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आर्य समाज के वे बलिदानी जिनसे हमारी स्वतंत्रता और संस्कृति जीवित है

स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अपना बलिदान देकर आर्य समाज में एक अनूठी परम्परा आरम्भ की| यह परम्परा आज भी उस रूप में ही आगे बढ़ रही है| इस बलिदानी परम्परा को अनवरत गति देते हुए अनेक वीरों ने स्वयं को धर्म, जाति तथा देश की रक्षा के लिये बलिदान कर दिया| इस प्रकार के बलिदानी अथवा समाज सेवी धर्म रक्षक, जिन के जन्म अथवा बलिदान दिवस जुलाई महीने में आते हैं, उन का संक्षिप्त परिचय यहाँ दे रहे हैं|

बलिदानी फकीर चन्द जी
आपका जन्म हरियाणा के कैथल जिला के गाँव सरधा में श्री बालाराम जी के यहाँ हुआ| तिथि अज्ञात है| चाहे जाति से चमार थे किन्तु इनका पूरा परिवार आर्य समाजी था| जब हैदराबाद में सत्याग्रह का शंखनाद हुआ तो परिजनों से स्वीकृति न मिलने पर पर भी आप सत्याग्रह कर बलिदान देने की प्रबल इच्छा के कारण घर से भाग कर सत्याग्रही जत्थे में जा मिले| हैदराबाद के अंतर्गत ओरंगाबाद में महाश्य कृष्ण जी के नेतृत्व में ५ जून को आप सत्याग्रह कर जेल गए| जेल मे अपेन्डीसाइड से पीड़ित होने पर आपका आप्रेशन हुआ| आप्रेशन होने के पश्चात् समुचित देखभाल की आवश्यकता थी, जो जेल में न हो सकी| इस कारण १ जुलाई १९३९ ईस्वी को जेल में ही आपका देहांत हो गया|

देहांत पंडित तुलसी राम स्वामी
आपका जन्म ज्येष्ठ शुक्ला ३ संवत १९२४ तदनुसार ३ जून सन् १८६७ ईस्वी को मेरठ जिला के अंतर्गत गाँव परीक्षितगढ़ के निवासी पंडित हजारी ला स्वामी जी के यहाँ हुआ| ग्यारह वर्ष की आयु में शीतला रोग के कारण आपकी एक आँख सदा के लिए बंद हो गई| सन् १९४० ईस्वी में ऋषिकृत ग्रन्थ पढ़ने से आर्य समाजी बने| पंडित घासीराम मेरठ वालों के संपर्क में आने से आपमें आर्य समाज के विचार परिपक्व हुए| आप ने अवध की आर्य प्रतिनिधि सभा की स्थापना में अपना योग दिया| आपने अनेक शास्त्रार्थ किये तथा अनेक पुस्तकें भी लिखीं| १७ जुलाई सन् १९१५ ईस्वी में विशुचिका के कारण आपका निधन हो गया|

बलिदानी ठाकुर मलखान सिंह
उत्तरप्रदेश के जिला सहारनपुर के रुड़की के निकट सूर्यवंशी ठाकुरों के गाँव रामपुर में आपका निवास था| रुड़की से जो जत्था हैदराबाद सत्याग्रह के लिए गया, उसके साथ आप भी सत्याग्रह के लिए गए| हैदराबाद के पुराद् केंद्र से श्री देवव्रत वाणप्रस्थी जी के जत्थे के साथ सत्याग्रह कर आप चंनचलगुडा जेल गए| जेल की यातनाओं के परिणाम स्वरूप जेल में ही जुलाई के प्रथम दिवस अर्थात १ जुलाई सन् १९३९ इस्वी को आप ने अपना बलिदान दे दिया| ठाकुर दलबीर सिंह तथा श्रीमती नवली देवी आपके पिता तथा माता थे, जिनकी दूसरे पुत्र का नाम ठाकुर मलखान सिंह था| माता के अकाल दिवंगत होने से पिता द्वारा पालित मलखान सिंह कांग्रेस के माध्यम से स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जेल जा चुका था| हैदराबाद सत्याग्रह के उद्घोष के साथ ही इस भाई ने भी सत्याग्रह का निर्णय लिया|

बलिदानी अर्जुनसिंह जी
आपका जन्म वर्तमान महाराष्ट्र के ओरंगाबाद के कन्नड़ ताल्लुके में हुआ| जहां कहीं भी आर्यों पर संकट आता, आप रक्षक के रूप में वहां खड़े हुए मिलते| आपकी सेवाओं के कारण आपको हैदराबाद के मह्रर्षी दयानंद मुक्ति दल का दलपति बनाया गया| मुसलमान सदा ही आपकी जान के प्यासे रहते थे| एक बार आप जंगली बिठोवा की मासिक यात्ार की व्यवस्था कर लौट रहे थे कि मार्ग में मुसलमानों ने आप पर आक्रमण कर दिया| आपके शरीर के अनेक अंग काट कर वह भाग गए| अस्पताल में इलाज के मध्य आषाढ़ शुक्ल ११ शाके संवत् १८६१ को आपका बलिदान हो गया|

हिंदी प्रेमी पंडित भीमसेन विद्यालंकार जी
आपका जन्म गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना से मात्र दो वर्ष पूर्व हुआ| आप अनेक समाचार पत्रों के सम्पादक रहे| असहयोग आन्दोलन में भाग लिया| अनेक समुदायों में हिंदी के प्रति आकर्षण पैदा किया| हिंदी के प्रचार व प्रसार के लिए कोई कसार नहीं उठा रखी| भगतसिंह के असेम्बली बम कांड के समाचार को सर्वप्रथाम आपने ही प्रकाशित किया| नमक सत्याग्रह तथा अवज्ञा आन्दोलन में खूब कार्य किया| अनेक बार जेल गए| नवयुग प्रैस लाहौर के आप प्रथम संचालक थे| आप आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के लम्बे काल तक मंत्री रहे| देश के विभाजन के पश्चात् हरियाणा के अम्बाला को आपने अपना केंद्र बनाकर कार्य किया| पांच वर्ष तक हिंदी साहित्य सम्मलेन पंजाब के मंत्री रहे| अनेक सम्मेलनों का आपने सफलता पूर्वक आयोजन किया| जुलाई १९६२ ईस्वी को आपका देहांत हो गया|

हैदराबाद के शहीद बदन सिंह जी
मुज्ज्फराबाद निवासी टीकासिंह तथा माता हीरादेवी के यहाँ जुलाई १९२१ ईस्वी में आपका जन्म हुआ| माता पिता की आप एकमात्र संतान थे| दस वर्ष की आयु में अध्यापक शेरसिंह जी से आर्य समाज के विचार मिले| अठारह वर्ष के ही हुए थे कि हैदराबाद में सत्याग्रह का शंखनाद हुआ| इस समय आपके पिता जी रोग शैया पर थे| उन्हें रोगी अवस्था में ही छोड़कर, उन्हीं की ही स्वीकृति से सत्याग्रह के लिए हैदराबाद को रवाना हुए| आपने बेजवाडा से सत्याग्रह किया और वारंगल जेल भेजे गए| जहां जेल की भयंकर यातनाओं को न सहते हुए रोग ने आ घेरा| अत: इस रोग के कारण जेल में ही दिनांक २४ अगस्त १९३९ इस्वी को वीरगति को प्राप्त हुए|

आर्य वीर प्रहलाद कुमार आर्य
राजस्थान के जिला भरतपुर के नगर हिन्डौन सिटी के अग्रवाल परिवार के सेठ घूडमल तथा माता नवलिया देवी के यहाँ सन् १९३० ईस्वी को आपका जन्म हुआ| आपमें देशभक्ति,वेद प्रचार तथा समाज सुधार की अत्यधिक लालसा थी| आर्य वीर दल के माध्यम से आर्य समाज को अनेक कार्यकर्ता दिए, जो आज भी आर्य समाज को गति देने में लगे हैं| आर्य वीर दल में प्रतिदिन सिद्धांत चर्चा करते थे| कैलादेवी की प्राचीन पशुबली की परम्परा आप ही के यत्न से बंद हुई| आपने गुरुकुलों के ब्रह्मचारियों के लिए छात्रवृत्तियां आरम्भ कीं| अनेक परिवारों में वैदिक साहित्य पहुंचाया| आर्य लेखकों के लिए पुरस्कार भी आरम्भ किये| यह सब करते हुए लोकेषणा से सदा दूर रहे तथा आर्य समाज का सब कार्य युवकों को सौंप दिया| दिनांक ६ जुलाई सन २००० ईस्वी को आपका देहांत हो गया|

आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी
बरेली तहसील फरीदपुर के स्वाधीनता सेनानी म. गोपालराम तथा माता भागवंती देवी जी के यहाँ ४ जुलाई को आपका जन्म हुआ| आपने “ वेदों की वर्णन शैलियाँ” विषय पर पी एच डी की| गुरुकुल कांगड़ी के आचार्य, रजिस्ट्रार,कुलपति के रूप में ३८ वर्ष तक कार्य किया| १९७६ में पंजाब विश्वविद्यालय की महर्षी दयानंद अनुसंधान पीठ के अध्यक्ष बने| अनेक छात्रों का शोध कार्य आपने करवाया| वेद मंजरी से प्रत्येक दिन एक वेद मन्त्र व्याख्या सहित पढ़ने का सन्देश दिया| आपकी पुस्तकों पर आपको अनेक पुरस्कार मिले| भारत के राष्ट्रपति जी ने भी आपको सन्मानित किया|

हैदराबाद के बलिदानी स्वामी कल्याणानन्द जी

गाँव किनौना जिला मुजफ्फरनगर के चौ.साहमल सिंह तथा माता सुजानकौर नामक जाट परिवार के चौथे पुत्र स्वामी कल्यानानंद जी हुए| हरसौली में अध्यापक लगने पर वेद प्रचार की ऐसी धून सवार हुई कि सरकारी नौकरी त्याग कर आर्य समाज के प्रचार में जुट गए| आपकी ७५ वर्ष की आयु भी हैदराबाद सत्याग्रह के लिए बाधा न बनी तथा अपने व्यय से सत्याग्रहियों का जत्था लेकर गुलबर्गा में गिरफ्तारी दी| अधिक आयु तथा जेल की गन्दी व्यवस्था ने जल्दी ही रोगी बना दिया| अत: दिनांक ८ जुलाई १९३९ ईस्वी को बलिदान हो गए|

डा. धर्मेन्द्र शास्त्री जी
दिनांक १७ जुलाई १९६४ ईस्वी को एक आर्य परिवार में धर्मेन्द्र जी का जन्म हुआ| आपने अध्यापन का कार्य करते हुए आर्य समाज का खूब कार्य किया| तथा कई उत्तम पुस्तकें भी लिखीं|

बलिदानी महादेव जी
हैदराबाद के जागी अकोलगा सैयदां के गांव एकलगा में सन्र १९१३ इस्वी में जन्मे महादेव आर्य समाज साकोल के सत्संगों में नियमित रूप से जाते थे| अत: ऋषि दयानंद के रंग में रंग कर आर्य समाज के प्रचार में जुट गए| इस कारण मुसलमान आपकी जान के प्यासे हो गए| आपकी वैदक साहित्य खूब लगन से थी और इसे भारी मात्रा में बांटा करते थे| वैदक साहित्य और सत्यार्थ प्रकाश की कथा भी किया करते थे| आप पर मुसलमानों ने अनेक बार जानलेवा आक्रमण किये किन्तु तो भी वेद प्रचार से हटे नहीं| अंत में मेहरअली नाम के मुसलमान ने दिनांक १७ जुलाई १९३८ इस्वी को घात लगाकर छुरा घौंप दिया| इससे केवल २५ वर्ष की आयु में ही आप वीरगति को प्राप्त हो गए|

