Thursday, April 18, 2024
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उच्च शिक्षा में गुणवत्ता को संस्कृति और जीवन रेखा की तरह अपनाएँ

राजनांदगांव। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के अंतर्गत शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता पर जिला स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न महाविद्यालयों के विज्ञान और वाणिज्य विभाग के प्राध्यापकों ने कार्यशाला में लगनशील भागीदारी करते हुए दो सत्रों में अभियान की मंशा के अनुरूप संस्थाओं को अधिक सक्षम और उत्तरदायी बनाने हेतु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सभी पहलुओं पर विचार किया।

इस बहुद्देश्यीय और महत्वपूर्ण कार्यशाला की अध्यक्षता आयोजन के संरक्षक एवं प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह ने की। उन्होंने कार्यशाला के उद्देश्य की चर्चा करते हुए कहा कि शासन द्वारा मौजूदा ग्यारहवीं और आने वाली पंचवर्षीय योजनाओं में उच्च शिक्षण संस्थानों के कायाकल्प के व्यापक प्रावधान किये गए हैं। इनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक अहम पहलू है। उन्होंने कहा कि गुणवत्ता पर सहभागी चिंतन और उसके कार्यान्वयन के लिए यह कार्यशाला की जा रही है। डॉ.सिंह ने सब को श्रेष्ठ विचार देने आहूत किया। आमंत्रित वक्ताओं में शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय रायपुर की मनोविज्ञान की प्राध्यापक डॉ.उषाकिरण अग्रवाल, साईंस कालेज दुर्ग के प्रोफ़ेसर डॉ.प्रशांत श्रीवास्तव और शासकीय शिवनाथ विज्ञान महाविद्यालय के प्राध्यापक विकास पंचाक्षरी शामिल थे। कार्यशाला के विशेष सहयोगी प्रोफ़ेसर के.एन.प्रसाद, डॉ.शैलेन्द्र सिंह, प्रो सुरेश पटेल और श्री राजू खूंटे ने अभ्यागत वक्ताओं का स्वागत किया।�

उक्त जानकारी देते हुए महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने बताया कि नए दौर में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रसार पर एकाग्र इस कार्यशाला में रूसा के दिशा निर्देशों की रौशनी में महाविद्यालयों में प्रभावी शिक्षण, अधिगम और सर्वांगीण विकास के वातावरण के सृजन पर गहन मंथन किया गया। अतिथि वक्ता डॉ.उषाकिरण अग्रवाल ने कार्यशाला में अत्यंत रोचक,ज्ञानवर्धन और अमल में लाने योग्य प्रस्तुतीकरण दिया। उन्होंने कहा कि सीखने व सिखाने की प्रक्रिया को गुणवत्ता से जोड़ने के लिए नियोजित और सजग प्रयास जरूरी है। गुणवत्ता को एक संस्कृति और जीवन रेखा के रूप में अपनाएँ। अपनी अपनी संस्था की सामाजिक-शैक्षणिक पहचान कायम करें। संस्था के कार्यों को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाएं। इन बातों से गुणवत्ता के मूल्यों की प्रतिष्ठा अवश्य होगी।�

अतिथि वक्ता डॉ.प्रशांत श्रीवास्तव ने शिक्षण,सीख और मूल्यांकन पर केंद्रित प्रेसेंटेशन में अध्यापन कर्म में गुणवत्ता को एक जरूरी कारक निरूपित किया। उन्होंने सुझावात्मक शैली में बताया कि शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य स्वस्थ संवाद और स्पष्ट समझ का रिश्ता मज़बूत बनाने की ज़रुरत है। इसी तरह मूल्यांकन भी सतत और सुधारात्मक हो तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। प्रो विकास पंचाक्षरी ने सीखना और सिखाना – एक नया पहलू विषय पर अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा कि नए युग में शिक्षा का परिदृश्य बहुत सी नई उम्मीदें लेकर उभरा है। उसकी मांग को पूरा करने के लिए शिक्षा में गुणवत्ता को अनिवार्य रूप से जगह मिलनी चाहिए। कायर्शाला के अंत में उपस्थित प्राध्यापकों के चार समूहों ने उच्च शिक्षा में योजना निर्माण, संगठन, समन्वय और नियंत्रण जैसे पक्षों पर विचार किया। उसके अनुसार ग्रूप लीडर्स अपने-अपने सुझाव दिए। आभार ज्ञापन के साथ कार्यशाला संपन्न हुई।�

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