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देने की कला ः एक ऐसा अभियान जो आपको देना सिखाता है

10वें अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट ऑफ गिविंग दिवस,17मई, 2023 पर विशेष

प्रकृति और मानव का शाश्वत संबंध देने और लेने की मानसिकता पर आधारित है।सूर्य,चन्द्र,आकाश,खगोल सभी मानव को हवा,पानी,धूप आदि मुफ्त देकर उनको जीवन देते हैं जबकि मानव प्रकृति का संरक्षक और उसके अस्तित्व को बचानेवाला एकमात्र कृतज्ञ तथा विवेकशील प्राणी है। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कीट-कीस-कीम्स के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत का वास्तविक जीवन-दर्शनः आर्ट आफ गिविंग है जो अब विगत कुछ वर्षों से अन्तर्राष्ट्रीय ऑर्ट ऑफ गिविंग के रुप में प्रतिवर्ष 17मई को पूरे विश्व में मनाया जाता है।यह कला हमें शाश्वत करुणा, दया,प्रेम,सहानुभूति,भाईचारे,आत्मीयता तथा सहयोग का यथार्थ पैगाम देती है।

17मई,2013 को प्रोफेसर सामंत ने इसे बेंगलुरु यात्रा के क्रम में आरंभ किया था जो अब एक सामाजिक आन्दोलन बन चुकी है क्योंकि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति लेना चाहता है,देना कोई नहीं चाहता है।वास्तव में देना एक विशिष्ट आध्यात्मिक गुण है जो बाल-संस्कार के रुप में बच्चा अपने माता-पिता,भाई-बहन आदि के साहचर्य से प्राप्त करता है। देने में दाता की सहृदयता, उदारता, आत्मीयता, परोपकार, करुणा,दया,सहानुभूति तथा दानशीलता निहित होती हैं। इसमें दाता यथाशक्ति अन्न,वस्त्र,अर्थ आदि देकर अपने आपमें आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव करता है।जो दाता अपने वास्तविक जीवन में अभावों में पला-बढा होता है वहीं स्वयं इसका अनुभव कर सकता है।

जब प्रोफेसर सामंत मात्र चार साल के नवजात शिशु थे तभी उनके पिताजी का 19मार्च,1969 को एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया। घर में उनकी विधवा मां और उनके 3-3 भाई-बहन थे। कभी-कभी तो भोजन के अभाव में उन्हें बिना खाये ही सो जाना पडता था। उनकी विधवा माताजी के पास सिर्फ एक ही फटी साडी थी जिसे वे प्रतिदिन सूखाकर पहनतीं थीं। प्रोफेसर सामंत की सबसे छोटी बहन इति सामंत उन दिनों मात्र एक साल की थी। बाल्यकाल से ही आत्मविश्वासी तथा सत्यनिष्ठ प्रोफेसर सामंत अपनी विधवा मां स्वर्गीया नीलिमारानी सामंत के सानिध्य में तथा उनके कठोर अनुशासन में अपने आपको तैयार किया।

आज वे दुनिया के एक महान शिक्षाविद् तथा निःस्वार्थी लोकसेवक हैं। प्रोफेसर अच्युत सामंत को उनके बाल्यकाल में जो प्यार-दुलार,आर्थिक सहयोग, सहृदयता,आत्मीयता और अपनत्व समाज से नहीं मिला उसे वे अपने जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग के माध्यम से देना चाहते हैं।अपने उसी वास्तविक जीवनदर्शन आर्ट आफ गिविंग को प्रो.अच्युत सामंत कामयाब बनाने में वगे हैं। 59 वर्षीय प्रोफेसर अच्युत सामंत अपने प्रदेश ओडिशा की वास्तविक पहचान ओडिया भाषा,संस्कृति,आदिवासी संस्कार-संस्कृति,ओडिशी लोक कला,परम्परा,साहित्य,शिक्षा,विज्ञान,फिल्म,बालप्रतिभा,आदिवासी महिला सशक्तिकरण,कौशल विकास तथा खेल आदि को प्रोत्साहन में लगे हुए हैं।

