Saturday, April 20, 2024
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प्रकृति के कण कण में परमात्मा का विस्तार है

प्रभु दिन भर हमारे साथ अठखेलियां करता रहता है| कभी वह सामने से तो कभी किसी स्थान पर छुप कर हमारी सब गतिविधियों को निहारता रहता है| इस प्रकार हम दोनों की लुकाछुपी की जो झांकी हमारे सामने आती है, उसे हम प्रभु की मधुर झांकी कह सकते हैं, जिस झांकी के दर्शन हम निरंतर करते रहते हैं| इस निमित्त उपस्थान का यह दूसरा मन्त्र इस प्रकार प्रकाश डाल रहा है :-

उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव: |
दृशे विश्वाय सुर्य्यम् || यजुर्वेद ३३.३१ ||

( त्यं ) उस प्रसिद्ध ( जातवेदसं ) सकल जगत् को जानने वाला, कण कण में विद्यमान (देवं ) स्वयं देदीप्यमान व सर्वत्र आनंद देने वाले ( सूर्यं ) सबके प्राप्त करने योग्य ( केतव: ) प्रभु का ज्ञान करने वाली ( उद्वाहन्ति ) जताती है ( विश्वाय ) सब के लिए ( दृशे ) प्रभु को पत्यक्ष कराने के लिए | परमपिता सर्वज्ञ होने के कारण यहां उत्पन्न सब वस्तुओं को भली प्रकार जानता है| इतना ही नहीं सर्वज्ञ होने के कारण ही वह पिता सब उत्पन्न हुए पदार्थों में विद्यमान भी है| यह ही उसकी सर्वव्यापकता का प्रमाण है |

परमपिता परमात्मा आप प्रतिक्षण हमारे से आँख मिचौनी करते हुए एक बहुत ही सुन्दर झांकी हमारे सामने लाते हैं| इस झांकी का निर्माण करते हुए प्रभु अपने आपको अत्यंत आनंदित भी अनुभव करते हैं| यथा :-जीव से आँख मिचौनी से प्रभु को प्रसन्नता। हे प्रभु! हम जगत् के जीवों से आँख मिचौनी खेलने में आप सदा आनंदित होते हो, इससे आपको प्रसन्नता होती है| मैं उस समय आपको इधर–उधर ढूंढता रहता हूँ, जब आप कहीं छुप जाते हो| आप मेरे आस-पास ही कहीं किसी ओट में छुपे होते हो और मातृवत् स्नेहार्द्र होकर मुझे निहारते रहते हैं किन्तु मुझे इसका पता ही नहीं होता, इस कारण मैं आप को ढूंढने के चक्कर में इधर-उधर भागता रहता हूँ| मेरी इस दौड़ में मेरी चिंताओं को देख कर हे प्रभु! आप मंद-मंद मुस्कराते हुए अत्यधिक आनंद का अनुभव करते हो |

जगत् का प्रत्येक कण आप का अस्तित्व दिखाता है।हे जातवेदा पिता! हे प्रत्येक कण में, प्रत्येक पदार्थ में विद्यमान प्रभु! यह प्रकृति और इस का प्रत्येक अणु, निरंतर आपकी और ही इंगित कर रहा है| इस अवस्था में आप कहाँ पर छिपे रहोगे अर्थात् आप अब छिप नहीं सकते| जिस प्रकार एक गाडी को चलाने के लिए एक झंडी दिखानी होती है, उस प्रकार ही इस जगत् का प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक कण इस विश्व को आप का मार्ग दिखा रहा है, नहीं वह आप के मार्ग की झंडी दिखा रहा है |

सब कुछ रंगों से दीप्त कौन करता है। हम देखते हैं, पुष्पों के उद्यान में भाँति-भाँति के सुन्दर फूल खिल रहे हैं, खेतों में हरी भरी खेतियाँ लहलहा रही हैं, तारों रूपि मोतियों से जडा यह नीले रंग में दिखने वाला नभमंडल, यह सब किस की अत्यंत दीप्त, रंगों से भरी हुई, हरियाली से युक्त मनों को अभिराम देने वाली यह रुपराशि लहरा रही है ?

