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रेगिस्तान में हरियाली का द्वीप

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर /पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर/ खजूर और प्राकृतिक तेल भंडारों से मालामाल हुए यूनाइटेड अरब अमीरात के सात शेख़ राज्यों में से एक दुबई के अल मकतोम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मैं 35 सदस्यों के दल सहित जब 28 अगस्त 2016 को उतरी तो सुबह के 9:00 बजे थे ।भारत में इस वक्त 10:30 बजा होगा। बेहद विशाल और भव्य हवाई अड्डे पर हमें मुंबई से आ रहे साहित्यकारों का इंतजार करना था। मीलों फैले हवाई अड्डे पर लगातार चलते चलते ,इमीग्रेशन की औपचारिकताएं पूरी करते आख़िर मुंबई से फ्लाइट आ ही गई।गेट पर मेरे नाम की तख्ती लिए हमारा टूर ऑपरेटर कैप्टन खड़ा था। जो दुबई में हमारे प्रवास के दौरान हमारे साथ ही रहेगा।

विश्व मैत्री मंच के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में शिरकत करने आए भारत के प्रदेशों और तुर्की के अंकारा के साहित्यकारों का दल ले कर बस हमारे गंतव्य होटल पेनोरमा की राह पर थी।तय हुआ कि चैक इन के बाद हम् सीधे लंच लेने रेस्तरां जाएंगे और फिर होटल लौटकर सम्मेलन की तैयारी इंटरकॉम पर सूचना मिली कि सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ लेखक और निकट पत्रिका के संपादक कृष्ण बिहारी आबूधाबी से आ गए है और रिसेप्शन में हमारा इंतज़ार कर रहे है। मैं जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे आई। मैंने अपना परिचय दिया तो बडी आत्मीयता से बोले–” पढ़ता रहता हूं आपको बड़ा अपीलिंग है आपका लेखन। ”

पलभर में ही औपचारिकता खत्म हो गई। हम सम्मेलन के लिए कांफ्रेंस रूम में आ गए। हॉल सज चुका था। संचालक विनीता राहुरीकर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए मुख्य अतिथि कृष्णबिहारी, विशेष अतिथि डॉ राकेश पाठक और मुझे मंच पर आमंत्रित किया। सबसे पहले प्रतिभागियों का परिचय और स्वागत स्वरूप स्मृति चिन्ह और प्रमाणपत्र प्रदान किए गए ।इसके बाद लगभग 12 पुस्तकों का लोकार्पण हुआ और फिर सीता का बनवास और ध्रुवस्वामिनी नाटक की प्रस्तुति हुई।बेहद गंभीर विषय” विश्व हिंदी साहित्य में बदलते मूल्य” पर परिचर्चा के दौरान कृष्ण बिहारी जी ने बताया कि दुबई में होने वाला यह तीसरा सम्मेलन है जिसका श्रेय विश्व मैत्री मंच को जाता है। इसके पहले के 2 अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में मॉस्को, लंदन और भारत के साहित्यकारों ने शिरकत की थी। दुबई के साहित्य के इतिहास में तीसरे सम्मेलन के रूप में दर्ज़ हो रहे इस सम्मेलन के 3 सत्रों में कृष्ण बिहारी जी 8:00 बजे तक हमारे साथ रहे। अंतिम सत्र काव्य गोष्टी का था जो उन्हें अधूरा छोड़ना पड़ा। उन्हें आबूधाबी लौटना था और सफ़र भी ढाई घंटे का था ।रात 10:00 बजे तक चले सम्मेलन में कोई थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। दुबई नगरिया भी चकित हो रही होगी साहित्यकारों के इस जज़्बे से।
डिनर के बाद थकान होने लगी ।थकान का नशा,अन्न का नशा ,साहित्य का नशा….एक साथ तीन नशों ने जो अपने आगोश में लिया तो फिर सुबह ही नींद खुली।

दुबई की खुशनुमा सुबह ….29 अगस्त का दिन और सिटी टूर के लिए इकट्ठा हुए हम सब । मेरी नजर टेबल पर गई जहां मिडिल ईस्ट का सबसे बड़ा अखबार “खलीज टाइम्स “जबरदस्त खुशखबरी लिए मेरा इंतजार कर रहा था। 28 अगस्त 2016 यानी गुजरा हुआ कल जब हमने दुबई की जमीन पर कदम रखा था, वह बड़ा ऐतिहासिक दिन सिद्ध हुआ ।दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम ने इस दिन को अमीराती महिला दिवस घोषित किया था यानी कि महिलाओं के लिए कार्यरत विश्व मैत्री मंच के कदम इस जमी के लिए मुबारक सिद्ध हुए।

बारहों महीने सूरज की तेज किरणों के मेहरबान रहने ( तापमान 47 डिग्री तक) की वजह से बस स्टॉप ,एक दूसरे से कनेक्टेड सभी मॉल, बाज़ार यानी जहां जहाँ इंसान वहां वहाँ वातानुकूल। धूप से बचाव के लिए हम सावधान थे। छतरी स्कार्फ सहित।हमारे गाइड विजय चौहान भारतीय तो थे ही हिंदी पर भी अच्छा अधिकार था ।मैं विजय के शब्दों को पकड़ने और दृश्यों को देखने की जद्दोजहद से गुजर रही हूं ।बता रहे हैं विजय कि 2 दिसंबर 1971 को फारस की खाड़ी के साथ शेख़ राज्यो आबूधाबी, शारजाह ,दुबई ,उम्म अल कुबैन, अजमान, फुजैराह और रस अल खैमा को मिलाकर स्वतंत्र संयुक्त अरब अमीरात की स्थापना हुई। उसके पहले यहां अंगरेज़ थे। 1968 में अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र अरब अमीरात की स्थापना में शेख़ जायद बिन सुल्तान अल नाहयान ने गठबंधन की भूमिका निभाई ।संयुक्त अरब अमीरात दुनिया के नक्शे पर मध्य पूर्व एशिया में स्थित है। 1873 से 1947 तक यह ब्रिटिश शासन के अधीन रहा। उसके बाद यह लन्दन के विदेश विभाग से संचालित होने लगा । तेल भंडारों में अग्रणी बल्कि दुनिया का छठवां सबसे बड़ा देश ,भारत का तीसरा सबसे बड़ा सहयोगी देश भी है। बाकी दो है चीन और अमेरिका ।इस्लाम यहां का राष्ट्रीय धर्म है और अरबी राष्ट्रीय भाषा। यहां 30 फ़ीसदी आबादी भारतीयों की है।

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धूप से चिलचिलाती सड़क पर हमारी बस निर्धारित गति से दौड़ रही थी। वाहनों की रफ्तार सड़क पर लगे कैमरे की निगरानी में रहती है। जरा सी चूक हुई कि पेनल्टी। ये पूरा इलाका बर दुबई कहलाता है। बाईँ तरफ मीना बाजार है ।जहां सिर्फ दो गलियां हैं। लेकिन हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी हर चीज गहने, मसाले, कपड़े, जूलरी से भरी छोटी छोटी दुकानें पर्यटकों की आवाजाही से गुलजार रहती हैं ।अरब की खाड़ी के छोटे से समुद्री हिस्से की जमीन को काटकर चौदह दशमलव चार के एरिया में क्रीक है। सामने नदी जैसी धाराएं पर नदी नहीं।जल के इस नदीनुमा बहाव को ही क्रीक कहते हैं। इसके दोनों छोर पर दुबई शहर है।
गगनचुंबी इमारतों वाला दुबई….. दुनिया को अपनी चकाचौंध से विस्मित करता दुबई …..दाहिनी तरफ 15 मंजिली खुशनुमा नीले और बॉटल ग्रीन रंगों वाली इमारत के बीच से फिर वही इठलाता समुद्री खारा पानी। दुबई के पुराने इलाके बस्ताकिया में प्रवेश करते ही जैसे सौ साल पहले के दुबई में पहुंच गए हों। ओह ,कैसा एहसास…. रोमांचक भी। एक जैसी लंबाई ,चौड़ाई और ऊंचाई वाले, एक जैसे रंगों वाले चंदा मामा के पन्नों से निकलकर ये खूबसूरत घर इधर कैसे? पर घर तो थे जिनमें मोतियों के व्यापारी रहते थे।

” मोती के व्यापारी? दुबई में?” ” जी मैम 1900 से 1931 तक मोती का व्यापार यहां के वाणिज्य की मानव रीढ की हड्डी रहा। 1931 में जापानियों ने कृत्रिम मोती की खोज करके असली मोतियों की मांग को समाप्त कर दिया। मोतियों के व्यापारी अवसाद से घिर गए थे। बड़ी मेहनत से वे गोताखोर की पोशाक पहने बिना समंदर की तलहटी से मोती खोज जाते थे ।मै चकित थी —“बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के कैसे जाते होंगे अंदर!”

