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सुशील मोदी: वस्तु एवं सेवा कर के संकटमोचक की वापसी

फिलहाल उनके रहने का पता बदला है। बाकी दूसरी चीजों के लिहाज से देखें तो सुशील कुमार मोदी के लिए समय ठहर सा गया है। वह अब पटना में बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के 5 देशरत्न मार्ग स्थित बंगले में रहने जाएंगे जबकि यादव को मोदी के मौजूदा घर 1 पोलो रोड में आवास मिलेगा। मोदी फिर से बिहार के उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री हैं। साथ में वह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद इसके विभिन्न पहलुओं की कमान संभालते हुए नजर आएंगे। वह इस काम में दक्ष भी हैं। जब इस कर को लेकर राज्यों के साथ बातचीत (वर्ष 2011-13) हो रही थी उस वक्त वह जीएसटी की अधिकारप्राप्त समिति की अध्यक्षता कर रहे थे। वर्ष 2012 में मोदी ने जीएसटी को लेकर बातचीत शुरू करने में अहम भूमिका निभाई थी और वह तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के साथ कामकाजी संबंध स्थापित करने में सफल रहे थे।

इसके बाद जीएसटी पर बातचीत आगे बढऩे लगी। उन्होंने हाल में बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘उपभोक्ता राज्यों को नए अप्रत्यक्ष कर जीएसटी से फायदा मिलने वाला है क्योंकि उपभोग पर कर लगाया जाएगा। बिहार एक बड़ा उपभोक्ता राज्य है ऐसे में जीएसटी लागू होने की वजह से सबसे ज्यादा फायदा गरीब और पिछड़े राज्यों को होगा।’ उनका कहना है कि बिहार के कुल कर संग्रह में न्यूनतम 14 फीसदी वृद्धि की उम्मीद है और इसकी कर वृद्धि करीब 25 फीसदी तक हो सकती है।

जीएसटी परिषद के प्रमुख के तौर पर उन्होंने काफी शोध किए मसलन जीएसटी और इसकी शुरुआत से विभिन्न देशों जैसे कनाडा, ब्राजील आदि पर क्या असर पड़ा और नए कर की पेशकश के साथ राजनीतिक खतरे का सामना करने के लिए कैसे तैयार होना होगा। उन्होंने एक दफा बिज़नेस स्टैंडर्ड से हल्के अंदाज में कहा था कि जिस सरकार ने जीएसटी लागू किया वह सत्ता में वापस नहीं आई लेकिन सत्ता में मौजूद सरकार ने जीएसटी को खारिज नहीं किया।

वह उन लोगों में शामिल थे जो राज्यों में जीएसटी लागू करने के लिए आत्मविश्वास की कमी को दूर करने की कोशिश कर रहे थे। केंद्र सरकार ने केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) के मुआवजे के लिए वादा किया था लेकिन यह बात कई सालों तक टलती गई। इसी वजह से राज्य सरकारों ने यह पूछना शुरू किया कि अगर वे जीएसटी का विकल्प चुनते हैं तो कर गंवाने के एवज में तयशुदा मुआवजे के लिए भी केंद्र समान रवैया अपनाएगा। यह बातचीत आसान नहीं थी। उनका कहना है, ‘हमें राज्य सरकारों के रोष का सामना करना पड़ा था।’ लेकिन वर्ष 2013 में जनता दल (यूनाइटेड) से गठजोड़ टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बिहार में सत्ता से बाहर हो गई। मोदी ने वित्त मंत्री और जीएसटी परिषद के प्रमुख के तौर पर भी इस्तीफा दिया।

अपने इस्तीफा पत्र में भी उन्होंने यही मसला उठाया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और राज्यों के बीच भरोसे की कमी है जो जीएसटी विधेयक पारित कराने के लिए सबसे अहम कारक है। लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने कुछ असंतुष्टि की वजह से अपने गठजोड़ के साझेदारों को लेकर मन बदल लिया। मोदी के लिए यह एक अप्रत्याशित सफलता थी और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से फोन आया कि वह उप मुख्यमंत्री और बिहार के वित्त मंत्री के तौर पर फिर से शपथ ग्रहण करें।

मोदी अब राज्यमंत्रियों के पांच सदस्यीय समूह की अध्यक्षता कर रहे हैं जो नए कराधान की मुख्य निर्णायक संस्था जीएसटी परिषद द्वारा अधिकृत जीएसटी पंजीकरण और कर दाखिल करने वाले पोर्टल की तकनीकी चुनौतियों को देखने के लिए बनाया गया जीएसटी को अमलीजामा पहनाए जाने के दौरान होने वाली रोजाना की व्यावहारिक समस्याओं का हल भी मोदी को निकालना होगा। जब लोग जीएसटी दाखिल करने की कोशिश करते हैं तो वेबसाइट क्यों क्रैश हो रही है, बैकएंड में क्या समस्या है, जैसी तकनीकी दिक्कतों के समाधान के साथ ही मोदी पर छोटे कारोबारियों के आक्रोश को कम करने की जिम्मेदारी भी है जो एक वक्त पर नई कराधान व्यवस्था से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हो पा रहे थे और उन्हें खासतौर पर नई तकनीक अपनाने का डर सता रहा था।

वैसे मोदी को तकनीक आकर्षित करती है। उन्होंने पहली बार जब कारोबार में हाथ आजमाया तो वर्ष 1987 में मोदी कंप्यूटर इंस्टीट््यूट खोला। इसके लिए उन्होंने एक बैंक से 70,000 रुपये का कर्ज लिया था। कारोबार उनको रास नहीं आया और सक्रिय राजनीति में वापसी के साथ ही यह इंस्टीट्यूट बंद हो गया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने बिहार में अपने दो मित्रों लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के साथ 1974 में जयप्रकाश नारायण के कांग्रेस विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया। वह आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) के तहत पांच बार गिरफ्तार हुए और आपातकाल के दौरान उन्हें जेल में कुल 24 महीने का वक्त गुजारना पड़ा।

यह सबकुछ तब हुआ जब उनके परिवार ने उनमें काफी निवेश किया था, मसलन उन्हें तीन स्कूलों में भेजा गया जिनमें से दो स्कूल मिशनरियों द्वारा संचालित होते थे। वर्ष 1973 में पटना विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में दूसरे पायदान पर थे। ऐसी उम्मीद थी कि वह पास नहीं हो पाएंगे लेकिन परीक्षा से एक महीने पहले उन्होंने जमकर पढ़ाई की। लेकिन बाद में उन्होंने स्नातकोत्तर की पढ़ाई छोड़ दी और पूर्णकालिक तौर पर वह राजनीति से जुड़ गए। उनका कारोबार भले ही असफल हो गया हो लेकिन गैजेट के प्रति उनका जुनून बरकरार है। वह अपने स्मार्टफोन पर खबरें पढ़ते हैं। किसी डर और चुनौती की तह तक जाने के लिए मोदी से बेहतर कोई नहीं है। हालांकि इस बार काफी कुछ दांव पर लगा है।

साभार- बिज़नेस स्टैंडर्ड से