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ये दिन भी देखे थे जयललिता ने

जयललिता के फिल्मी मेंटर और राजनीतिक गुरु एमजीआर से उनके संबंधों को लेकर अक्सर कयास लगाते जाते रहे। बात यहां तक पहुंच गई थी कि जब एमजीआर का देहांत हुआ तो उनकी पत्नी जानकी और उनके सहयोगियों ने जयललिता को उनके शव के अंतिम दर्शन करने से रोकने की कोशिश की थी। बाद में जब जयललिता को “अपने नेता” के शव के दर्शन करने का मौका मिला तो वो गालीगलौच और मारपीट के बावजूद वहां कुल 21 घंटे तक खड़ी रही थीं। करीब ढाई दशक बाद वक्त ने ऐसी करवट ली की सोमवार (5 दिसंबर) को जयललिता का देहांत के बाद उनका अंतिम संस्कार एमजीआर के स्मारक के बगल में किया जाएगा।
कहते हैं कि एमजीआर ने जयललिता की मां “संध्या” (फिल्मी नाम) से वादा किया था कि वो जयललिता का ख्याल रखेंगे। जयललिता एमजीआर से उम्र में 31 साल छोटी थीं। दोनों ने पहली बार 1965 में एक साथ काम किया। उनकी जोड़ी को दर्शकों को खूब प्यार मिला और दोनों ने दो दर्जन से ज्यादा फिल्मों में साथ काम किया। 1972 में एमजीआर फिल्मों से संन्यास लेकर राजनीति में चले गए। जयललिता ने भी 1980 में अपनी आखिरी फिल्म की और 1982 में आधिकारिक तौर पर एमजीआर की पार्टी एआईएडीएमके में शामिल हो गईं। इस तरह फिल्मों की तरह राजनीति में भी उनके पहले गुरु एमजीआर ही बने।
एमजीआर और जयललिता के रिश्ते पहले से ही चर्चाओं में थे। राजनीति में आते ही 1983 में उन्हें पार्टी के प्रचार विभाग का सचिव बना दिया गया। 1984 में उन्हें एमजीआर ने राज्य सभा सदस्य बना दिया। लेकिन कुछ ही सालों बाद जयललिता और एमजीआर के संबंध बिगड़ने लगे। एमजीआर की पत्नी जानकी को दोनों की कथित नजदीकियों पर सख्त एतराज था। जानकी के इसी रवैये का असर तब दिखा जब एमजीआर का 1987 में देहांत हो गया।

इंडिया टुडे को 1988 में दिए एक इंटरव्यू में जयललिता ने उस घटना को याद करते हुए बताया था, “बहुत थोड़े से लोगों का एक समूह नहीं चाहता था कि मैं अपने प्रिय नेता के शव के करीब जाऊं…24 दिसंबर को तड़के एक दोस्त ने मुझे जगाकर एमजीआर के निधन की झकझोर देने वाली खबर दी। मैं दौड़ कर थोत्तम (एमजीआर का निवास) पहुंची लेकिन मुझे घर के अंदर नहीं जाने दिया गया। मैं अपनी कार से निकलकर घर का दरवाजा पीटती रही। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला लेकिन अंदर जाने पर मैंने देखा कि अंदर सभी कमरों के दरवाजे बंद हैं।”

जयललिता ने उस दिन को याद करते हुए बताया था, “आखिरकार मैं तीसरे तल पर स्थित अपने नेता के कमरे के दरवाजे के बाहर खड़ी हो गई। मुझसे कहा गया कि उनके शव को पिछले दरवाजे से निकालकर राजाजी हाल ले जाया जा रहा है। मैं सीढ़ियों से दौड़ती हुई उतरी और मेन गेट की तरफ भागी। मैंने देखा कि एक ऐंबुलेंस एमजीआर के शव को लेकर जा रही है। मैं उसके पीछे भागी। मैंने अपने कार के ड्राइवर को बुलाया और उसमें बैठकर ऐंबुलेंस के पीछे गई। मैंने किसी और गाड़ी को ऐंबुलेंस और अपनी कार के बीच में नहीं आने दिया।”

जयललिता के अपमान और दुख का यही अंत नहीं हुआ। राजाजी हाल में एमजीआर के शव को सार्वजनिक दर्शन के लिए रखा गया था। जयललिता के शब्दों में, “राजाजी हाल में मैं पहले दिन अपने नेता के पास 13 घंटे और दूसरे दिन आठ घंटे खड़ी रही।” लेकिन जयललिता को वहां भी जानकी समर्थकों के हाथों अपमानित होना पड़ा। जयललिता ने बताया था, “वहां मेरा मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न हुआ। सात या आठ महिलाएं जिनका मैं नाम नहीं लेना चाहूंगी, दूसरे दिन वहां आईं और मेरे बगल में खड़ी हो गईं। उन्होंने मेरे पैर को कुचलना शुरू कर दिया। वो मेरे शरीर में अपने नाखून चुभो रही थीं, चुटकी काट रही थीं। उन लोगों ने मेरे चेहरे को छोड़कर शरीर के हर हिस्से पर चोट की।”

इतना ही नहीं जब एमजीआर का अंतिम संस्कार किया गया तो वहां जयललिता को नहीं जाने दिया गया। जयललिता ने बताया था, “जब उनके शव को परिजनों द्वारा अंतिम संस्कार के लिए राजाजी हाल के अंदर ले जाया गया तो मुझे अंदर नहीं आने दिया गया।” एमजीआर की अंतिम यात्रा में भी जयललिता के संग बदसलूकी हुई थी। जयललिता के अनुसार जानकी के भांजे दीपन और एआईएडीएम के विधायक केपी रामलिंगम ने उनके संग गालीगलौच और मारपीट की थी। वो लोग नहीं चाहते थे कि जयललिता अंतिम यात्रा में शामिल हों। जयललिता ने एमजीआर के अंतिम संस्कार के बाद राज्य के राज्यपाल और शीर्ष पुलिस अधिकारियों से इस बदसलूकी की शिकायत की थी लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी।