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मानव की गरिमा को समर्पित है भारत का संविधान – डॉ. चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा है कि भारत का संविधान राष्ट्र की आत्मा और मानवता की प्रतिष्ठा का दस्तावेज़ है। वह राज्य को शक्तियाँ प्रदान करता है। दूसरी तरफ शासन और नागरिकों को संविधान की मर्यादाओं में रहकर अपने कर्तव्योँ का निर्वहन करना होता है।

विश्व हिंदी मंच के राष्ट्रीय वेबिनार में अतिथि गीदारी करते हुए डॉ. जैन ने कहा कि वास्तव में संविधान देश की जनता की आशाओं एवं आकांक्षाओं का पुंज होता है। इसमें सभी वर्गों के कल्याण और राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा की भावना को सबसे ऊपर रखा गया है। संविधान की प्रस्तावना, राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व और मूलभूत अधिकार मिलकर संविधान को सर्व कल्याण का संगम बना देते हैं।

डॉ. जैन ने कहा कि हमारे संविधान में समानता, स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा का पूरा ध्यान रखा गया है। हर नागरिक को उसे जानना, समझना चाहिए और उस पर अमल करने की हर संभव कोशिश करना चाहिए। दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान भारत का है। बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति ने संविधान तैयार करने में जो अहम भूमिका निभायी वह हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में नारी शक्ति की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग पंद्रह महिलाओं ने भी संविधान बनाने में अपनी भूमिका निभायी।

डॉ. जैन ने कहा कि मानव और मानवता भारत के संविधान के केंद्र में है। संविधान में बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों की व्यवस्था भी दी गयी है। उन कर्तव्यों को याद रखना और उनका पालन करना हर नागरिक के जिम्मेदार होने का सबूत है। संविधान का पालन, उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर, हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्श, भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा,देश की रक्षा, समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण, सामाजिक संस्कृति, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास,सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष, माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना जैसे कर्तव्यों को समाहित करने वाला हमारा संविधान वास्तव में मानव, मानवता और प्रकृति के लिए भी वरदान के समान हैं।

अंत में डॉ. जैन स्पष्ट किया कि हमारे संविधान का प्रारूप अंततः विश्व शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में राष्ट्र की भूमिका सुनिश्चित करता है। वसुधैव कुटुंबकम की भावना का साकार रूप है भारतीय संविधान। यही भारत की पहचान और आन-बान-शान भी है।