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पत्रकारिता और भूकंप को तमाशा बना दिया खबरिया चैनलों ने

भूकंप पीड़ित नेपाल की जैसी सेवा भारत ने की है, वैसी किसी भी देश ने नहीं की। हमारे प्रधानमंत्री ने नेपाल के लिए मदद उतनी ही तेजी से दौड़ाई, जितनी तेजी से वह भारत के किसी भी क्षेत्र के लिए दौड़ाते। नेपाल के प्रधानमंत्री को उनके देश में भूकंप का पता भी हमारे प्रधानमंत्री के ट्वीट द्वारा चला। भारत सरकार के कर्मचारियों, हमारे राजनयिकों और फौज ने अपने नेपाली भाइयों के लिए अपनी जान लगा दी। इस बहादुरी और इस उदारता के प्रति नेपाल के लोगों ने अपनी कृतज्ञता भी भाव-भीने शब्दों में प्रगट की। हमारे सैकड़ों नागरिक भी मदद के लिए स्वयं ही नेपाल पहुंच गए लेकिन हमारे टीवी पत्रकारों ने ऐसे कारनामे कर दिखाए कि उनकी वजह से मददगार लोगों को ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले,‘ यह कहना पड़ा।

नेपाल की सरकार ने 34 देशों के उन सभी कार्यकर्ताओं को नेपाल छोड़ने का आदेश दे दिया है, जो भूकंप-पीड़ितों के बचाव के लिए वहां गए हुए थे। नेपाल छोड़ने का जो आदेश जारी किया गया है, उसकी भाषा इतनी रूखी है कि आप उसी से अंदाज लगा सकते हैं कि नेपाली जनता और सरकार हमारे टीवी पत्रकारों से कितनी नाराज है।

कई टीवी चैनलों के रिपोर्टरों ने भूकंप-पीड़ितों के परम कारुणिक दृश्य दिखाए और भयंकर विनाश लीला को भी करोड़ों दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर दिया। इसी के फलस्वरूप नेपाल की सहायता के लिए अनेक देश दौड़ पड़े लेकिन हमारे कुछ टीवी रिपोर्टरों के अति उत्साह और नादानी ने सब किए-कराए पर पानी फेर दिया। कुछ रिपोर्टरों ने काठमांडू हवाई अड्डे पर दादागिरी की और कुछ ने फौज के हेलिकोप्टरों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए किया।

हमारे फौजी भी प्रचार के लालच में फंस गए। नेपालियों का कहना है कि उन टीवी पत्रकारों ने विनाशलीला को किसी टीवी सीरियल की तरह पेश किया। उन्हें पीड़ितों का कष्ट नहीं दिख रहा था। उस कष्ट में से वे रोचक कहानियां निकाल रहे थे। वे भारतीय सहायता को इस तरह से पेश कर रहे थे, जिससे नेपालियों के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है।

टीवी पत्रकारिता को बेहद जिम्मेदार और मर्यादित होने की जरूरत है। वह जितनी प्रभावशाली है, उसे उतना ही संतुलित होना चाहिए। किसी भी घटना को चटपटा बनाकर पेश करने की प्रतिस्पर्धा ने उनकी प्रतिष्ठा को पैंदे में बिठा दिया है। यदि टीवी पत्रकारिता इसी तरह चलती रही तो उसके दो परिणाम हो सकते हैं। एक तो आम आदमी उस पर भरोसा करना ही बंद कर दे और दूसरा सरकार को उस पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाना पड़ें। ये दोनों स्थितियां ही शुभ नहीं है। नेपाल की घटना टीवी पत्रकारिता के गिरते हुए स्तर का स्वतः प्रमाण है।

(साभार: नया इंडिया)