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स्वामी श्रद्धानंद के विचार आज भी प्रासंगिक हैं

भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म की चैतन्य, मूर्ति मन्य व्यक्तित्व स्वामी श्रद्धानंद जी ,जिनके मुख मंडल पर तेज , वाणी में ओज और आत्मा में जिज्ञासाओं का समुद्र विद्यमान था । पश्चिम की भौतिकता से ओतप्रोत जनमानस व नेतृत्व को भारत की आध्यात्मिक ऊर्जा ,कर्मयोगी एवं कर्तव्य – पथ से नेतृत्व देने वाले महामानव व आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे विश्व- वरेण्य, अदम्य साहसी सन्यासी ,आध्यात्मिक संत एवं नैतिकता से ओतप्रोत राजनीतिज्ञ थे; जिन्होंने भारत वर्ष की प्राचीन वेदान्तिक परंपरा व संस्कृति पर वर्तमान भारत की प्राण- प्रतिष्ठा को खड़ा किया।वे भारत के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक युगपुरुष थे, स्वामी जी कुशाग्र बुद्धि ,करुणामय ह्रदय एवं अलौकिक प्रतिभा/ मेधा के धनी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था।

स्वामी श्रद्धानंद जी भारत के शिक्षाविद ,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं आर्य समाज के सामाजिक एवं नव चैतन्य संचार के वाहक थे ।स्वामी जी ने अपने शैक्षणिक यात्रा में स्वामी दयानंद सरस्वती के मौलिक प्रत्त्यों,मौलिक शिक्षाओं एवं आध्यात्मिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।स्वामी जी भारत के उन महान हुतात्मा, राष्ट्रभक्त आध्यात्मिक सन्यासी व्यक्तित्व में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी महाभूती ऊर्जा, आध्यात्मिक चेतना एवं मौलिक विचारों से स्वतंत्रता आंदोलन, स्वराज्य की अवधारणा, शिक्षा की संकल्पना एवं वैदिक धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए समर्पित किया ।

श्रद्धानंद जी सप्तऋषि मंडल के ऋषि, नर के रूप में नारायण, मानव जाति के कल्याण की भावना से महाभूती /भौतिक/ दैहिक/देह को धारण किए थे ,जिनका सम्यक संचरण मानव जाति की सेवा थी। उन्होंने भारत के करोड़ों धर्म – पिपासु की आध्यात्मिकता तृष्णा को समाप्त किया था। उनका वैदेशिक – प्रवास व भारतीयता का दृष्टिकोण भारत के स्वत्व व स्वाभिमान का जागरण सेतु बना। भारत के आत्मा रूपी ज्ञान को खंडित करने करने वाले ,आंग्ल – लेखकों, इतिहासकारों, शिक्षाविदों पादरियों, मिशनरियों एवं आक्रांत शासकों ने किया था, उसको शुद्धि आंदोलन के माध्यम से जन आंदोलन का प्रकटीकरण ध्येय बनाएं। अपने पूर्वजों के धर्म – जागरण व संस्कृति के माध्यम से राष्ट्रीयता को पहचान दिलाने में सक्रिय भूमिका निभाया था ।उनका कहना था कि राष्ट्रीयता के पतन का कारण धर्म नहीं है, अपितु धर्म के मार्ग से विमुख होना/ धर्म के मार्ग से दूर जाने से ही भारत का पतन हुआ है। उनका कहना था कि राष्ट्रीयता /भारतीयता को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में समझने पर हमारे विशाल देश की विविधता में अंतर्निहित एकात्माता का विचार/ प्रत्यय विज्ञान है।

स्वामी जी ने ‘ पूना प्रवचन’ , ‘ आदिम सत्यार्थ प्रकाश ‘ , ‘ इनसाइड द कांग्रेस ‘ एवं ‘ श्रुति विचार सप्तक’ का प्रकाशन कर के व्यक्ति ,समाज एवं संगठन को ऊर्जावान उपादेयता प्रदान किए थे ,उनके राष्ट्रीयता में योगदान के कारण डॉक्टर बी .आर आंबेडकरजी ने कहा था कि स्वामी श्रद्धानंद जी वास्तव में ” अस्पृश्यों/ अछूतों के महानतम और सबसे सत्य हितैषी थे ”

(लेखक स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज,अलीपुर में प्राचार्य हैं)
संपर्क
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