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पुजारियों की हत्या में आतंकी साजिशः जैश-ए-मोहम्मद तक तार

दिल्ली पुलिस ने हाल ही एक बड़ा खुलासा किया है । जैस-ए-मोहम्मद से जुड़े एक ऐसे आतंकी को गिरफ्तार किया गया है जो भगवा कपड़े माला और टीका के साथ दिल्ली आया था, उसे गाजियाबाद के डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहदास की हत्या करने की सुपारी दी गयी थी । पकड़े गये आतंकवादी का नाम जान मोहम्मद डार है और वह कश्मीर के पुलवामा जिले का रहने वाला है । दिल्ली में वह पहाड़गंज के एक होटल में ठहरा था । उसे होटल से ही गिरफ्तार किया गया । वह महंत यति नरसिंहदाससरस्वती की हत्या करके सुरक्षित निकल जाना चाहता था । वह एक बार भगवे कपड़े, माला, टीका कलावा के साथ मंदिर का जायजा भी ले आया था लेकिन वह ऐसे अवसर की तलाश में था जिसमें वह सुरक्षित निकल जाये और मामला पुजारियों के आंतरिक विवाद का दिखे । इस घटना नेशयह सोचने पर विवश कर दिया है कि पिछले दिनों भारत में जिन संतों और पुजारियों को निशाना बनाया गया है उन सब में भी कही सीमा पार का षडयंत्र तो नहीं ।

भारत में पिछले कुछ दिनों से मंदिर के पुजारियों पर हमले और उनकी हत्या की मानों बाढ़ आ गयी है । कोशिश यह साबित करने की होती है कि ये झगड़े और ये हत्याएँ पुजारियों के आपसी झगड़े या उनके असामाजिक कार्यों के कारण है । और अब तक धारणा भी ऐसी ही बनती रही है । पुलिस भी इसी एंगल पर काम करती है और संदेह के आधार पर कुछ लोगों को जेल भेजकर अपनी फाईल बंद कर लेती है । लेकिन डार की गिरफ्तारी ने सबको चौंका दिया है और एक ऐसा सच उजागर किया है जिसकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं था । आतंकी संगठन जैस द्वारा भारत के मंदिरों और पुजारियों और भगवा रंग को बदनाम करने की योजना पहली नहीं है । वह इस पर वर्षों से काम करता रहा है । लगभग बीस बाईस साल पहले एक पवित्र पुस्तक के पन्ने फाड़ना सार्वजनिक तौर पर अपमान करने की घटनाएं हुईं थी लेकिन दिल्ली और लखनऊ में रंगे हाथ जो अपराधी पकड़े गये वे बंगलादेश के निकले, इसी तरह बंगाल में एक बुजुर्ग नन्स के साथ एक अपमान जनक बारदात घटी उस पर भी बहुत शोर हुआ वह भी बंगलादेश का निकला था । तब इस तरह की घटनाओं पर विराम लगा, दूसरे चरण में भगवा आतंकवाद आया, अब यह तीसरा चरण है जिसमें मंदिरों, मंदिर के पुजारियों और संतों को बदनाम करने की रणनीति पर काम हो रहा है ताकि समाज में मंदिरों, पुजारियों और संतों के खिलाफ वातावरण बने त। पिछले कुछ दिनों से ऐसी घटनाओं में मानों बाढ़ आ गयी है । राजस्थान के जयपुर, बिहार के मधुबनी और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, बरेली, नोयडा, आगरा आदि में ऐसी घटनाएं हो चुकीं है । उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे करनाल के गाँव मंगलौरा में तो इतनी क्रूरता पूर्वक घटना घटी थी विवरण पढ़ने वालों के रोंगटे खड़े हो गये थे । वहां दो पुजारियों की हत्या की गयी थी और तीन की जिव्हा काटी गई थी । हाथ पैर बांधकर मारा गया था । हमलावरों के मुँह ढंके थे ।