“उस जमाने की उनकी सोच और संधान देखिये।कछुए की खाल से नोज़ क्लिप्स बनाकर पाँच छः किलो का पत्थर लेकर खजूर की पत्तियों से बनी रस्सी कमर में बांधकर वे समुद्र की तलहटी में जाते थे ईरानियों की नौकाएं उन का निरीक्षण करती थी। इन नौकाओं के मल्लाह लोकल अमीराती के पूर्वज ही तो थे। दो या तीन् मिनट में जब गोताखोर रस्सी को झटका देते थे वे उन्हें बाहर खींच लेते थे ।अमीरात की कमाल की सोच ।वह हर दिन की दिहाड़ी पर काम नहीं करते थे, परसेंटेज पर काम करते थे। नौका पर पच्चीस तीस लोगों का ग्रुप ….कैप्टन और मोती विशेषज्ञ सहित होता था ।जो मोती को जांच-परखकर उसका मूल्य आँकता था।मोती खोजने का काम अक्टूबर से मार्च तक होता था। छः महीने ये नौकाओं पर ही रहते थे और उनकी अनुपस्थिति में घर की महिलाएं ट्रेडर्स का काम करती थी ।सूक यानी बाजार में वे पारंपरिक अबाया यानी बुर्का पहनकर वस्तुओं की खरीद फरोख्त करती थी। तेज धूप में दो मिनट चलकर प्रवेश टिकट द्वारा अलफरीदी संग्रहालय पहुंच गए ।खजूर की पत्तियों, तनों और टहनियों से बने म्यूजियम ने पहुंचा दिया फिर एक सदी पहले की गलियों, कूचों में। कहीं नौकाएं, कहीं समुद्र में गोताखोरी ,कहीँ ऊंट तो कहीं ऊँट की रस्सी थामे (पुरुषों की पारम्परिक पोशाक ) कंडोरा पहने ऊँट वाला। सब कुछ झांकियों के जरिए प्रदर्शित ।उस जमाने के अमीरात के घर ,दर-ओ-दीवार, बर्तन, बिस्तर ,कपड़े, रसोई घर , बैठक …..उस सदी में सांस लेना और तजुर्बों को हासिल करना मेरे लिए वरदान था।

बस का सफ़र फिर शुरू…… हम गुजर रहे थे सौ साल पुराने टेक्सटाइल के होलसेल मार्केट से। जिस की दुकानों के शटर गिरे थे ।पता चला दुकाने धूप, गर्मी की वजह से दोपहर 1:00 बजे से 4:00 बजे तक बंद रहती हैं ।सुबह 10:00 बजे खुलती है और दोपहर के विराम के बाद फिर 12:00 बजे रात तक खुली रहती है। मॉल भी 12:00 बजे रात तक खुले रहते हैं ।शॉपिंग करना अमीरात का मुख्य शौक है।फिर साल के हर मौसम में पर्यटकों की आवाजाही लगी रहती है ।सामने 200 साल पुराना वॉच टॉवर है।यानी बस ओल्ड दुबई से गुजर रही है जिसके दक्षिणी भाग में बर दुबई है और हमारा होटल पेनोरमा है ।बरदुबई के समुद्री किनारे पर बड़े बड़े जलपोत खड़े हैं जो रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन ,टीवी आदि का निर्यात ईरान में करते हैं । “ईरान तो संतोष जी तैरकर भी जाया जा सकता है ।मात्र 110 किलोमीटर दूर ही तो है। इस पूरे खाड़ी इलाके की सुरक्षा अमेरिकन गार्ड के हवाले है ईरान के रिपब्लिक गार्ड्स भी हैं यहां यानि काफी निगाहों से रखवाली…..” हमने क्रीक को पार करके दुबई के उत्तरी भाग में पहुंचने के लिए नौका ली। नौका में 20 लोग ही बैठ सकते थे और हमारा ग्रुप 35 लोगों का था। लिहाजा दो खेप में हमने क्रीक को पार किया। नौका को मल्लाह अबरा कह रहा था।

उत्तरी हिस्सा …..स्थापत्य बदला हुआ नजर आया। 1959 तक न तो यहां सड़कें थी न पानी की सप्लाई और न बिजली। लग्जरी शब्द तो इनके शब्दकोश से कोसों दूर था। ओह….इतने कम समय में दुबई दुनिया के विकसित देशों में शुमार हो गया। सामने फ्लोटिंग ब्रिज था। जो 1961 में बना। इस पुल की विशेषता इस में लगे जोड़ हैं। जिनके खुलते ही पुल भी खुल जाता है और समुद्र पर से जलपोतों को गुजरने के लिए रास्ता मिल जाता है। ऐसा पुल तो मैंने हॉलैंड में देखा था। यह जो 14 . 4 किलोमीटर लंबी क्रीक है यह समुद्र से जोड़ दी जाएगी और फिर एक नए द्वीप का निर्माण होगा। वह भी केवल 3 साल की अवधि में ।चकित हूं अमीरात की क्रियाशीलता से। तभी तो दूर-दूर तक फैले अरेबियन रेगिस्तान पर इतना विकास हुआ कि दुबई इंटरनेट सिटी ,दुबई मीडिया सिटी, और दुबई मेरीटाइम सिटी ने विश्व में अपनी पहचान बनाई। हरियाली इस कदर…. सड़क के दोनों ओर रंग बिरंगे फूल और पत्तों और लचीली घास के लॉन से सजे उद्यान। खजूर के कहीं कतारबद्ध कहीं झुरमुट की शक्ल में पेड़….जबकि कोई नदी है ही नहीं यहां ।लेकिन उद्यानों की संख्या पूरे दुबई में अनगिनत। कुछ तो बेहद खूबसूरत हैं जैसे दुबई क्रीक पार्क ,चिल्ड्रन सिटी पार्क,क्रीक साइड पार्क ,जबील पार्क ,सफा पार्क ,वाइल्ड वाडी वाटर पार्क, अल मुमज़र बीच पार्क,मुशरिफ पार्क, वंडरलैंड पार्क । और इस हरियाली का रहस्य है समंदर का खारा पानी जिसे रीसाइक्लिंग करके सिंचाई के योग्य बनाया जाता है। दुबई खाड़ी को जाल से बांधकर गहरा कर बड़े-बड़े जहाजों के जाने लायक बनाया गया ।कई पहाड़ों के संकरे रास्ते और नन्हे नन्हे पानी के छिद्र हैं। कभी छलक जाते हैं कभी रेत में धँस जाते हैं।जिनका आधार पश्चिमी अल्हज़र की पहाड़ियां है।

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धूप ने इतना सताया/ रेत में कूदकर बूँद ने/खुदकुशी कर ली ।

बस जिस मोमबत्तीनुमा इमारत के सामने से गुजर रही है वह 1980 में बनी पहली गगनचुम्बी इमारत है। बिल्कुल चौकोर शेप में हल्के पीले रंग की। 2 खास बातें जो मुझे दिखी एक तो जगह-जगह लगे शेख़ मोहम्मद बिन राशिद के बड़े बड़े होर्डिंग और सभी सड़कों के नाम शेख़ से ही शुरु होते हैं और मुझे याद आया रोम। रोमन साम्राज्य जिस की प्रत्येक गली ,सड़क शाही महल की ओर जाती है। हालांकि यहां पांच मुख्य मार्ग है शेख़ जायद रोड ,अमीरात रोड, दुबई हट्टा राजमार्ग ,दुबई अल हबीब रोड, ओउद मेथा रोड ।ये पांचों मार्ग दुबई से जाते हैं और अन्य शहरों और अमीरात से जुड़ते हैं।

थोड़ी देर को मैंने पलके मूंदी…. खो जाना चाहती थी दुबई में। एक ऐसे अमीरात में जिसने रेत पर ख्वाबो जैसे महल खड़े किए थे । स्थापत्य की जुनूनी हद से गुजर कर ….कि झटके से बस रुकी क्या हुआ ?

“20 मिनट में सब को बस मे वापस आ जाना है ।”विजय की आवाज़ थी। सामने था दुबई का सबसे बड़ा पब्लिक पार्क जबील पार्क जो दो भागों में बना है ।इसके विशाल परिसर में 12 तो प्रवेश द्वार है। उस के बाएं तरफ प्लेनेटोरियम है। अंदर ही अंदर ट्रेन चलती है। पूरे पार्क में वाई फाई है ।साइकिल का, जॉगिंग का ट्रैक है। उद्यान है कि स्मार्ट सिटी!! 20 मिनट की अवध…. क्या तो देखते। बस आंखों में खूबसूरती कैद करते रहे। “आप दोनों हाथ फैलाकर टाइटेनिक की मुद्रा में हवा में उडिये बहुत बढ़िया फोटो आएगी आपकी।”रेवारानी ने कैमरा मेरी ओर किया।
उड़ ही तो रही हूं पंख पसारे। सब कुछ को अपने पंखों में समा लेने को आतुर।

जबील नाम की एक खूबसूरत मस्जिद भी दिखी। शेख़ का पुराना महल, उसी के बगल में नया महल भी बन गया है। दीवाने खास भी है जहां शेख़ तमाम विदेशी मंत्रियों, प्रतिनिधियों और वी.आई.पी.लोगों से मुलाकात करते हैं। शेख़ राशिद बिन सईद अल मखतूम का यूनाइटेड अरब अमीरात के विकास में बहुत बड़ा योगदान है ।वे यहाँ के प्रधानमंत्री भी हैं, राष्ट्रपति भी। चाहे ओल्ड दुबई हो या दुबई का दक्षिणी उत्तरी छोर समन्दर साथ साथ चलता रहा। आमची मुंबई वाला अरब सागर ।जिस सागर तट पर हमें आधे घंटे की मोहलत मिली थी…. उस तट के क्या कहने। एक साथ सागर के नीले, हरे, सिलेटी रंग का आभास देते जल का अछोर फैला विस्तार बाईँ तरफ पांच सितारा होटल और बुर्ज अल अरब की आकाश चूमती इमारत और इधर धूप का सेवन करते यूरोप ,अमेरिका से आए नंगे अधनंगे शरीर ।विजय ने पहले ही बता दिया था कि इनके पास खड़े होकर फोटो खींचना मना है। हमें तो हमारी फोटो खींचने के लाले पड़े थे। हवा के झोंकों में न कपड़े सम्हल रहे थे न बाल…. हैट उडकर 5 रेत पर जा गिरा। बहरहाल उसी दशा में हम वापस बस में ।ग्रुप के जो लोग लहरों में भी गए थे उनके रेत भरे पाँवो को बस ड्राइवर अब्दुल बिसलरी की बोतल खोल खोल कर धुलवा रहा था ताकि बस में बिछा कारपेट गंदा न हो ।हमने खिड़की मेँ से झांकते हुए अपने कैमरे दाई ओर घुमा लिए। वाह क्या नजारा था। दूर से बुर्ज खलीफा आसमान को छूता नजर आ रहा था। हम उसी के लिए तो चिर प्रतीक्षित थे। मगर हमारी पहुंच से वह अभी भी दूर था। 168 मंजिल वाला…. जहां पर्यटकों को 125 मंजिल तक जाने की छूट थी।

पहले एक बड़े मॉल से होकर गुजरना था। फिर प्रवेश टिकट। पहली मंजिल एस्केलेटर से और बाकी 124 लिफ्ट से कुल 7 सेकेंड्स में ….इसे कहते हैं पलक झपकते ही ….गजब की तकनीक ,गजब की रफ्तार, गजब का स्थापत्य2717 क़े एरिया में 6 जनवरी 2010 में निर्मित यह इमारत इस्लामी स्थापत्य कला और आकृति प्रणाली की है। इस के तीन भाग रेगिस्तानी फूल ह्यमानोकालिस की बनावट के हैं ।चौथा भाग मॉल से लगा हुआ ।अति-आधुनिक इस मॉल में तैराकी ,शॉपिंग, सिनेमाघर, विभिन्न कंपनियों के कार्यालय हैं ।बुर्ज खलीफा की 76 वीं मंजिल पर मस्जिद बनी है। पूरी इमारत 452 मीटर ऊंची है जिसे 96 किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है। 125 वीं मंजिल पर हमारे पहुंचते ही डिजिटल कैमरों ने हमारी तस्वीरें उतारी। चारों ओर आउटडोर अवलोकन डेक यानी बालकनी से हम घूम घूम कर दुबई नगरिया देखते रहे। नीचे दिखती झील पर बना फव्वारा ऐसा दिख रहा था जैसे कालीन पर किसी ने अक्स उकेरे है। ठीक छै बजे फव्वारे ने 275 मीटर ऊंची उछाल मारी। अरेबियन और वर्ल्ड म्यूजिक की धुन पर 6600 लाइट्स बारी-बारी से जलने बुझने लगी। 25 रंगों को बिखेरती रंगीनियों ने मन मोह लिया। 6:30 बजे नीचे उतरकर हमने दोबारा फव्वारे का मजा लिया ।तब ऊपर थे तो सब कुछ बौना लग रहा था। अब हम नीचे… तो खुद ही बौने । वाह,ईश्वर किसे नमन करूं? तुझे या तेरी बनाई इस दुनिया को??

आसमाँ की सैर से ज़मीं पर उतरते ही मानो पंख लग गये। हमें बस दौड़ा रही है। सामने पुल… ,पुल के नीचे बहता पानी जिसे विजय झरना कह रहे है। उसकी बाईँ तरफ एक नहर मन्थर गति से मेट्रो ट्रैक के नीचे बह रही है। जे डब्ल्यू मैरियट होटल की गगनचुम्बी जुड़वाँ इमारत दुनिया की सबसे ऊंची होटल इमारत है। अब समुद्र पीछे है और हम उसे पकड़ने की कोशिश में….ऑल अब्टूर सिटी से गुजर रहे हैं।

यूं तो दुबई की आबादी 22 लाख है लेकिन रात की तुलना में आमची मुंबई के समान दिन की आबादी 30 लाख हो जाती है। इस के नजदीक बसे शारजा ,अजमान ,उम्म अल कुवैन् ,रस उल खैमा से व्यापार ,नौकरी आदि के लिए दिन में लोग आते हैं और रात को अपने बसेरे में लौट जाते हैं। हमने और हमारे विश्व मैत्री मंच के सभी सदस्यों ने महिलाओं की स्थिति जाननी चाही। विजय ने बताया ” महिलाओं की शिक्षा यहां शत प्रतिशत है ।कामकाजी महिलाएं हर घर में। पब्लिक सेक्टर में महिलाएं 55 प्रतिशत हैं। पूरे अरब में 2015 में पार्लियामेंट में पहली महिला स्पीकर चुनी गई। बावजूद पारंपरिक और जिसे हम दासता का प्रतीक मानते हैं यानी बुर्का पहने हर महिला नजर आती है पर उन्हें आजादी, सम्मान, शिक्षा देने में कोई कोताही नहीं है ।चाहे फाइटर्स हो, चाहे अन्य सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों के उच्च पद हों वे हर जगह मौजूद हैं।
” लेकिन बुर्का पहनने से उन्हें मुक्ति क्यों नहीं मिलती?”
“आप लोग बस एक ही पहलू से देखते हो इस बात को।होगा कभी बुर्का दास्ताँ का प्रतीक।पर अब इसे महिलाएं 365 दिन तेज़ धूप से मेहरबान सूरज से अपनी रक्षा के लिए पहनती हैं।”