अनेक रंगों का विधान कौन कर रहा है। फूलों की सुन्दर पंखुड़ियों तथा इन पंखुड़ियों के अति सुन्दर व अनोखे पंखों में कालिमा लिए हुए श्यामल मेघ मंडल में, इन्द्रधनुष के सप्तरंगों में, लालिमायुक्त ऊषा में, स्वर्ण के समान सुनहली संध्या वेला में, इन सब अवस्थाओं में निरंतर कोई तुलिका अति सुन्दर रंगों से सुसज्जित कर रही है, यह सब किस के लिए तथा कौन भर रहा है ?
झरनों आदि की मधुर ध्वनि में कौन है। इतना ही नहीं प्रभु! पवन के झकोरे भी निरंतर आ रहे हैं, झरनों की झर–झर की ध्वनि भी हमें मिल रही है, बादलों की गर्जन भी हम सुनते रहते हैं, पक्षियों की ख़ुशी का स्वरूप है उनकी कलरव की मिट्ठी ध्वनि, प्रकाश से आलोकित रश्मियों का लै और ताल से युक्त नृत्य, तारों की भी एक लै से युक्त निरंतर गति, नदियों व झरनों की कल-कल की सब को आकर्षित करने वाली ध्वनि, आदि सब में किस महापुरुष अथवा किस महान् व्यक्तित्व की मधुर वीणा की सुरम्य झंकार से झंकृत हो रही है ?

प्रभु! प्रात:काल की मंद गति से चलने वाली मधुर पवन, अमृत से भरे फूलों के प्यालों में , मस्तानी चाल के कारण आलस्य के मद से भरे बादल, वायु से हिलोरे खा रहे वृक्षों और वनस्पतियों के पत्तों के नाचने, आकाश में घुमड़ रहे काले बादलों की बगल में उदय हो रहे मुस्कान से भरे चाँद, सूर्य की किरणों के चूमने से अलसाई आँखें, पर्वतों से मधुर मिलन कराती नदियों तथा उनके बाहू बंधन, बेलें जो पेड़ों से लिपट कर उनका अलिंगन कर रही हैं, इन सबमें किस शक्ति के हृदय का कभी न समाप्त होने वाला प्यार उमड़ रहा है?
सब आकर्षित पदार्थ किस का रूप हैं।

प्रात:काल की उषावेला में हमें एक मधुर सी छाया मुस्काती मिलती है| वसंत भी यौवन का श्रृंगार लेकर ऋतु अनुसार आता है, काले-काले बादलों में किसी विशेष शक्ति का स्निग्धता से भरा केश मंडल अठखेलियाँ करता है, मंद-मंद बह रहे पवन में एक सौरभ भरा रहता है, मोतियों के रूप में दिखाई देने वाले औस कणों में ऐसा लगता है कि जैसे किसी के स्नेह से भरे हुए आंसू ढुलक रहे हैं, हम देखते हैं कि धान के खेतों में भी किसी का नीलाभ अंचल लहरा रहा है, सरिता में भी मंडलाकार, गोल-गोल लहरें उठती हैं, इन लहरों में भी किसी की भृकुटियों का विलास भरा रहता है, बिजली का प्रकाश भी किसी के अंगों के राग स्वरूप चलता है, रवि-शशि भी किसी शक्ति के इशारे से चलते हैं, इन्द्रधनुष में भरे हुए बहुरंग भी किसी जादूगर के जादू का ही परिणाम है , सागर में बहता हुआ पानी भी भारी कोलाहल करता है , पृथिवी भी तो किसी का विशाल पैर है, अन्तरिक्ष भी किसी के पेट के समान है, द्युलोक भी किसी के भाल के रूप में दीखता है, यह सब किस विभूति का है?

हम प्रतिदिन प्रात: उठते हैं| उठते ही हम देखते हैं कि इस मधुर वेला में सैंकड़ों मीलों से आकर सूर्य कि किरणें यह सन्देश नई उग रही कलियों के कान में आ कर सुनाने लगती हैं| इस प्रकार यह तेजस्वी किरणें कलियों को किसी का सन्देश देते हुए पुष्पों से लदी क्यारियों में आ पहुंचती हैं| इस मधुर सन्देश को सुनकर कलियाँ भी अपने घूँघट को उठा लेती हैं और खिलकर फूल का रूप लेकर बाहर झांकने लगती हैं| इतना ही नहीं अकस्मात् वायु भी किसी के अनुराग में, किसी के प्रेम में मचलने लगता है| इस प्रकार सूर्य की आने वाली यह किरणें किस शक्ति के प्रेम में अनुरक्त होकर प्रेम रंजित हो जाती हैं? ठाठें मार रही सरिताएं अपनी छाती पर लहरों का भीषण नाद करते हुए क्यों सिहर उठती हैं? सब से सुन्दर बात तो यह है कि यह पूरी की पूरी धरती किस की सौरभ से भरी उच्छ्वासों का मधुर स्पर्श पाकर रोमांच से भर उठती हैं?

हम रात्रि में आकाश में टिमटिमाते प्रकाश की एक दीपमाला देखते हैं| यह दीपमाला तारों से होती है किन्तु यह दीपमाला किसके स्वागत के लिए की जाती है? वृक्षों के पत्ते भी एक प्रकार की मधुर ध्वनी करते हैं किन्तु यह मधुर तान किस की महिमा के गीत गाने में लगी हैं? पर्वतों की शिखरों पर दिखाई देने वाली आकाश को चूमती हुई सफेद बर्फ से ढकी चोटियाँ किसकी ऊंचाई पाने का प्रयास कर रही हैं? हम पाते हैं कि हमारे पास एक अगाध समुद्र है| इस समुद्र की अचिंतनीय गहराई एक गाम्भीर्य जताने के यत्न में दिखती है किन्तु यह सब किसका गाम्भीर्य जता रही है? इन सब प्रश्नों का हे प्रभु! एक ही उत्तर है कि यह सब संकेत आप ही की और आते हैं क्योंकि यह सब सन्देश आप ही की और हैं तो हे पिता! अब आप हम से कैसे छिप सकते हो?

परमपिता परमात्मा दिव्य गुणों से संपन्न है इसलिए हम उस दिव्यगुणों वाले प्रभु को स्मरण करते हुए कहते हैं कि हे द्युतिमान प्रभु! इस प्रकृति के प्रत्येक कण से आप का गुणगान हो रहा है क्योंकि आप का प्रतिबिम्ब इस प्रकृति के प्रत्येक कण में विद्यमान है| इस धरती का प्रत्येक कण भी आप ही की प्रेरणा से प्रेरित है| सब ओर, जहाँ तक भी हम देख पाते हैं, हम देखते हैं कि आप ही के दिए प्राण स्पंदन कर रहे हैं| सब स्थानों पर आप ही की दी गई गति है | सब स्थानों पर आप ही की लीलाओं के दृश्य दिखाई देते हैं| सब और आप ही की विभूति दिखाई देती है |
प्रभु से जो चाहूं मिले

हे अभिसरणीय सूर्यदेव! इस सम्पूर्ण प्रकृति में आप की ही दी हुई रंग बिरंगी झंडियां फहरा रही हैं| यह झंडियाँ सारे विश्व में आप का दर्शन कराने का प्रयास कर रही हैं| आप के इस संकेत को मैं ठीक से समझ पा रहा हूँ| इन झंडियों के माध्यम से आपकी जिस राह को जो दर्शाया जा रहा है, उसे ठीक से समझते हुए मैं उस मार्ग पर ठीक से आगे बढ़ रहा हूँ| आप की आँख से मेरी आँख मिल रही है, इससे प्रेम की बाढ़ सी उमड़ने लगी है| इस प्रकार मैं जो चाहता था, उस सब को पा रहा हूँ |

डॉ.अशोक आर्य
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