Thursday, April 25, 2024
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लखनऊ में हिंदी पत्रकारिता:स्वाधीन चेतना और युगबोध’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 30-31 मई को

30 मई,1826 को पंडित जुगुल किशोर शुकुल के संपादकत्व में हिंदी के प्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ। यही कारण है कि इस तिथि को ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ के रूप में जाना जाता है। तत्पश्चात् राजाराम मोहन राय के नेतृत्व में ‘ बंगदूत’, 1846 में शिवप्रसाद सिंह ‘सितारेहिंद’ के संपादकत्व में ‘बनारस अखबार’, शेख अब्दुल्लाह के संपादकत्व में ‘शिमला अखबार’ आदि महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। मालवीय सभागार, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में इस अवसर पर 30-31 मई को ‘ हिंदी पत्रकारिता:स्वाधीन चेतना और युगबोध’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।

प्रारंभिक पत्र-पत्रिकाओं ने हिंदी और भारत भूमि के लिए अपने – अपने योगदान को रेखांकित किया है। इन पत्र-पत्रिकाओं का मूल स्वर सामाजिक चेतना था, किन्तु सन 1857 की क्रांति तक पहुँचते-पहुँचते ये स्वर राष्ट्रीय चेतना में परवर्तित हो जाते हैं जिसे अजीमुल्लाह खां के संपादकत्व में निकलने वाले ‘पयामे-आज़ादी’ जैसे पत्र में देखा जा सकता है। उस समय इस पत्र की प्रतियाँ किसी भी हिन्दू या मुस्लिम के पास पाए जाने पर गोली मार दी जाती थी। वास्तव में हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभिक विकास भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।

भारतेंदुयुगीन पत्रकारिता ने 1857 की क्रांति के बाद सामाजिक और राजनीतिक क्रांति के लिए जनजागरण, सुधार, शिक्षा, नर-नारी समानता आदि मुद्दों को पत्रकारिता का विषय बनाया। इस युग की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में ‘कवि वचन सुधा’, ‘हरिश्चन्द्र मैगज़ीन’, ‘बाला बोधिनी’, ‘हिंदी प्रदीप’, ‘उचित वक्ता’,’ आनंद कादम्बिनी’, ‘ब्राह्मण’, ‘हिन्दोस्तान’ आदि महत्वपूर्ण हैं। भारतेंदु ने ‘बालाबोधिनी’ पत्रिका के सिद्धांत वाक्य के रूप में नर-नारी की समानता की कामना करते हुए कहा है-

‘जो हरि सोई राधिका, जो शिव सोई शक्ति। जो नारी सोई पुरुष, यामैं कछु न विभक्ति।।’

भारतेंदु के पश्चात् बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक चरण में हिंदी पत्रकारिता जातीय अस्मिता का स्वरूप धारण कर लेती है। साहित्यिक पत्रों के क्षेत्र में ‘सरस्वती’ साहित्यिक शक्ति के रूप में सामने आती है। राष्ट्रीय आंदोलनों में हिंदी भाषा, साहित्य और पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन हिंदी समाचार पत्रों,साहित्यकारों एवम पत्रकारों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ‘आज’, ‘कर्मवीर’, ‘सैनिक’, ‘स्वदेश’, ‘जागरण’, ‘स्वराज्य’, ‘प्रताप’ आदि पत्रों ने राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्रकारिता ने सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर अपनी उपादेयता सिद्ध की। प्रिंट पत्रकारिता ने इलेक्ट्रॉनिक एवं नेट पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया।

तात्पर्य यह है कि हिंदी पत्रकारिता ने जहां एक ओर जातीय एवं राष्ट्रीय चेतना को स्वर दिया, वहीं दूसरी ओर सामाजिक प्रतिबद्धताओं एवं साहित्यिक सरोकारों को भी वाणी दी।

हिंदी पत्रकारिता ने अपने 192 वर्षों की विकास-यात्रा में भारत के राष्ट्रीय, सामाजिक , सांस्कृतिक एवं राजनीतिक संदर्भों को किस प्रकार व्यक्त किया और हिंदी भाषा एवं साहित्य के विकास में क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ? इसी को परखने के लिए इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। यह संगोष्ठी उद्घाटन और समापन समेत 6 सत्रों में आयोजित होगी।

30 मई 2018

उद्घाटन सत्र : प्रातः 11.00 बजे से 1.00 बजे तक

प्रथम अकादमिक सत्र : 2.00 से 3.30 बजे तक

‘राष्ट्रीय चेतना और हिंदी पत्रकारिता’