“तो क्या यहां का मौसम बदलता ही नहीं?”
“बदलता है मैम, जनवरी से मार्च तक बारिश होती है और बारिश के ही दौरान नवम्बर से मार्च तक तापमान 12 से 14 डिग्री तक हो जाता है। ईरान की बर्फबारी से गुजरकर हवाएं 110 किलोमीटर का सफ़र तय कर यहां कोल्ड वेव्ज़ बनकर आती हैं तब यहां ठंड का मौसम सेलिब्रेट किया जाता है।”

इसी तरह के मौसम के तेवरों के बीच पूरे रेगिस्तान को सहारा देता खजूर सीना ताने अपने फल, तने ,पत्ते और पूरे के पूरे वज़ूद सहित यहां की अर्थव्यवस्था का बड़ा किरदार माना जाता है ।तेल भंडारों और पर्यटन की भी अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका है ।खजूर के पेड़ों के साथ जंगली घास , रेगिस्तानी फूल सब्खा, बबूल, खेजड़ी ,नीम और सफेदा आम भी।आम के कुछ पेड़ कोठियों के अहाते में लगे दिखे जिन पर काली सफेद चिड़िया बैठी थी। इस सहरा में अजीबोगरीब जानवर पाए जाते हैं। हौबरा, धारीदार लकड़बग्घा, तुगदर, स्याहगोश, लोमड़ी, बाज़, अरबी ओरिक्स….यूरोप ,अफ्रीका और एशिया से बसंत और पतझड़ के मौसम में प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां अमीरात से होकर गुजरती है ।ठहरती नहीं पर आसमान उनके गुलाबी सफेद परों से ढंक जाता है।

हमारे हमसफ़र समंदर में खूबसूरत कोरल्स के अलावा हैमोर सहित 300 से अधिक मछलियों की प्रजातियां पाई जाती है। समंदर बेहद खुश रंगों वाला…. सामने पांच सितारा होटल जुमेरा है जो द्वीप पर स्थित है। जिसकी स्थापना 1999 में शेख़ मोहम्मद ने की।दाहिने बाजू मरीना जुमेरा है। मरीना शहर को कहते हैं मैम….. यह पूरी तरह समन्दर पर बसाया गया है ।”जैसे इटली में वेनिस …..लेकिन वेनिस जैसा नज़ारा तो बिल्कुल नहीं था। पर था वेनिस की तर्ज पर ही बना ।

“यहां तो स्कीईंग भी होती है मैम। यह ब्राउन कलर की बिल्डिंग जुमेरा की ट्रेनिंग अकादमी है ।वही स्कीइंग करते हैं। स्कीईंग के लिए जुमेरा के शॉपिंग मॉल से 1000 फीट लंबी बर्फीली ढलान है। तापमान हमेशा दो से 3 डिग्री रहता है ।इस कृत्रिम बर्फ से बने स्कीईग ढलान पर पर्यटकों का मेला लगा रहता है। इंसान को अपनी दुनिया गढ़ते क्या देर लगती है। बस हौसला और जुनून होना चाहिए ।
हम जिस बाजार से गुजर रहे हैं वह शेख़ जायद रोड पर है। बाजार में तमाम बड़ी-बड़ी दुकाने ।खजूर की चॉकलेट यहां की विशेषता है ।साबुत खजूर के अंदर गुठली की जगह बादाम भरी हुई। ऊपर से चॉकलेट का लेयर। सारे सूखे मेवे केशर आदि आयात किए जाते हैं ।

यहां एक नॉलेज विलेज है। बताया विजय ने ….” पूरी की पूरी दुबई अकादमी सिटी।कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी हैं वहाँ।

एक और खासियत। यहां के हर एक मॉल, हर एक होटल की विशेषता है कि वो हाईवे को टच करता है ।हम मरीना मॉल के सामने से गुजरते हुए डिनर के लिए कबाब कॉर्नर रेस्तरां आये।नाम भले कबाब कॉर्नर था पर खाना पूरी तरह शाकाहारी और भारतीय।
रात में जगमगाती दुबई दुल्हन सी सजी नजर आ रही थी ।लेकिन अब तो रात सोने का आमंत्रण दे रही थी। रात के हमसफ़र थक के घर को चले।
सुहावनी सुबह लेकिन सूरज का वो नर्म नारंगीपन जिसे देखने की आदी थी आंखें…. उठते ही जवान हुए सूरज की

प्रखर रश्मियों में चकाचौंध हुई जा रही थी ।ब्रेकफास्ट के बाद रिसेप्शन में आए तो सभी मोबाइल स्क्रीन में तल्लीन। राकेश जी ,चक्रपाणि जी और शिंदे जी समुद्र स्नान का मजा ले कर लौट रहे थे। हमारी शिकायत “हमें क्यों नहीं ले गए।”

बहरहाल हमारे पास जो 3 घंटे का समय था वह काव्य गोष्ठी के लिए तय था। कमरों के सामने लॉबी में सभी फर्श पर चादर बिछा कर बैठ गए। राकेश जी ने साथियों की मदद से बैनर लगाया और काव्य गोष्ठी शुरू। क्या जुनून था …थोड़ी देर बाद होटल मैनेजर ने हमें क्लब रूम दिया। सभी की कविताएं सुनने के बाद और बिल्कुल सही समय पर गोष्ठी संपन्न होने के बाद हम एडमिरल प्लाज़ा लंच के लिए आये।हमारा आज का गंतव्य था एटलांटिस द पाम लॉस्ट चैम्बर्स। तमाम समुद्री मछलियों का भरा पूरा संसार देखने को आंखें उत्सुक थी।

पहले तो द पॉम मॉल ….हर दर्शनीय स्थल में जाने के लिए पहले मॉल पार करो फिर प्रवेश टिकट ।बहरहाल एटलांटिस लॉस्ट चेंबर में प्रवेश करते ही हमारा स्वागत करती विशाल जार में तैरती छोटी छोटी सफेद मछलियां जैसे चंपा के फूल ।इतनी सुंदर की अनझिप देखा किए। गुफा द्वार से अंदर प्रवेश करते ही समुद्री खजाना हमारे सामने था। खूबसूरत पत्थरों से बनी समुद्री गुफा ।दाएं-बाएं कांच की दीवारों के उस पार समुद्री जल में तैरती मछलियां ही मछलियां। रंग बिरंगी, छोटी बड़ी ,केकड़े,शंख,सीप,प्रवाल,कोरल…सब ज़िंदा…. जितने भी समुद्री जीव हैं सारे के सारे यहां।एक तो बिल्कुल पतंग जैसी मछली कांच की दीवार से सटकर अपने जबडे खोलकर कुछ कहती सी लगी। मैंने वहां उंगली टिकाई फिर भी वह हटी नहीं।गुफा में पथरीले फर्श पर गद्दे और गाव तकिये, कुशन रखे थे ।आराम से बैठकर समुद्र दर्शन कीजिए। इस समुद्री सैर में तो घंटों गुजारे जा सकते हैं ।पथरीली ठंडक बदन को आराम के समंदर में पहुंचा रही थी। उस तिलस्म में, स्वप्नलोक में अचानक इंदु तिवारी का आना …कंधे पर उनका हाथ …”चलिए राकेश जी सब के साथ बाहर खड़े आपका इंतजार कर रहे हैं। मोनो रेल की सैर के लिए”ओह् समय कहां पंख लगा कर उड़ गया ।वॉशरूम में बुर्के वाली महिला मिली। उनके बैग में एक और बुर्का था जिसे निकालकर उन्होंने मुझे पहनाया फिर तो प्रमिला शर्मा,दिव्या ,रेवा रानी ने मेरे कई फोटो खींच डाले।

