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भारतीय दर्शन में पूर्णिमा का महत्व

मुंबई जैसी व्यावसायिक नगरी में धर्म, सत्संग और अध्यात्म से जुड़े आयोजनों की भी कोई कमी नहीं होती। मुंबई के श्री भागवत परिवार द्रवारा गीता ज्ञान यज्ञ की श्रृंखला एक साल तक किए जाने के बाद ज्ञानामृतम के नाम से अध्यात्मिक श्रृंखला की शुरुआत की गई है। मुंबई के कांदिवली पूर्व के ठाकुर विलेज में स्थित ताड़केश्वर गौशाला के सुरम्य और प्राकृतिक परिवेश में इसकी पहली श्रृंखला की शुरुआत हुई। मुंबई के अध्यात्मिक व सांस्कृतिक जगत में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले पं. श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने इस ज्ञानामृतम की शुरुआत भारतीय दर्शन और जीवन में हर मास आने वाली पूर्णिमा के महत्व, इसके दर्शन और विज्ञान की रोचक ओर वैज्ञानिक व्याख्या से की।

अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए याज्ञिकजी ने कहा, हम जीवन को मंगलमय और सार्थक बनाना चाहते हैं, लेकिन ये हो कैसे। जीवन में सबकुछ ठीठाक कैसे चलता रहे। इसके लिए कोई सद्गुरू होना चाहिए। चन्द्रमा मन का देवता है जो हमें अमृत प्रदान करता है। हमारी भारतीय संस्कृति में तिथियों का अपन विशिष्ट महत्व है। गुरू पूर्णिमा हम पूर्णिमा को मनाते हैं जबकि दिवाली अमावस्या में घोर अंधकार में मनाते हैं। पूर्णिमा पूरे व्यक्तित्व के खिलने की प्रतीक है। उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय परंपराओं को गहराई से समझने की आवश्यकता है। दिवाली पर हम माटी के दीप से अंधकार को दूर करते हैं। ये हमारे पुरुषार्थ का प्रतीक है, जीवन में कितना ही अँधेरा आए हम अपने पुरुषार्थ का दीप जलाकर उसे दूर कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे संस्कारों में जीलन के चार अश्रमों, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की व्यवस्था है। हमारे कैलेंडर में 12 पूर्णिमा है। हमारे नए साल की शुरुआत चैत्र महीने से होती है, चैत्र की पूर्णिमा पर हनुमानजी का जन्म होता है। ये हमारे लिए आव्हान है कि हम अपने संकल्प के साथ जिएंगे तो जीवन में कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। अहंकार का हनन ही हनुमान होना है। इसके बाद रामनवमी को प्रभु श्रीराम का जन्म होता है। राम के नाम से जो काम होगा वही धर्म होगा। हम अपनी शरीर रूपी लंका में हनुमान की तरह अवलोकन करें तो हमारा अहंकार नष्ट हो सकता है।

इसके बाद आने वाली वैशाख पूर्णिमा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस दिन भगवान बुध्द प्रकट होते हैं। ये इस बात का प्रतीक है कि हम अपने जीवन के उद्देश्य को समझें कि हम इस दुनिया में क्यों आए हैं। ये पूर्णिमा आत्म बोध की प्रतीक है। धर्म का मतलब मात्र अनुष्ठान और पूजा नहीं बल्कि निष्काम भाव से कर्म करना भी है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा की चर्चा करते हुए याज्ञिकजी ने कहा, इस पूर्णिमा पर वट सावित्री की पूजा होती है। वट वृक्ष लंबी आयु का प्रतीक है। स दिन सुहागनें वट को धागा बाँधकर अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना करती है। वट वृक्ष पवित्रता और विश्वास का प्रतीक है। ये हमें बोध कराता है कि हम अपन विश्वास की पवित्रता से जीवन में सबकुछ हासिल कर सकते हैं। सावित्री ने अपने विश्वास क पवित्रता से ही सत्यवान को यमराज से छुड़ा लिया था।

इसके बाद आती है आषाढ़ पूर्णिमा। इस पूर्णिमा को हम गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जीवन में गुरू का क्या महत्व है, और ध्यान, साधना प्रार्थना हमें जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं। गुरू ब्रह्मा का वाहन हंस इस बात का प्रतीक है कि हम हंस की तरह नीर-क्षीर-विवेचन का मार्ग अपनाएँ। जिस तरह हंस दूध और पानी को अलग कर देता है उसी तरह गुरू भी हमारी बुराईयों को दूर कर देता है। विष्णु का वाहन गरूड़ इस बात का प्रतीक है कि हमें उर्ध्वगामी होना चाहिए। इसी तरह भगवान शंकर और उनका वाहन नंदी हमें सिखाते हैं कि हम स्थिर कैसे रहें। हम प्रतिकूलताओं का सामना कैसे करें। गुरू कोई भी हो सकता है, हमारे पिता, भाई या जो हमें सही मार्गदर्शन दे वो सभी हमारे गुरू है।

इसके बाद श्रावण पूर्णिमा आती है। श्रावण पूर्णिमा मे हम रक्षाबंधन का त्यौहार मनाते हैं। ये रक्षा बंधन मतार् भाई –बहन का त्यौहार नहीं है बल्कि इस अवसर पर हम प्रकृति के संरक्षण और संस्कृति की रक्षा का भी संकल्प लेते हैं। ब्राह्मण लोग समाज के लोगों को राखी बाँधकर उन्हें ज्ञान की रक्षा का संकल्प दिलाते हैं। श्रावण मास भगवान शंकर को समर्पित है। शंकर भगवान की रूद्राष्टाध्यायी एक गहन विज्ञान है जिसमें जीवन और प्रकृति के कई रहस्य छुपे हैं। श्रावण का मतलब है श्रवण करना, इस मास में हम गुरू वाणी का श्रवण करते हैं। हमारी परंपरा है कि हम एक महीने तक गुरू के चरणों में बैठकर उनकी वाणी सुनें।

याज्ञिक जी ने कहा कि ये पंच पूर्णिमा हमारे जीवन को पूर्ण बनाती है।

इस अवसर पर पं. श्री श्याम जी शात्री ने सत्संग की महिमा बताते हुए कहा कि सत्संग में जो भी कुछथ सुनते हैं उसे गणम अर्थात स्वभाव में लाना, सत्संग हमारे स्वभाव में आ जाए इसके लिए स्मरण यानि बोध और इसके बाद चिंतयन यानी हमने जो भी कुछ सुना,समझा और बोध किया है वो हमारे जीवन में उतरे तभी जीवन ज्ञानामृत हो पाएगा।

कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री सुशील शर्मा और गग्गर जी ने भजन प्रस्तुत किए। श्री भागवत परिवार के अध्यक्ष श्री एसपी गोयल ने ज्ञानामृत के आयोजन की भूमिका पर प्रकाश डाला।