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क्षमा में शक्ति का वास, इसीलिए मिच्छामि दुक्कड़म!

मुंबई। राष्ट्रसंत आचार्य चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज ने कहा है कि पर्युषण के समापन पर की गई क्षमापना व्यक्ति को महानता की तरफ अग्रसर करती है। असल में क्षमा में बहुत बड़ी ताकत होती है। वह सब बराबर कर देती है। हम जब क्षमा मांगते हैं, तो हमारे मन के भाव बदलने के साथ ही सामने वाले के भाव भी बदल जाते हैं। इसीलिए क्षमापना को परम सुख प्रदान करनेवाले पर्युषण महापर्व की सार्थकता के रूप मे देखा जाता है। नाकोड़ा दर्शन धाम में पर्यूषण महापर्व के दौरान क्षमापना के महत्व पर बोलते हुए आचार्य चंद्रानन सागर ने कहा कि जीवन में क्षमा से बढ़कर कोई दान नहीं है, क्योंकि क्षमादान जीवमात्र में अभय का भाव जगाता है।

मुंबई के पास नाकोड़ा दर्शन धाम में चातुर्मास पर बिराजमान आचार्य चंद्रानन सागर जैन धर्म के प्रतिष्ठित व दिग्गज आचार्यों में गिने जाते है। नाकोड़ा दर्शन धाम के ट्रस्टी प्रवीण शाह बताते हैं कि कोरोना का संकटकाल होने के कारण इस बार लोगों का आना जाना बहुत ही कम रहा। लेकिन फिर भी जो कोई पर्युषण महापर्व के दौरान गुरुदेव से मिला, उसे चंद्रानन सागरजी का अत्यंत अलग स्वरूप देखने को मिला है। प्रवीण शाह बताते हैं कि पूरे पर्यूषण पर्व में चंद्रानन सागरजी परमात्मा स्वरूप में पावन लगे। संवत्सरी पर वे सिद्ध संत स्वरूप में लगे। और क्षमापना के साक्षी बनकर हमारी भूलों को भूलने व भुलाने वाली भगवत्ता का भरोसा बने। परम दर्शन भक्त मोती सेमलानी ने बताया कि चंद्रानन सागरजी पूरे पर्यूषण महापर्व के दौरान हर पल ईश्वरीय आराधना में व्यस्त नजर आए। जाने माने राजनीतिक विश्लेषक निरंजडन परिहार कहते हैं कि चंद्रानन सागरजी ने हम संसारी लोगों के जीवन में पर्यूषण के गहन महत्व को समझाया। तो, उनके शब्द जैसे सदा के लिए मानस पटल पर अंकित हो गए। शताब्दी गौरव के संपादक सिद्धराज लोढ़ा कहते हैं कि हम गर्वित हैं कि हमारे गुरू ज्ञान के भंडार हैं, परमात्मा के पराक्रम से परिपूर्ण हैं और आराधना के मार्ग में भी वे अत्यंत सामर्थ्यवान हैं। लोढ़ा कहते है कि चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज जैसे महान संतों के आशीर्वाद में बीता इस बार का पर्यूषण पर्व और उनसे मिले क्षमापना का दान हमारे जीवन को वास्तव में सक्षम बनाने के महापर्व समान है।

चंद्रानन सागर कहते है कि पर्यूषण महापर्व के दौरान हमारा सारा ध्यान जीवन में सुखों के संयम पर होता है। यह संयम जिसके जीवन में समा जाता है और जो धार्मिक आचरण को जीता है, उनका देवी-देवता भी अभिनंदन करते हैं। चंद्रानन सागर बताते हैं कि बरसात का पानी भूमि में समाकर उसे उपजाऊ व ऊर्जावान बनाता है। उसी तरह क्षमादान मनुष्य को पवित्रता एवं परम सुख प्रदान करता है। वे कहते हैं कि पर्यूषण महापर्व के दौरान धार्मिक कार्यों एवं धार्मिक आचरण का ज्यादा महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यह मानव जीवन के कल्याण का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। क्षमापना के महत्व की अवधारणा की व्याख्या करते हुए चंद्रानन सागर कहते है कि पर्यूषण महापर्व में धर्म की प्रतिष्ठा का प्राण अवस्थित है एवं उसी के मूल में क्षमापना। उन्होंने कहा कि पर्यूषण महापर्व आत्मा को शुद्ध करने का पर्व है। क्योंकि, मन जब शुद्ध होता है तभी वह प्रसन्न होता है। प्रसन्न मन ही क्षमादान देने व पाने की क्षमता रखता है।

चेन्नई के श्रावक एवं विख्यात समाजसेवी पारस जैन जावाल बताते हैं कि चातुर्मास के दौरान चेन्नई में कोई पंद्रह साल पहले चंद्रानन सागर महाराज ने क्षमापना पर हिंदी व अंग्रेजी में एक छोटी सी पुस्तक का लेखन किया था। जीवन में क्षमा के महत्व को रेखांकित करनेवाली आचार्य चंद्रानन सागर महाराज की इस पुस्तक में भावनाओं को प्रभावी ढंग से संप्रेषण की शक्ति का संचार था। उस पुस्तक के शब्द शब्द में प्रभाव था, हर वाक्य में तत्व था। इसीलिए उसे पढ़ने के बाद दक्षिण भारत के हजारों युवक युवतियों ने जीवन को धर्म के मार्ग पर अटल रखा, तो आज वे सफलता के शानदार मुकाम पर हैं। आचार्य चंद्रानन सागर ने कहा है कि पर्यूषण सन्मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का पर्व है।

प्रस्तुतिः निरंजन परिहार