लंबे चौड़े मॉल को पार कर हमने मोनो रेल से पूरे द पाम का चक्कर लगाया । 2009 में बनी यह पहली मोनोरेल थी … बिना ड्राइवर के निर्धारित गति और सीमा तय करती… मोनोरेल मुझे मेट्रो जैसी लगी ।यूनाइटेड अरब अमीरात में सिर्फ दुबई में ही मेट्रो है। 9 सितंबर 2009 रात के 9:00 बज कर 9:00 मिनट और 9 सेकंड पर मेट्रो चली और छह बार 9 के इस ऐतिहासिक दिन मेट्रो को ट्रेक की ओर चलने की अनुमति शेख़ मोहम्मद बिन राशिद अल मख़तूम ने दी इसका उद्घाटन करके। शुरू में इसके स्टेशन 10 ही थे। अब तो यह दुबई की जीवन रेखा बन चुकी है। गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका नाम दर्ज है।

ताज्जुब तो यह है कि सातों अमीरात में केवल दुबई में ही ट्रेन है बाकी जगह किसी भी प्रकार की कोई ट्रेन नहीं चलती। द पाम से हम डाऊ क्रूज़ के लिए समंदर के किनारे आये। रात के अंधेरे में समंदर की विशाल सतह पर जगमगाता क्रूज़ ….डिनर में न जाने कौन कौन से व्यंजन जो मेरी पसंद के न थे। बस फ्रूट सलाद से ही काम चलाया। अन्य विदेशी पर्यटकों के सामने राकेश जी, सुषमा जी और विद्या जी ने खूबसूरत गीत पेश किए। अपने घाघरे में बल्बों की झालर लगाकर तमूरा मृत्य हुआ और पेशेवर गायक ने कई गजलें और गीत सुनाए। ऊपर डेक पर समुद्री हवा और आसमान में जगमगाते सितारे थे। क्रूज़ की लाइट दूर दुबई क्रीक पर पड़ रही थी ।काले जल पर न जाने किन समुद्री पक्षियों ने पर फड़फड़ाए कि हवा छू कर बिल्कुल मेरे कान के पास से गुजरी और इसी समय ….ठीक इसी समय एक विदेशी महिला के साथ नाचते हुए अपूर्व शिंदे जी के पैर डगमगाए ….थोड़ी देर तो मेरी समझ में ही नहीं आया कि वह एक हादसा था या शिंदे जी जानबूझकर गिरे थे।

रात की रंगीनियों में दुबई का आलम ही कुछ और था। मैंने किसी भी आदमी को शराब में धुत्त नहीं देखा ।शराब बिना लाइसेंस के नहीं मिलती लेकिन पर्यटक अपने होटल से अपने कमरे में शराब मंगवा कर पी सकते हैं। शराब बार ,होटल और रेस्तरां में वहीं बैठ कर पीने के लिए उपलब्ध है। सार्वजनिक स्थलों पर पीना निषेध है। यहां शीशा और कहवा बुटीक शराब बहुत लोकप्रिय है।

होटल लौट कर तय हुआ कि हम फ्रेश होकर राकेश जी के कमरे में इकट्ठे होंगे ।वही होटल से डिनर मंगा लेंगे। विनीता जी, चक्रपाणी जी, राकेश जी और शिंदे जी के साथ गपशप करते हुए रात के 12:00 कब बज गए पता ही नहीं चला।

सुबह मैं दुबई के मॉल देखने गई। साथ में रीता, राकेश जी ,चक्रपाणी जी और आदित्य। रेगिस्तान में फैशन ब्रांड्स के मक्का दुबई में 6 बड़े मॉल हैं जहां परफ्यूम से लेकर जूते जूलरी हर चीज उपलब्ध है। यहां शॉपिंग फेस्टिवल होता है। उस समय दुबई के हर बाजार तथा मॉल का अपना अलग रंग होता है। दुबई के 150 मॉल में से छै मॉल दुनिया के सबसे बड़े मॉल के संग गिने जाते हैं ।दुबई मॉल ,करामा शॉपिंग सेंटर ,वाफी मॉल , बर दुबई सुक, ग्लोबल विलेज और अल फहिदी स्ट्रीट मॉल।टैक्सी से हम सबसे पहले ड्रैगन मॉल गए ।गेट के सामने ड्रैगन का बड़ा सा शिल्प और सड़क के उस पार सुनहला ग्लोब ।जूलरी,परफ्यूम…. सभी चीजों की शॉप ।परफ्यूम की शॉप में अरेबियन पोशाक पहने विक्रेता के साथ यादगार तस्वीरें खींची। पीली दीवार पर काली चित्रकारी ने मन मोह लिया। बस्तर के भित्तिचित्र याद आ गए ।मॉल में ही बाऐं मुड़ कर पत्थरों फव्वारों और हरे भरे पेड़-पौधों से भरा एरिया। बोर्ड लगा था पुलिस ऑफिस। लेकिन अंदर पुलिस का अता पता भी न था। इस खूबसूरत उद्यान जैसी जगह से लगी कांच के पशु पक्षी आदि की सुंदर दुकानें थी। गोल्ड सुक (यानी बाजार) हमने टैक्सी में बैठे हुए ही देखा ।स्वर्ण आभूषणों की लाइन से दुकाने। शोकेस में गले से घुटनों तक के हार, नेकलेस, करधनी, जैसे राजे महाराजे पहनते हैं। स्वर्ण आभूषण ,स्वर्ण बिस्किट के इतने बड़े खजाने को लेकर दुबई ने दुनिया की आंखें चकाचौंध कर दी है ।सोने के आभूषण खरीदकर पहनकर ही दुबई से अपने देश जाया जा सकता है। नहीं तो भारी कस्टम चुकाना पड़ता है।

वन टू टेन मॉल में हर चीज एक से लेकर दस तक के मूल्य की मिलती है। इसी तरह ए टू जेड भी है ।मगर यह अपना बाजार जैसे अपेक्षाकृत छोटे मॉल है। सभी ने खूब शॉपिंग की।मुझे तो शॉपिंग का जरा भी शौक नहीं। जो थोड़ा बहुत था वो हेमंत के साथ ही बिदा हो गया।
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं
बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं

टैक्सी ड्राईवर को पहले ही बता दिया था कि 2:30 बजे होटल पहुंचा देना ताकि हम लंच लेकर 3:30 बजे डेजर्ट सफारी के लिए जा सके “जी बिल्कुल ‘ठीक साढे दो बजे पहुंचा दूंगा ।’

तो हम मीना बाजार स्थगित कर साढे दो बजे होटल पहुंच गए। जल्दी जल्दी लंच लिया और रिसेप्शन में आकर 5 सवारियों के हिसाब से कार में बैठे। कैप्टन ने पहले ही बता दिया था कि दिल के मरीज ,हाई ब्लड प्रेशर ,चक्कर, उल्टी आदि के मरीज सफारी न करें। उन्हें सड़क मार्ग से कैम्प तक पहुंचा दिया जाएगा। क्योंकि सफारी रेत के ऊंचे नीचे टीलों पर ही होती है। इन टीलों से कैम्प तक ले जाने वाली गाड़ियों को रेंज रोबर कहते हैं जो सफेद रंग कीहोती है। हमारी रेंज रोबर कार का ड्राइवर महमूद था ।बेहद खुश मिजाज। कहने लगा “आपके यहां फिल्मी कॉमेडीयन का नाम महमूद था न। मैं भी वैसा ही हूं।”

रास्ते भर वह महमूद के जमाने के फिल्मी गाने के कैसेट लगाकर हमे सुनाता रहा। हिंदी फिल्में यहां काफी लोकप्रिय है। हर साल दुबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन होता है। जिसमें देश विदेश की फिल्में दिखाई जाती हैं। ‘महमूद जी आप छुट्टी पर नहीं जाते ? कभी भारत आइए ।”

