Saturday, April 20, 2024
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लद्दाख का नया हीरो सोनम वांगचुक

जल है, तो जीवन है, इलाका चाहे मैदानी हो या पहाड़ी. लद्दाख जैसे सर्द एवं शुष्क रेगिस्तान में भी पानी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है. फसलों की बुवाई के समय तो सबसे कम पानी उपलब्ध होता है. लद्दाख के किसानों की इस समस्या का हल निकाला है, इसी इलाके में पले-बढ़े इंजीनियर सोनम वांगचुक ने. उन्होंने नदी के पानी के छिड़काव के ज़रिये खेत के पास बर्फ के स्तूप बनाने का प्रयोग किया है, जिसे गर्मियों में पिघला कर सिंचाई के पानी का इंतजाम हो सके. हो सकता है कि आप सोनम के इस परिचय से भी उनके व्यक्तित्व की गहराई से अवगत न हो पाएं, लेकिन एक फिल्म का जिक्र संभवत: आपके लिए उनकी पहचान का सेतु बन सकता है. फिल्म का नाम है, थ्री ईडियट्स, जिसमें सोनम से ही मिलता-जुलता एक किरदार है, रैंछो उर्फ रणछोड़ दास छांछड़ उर्फ फुंगसुक वांगडू. फिल्म में इस किरदार को मशहूर अभिनेता आमिर खान ने निभाया था. फिल्म बनने के क्रम में आमिर खान सोनम वांगचुक से मिलने भी गए थे. आ़खिर वांगचुक ने यह सब कैसे किया?

कहते हैं कि इंजीनियरिंग करने के दौरान पिता से उनका विवाद हुआ. वांगचुक मैकेनिकल इंजीनियरिंग करना चाहते थे, जबकि पिता चाहते थे कि वह सिविल इंजीनियरिंग करें. इस वजह से उन्हें घर से निकलना पड़ा. चूंकि विज्ञान एवं गणित जानते थे, सो उन्होंने लेह में कोचिंग सेंटर खोल दिया. दो माह में ही चार वर्षों का पढ़ाई खर्च निकल आया. साथ ही वांगचुक को यह भी पता चला कि कैसे होनहार होने के बावजूद बच्चों को स्कूल में अनुत्तीर्ण (फेल) कर दिया जाता है. तबसे वह शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए काम करने लगे. इस दुर्गम इलाके में सोनम एवं उनके साथियों ने 1988 में एक अभियान शुरू किया, जिसे स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख यानी सेकमॉल कहा जाता है.

उन्होंने अपने छात्रों के साथ पेयजल और खेती के लिए भी अभियान चला रखा है. लद्दाख में खेती करने एवं पेड़ उगाने के लिए वांगचुक ने एक तरीका निकाला. उन्होंने स्थानीय लोगों से कहा कि वे बर्फ के स्तूप बनाएं, जो 40 मीटर ऊंचे हों. ऐसे एक स्तूप से क़रीब एक करोड़ 60 लाख लीटर पानी की व्यवस्था हो जाती है, जिससे 10 हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई की जाती है. उन्होंने लद्दाख में ऐसे स्तूपों का पायलट बना रखा है. इसकी प्रेरणा उन्हें चेवांग नॉर्फेल द्वारा बनाए गए कृत्रिम ग्लेशियर्स से मिली. उनका फाउंडेशन लेह से 18 किलोमीटर दूर है, फिर भी वह पूरे इलाके में सक्रिय रहते हैं. वह इस रेगिस्तान में 8,000 से ज़्यादा पेड़-बगीचे लगा चुके हैं. अपने फाउंडेशन एवं वैकल्पिक विद्यालय को उन्होंने सोलर पावर से रोशन कर रखा है, जहां टीवी, कंप्यूटर एवं अन्य दूसरी चीजें भी सोलर पावर से चलती हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्वी भाग में स्थित लद्दाख जितना दुरूह है, उतना ही खूबसूरत भी. साठ के दशक में भारत सरकार ने जब इस इलाके में स्कूल, हवाई अड्डा, सरकारी कार्यालयों, सैन्य ठिकानों और राजमार्ग आदि के लिए पहलक़दमी शुरू की, तो यहां की तस्वीर बदल गई.

1974 में जब इसे पर्यटकों के लिए खोला गया, तब यहां पर्यटन कुछ पर्वतारोहियों एवं बौद्ध धर्म से जुड़े मठों में आने वालों तक सीमित था, लेकिन पिछले दस वर्षों से लद्दाख में बड़े पैमाने पर घरेलू पर्यटकों की आमद बढ़ी है. लद्दाख ने देश को एक से बढ़कर एक कर्मशील विद्वतजन दिए, चाहे वह लेह हवाई अड्डे के निर्माता सोनम नोरबू हों, लेखक ताशी राबगियास हों, प्रशासक चेवांग फुंतसोग हों या फिर राजनेता पी नाम्ग्याल. उक्त सभी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं. इसी कड़ी में सोनम वांगचुक का नाम भी जुड़ गया है. इन दिनों सोनम दुनिया भर में घूम-घूमकर युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं. कई बड़े एवं प्रतिष्ठित मंचों से उन्होंने नाकामियों को नकार कर अपने बूते आगे बढ़ने की दिलकश तकरीरें पेश की हैं.

हाल में उन्होंने झारखंड का दौरा किया. वह युवा कार्य एवं संस्कृति विभाग की ओर से स्वामी विवेकानंद जयंती पर आयोजित ज्ञान मंथन कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे. इस मा़ैके पर उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा हमारी ज़रूरतों के लिए तो विकल्प हो सकती है, लेकिन विलासिता के लिए नहीं. हम सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं, इस पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए. हमारी युवा पीढ़ी रात में दो बजे तक जागती है और दिन के 10-11 बजे तक सोती है. आम तौर पर सूरज की रोशनी सुबह पांच बजे से मिलनी शुरू होती है. ज़रूरत इस बात की है कि सूरज की पहली किरण हमारे जिस्म को तरोताजा करे. सूरज की रोशनी कई तरह की बीमारियां दूर करती है. बकौल वांगचुक, गांधी जी ने कहा था कि दुनिया में सभी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त साधन हैं, लेकिन सभी के लालच पूरे करने के पर्याप्त साधन नहीं हैं. हमें अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाना होगा. प्रकृति ने हमें जो विकल्प दिए हैं, उन्हें प्राकृतिक तरीके से ग्रहण करना होगा. सोलर पैनल एक हद तक हमारी-आपकी ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं.

वांगचुक ने कहा, लद्दाख में हमने अपने स्कूल में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (आईएसटी) से एक घंटे आगे समय रखा है. यानी स्थानीय लोग हर काम शेष भारत से एक घंटे पहले कर लेते हैं. जब आपके यहां रात के नौ बज रहे होते हैं, तो हमारे यहां दस बज चुका होता है और सभी शिक्षक-छात्र सो चुके होते हैं. ऐसा करके हम प्रदूषण भी कम कर सकते हैं. दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति यह है कि नाक पर रूमाल रखना पड़ता है, क्योंकि सांस लेने में तकलीफ होती है. यह तो सरासर अपराध है. पहले तो हम अपनी दिनचर्या बिगाड़ कर प्रकृति के साथ अन्याय करते हैं, फिर अपनी विलासिता के लिए विकल्प की तलाश में जुट जाते हैं

साभार- http://www.chauthiduniya.com/ से

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