संघ की गुरु दक्षिणा का अपना महत्व हैः रतन शारदा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विभिन्न गतिविधियों, सेवा कार्यों और सामाजिक जन जागरण को लेकर लोगों में प्रायः कई तरह की जिज्ञासा रहती है। संघ द्वारा गुरू पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित गुरू पूर्णिमा उत्सव भी अपने आप में अनूठा और प्रेरक होता है। बगैर किसी शोर शराबे के बहुत ही अऩुशासित ढंग से गुरू दक्षिणा का आयोजन देश भर में किया जाता है। इसमें संघ से जुड़े स्वयं सेवक से लेकर आम लोग भी गुरू के प्रति अपना अहोभाव प्रकट करते हुए सहायता देते हैं।

जाने माने चिंतक एवँ टीवी चैनलों पर संघ व भारतीयता से जुड़े मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले श्री रतन शारदा जी ने मुंबई के लोखंडवाला में कैप्टन संजय पाराशर के यहाँ आयोजित क चर्चा में गुरु दक्षिणा के महत्व और इसके व्यापक परिप्रेक्ष्य पर चर्चा की।

उन्होंने बताया कि गुरू दक्षिणा से मिलने वाली राशि संघ के प्रचारकों के प्रवास, आवास और उनके नित्य-प्रतिदिन के खर्च के लिए काम में ली जाती है। संघ के प्रचारक न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ अलग-अलग जगहों पर प्रवास करते हैं। उन्होंने कई उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह संघ के शुरुआती दिनों में संघ के स्वयं सेवकों ने कठिन और चुनौतीपूर्ण राह चुनी और अपना घरबार छोड़ दिया। उन्होंने बताया कि जब भारत का विभाजन हुआ तो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में कई स्वयं सेवकों ने वहाँ अपनी जान जोखिम में डालकर हजारों हिंदू परिवारों को सुरक्षित भारत पहुँचाया।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के शिवराम चन्द्र तमिलनाडु में प्रचारक बनकर गए और जिंदगी भर वहीं रहे। भास्कर राव कलवी केरल में प्रचारक बनकर गए और वहीं के होकर रह गए। माधवराव मुले महाराष्ट्र के रत्नागिरी से पंजाब में प्रचारक बन कर गए तो फिर कभी महाराष्ट्र नहीं आए। इन्दौर के यादवराव जोशी कर्नाटक के प्रचारक बन कर गए। भाउराव देवसर महाराष्ट्र के होकर त्तर प्रदेश में प्रचारक बनकर रहे। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के जो प्रचारक उत्तर पूर्व में गए उन्होंने वहाँ रहकर वहाँ का खान पान तक अपनाया, क्योंकि महाराष्ट्र में जो खान पान है वह उत्तर पूर्व में तब मिलता ही नहीं था। शाकाहारी परिवार के प्रचारकों को संघ के कार्य के लिए मांसाहर तक अपनाना पड़ा, क्योंकि उत्तरपूर्व में तब शाकाहारी खाना मिलता ही नहीं था। उन्होंने बताया कि संघ के प्रचारक पूरी निष्ठा से तो काम करते ही हैं वे एक तपस्वी सा जीवन जीते हैं। अपने से अनजान समाज के लोगों के बीच रहकर उनके लिए सेवा कार्य करते हैं और अपनी पहचान और विश्वसनीयता कायम करते हैं। इन स्वयं सेवकों की सहायता के लिए गुरू दक्षिणा के माध्यम से धन एकत्र किया जाता है। गुरु दक्षिणा में अपना योगदान देने वाले को इस बात पर गर्व होता है कि उसके दिए पैसे का दुरुपयोग नहीं होता है।

उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि स गुरु दक्षिणा कार्यक्रम में सभी लोगों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए ताकि संघ के स्वयं सेवकों के लिए ज्यादा से ज्यादा धनराशि पहुँच सके।