बाद में पुलिस ने शक कै आधार पर कुछ लोगों को पकड़ा जरूर पर पता नहीं चला कि वे क्या वास्तविक आरोपी थे ? इन घटनाओं से कुछ वर्ष पहले जम्मू कश्मीर के एक मंदिर में एक नाबालिग लड़की की लाश रखी गई थी वह घटना भी इसी षडयंत्र का एक हिस्सा थी । इन तमाम घटनाओं में अब तक ठीक उसी प्रकार जाँच की गयी या उसी प्रकार कागज पूरे किये गये जैसा मालेगाँव ब्लास्ट, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर ब्लास्ट के समय किया गया था । किसी ने इस तथ्य पर विचार ही नहीं किया कि क्या यह कोई उसी तरह कात आतंकी षडयंत्र हो सकता है । जैसा पहले भगवा रंग को आतंकवादी साबित करने के लिये हुआ था । तब शुरूआत में वह साजिश इसलिये कामयाब हो गयी थी कि भारत में रहने वाले कुछ भारतीय ही अपने राजनैतिक लाभ के लिये भगवा रंग को बदनाम करने के अभियान में लग गये थे । उसी प्रकार पिछले लगभग दो वर्षों से मंदिरों, संतों और पुजारियों के विरुद्ध एक सामाजिक वातावरण बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है । तब समझौता ब्लास्ट से लेकर मालेगांव तक जितनी भी घटनायें घटीं वे सब पाक प्रायोजित थीं । लेकिन आतंकवादी भगवा कपड़े पहनकर आये थे, हाथ में कलावा बाँध कर आये थे लिहाजा भारत में कुछ लोगों ने एक तूफान खड़ा कर दिया था जिससे अनेक निर्दोष लोगों की जिन्दगियाँ जेल में चलीं गईं । कुछ तो जिन्दा लाश बनकर ही जेल से बाहर आये । तब हालाँकि कि अमेरिका ने संकेत दिया था कि उन सभी घटनाओं में सीमा पार के आतंकियों का हाथ है । पर तत्कालीन जाँच एजेंसियों और सरकार ने अपनी जाँच की कोई दिशा नहीं बदली । इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि भारत में एक मानसिकता ऐसी भी है जो सत्ता के लाभ के लिये समाज और राष्ट्र दोनों के हितों की बलि दे सकती है । तब भगवा आतंकवाद के दुष्प्रचार पर अंकुश कसाब की गिरफ्तारी के बाद कुछ विराम लग पाया था । कसाब सीमा पार का आतंकी था । उसके हाथ में कलावा बंधा हुआ था । बाद में केन्द्रीय गृह विभाग की आंतरिक सुरक्षा में तैनात अधिकारी आरवीएस मणि ने बाकायदा एक पुस्तक लिखी जिसमें उन घटनाओं का सिलसिलेवार वर्णन किया है कि किस प्रकार तत्कालीन कुछ प्रभावशाली लोगों ने अधिकारियों की टीम लगा कर केवल भगवा रंग से जुड़े व्यक्तियों के विरुद्ध कूट रचित प्रमाण तैयार करवाये । उन्होंने तो अपनी पुस्तक में कुछ लोगों के नाम भी लिखें हैं । उस पुस्तक में बाकायदा कुछ सरकारी कागजातों का विवरण और भारत पाक डोजियर पर मौजूद प्रमाणों का उल्लेख भी किया गया है । अब हालांकि समय बीत गया है । षडयंत्र में फंसाये गये लोग भी बाहर आ गये हैं पर वे लोग आज भी ठाट से घूम रहे हैं जिन्होंने इतना बड़ा षडयंत्र किया था ।

वह भारत में भारत की सनातनी संस्कृति को बदनाम करने और फंसाने का कदम था । जो आगे बढ़ा और अब निशाने पर मंदिर और मंदिर के पुजारी हैं । अब जब जान मोहम्मद पकड़ा जा चुका है, उसने कुछ खुलासे भी किये हैं । तब मंदिरों और पुजारियों पर हमले की सभी घटनाओं की नये सिरे से जाँच होना जरूरी है । करनाल जिले की मंगलौरा और कश्मीर की घटना एक नेचर की है । कश्मीर में जहाँ किसी नाबालिग के साथ बलात्कार करने के बाद लाश मंदिर परिसर में पटकी गई थी तो करनाल जिले के मंगलौरा गाँव में पुजारियों की लाशों के पास शराब की बोतलें और उपयोग किये हुये कंडोम पटके गये थे । यह चिंतनीय है कि मीडिया में यह आरंभिक खबरें बहुत सुर्खियों में आईं लेकिन बाद कंडोम की केमिकल जांच के परिणाम उतनी जगह न पा सके जितनी पहले मिली थी । केमिकल जांच कंडोम के केमिकल का उन मृत और घायल पुजारियों से कोई संबंध नहीं था । जान मोहम्मद डार की इस गिरफ्तारी ने उन सारी घटनाओं पर पुनः नये सिरे से विचार के लिये विवश कर दिया है । यदि जान मोहम्मद न पकड़ा जाता तो डासना देवी मंदिर की यह घटना भी पुजारियों के आंतरिक विवाद ही मानी जाती और सीमा पार के आतंकी भारत में भारतीय धर्म स्थलों और धर्माचार्यों को बदनाम करने की दिशा में एक एक कदम और आगे बढ़ते रहते ।


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