“हमारे लिए कहां छुट्टी …साल भर सैलानियों को घुमाते रहते हैं हम। चाहे मीठी ईद हो, बकरीद हो ,आजादी का दिन हो ,दुबई शॉपिंग फेस्टिवल या गर्मी की छुट्टियां हों पर हम हमेशा काम में लगे रहते हैं । इस डेजर्ट का भी द दुबई डेजर्ट रॉक समारोह होता है जिसमें हैवी मेटल और रॉक कलाकार शामिल होते हैं।” हमारी रेंज रोबर सड़क से दाहिने मुड़ कर रेगिस्तान में उतर चुकी थी। मीलो फैला अरब रेगिस्तान ….रेत के ढूह…ऊँचे नीचे….न पगडंडी न कोई मार्ग ।महमूद ने सबको एक एक प्लास्टिक की थैली पकड़ा दी कि उल्टी आए तो इसमें कर लेना ।पर मैं तो आकाश पाताल खंगालने वाली सैलानी….. पूरी तरह रोमांच का मजा लेती …. सीट बेल्ट बांधने के बावजूद कभी दाएं लुढ़कती ,कभी बाएं ।लगता जैसे गाड़ी टीलों पर से फिसल कर सीधी रेत में धँसा देगी। महमूद कितना कुशल और अभ्यस्त था इस तरह की ड्राइविंग के लिए और लो…. टीले खतम, सामने कैंप…. अभी हम थ्रिल का, रोमांच का ,मजा ले ही रहे थे कि….
खजूर की लकड़ी से बना कॉटेज नुमा सुंदर स्थापत्य जैसे अली बाबा चालीस चोर के जमाने में पहुंच गए हो। कैंप के बाहर सवारी के लिए सजा-धजा ऊंट और पांच पहियों वाला स्कूटर भी जिसे ए टी व्ही यानी ऑल टरेन व्हीकल कहते हैं। ऊंट वाला तो नहीं था पर हमारे बैठते ही अभ्यस्त ऊँट उठ कर खड़ा हो गया और एक चक्कर लगाकर निर्धारित जगह पर आकर बैठ गया। वाह क्या ट्रेनिंग थी ऊँट की ।कैंप में प्रवेश करते ही खजूर और पारंपरिक कड़वी चाय से हमारा स्वागत हुआ। दूध शक्कर वाली चाय भी थी ।चाय की बड़ी सी केतली के नीचे तंदूर था ।पानी हमेशा गर्म रखने के लिए ।टेबल पर मिल्क पाउडर का डिब्बा और चाय कॉफी के सैशे। टेबल के पीछे खूंटी पर बुर्के टंगे थे ।जिन्हें पहनकर औरतें फोटो खिंचवा रही थी। मर्दों के लिए कंडोरा।

कैम्प के बीचों बीच स्टेज था और तीन तरफ गद्दे,कुशन और टेबिल रखे थे ।आज के दिन तीन ग्रुप मेहमान थे। हर ग्रुप के बैठने की अलग अलग व्यवस्था थी।रेंज रोबर के मालिको का नाम जिस टेबल पर लिखा था वहीं हमें बैठना था।हमे महमूद का नाम खोजना था।दाहिनी तरफ मेहंदी के कोन से एक औरत सबके हाथों में मेहंदी लगा रही थी। सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाओ तो वहां भी बैठने की व्यवस्था थी।पर वहां के एक्स्ट्रा चार्जेज थे।

शाम ढल रही थी हम कोल्ड ड्रिंक के साथ पकौड़े लेकर शो देखने के लिए गद्दों पर आ बैठे। पहले तमूरा नृत्य हुआ और फिर लगातार 45 मिनट तक पीली पोशाक पहने एक खूबसूरत लड़की ने अरेबियन नृत्य किया। गजब …..एक-एक अंग फडकता हुआ। बेहद आकर्षक और लाजवाब नृत्य। फिर राजस्थानी करतब भी हुए ।मुंह में पेट्रोल भरकर आग उगलने वाले पर वह तो मैं कई बार देख चुकी थी ।डिनर बुफे था ।ढेरों व्यंजन पर एक भी मेरी पसंद का नहीं। सामने हुक्का भी रखा था। हुक्का गुड़गुड़ाओ और फोटो खिंचवाओ। रेगिस्तान में बेहद रोमांचक दोपहर और शाम गुजार कर हम रात 9:30 बजे होटल लौटे।हालांकि लौटने का मार्ग पक्की सड़क थी। और बहुत कम समय में हम गंतव्य पहुंच गए थे। रास्ते में महमूद ने अपनी बीवी नसीमा बानो से फोन पर बात करवाई। जैसे बरसो की परिचित हो नसीमा …………

“आप तो हमारे साथ ही आकर रहिये। बहुत बड़ा घर है हमारा ।आठ कमरे और हम चार।आप रहेंगी तो बड़ी रौनक रहेगी।”
या अल्लाह ….,ये कैसी आत्मीयता ? अभिभूत थी मैं ।सच है ,सरहदें सिर्फ देश बांटती हैं दिल नहीं।
दुबई की हवाओं की तासीर कुछ ऐसी कि थकान होती ही नहीं ।डिनर के बाद हम रात 11:00 बजे मीना बाजार गए।राकेश जी बहुत तेज़ चलते हैं।
मैं और रीता सबसे पीछे रह गए।मेरे पीछे पीछे खान साहब अचानक नमूदार…..
” अब क्या करें संतोष जी कॉलेज के जमाने से लड़कियों का पीछा करने की आदत है।”
हमारी खिलखिलाहट से सामने दुकान के शेड पर बैठे रात के पंछियों ने पर फड़फड़ाए ।मीना बाजार की संकरी गलियों में क्या नहीं था। चॉकलेट खरीद कर हम ज्वेलरी की दुकान में गए। दुकान बंद होने वाली थी और दुकानदार आभूषण बेचना तो दूर दिखा तक नहीं रहा था। लेकिन बहुत आग्रह के बाद उसने कुछ आभूषण दिखाए। मैं कुर्सी पर बैठी उन्हें खरीदारी करते देखती रही ।लौटते में टैक्सी तो मिली पर जूस की एक भी दुकान नहीं मिली जबकि चलते समय राकेश जी का वादा था सो वादा धरा का धरा रह गया।

आज दुबई में हमारा आखरी दिन था। होटल से ब्रेकफास्ट के बाद हमने सुबह 7:00 बजे आबू धाबी की ओर कूच किया ।हमारी गाइड थी वीणा जो गुजराती थी और गुजराती उच्चारण वाली हिंदी बोल रही थी।

यहाँ दो बंदरगाह हैं। पोर्ट रशीद और पोर्ट जेबेलअली जो दुनिया में सातवां सबसे व्यस्त बंदरगाह है ।साथ ही मध्य पूर्व का सबसे बड़ा मानव निर्मित बंदरगाह है ।इब्नबतूता ने खाड़ी देशों की खोज की थी और उसी के नाम से खाड़ी है जहां ये दोनों बंदरगाह है ।विदेशों से जो मालवाहक जहाज आते थे उनके लिए बंदरगाह छोटा पड़ता था इसलिए जहाजों की आवाजाही के लिए दूसरा बंदरगाह भी बनाना पड़ा। जेबेलअली बन्दरगाह के दाहिनी तरफ ड्यूटी फ्री सामान मिलता है ।सभी कुछ तो अन्य् देशों से आयात किया जाता है ।

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आबूधाबी की ओर जाते हुए कितने दृश्य बदलते रहे ।कभी वॉटर पार्क आ जाता, कभी शेखों के सातों अमीरात शुरू हो जाते। छै मंजिला इब्नबतूता मॉल भव्य नजर आ रहा था। यह जो लाइन से इमारते हैं सब समंदर के पानी से बनी हैं ।सचमुच यह बात तो हैरत में डालती है कि बिना मीठे पानी के यह पूरा इलाका हरा-भरा और गगनचुंबी इमारतों से लैस है। दुबई के सातों अमीरात के जज़्बे को सलाम…. हरी हरी झाड़ियों से भरे तट वाला समंदर हमारे संग संग चल रहा था। बेहद खूबसूरत रंग बिरंगेपन को जल पर धारे अरब सागर के क्या कहने। सामने गोल गुंबद नुमा इमारत दुबई वर्ल्ड ट्रेड सेंटर है ।1996 में बनी इस लंबी चौड़ी खूबसूरत सड़क की खासियत है हर मॉल, हर वी आई पी जगह की सड़कें इसी सड़क पर आकर खुलती है। आदित्य को फरारी वर्ल्ड देखना था फरारी वर्ल्ड यस आयलैंड में है ।बीस मिनट का समय था हमारे पास जो खूबसूरत कारों के खजाने को देखने के लिए कम था। कत्थई लाल रंग के प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते ही कारों का हुजूम…. रेसिंग कार से लेकर बड़ी-बड़ी कारें ।कांच …कांच पर जाली की बनावट वाली छत। दीवार ऐसी जैसे मोटे ड्राइंग पेपर को मोड़ मोड़ कर लगाया हो। अद्भुत स्थापत्य फरारी वर्ल्ड के बाद वाटर पार्क, शरीयत रेस कोर्स और वहीं से शुरु हो जाते हैं सेलेब्रिटीज के एक जैसे स्थापत्य वाले बंगले। यह इलाका पहले समुद्री इलाका था ।समुद्र को पीछे धकेल कर उसकी जमीन पर कब्जा कर लिया गया। इन आलीशान बंगलों के साथ हाई स्टैंडर्ड के होटल भी बनाए गए।