द्वितीय अकादमिक सत्र : 3.45 से 5.30 बजे तक

‘भाषायी चेतना और हिंदी पत्रकारिता’

31 मई 2018

तृतीय अकादमिक सत्र : 10.30 से 12.00 बजे तक

‘सामाजिक -सांस्कृतिक संवेदना और हिंदी पत्रकारिता’

चतुर्थ अकादमिक सत्र : 12.15 से 2.00 बजे तक

‘हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता’

समापन सत्र :

3.30 से 5.00 बजे तक

शोध-पत्र हेतु उपविषय :

1. हिंदी पत्रकारिता में राष्ट्रवाद के सूत्र

2. भारतीयता की अंतर्ध्वनि और हिंदी पत्रकारिता

3. स्वतंत्रता पूर्व हिंदी की पत्रकारिता में राष्ट्रीय चेतना

4. नव माध्यमों में राष्ट्रीय चेतना के स्वरूप

5. स्वतंत्रता पूर्व हिंदी पत्रकारिता का भाषिक प्रदेय

6. स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्रकारिता की भाषिक चुनौतियां

7. सोशल मीडिया की भाषिक चेतना

8. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भाषिक चेतना

9. सांस्कृतिक संवेदना और हिंदी पत्रकारिता

10. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सूत्र और हिंदी पत्रकारिता

11. लोक संस्कृति, लोक मूल्य और हिंदी पत्रकारिता

12. सामाजिक चेतना और हिंदी पत्रकारिता

13. भारतेंदुयुगीन साहित्यिक पत्रकारिता का प्रदेय

14. द्विवेदीयुगीन साहित्यिक पत्रकारिता का भाषिक विमर्श

15. छायावादयुगीन साहित्यिक पत्रकारिता में युगीन चेतना

16. वर्तमान साहित्यिक पत्रकारिता की पठनीयता का संकट

17. संबंधित अन्य शोध विषय

आमंत्रित वक्ता :

1. श्री हृदय नारायण दीक्षित, लखनऊ

2. डॉ. अच्युतानंद मिश्र , दिल्ली

3. डॉ. बलदेव भाई शर्मा, दिल्ली

4. श्री राजनाथ सिंह सूर्य, लखनऊ

5. श्री तरुण विजय, दिल्ली

6. श्री राम बहादुर राय, दिल्ली

7. प्रो. बी. के. कुठियाला, हरियाणा

8. प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित,लखनऊ

9. प्रो. पूरन चंद टंडन, दिल्ली

10. प्रो. नंद किशोर पांडेय, आगरा

11. डॉ. सूर्यकांत बाली

12. डॉ. वर्तिका नंदा, दिल्ली

13. श्री नवीन जोशी,लखनऊ

14. प्रो. जगदीश उपासने,भोपाल

15. डॉ. कैलाश चंद्र पंत, भोपाल

16. प्रो. प्रेमशंकर त्रिपाठी, कोलकाता

17. प्रो. संजय द्विवेदी, भोपाल

18. प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, सागर

19. श्री आशुतोष भटनागर, जम्मू

20. श्री मृत्युंजय कुमार, लखनऊ

21. श्री प्रदीप सिंह, दिल्ली

22. श्री सर्वेश पांडेय, मऊ

23. श्री अजय सिंह,गोरखपुर

24. डॉ. प्रदीप कुमार राव, गोरखपुर

25. डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह, कानपुर

26.डॉ.अरुण भगत,भोपाल

27.श्री जवाहरलाल क़ौल, दिल्ली

पंजीकरण शुल्क :

शोध-छात्र : ₹ 800/

शिक्षक : ₹ 1000/

पंजीकरण विभागीय बैंक खाते में RTGS/NEFT के माध्यम से भी किया जा सकता है, विवरण निम्नवत है-

खातेदार का नाम : हिंदी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

खाता संख्या : 00600100031592

IFSC CODE : UCBA0000060

बैंक का नाम: यूको बैंक, लखनऊ विश्वविद्यालय

शोध -पत्र भेजने हेतु ई-मेल : [email protected]

अपना शोध पत्र दिनांक 20 मई, 2018 तक अवश्य भेज दें। आवासीय व्यवस्था हेतु पूर्व में ही अवगत कराएं।

संपर्क सूत्र :

प्रो.प्रेम सुमन शर्मा, अध्यक्ष, हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग,

लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ

मोबाइल: 9415001784

प्रो.पवन अग्रवाल

मोबाइल: 9450511639, 6394044650

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