सी तेरी भलाई के लिए बांधी गई थी। अगर रस्सी नहीं होती और तू यहाँ वहाँ चला जाता तो दूसरे जानवर तुझे परेशान करते, तुझे घायल कर देते।”

हाथी बोला, “दूसरे जानवर? वो मुझे बेवजह क्यों तकलीफ देंगे? क्या वो बहुत बुरे जानवर हैं? क्या वो बहुत खतरनाक हैं?”

महावत बोले “अरे नहीं नहीं, जानवर तो बहुत अच्छे हैं लेकिन तू उनके इलाके में घुस जाता, उनके बच्चों को डरा देता तो उनको गुस्सा आ जाता ना।”

हाथी उनकी बातें सुनकर थोड़ा असमंजस में पड़ गया, वह नहीं चाहता था कि उसकी वजह से किसी को परेशानी हो। खैर रस्सी से मुक्ति मिली इस बात से उसे संतोष था।

2019 में दुबारा वही महावत आया जिसने हाथी का विश्वास जगाया था। उसने पाया कि रस्सी में नहीं होने के बावजूद हाथी बहुत दूर नहीं जा रहा। वह एक छोटे दायरे में ही विचरण करता है। महावत ने पूछा “ऐसा क्यों?”

हाथी ने जवाब दिया “मैं नहीं चाहता कि किसी को मेरे कारण कोई कष्ट हो इसलिए मैं यहीं रहता हूँ।”

महावत ने कहा “हे महाबली, यह पूरा जगत सभी का उतना ही है जितना कि तुम्हारा है। तुम निकलो बाहर इस दायरे से और इस दुनियाँ में अपना स्थान पहचानो।
“लेकिन दूसरे जानवर?” हाथी ने पूछा। “क्या मैं उनके लिए खतरा नहीं बन जाऊँगा, क्या वो मुझे स्वीकार करेंगे?”
इसपर महावत हँस दिया… बोला “जैसे पहले मुझपर भरोसा किया था एक बार फिर से करके देख।”
थोड़ा समझाने के बाद हाथी निकल चला, आगे रास्ते में कुछ कुत्तों ने उसपर भौंकना शुरू कर दिया। हाथी को बड़ा अजीब लगा कि मैंने तो किसी से कुछ भी नहीं कहा फिर ये कुत्ते क्यों परेशान हैं।

तब महावत ने बताया कि “इस दुनियाँ में कुछ ऐसे भी जानवर हैं जिनको बाकी सभी जानवरों से परेशानी है। तुम पर तो ये केवल भोंक रहे हैं जबकि इन्होंने दूसरे जानवरों का तो जीना हराम किया हुआ है। कुत्तों की करतूत जानकर हाथी को गुस्सा आने लगा और कुत्ते अब भी भोंक रहे थे। अचानक हाथी पलटा और सूंड उठाकर जोर से चिंघाड़ा। हाथी की चिंघाड़ सुनकर कुत्ते कियाँ कियाँ करते हुए भाग खड़े हुए। आस पास दूसरे जानवरों ने हाथी को ऐसा करते देखा और कुत्तों को दुम दबा कर भागते देखा। जल्दी ही यह खबर चारों तरफ फैल गई। अब कई जानवर हाथी से मिलने आने लगे, हाथी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने लगे। यह सब हाथी की उम्मीद से बिल्कुल उलट था तभी वहाँ वही पुराने महावत आ धमके… वो गुस्से में हाथी को बुरा भला कह रहे थे।

“कहा था ना तू दूसरों के लिए मुसीबत है, तुझे इसीलिए बांध कर रखा था हमने। कुत्तों की पूरी कौम तुझसे डरी हुई है। कितने ही छोटे छोटे जानवर रोज तेरे पैरों के नीचे कुचले जा रहे हैं लेकिन तुझे क्या। उस गुजराती महावत ने तेरी बुद्धि नष्ट कर दी, दूसरों के लिए तेरे भीतर की दया को खत्म कर दिया। आँख खोल के देख आतंक मचा रखा है तूने। असहिष्णु हो गया है तू, तू आतंकवादी हो गया है। चल हमारे साथ और कुत्तों से माफी मांग ले, सबके साथ भाईचारगी से रहना सीखना होगा तुझे वरना…

हाथी ने देखा जो महावत उसे भाईचारगी का पाठ पढ़ा रहा है उसके गले में तनिष्क का हार लटक रहा था। हाथी ने तनिष्क के हार को सूंड से पकड़कर खींच लिया।

इस कहानी में हाथी कौन, महावत कौन, पुराने महावत कौन, कुत्ते कौन, दूसरे जानवर कौन – यह आपकी बुद्धि पर निर्भर है। अपने अर्थ अपने तक सीमित रखें टिप्पणी और प्रतिक्रियाओं में इन्हें स्पष्ट ना करें।