बस गुजर रही है स्टेडियम के सामने से। यहां क्रिकेट के साथ फुटबॉल भी लोकप्रिय है ।रेस कोर्स में घोड़ों की रेस और रेगिस्तान में ऊँटों की रेस अमीरों का शगल है। पहले ऊंट पर छोटे छोटे बच्चों को बैठाकर रेस कराते थे ।बच्चे मारे डर के चीखते-चिल्लाते और कभी-कभी मर भी जाते थे ।लेकिन अमीर मजा लेते थे। अब इस तरह की रेस पर सरकार ने बैन लगा दी है ।अब बच्चों की जगह रोबोट बैठते हैं जिन्हें रिमोट के द्वारा कंट्रोल किया जाता है। ऊंट पर बैठा रोबोट चीखता-चिल्लाता और छड़ी भी हिलाता है ताकि ऊंट सरपट भागे। ऊँट का पसंदीदा भोजन गॉफ के पत्ते हैं ।ऊँट सवार मीलों रेगिस्तान का सफ़र तय करते थक जाते हैं तो इसी पेड़ के नीचे ऊंट को बांध कर आराम करते हैं ।ऊंट वाले यानी अमीरात कंडोरा पहनते हैं । उनकी इस पारंपरिक वेशभूषा में सिर् पर पहने स्कार्फ के सामने सुनहले और काले फुंदने होते हैं। आज से सौ साल पहले रेगिस्तान में तेज धूप और पानी की कमी से नहाने से वंचित अमीरात इन फुंदनो को इत्र से तर रखते थे ताकि पसीने और ऊँट की बदबू से बचा जा सके ।

आबूधाबी में प्रवेश करते ही सड़क का स्लेटी रंग बदल कर गेरू रंग का हो गया ।वाहनों के जाने के ट्रैक भी पीले से सफेद हो गए। पलक झपकते ही गझिन हरियाली ने चौंका दिया। माहौल में इतना परिवर्तन !!!

आबूधाबी संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी है और सातों अमीरात में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी अमीरात। हर तरह से अधिक समृद्ध ,खूबसूरत ….कमाई के लिए आकर्षण का केंद्र। दुबई से दुगनी तनख्वाह यहां दी जाती है। साथ ही वर्कर्स को सारी सुविधाएं देना चाहे सरकारी विभाग हो या गैरसरकारी, कंपलसरी है ।अस्पतालों में पांच सितारा होटल भी यहां मौजूद हैं। ईमानदारी का आलम यह है कि थोक बाजार से भले ही व्यापारी महंगे दामों में माल खरीदे लेकिन बाजार में निर्धारित दामों पर ही माल बेचेगे और उनके नुकसान की भरपाई सरकार करती है। यानी आम जनता तक सस्ते में चीजें पहुंचती हैं। पहाड़ी इलाकों में ककड़ी, नीबू ,स्ट्राबेरी की फसलें होती हैं। गेहूं अमेरिका से आयात होता है।

मीनाज़ायद बंदरगाह पर खजूर मार्केट है। कालीन ,फल ,सब्जी आदि की दुकानें कतारबद्ध।खजूर की दुकान में बीना हमें ले गई। जहां 500 दिरहम से लेकर 5000 दिरहम तक के खजूरों की किस्में थीं। सबका अलग अलग स्वाद ।हरे ताजे खजूर भी शक्कर जैसे मीठे। हम सब ने खजूर और खजूर से बनी चॉकलेट खरीदी।

सफ़र फिर शुरू ।सामने एकदम नजरों की सीध में पाइनएपल बिल्डिंग है। जैसे जैसे सूरज आसमान में अपनी दिशा बदलता है खिड़कियां अपने आप बंद हो जाती है। बिल्डिंग पाइनएपल के छिलके जैसी थी और रंग भी पीला, भूरा। ऐसा लग रहा था जैसे गली दर गली तिलिस्म खुल रहा है। सारा परिवेश बेहद आकर्षक, लुभाने वाला। अलमदीना पुलिस स्टेशन भी किसी कोठी से कम नहीं लग रहा था।लीनिंग बिल्डिंग संसार के अजूबों में से एक ….लीनिंग टावर ऑफ पीसा की तरह झुकी हुई । मानो आसमान की बुलंदियों को देखते देखते वही थम गई हो। कैपिटल गेट… वही परेड ग्राउंड …2 दिसंबर को स्वतंत्रता दिवस पर यहां परेड होती है।

भूख जोरों की लगी थी ।वीना हमें जिस होटल में लंच के लिए लाई वहां बिल्कुल घर जैसा खाना था ।बस रोटियां थाली बराबर बड़ी-बड़ी ।पता चला यह पाकिस्तानी रोटियां है ।इतनी बड़ी रूमाली रोटियां मुंबई में भी भिंडी बाजार में मिलती हैं ।

अब हम बहुप्रतीक्षित शेख़ जायद मस्जिद की राह पर थे जो पूरी दुनिया में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी मस्जिद है। बाकी दो मस्जिद हैं पाकिस्तान की फैज़ल और एशिया की मक्का मदीना।तीनो मस्जिदों में मक्का मदीना जिस 12 दिशा में है।उसी दिशा की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ी जाती है जिसे किबला कहते हैं ।मस्जिद में प्रवेश के नियम कड़े लगे। शायद महिलाओं ही के लिए इतनी पाबंदी कि पूरी बांह वाली सिर से पैर तक ढंकी पोशाक ही होनी चाहिए। हाथ में हाथ डालकर फोटो नहीं खिंचा सकते। हम अल्लाह की पाक राह पे हैँ।…..गोया हाथ में हाथ डालना नापाक हुआ। बहरहाल ड्राइवर के पास बुर्के थे जिन्हें हमने बीस दिरहम में हायर किया ।प्रवेश टिकट खरीदने के बाद फिर से बस में बैठना पड़ा। मस्जिद के दीदार होते ही लगा जैसे ताजमहल का दीदार कर रहे हो ।सफेद संगमरमर से बनी इस आलीशान मस्जिद की नींव शेख़ ज़ायद बिन सुल्तान अल नाहयान के हाथों रखी गई और उनके सपने को साकार किया उनके बेटे शेख़ खालिद ने। भारत के राजस्थान प्रांत के मकराना से संगमरमर मंगवाया गया। ऑस्ट्रिया के स्वारोस्की क्रिस्टल जो असली हीरे की चमक को भी मात देते हैं इस में जड़े हैं ।रंग बिरंगे कांच के बेशकीमती टुकड़ों और क्रिस्टल से बने टनों वजनी झूमर इस में लगे हैं जिनकी संख्या छह है।मस्जिद में 64 से भी ज्यादा सफेद गुंबज है।हर गुंबज के आगे संगमरमर का प्रांगण ।एक हज़ार खंभे मस्जिद की आलीशान छत को सहारा दिए हैं।

कड़ी धूप अखरी नहीं। मैं बुर्का पहने थी और गेट से मस्जिद तक का रास्ता काफी लंबा था ।रास्ते के दोनों ओर हरी घास के पैचेज़ जो फूलों के गमलो से घिरे थे और लोहे की मोटी मोटी जंजीरें जिन्हें अलग-अलग टुकड़ों में बांट रही थी ।

मस्जिद गलियारे में प्रवेश करते ही फूल पर ठिठकी तितली सा मन ठिठक गया। स्थापत्य का अथाह सौंदर्य सामने था ।मुख्य हॉल में प्रवेश करने के पहले बायीं ओर दीवार पर फूल के आकार की घड़ी थी। जिस पर दिनभर की पढ़ी जाने वाली नमाज का टाइम लिखा था ।पांच नमाज का और छठवां सारी दुनिया के लिए दुआ मांगकर सबाब बटोरने का जिसे इशराद कहते हैं।
अंदर भी वही हॉल को घेरे जंजीर …..छोटे-छोटे खंभों से जुड़ी। हॉल के फर्श पर साठ हज़ार फीट लंबा दुनिया का सबसे बड़ा कालीन बिछा था । खासियत ये कि कालीन में कहीं जोड़ नहीं था। इस मस्जिद में चालीस हज़ार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं ।हॉल की दीवारों पर खजूर के सुनहले झाड़ बने थे और अल्लाह के अरबी ,फारसी में 99 नाम लिखे थे।

मस्जिद के बगल में शेख़ जायद का मकबरा है जहां औरत मर्द एक साथ नमाज पढ़ते हैं। मुख्य हॉल से सीढ़ियां उतर कर औरतों के वजू करने का कमरा किसी शाहजादी के हमाम जैसा लग रहा था। कमरे में पिश्ता रंग के पत्थरों से बना गोल घेरा था जहां गोलाकार में वॉशबेसिन बने थे। जिन पर सुनहले नल लगे थे। दीवारों पर भी हरे रंग से खजूर के पेड़ों की आकृतियां थीं। पूरी मस्जिद देखने में आधा घंटा लगा। ड्राइवर के पास बुरके कम होने की वजह से जब हम लौटे तब प्रमिला शर्मा ,यामिनी और सुषमा झा मस्जिद देखने गई ।यानी दुगना समय लग गया ।तभी आसमान में मस्जिद के करीब से हेलीकॉप्टर गुजरा । ड्राइवर ने बताया कि हर 15 मिनट के बाद मस्जिद की निगरानी के लिए हेलीकॉप्टर चक्कर लगाता है।

अब दुबई वापसी…. आबूधाबी की खूबसूरती को आंखों में भर कर मैंने पलकें मूंद ली। और उसे दिमाग में कैद करने लगी ।जब पलकें खोलीं तो बेहतरीन नजारा सामने था। प्राइवेट अलबतीन जहां से शहर का नजारा हेलीकॉप्टर से देखा जा सकता है ।शेख़ का बंगला भी यही है। जब वे बंगले में आते हैं तब इस इलाके के गेट भी मानो अपने 13 आप खुल जाते हैं। बंगला हरियाली के समंदर में खोया हुआ ….सफेदा आम, खजूर, नीम और गॉफ के पेड़ बहुतायत से लगे हैं।

दाहिने तरफ बाग़ अल कसर होटल है जो कॉपर से बना है। वहीं खूबसूरत बगीचो वाला नया महल है ।पूरा महल सफेद ….रॉयल लुक देता है… चारों तरफ खूबसूरत स्ट्रीट लैंप।मुझे लगा मै लंदन के बकिंघम पैलेस के सामने हूं। अमीरों का पैलेस होटल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है ।जहां एक रात ठहरने के पांच हज़ार दिरहम लगते हैं।

हम हेरिटेज विलेज से गुजर रहे हैं जो इस वक्त बंद था ।रोज़ ही दोपहर एक बजे से चार बजे तक तेज धूप की वजह से बंद रहता है। मरीना मॉल, घूमने वाला रेस्तरां और खूबसूरत समुद्र तट…. न केवल सैलानी बल्कि यहां के नागरिक भी छुट्टी के दिन यहां पिकनिक मनाने आते हैं। पिकनिक के दिन तट पर उनके निजी कालीन बिछ जाते हैं और खाने पीने की मजेदार चीजों के साथ वे मौज मजा करते हैं।

थोड़ी ऊंचाई से गिरती पानी की धार दिखी जिसे बीना झरना कह रही थी ।फिर आबू धाबी चेंबर और फिर तमाम इमारतें कांच की, पचास मंजिली ।कई रंगों की कांच खूबसूरत एल्यूमीनियम के फ्रेम में जड़ी ।
अब मैं आगे की सीट पर थी तो सामने सड़क पर भागती टैक्सियों को देखा।ग्रे कलर की टैक्सियों के बीच गुलाबी रंग की टैक्सी महिला टैक्सी है जिसकी चालक महिला होती है ।और सवारियां भी महिला। ऐसी ही महिला टैक्सी दुबई में चलती है। टूरिस्ट बस ऊपर से खुली होती है ताकि पर्यटक भरपूर नजारा कर सकें ।अधिकतर सूरज डूबने के बाद नाइट लाइफ देखने के लिए इन बसों की डिमांड रहती है । सड़क के डिवाइडर पर सुनहरे रंग वाली विशाल इत्रदानी, कहवादानी ,धूपदानी और भोजन की थाली पर ढकने वाले थाली पोश के शिल्प यहां की संस्कृति का अद्भुत नमूना थे। आबूधाबी की सीमा पार करते ही और दुबई में प्रवेश करते ही ढलती धूप मुरझाई सी लग रही थी ।शायद हमारे सफ़र की समाप्ति पे…..

अल मकतौम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे जाने के लिए हम उसी नाम की सड़क की दिशा में थे ।रास्ते में बनियास रोड, शेख़ राशिद रोड ,अलधियाफा रोड…..सड़क एक और हर किलोमीटर पर बदलता नाम। पुल भी ढेर सारे …..अल मकतौम ब्रिज ,अल गरहोद ब्रिज, बिजनेस बे क्रॉसिंग और फ्लोटिंग ब्रिज। एक सुरंग भी हर बार मिली ।अल शिदाघा सुरंग ।छोटी सी….. एक मिनट में खत्म भी हो गई। रंगीन बत्तियों से जगमगाता दुबई अरब रेडियो स्टेशन जहां से आठ एफ एम् रेडियो स्टेशनों का प्रसारण होता है। एफ़ एम् रेडियो में हिंदी फिल्मी गीत काफी लोकप्रिय है। दुबई अरब दूरदर्शन केंद्र से ढेर सारे चैनल टेलीकास्ट होते हैं ।जिनमें हिंदी फिल्में और हिंदी सीरियल घर-घर देखे जाते हैं। हिंदी का तो बोल बाला है यहां ।भाषा की कोई परेशानी सामने नहीं आई। प्रिंट मीडिया यहां अल खलीज ,अल बयान ,अल इत्तिहाद नामक अरबी भाषा के समाचार पत्र प्रकाशित करती है ।अंग्रेजी में गल्फ न्यूज और खलीज टाइम्स निकलता है।

होटल पेनोरमा में वीना से विदा ले हम एयरपोर्ट पहुंचे। ग्रुप के साथी अपने अपने ठिकानों पर लौट जाने को आतुर होने के बावजूद जैसे बिछुड़ने को तैयार नहीं थे। कोई दिल्ली, कोई मुंबई, कोई शारजाह और कोई टर्की।फिर भी उद्देश्य एक, समूह एक.. मिलकर पूरे विश्व में हिंदी की पताका फहराएंगे। एक के ऊपर एक हाथ जुड़े……वादा… फिर मिलने का वादा …कुछ कर दिखाने का वादा…..

आसमान की ओर डैने पसारते हवाई जहाज की खिड़की से जगमगाती दुबई मानो कह रही है ‘मुसाफिर फिर आना”

• (लेखिका साहित्यकार हैं और हिंदी साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर वाट्सएप पर विश्व मैत्री मंच बनाया है जिस पर हर दिन नए नए विषयों और साहित्यिक रचनाओँ पर विमर्श होता है)