वे अपने द्वारा स्थापित कीट-कीस और कीम्स में सभी प्रकार से संसाधन अत्याधुनिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रदान किये हैं।कीट-कीस आज पूरे विश्व के आकर्षण का केन्द्र बन चुका है ।दोनों डीम्ड विश्वविद्यालय हैं।कीस तो मानव-निर्माण का कारखाना बन चुका है जहां पर सच्चे मानव गढे जाते हैं। कीस में सच्ची मानवता का पाठ पढाया जाता है।प्रो.सामंत की वास्तविक देन कीट-कीस और कीम्स हैं जो आज आधुनिक तीर्थस्थल बन चुके हैं। कीस तो भारत का दूसरा शांति निकेतन है।अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग के जन्मदाता, प्रणेता,प्रवर्तक तथा प्राणप्रतिष्ठाता प्रोफेसर अच्युत सामंत इनके माध्यम से सभी के चेहरे पर हंसी देते हैं,खुशी देते हैं।वे ओडिशा राज्य समेत पूरे भारतीय समाज समाज को आनन्द दे रहे हैं। वे सभी के लिए अनिवार्य रुप से शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं।वे आदिवासी तथा महिला सशक्तिकरण कर रहे हैं।लोगों को वे सामाजिक सचेतनता दे रहे हैं।

यह कहना कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी कि प्रोफेसर सामंत एक एक देवदूत हैं जो सबकुछ देकर प्रसन्न रहते हैं। प्रो. सामंत को अबतक कुल 53 मानद डाक्टरेट की उपाधि मिल चुकी है। अपने आर्ट ऑफ गिविंग के माध्यम से वे विशेषकर आदिवासी तथा गरीबों की आवाज बन चुके हैं। उनका अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग वास्तव में मानवीय संवेदनाओं का आईंना बन चुका है। निःस्वार्थ मानव-सेवा का यथार्थ आदर्श बन चुका है।इसके माध्यम से वे एक-दूसरे को सहयोग कर रहे हैं। दया-करुणा का पैगाम पूरे विश्व को दे रहे हैं। दुनिया की वास्तविक पहचान इंसान तथा इंसानियता को बचा रहे हैं। सहानुभूति और सहयोग को साकार कर रहे हैं। आपसी प्रेम और सद्भाव को बढा रहे हैं। शाश्वत जीवनमूल्यों की हिफाजत कर रहे हैं। लोकाचार को मजबूत कर रहे हैं। उनकी देने की कला के क्रम में यह भी सच है कि जीवन जीना एक बात है लेकिन विशिष्ट जीवन जीना एक खास बात है। आदमी जन्म से नहीं अपितु कर्म से महान होता है। कर्म का पहला कदम परिवार होता है,उसकी अपनी जन्मभूमि होती है जहां वह अपने माता-पिता के सानिध्य और संस्कार में शिक्षित होकर परिपक्व बनता है और अपनी जन्मभूमि की सेवा में अपने आपको लगा देता है। सत्यनिष्ठा,समर्पण और कर्तव्य भावना के सुयोग से अपने व्यक्तित्व को व्यक्ति निखरता है। सच कहा जाय तो वे विलक्षण गुणसंपन्न व्यक्तित्व हैं। अपने आपमें प्रेरणादायक तथा अनुकरणीय संस्था हैं।उनके सरल,सहज और पारदर्शी व्यक्तित्व में एक आध्यात्मनिष्ठता है।निःस्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता के सभी गुण हैं। सामाजिक समरसता है। वे मन,वचन और कर्म से सांस्कृतिक उन्नायक हैं।

उनका विचार अध्यात्म दर्शन है, वे भारतीय युवापीढी के रोलमॉडल हैं। वे सच्चे कर्मयोगी हैं। वे मानवता के सृजनकर्ता हैं।उनका सौम्य और सदा मुस्कराता चेहरा चुंबक की तरह सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। उनका सत्कर्म उन्हें संतमना बना दिया है।वे धीर-वीर और गंभीर हैं। वे सदा समय के पाबंद हैं। वे उदार विचारवाले मधुर और मित्तभाषी हैं। वे अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक दायित्व के प्रति सतत सजग तथा जागरुक हैं। वे एक निष्काम समाजसेवी हैं। इसप्रकार जनसेवा,समाजसेवा और लोकसेवा के क्षेत्र में जो कीर्तिमान अबतक स्थापित कर चुके हैं वह स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। इसप्रकार प्रोफेसर अच्युत सामंत के वास्तविक जीवन-दर्शनः आर्ट आफ गिविंग,सामाजिक आंदोलन में हमसब भी योगदान दें और उनके ऑर्ट आफ गिविंग के इस वर्ष की थिम-मददगार की मदद को सफल बनायें।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और ओड़िशा के सामाजिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक व साहित्यिक परिवेश पर लेखन करते हैं )

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