हैदराबाद के बलिदानी शांति प्रकाश जी
संवत १९७८ विक्रमी को लोहड़ी के दिन पंजाब के जिला गुरदासपुर के गाँव कलानोर अकबरी में माता हीरादेवी धर्मपत्नी श्री रामरत्न जी के यहाँ आपका जन्म हुआ| परिवार धार्मिक था तथा सत्संगों में पिता अपने बच्चों को साथ ले जाते थे| इस कारण आप पर आर्य समाज के संस्कार आरम्भ से ही थे| बम्बई में बिजली का कार्य करने लगे| अभी कार्य आरम्भ किया ही था कि हैदराबाद सत्याग्रह का शंखनाद हो गया| आप सब काम छोड़ बम्बई के सत्याग्रही जत्थे के साथ गये तथा गुन्जोटी में जाकर गिरफ्तारी दी और उस्मानाबाद जेल में रहे| जेल की अमानुषिक यातनाओं और गंदे भोजन के कारण रोगी हो गए| भयंकर रोग में भी माफ़ी को तैयार न हुए| पिता को कहा कि मैं नाम के अनुरूप शान्ति से बलिदान दूंगा| आप भी शांति बनाए रखना| २७ जुलाई सन् १९३९ को आप वीरगति को प्राप्त हुए| संवेदना व्यक्त करने गए लोगों को पिता ने कहा “ शान्ति की म्रत्यु शोक प्रकट करने के लिए नहीं हुई. उसका धर्म पर बलिदान हुआ है, इसलिए मुझे गर्व है|

हैदराबाद के बलिदानी चो.मातुराम जी
हरियाणा के जिला हिसार की तहसील हांसी के गाँव मलिकपुर के जिमींदार गुगनसिंह जी के यहाँ संवत् १९४६ को जन्मे मातुराम शिवरान गौत्रीय जाट थे| छोटी आयु में ही आर्य हो गए थे| अछूतों का उद्धार करते हुए उन्हें यज्ञोपवीत दिए| उनहें गाँव के कुओं पर चढने का अधिकार दिया| हैदराबाद के सत्याग्रह के उद्घोष के साथ ही गाँव से सत्याग्रहियों का जत्था ले कर म. कृष्ण जी के साथ ओरंनगाबाद से सत्याग्रह कर जेल गए| जेल के दारुण कष्टों ने शीघ्र ही आपको रोग ग्रस्त कर दिया| रोग भयंकर था| जब बचने की आशा न रही तो निजाम पुलिस ने आपको जेल के गेट के बाहर फैंक दिया| यहाँ से किसी प्रकार मनमाड पहुंचे| यहीं पर २८ जुलाई १९३९ को वीरगति को प्राप्त हो गए|

पंडित दिलासिंह राई जी
आपके सम्बन्ध नेपाल से था| जन्म आषाढ़ शुक्ला १० संवत् १९२२ विक्रमी को हुआ| वेदादि सत्य ग्रन्थों का अध्ययन किया| सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने से जीवन दिशा में परिवर्तन आया| आपने सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारह सम्मुलासों का नेपाली भाषा में अनुवाद कर इसे अपने खर्चे से प्रकाशित किया| इसके अतिरिक्त वैशेषिक दर्शन तथा संस्कार विधि का भी नेपाली में अनुवाद कर प्रकाशित करवाया| आप एक सफल शिक्षक तथा अनेक पाठशालाओं के संस्थापक थे| आपका देहांत आषाढ़ शुक्ला एकादशी को ९० वर्ष की आयु में हुआ|

पंडित आत्माराम अमृतसरी जी
आपका जन्म आषाढ़ कृष्ण सन्.१९२८ शाके को श्री राधाकिशन तथा माता मायादेवी जी के यहाँ हुआ| लाहौर में शिक्षा प्राप्त करते समय पंडित गुरुदत्त जी के संपर्क से आर्य समाजी बने| अमृतसर में पंजाबी हाई स्कूल आरम्भ किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के मंत्री बने| प्रचार व शास्त्रार्थ के कारण आप अपना पूरा समय समाज को देने लगे| बडौदा नरेश ने आपकी सुधारोन्मुखी प्रवृति के कारण आपको राज्यरत्न की उपाधि प्रदान की| कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखने वाले आत्माराम जी का देहांत १५ जुलाई १९२८ इस्वी को हुआ|

परमानंद जी
आपका जन्म २९ सितम्बर सन् १९१६ ईस्वी को अमृतसर में पंडित परशुराम जी के यहाँ हुआ| सन् १९३७ इस्वी में दयानंद उपदेशक विद्यालय लाहौर के आचार्य बने फिर वहीँ फारमेन क्रिश्चियन कालेज के हिंदी व संस्कृत विभाग के अध्यक्ष बने| सन् १९५७ में पैप्सू लोक सेवा आयोग ने हिंदी व संस्कृत के प्रोफैसर व अध्यक्ष बनाया| फिर हरियाणा शिक्षा विभाग में भाषा निदेशक बने| आपने सन् १९५४ ईस्वी में पंजाब विश्व विद्यालय से ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका के अंग्रेजी अनुवाद पर पी एच डी प्राप्त की| २६ जुलाई १९७८ ईस्वी को फरीदाबाद में आपका देहांत हुआ|

पंडित अमिन्चंद मेहता जी
वर्तमान पाकिस्तान के गाँव हरणपुर जिला जेहलम में मुह्याल ब्राह्मण की बाली वाली जाति में जन्म हुआ| आप एक अच्छे कवि,गायक तथा संगीतज्ञ थे| आरम्भिक जीवन अच्छा न था| आप स्वामी दयानंद जी की सभा में भजन गायन करते थे| स्वामी जी के शब्द “ अमींचन्द तुम हो तो हीरे किन्तु कीचड़ में फंसे हो” ने उनका जीवन बदल दिया| २९ जुलाई सन् १८९३ को आपका देहांत हुआ| आपके भजन आज भी सत्संगों में अपना विशेष स्थान बनाए हुए हैं|

चंद्रशेखर आजाद
२३ जुलाई १९०६ ईस्वी को देश की स्वाधीनता के लिए बलिदान होने वाले इस वीर पर आर्य समाज को गर्व है| क्रांतिकारी आन्दोलन आपके नाम के बिना अधूरा ही रहता है| आपने अपनी इस प्रतिज्ञा को अंत समय तक पूरा किया कि कभी पुलिस की पकड में नहीं आउंगा तथा अपनी ही गोली से इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में पुलिस का मुकाबला करते हुए अंत में बची एकमात्र गोली से स्वयं को देश की बलिवेदी पर बलिदान कर दिया|

बलिदान भक्त फूलसिंह जी
आपका जन्म हरियाणा के गाँव माहरा (जुआं) जिला रोहतक में संवत् १९४२ विक्रमी तथा सन् १८८५ ईस्वी में हुआ| बाल्यकाल से ही सेवा, सरलता, निर्भयता,सदाचार, मधुरभाषिता, सुशीलता आदि गुणों से युक्त थे| इससे कुपित हैडमास्टर ने जब आपको कमरे में बंद किया तो आपने लाठी से हैडमास्टर की इतनी पिटाई की कि उसे वहां से भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी| आथिथ्य के समय अपना राशन समाप्त होने पर पडौसियों के भंडारों को भी खाली कर देते थे| सेवा के समय कभी किसी की जाति नहीं देखी| मुसलमानों की सेवा करने में भी कोई कसार न उठा रखते थे| चौ. प्रीतसिंह पटवारी के संसर्ग से आर्य समाजी बने| आपने आर्य समाज का खूब प्रचार किया| समालखा तथा लाहौर आर्य मिशन के लिए सन् १९२० में गुरुकुल भैंसवाल आरम्भ किया| आपने बुचडखाना न खुलने दिया| सन् १९४२ श्रावण सुदी द्वितीया को मुसलमानों ने आपका बलिदान कर दिया|

जन्म पंडित मुरारी लाल जी
आपका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद निवासी पंडित रामशरण जी के यहाँ श्रावण कृष्ण १ संवत् १९२१ तदनुसार सन् १८३२ को हुआ| सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने से आर्य बन गए| सिकंदराबाद जिला बुलंदशहर उत्तरप्रदेश के गुरुकुल के संस्थापक मंत्री बने| आपने पौरानिकों, ईसाईयों तथा मुसलामानों से अनगिनत शास्त्रार्थ किये तथा सदा विजयी रहे| आपने अनेक पुस्तकें लिखीं| २३ जनवरी सन् १९२७ ईस्वी को आपका देहांत हो गया|

देहांत स्वामी हीरानन्द बेधड़क
स्वामी बेधड़क जी ने आर्य समाज का वो कार्य किया है ,जिनके ऋण को चुकाया नहीं किया जा सकता। स्वामी बेधड़क जी देश के स्वतंत्रता संग्राम में आठ बार जेल गए। हैदराबाद सत्याग्रह में खुद का जत्था लेकर गये। इसके बाद कांग्रेस के आंदोलन में स्वामी जी ने भाग लिया ओर स्वामी जी को पांच वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाई। लाहौर जेल में स्वामी जी को अनेक यातनाएं दी गईं। इतने कष्टों के बाद भी स्वामी जी निर्भिक होकर वेद प्रचार करते थे। स्वामी जी अपने प्रचार की खुद ही मुनादी कर देते थे, इनका देहांत ४ जुलाई १९७९ ईस्वी को हुआ|

चौधरी नत्था सिंह भजनोपदेशक
जिला करनाल की तहसील बदरपुर के गांव इन्द्री के चौधरी मनसा राम जी तथा पत्नी श्रीमती प्रेमोदेवी जी के यहाँ सन् १९०४ ईस्वी में आपका जन्म हुआ| माता प्रज्ञाचक्षु थी| आप एक उत्तम भजनोपदेशक तथा भजनों के रचयिता थे | आपके बनाए भजन आज भी आनंद देने वाले हैं| ३ जुलाई सन् १९९१ ईस्वी को आपका देहांत हुआ|

गोरक्षक बलिदानी हरफूल सिंह जी
हरियाणा के उपमंडल लोहारु के गाँव बारवास के इन्द्रायण पाने में क्षत्रिय चौधरी चतरुराम सिंह सुपुत्र चौधरी किताराम जी के यहाँ सन् १८९२ ईस्वी में चौधरी हरफूल सिंह जी जन्मे| दस वर्ष तक सेना में रहे| द्वीतीय विश्व युद्द में भाग लिया| फिर सेना छोड़ कर आए और गो रक्षा करने लगे| आप ने लगभग १७ गो कत्लखाने बंद करवाए| इस कारण आपकी ख्याति दूर दूर तक पहुँच गई| कसाई लोग आपके नाम से कांपने लगे| अब मुसलमान कसाइयों तथा कत्लखाना चला रहे अंग्रेज की कमाई बंद हो गई, इस कारण आप अंग्रेज की आँख का शहतीर बन गए| आपको हिरासत में लेकर पहले जींद और फिर फिरोजपुर जेल में डाल दिया गया| इसी जेल में ही बिना किसी को बताये दिनांक २७ जुलाई सन् १९३६ ईस्वी की रात को अचानक फांसी पर लटका आपका पार्थिव शरीर सतलुज नदी में फैंक दिया गया|

कवि कुंवर जौहरी सिंह जी
हरियाणा के जिले सोनीपत की तहसील गोहाना के गाँव जसराणा के कृषक श्री जुगलाल जी के यहाँ दिनांक ९ अगस्त सन् १९१३ को आपने जन्म लिया| अपने गाँव में आर्य समाज के प्रचार को सुनकर आप का उत्साह बढ़ा| फिर आपने स्वयं के अभ्यास से संगीत का ज्ञान लेकर भजनों की माध्यम से आर्य समाज का प्रचार करना आरम्भ कर दिया| आपकी आवाज अत्यधिक सुरीली थी| दूर दूर के गाँवों के लोग भी आपको सुनने के लिए आते थे| आप ने कभी इस बात की चिन्ता नहीं की कि आपके सामने कोई वाद्य यंत्र अथवा माइक भी है या नहीं| स्वयं अच्छी भजनोपदेशक होते हुए भी बाहर से उपदेशकों को अपने गाँव में बुलाते रहते थे| आपका देहांत जुलाई १९८१ ईस्वी में हुआ|

इस प्रकार आर्यों ने दारुण कष्ट सहते हुए , मृत्यु को निकट से देखते हुए चिंता किये बिना हँसते हंसते एक के पश्चात् एक पंक्ति बद्ध हो प्राणों को त्यागते चले गए| आज आर्य समाज जो कुछ भी है, इन्हीं बलिदानियों के कारण है| आवश्यकता है आज इन बलिदानियों के तप, त्याग को स्मरण करते हुए स्वार्थ से ऊपर उठकर गातिशील होने की! तब ही आर्य समाज की उन्नति की गति निरंतर बनी रहेगी|

डॉ.अशोक आर्य
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