1

ताईवान ने कहा, नेताजी से जुड़े कई दस्तावेज हमारे पास

‘हमारे पास ऐसे दस्तावेज, जो बहुत कम लोगों को पता होंगे’: ताइवान ने भारतीय शोधार्थियों के लिए नेताजी पर रिसर्च के लिए अपने अभिलेखागार खोले

ताइवानी राजनयिक ने कहा कि अध्ययन के लिए ताइवान के राष्ट्रीय अभिलेखागार और कम्युनिकेशन के दूसरे माध्यम खुले हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ताइवान में कई ऐसे युवा इतिहासकार हैं, जो दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत का अध्ययन करने में रुचि रखते हैं।

ताइवान सरकार (Taiwan Government) ने भारतीय शोधकर्ताओं और इतिहासकारों को उनके यहाँ आकर महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के बारे में रिसर्च करने का निमंत्रण दिया है। इसके लिए ताइवान सरकार ने अपने राष्ट्रीय अभिलेखागार को खोलने का फैसला किया है। दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (ताइवानी दूतावास) के उप-प्रतिनिधि मुमिन चेन ने शनिवार (22 जनवरी 2022) को फिक्की द्वारा आयोजित नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 125वें जन्मदिन समारोह में कहा कि नेताजी का 1930 और 40 के दशक में ताइवान पर बहुत प्रभाव रहा है।

कार्यक्रम के दौरान चेन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का ताइवान से जोड़ते हुए वहाँ पर इसके लिए किए गए प्रयासों के बारे में विस्तार से बताया। उस दौरान ताइवान जापान के कब्जे में था। भारत-ताइवान ऐतिहासिक जुड़ाव पर प्रकाश डालते हुए मुमिन चेन कहते हैं कि 1940 के दशक से ‘भारत और नेताजी के साथ, हमारे ऐतिहासिक संबंध’ हैं, जो कि संभवत: ताइवान के लोगों को नहीं पता था।

चीन के पूर्व राष्ट्रपति चियांग काई-शेक ने अपनी डायरी में नेताजी को लेकर लिखा था। उन्होंने नेताजी को लेकर सहानुभूति जताते हुए कहा कि स्वतंत्रता के लिए जापानी लड़ाई में सहयोग करने का निर्णय समझ में आता है। साल 1975 तक चियांग ने ताइवान पर शासन किया था, उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना का पुरजोर विरोध करने के लिए जाना जाता है।

ये जानते हुए भी कि नेताजी ने ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने के लिए जापान से मदद माँगी थी। चेन ने कहा, “1945 से पहले ताइवान जापान का उपनिनेश था, इसलिए नेताजी 1943 में ताइवान आए और फिर दूसरी बार 1945 में ताइवान आए थे।”

ताइवानी राजनयिक ने कहा कि अध्ययन के लिए ताइवान के राष्ट्रीय अभिलेखागार और कम्युनिकेशन के दूसरे माध्यम खुले हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ताइवान में कई ऐसे युवा इतिहासकार हैं, जो दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत का अध्ययन करने में रुचि रखते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “ताइवान में नेताजी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर बहुत सारे ऐतिहासिक दस्तावेज अभी भी मौजूद हैं, जिनके बारे में बहुत कम भारतीय विद्वान जानते हैं।” भारत-ताइवान के द्विपक्षीय संबंधों पर भी मुमिन चेन ने बात की। उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों के जरिए इंडो-पैसिफिक के सामान्य इतिहास की फिर से जाँच और फिर से खोज की आवश्यकता पर बल दिया।

बता दें कि नेताजी की मौत के रहस्य पर विवाद लगातार जारी है। अगस्त 1945 में विमान दुर्घटना के बाद नेताजी को ताइपे के सैन्य अस्पताल ले जाया गया था, जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली।