Tuesday, April 23, 2024
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गरडिया महादेव की छटा ही निराली है

जीवन की आपाधापी और भागदौड़ के बीच आप कुछ पल स्वयं अथवा दोस्तों और परिजनों के साथ रमणिक प्राकृतिक वातावरण में गुजारने के इच्छुक हैं तो कोटा के समीप गरडिया महादेव से बढ़िया ऑफ बीट पर्यटन स्थल आपके लिए मुफीद होगा। शांति, भक्ति, वन्यजीव और प्रकृति का अनूठा संगम आपको आल्हादित करने की पूरी शक्ति रखता है। प्रकृति और वन्यजीव प्रेमियों के लिए तो यह एक आदर्श स्थल हैं।

आईए ! हमारे साथ सैर कीजिए इस पर्यटक स्थल की । रविवार 13 नवंबर 2022 का दिन था। अपने मित्र के. डी.अब्बासी को लेकर कार से 26 किमी की दूरी पार कर प्रकृति का और हल्की शीतल हवाओं का आनंद लेते हुए हम जा पहुंचे वन विभाग की चेक पोस्ट पर। एक साधारण से द्वार के आर्च के मध्य निर्मित सुंदर पैंथर का माडल आने वालों का स्वागत करता नजर आता है।

यूं तो कई बार मैं यहां आ चुका था पर लम्बे समय बाद प्रवेश का नजारा बदला – बदला लग रहा था। चैक पोस्ट पर एक टिकट घर बना दिया गया है। पहले प्रवेश नि:शुल्क था अब प्रति व्यक्ति और वाहन शुल्क लगा दिया गया है। पर्यटक स्थलों पर शुल्क कोई नई बात नहीं हैं पर जितना शुल्क यहां लगाया गया है वह ज्यादा होने से अखरता है। खैर हमने निर्धारित शुल्क चुका कर टिकट लिया और यहां से करीब डेढ़ किमी पर स्थित पर्यटन स्थल की और रवाना हुए।

इंटरप्रिटेशन सेंटर के नाम से बनाया गया है जिसका बाहरी रूप आकर्षक है। इस भवन में जंगल क्षेत्र में पाए जाने वाले वल्चर, पशु – पक्षी, रेप्टाइल्स आदि के माडल उनके प्राकृतिक आवास के साथ पर्यटकों को लुभा लेते हैं। इनकी जानकारी के साथ – साथ चंबल नदी, मुकंदरा टाइगर रिजर्व, महादेव का विवरण भी प्रदर्शित किया गया है। यहां आने वालों को 6 मिनट की एक वीडियो भी स्क्रीन पर दिखाई जाती है जो आकर्षक नजारों के साथ मुकंदरा टाइगर रिजर्व की रोचक जानकारी देती हैं। आने वाले यहां माडल के साथ अपनी सेल्फी लेते नजर आए और हम भी यह लोभ संवरण नहीं कर पाए।

पशु – पक्षियों के संसार का आनंद लेते हुए हम आगे बढ़ गए। उबड़खाबड़ रास्ते पर हिचकोले खाते जंगल को देखते हम उस स्थान पर पहुंच गए जहां से पैदल जाना था। जंगल की चर्चा करना भी समचीन होगा। जंगल जहां पहले घना था अब उतना घना नहीं लगता है।
यह स्थान मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में शामिल कर लिया गया है। यहां खेर, धोकड़े, तेंदू और सालर के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हैं जो पैंथर व भालू के लिए उचित वातावरण का सृजन करते हैं।

कार से उतरे तो चट्टानों और चंबल की गहरी और विशाल हरी – भरी घाटियां सामने थी जो अत्यंत चित्ताकर्षक और मनोहरी लग रही थी। चंबल घाटी के ऊपर की ओर चट्टानों पर सुरक्षा की दृष्टि से पत्थर की आकर्षक रेलिंग बनादी गई है जो पहले नहीं थी। कुछ जगहों पर बैठ कर सुंदर नजारें देखने के लिए बैंच लगा दी गई हैं। कुछ स्टूडेंट्स रोमांचित होते हुए इन नजारों के अपने मोबाइल में कैद कर रहे थे और सेल्फी ले रहे थे।

हमने चट्टानों से मंदिर की ओर चलना शुरू किया। चट्टानों की दाईं तरफ बड़ा सा एनिक्ट बना है। जिसे देख कर अंदाजा गया जा सकता है कि बरसात के दिनों में यह एक विशाल सुंदर झरने का रूप धारण कर लेता होगा। कुछ चट्टानो और बीच – बीच में सीढियां पार कर हम जा पहुंचे उस जगह पर जहां जूते उतार कर मंदिर की 32 सीढ़ियां उतरनी थी। यहीं से दाईं तरफ एक चट्टान पर बंद मंदिर दिखाई देता है जो कभी पूजित रहा होगा।

सीढियां उतर कर हम लोहे के जंगले से सुरक्षित महादेव मंदिर के सामने थे। मंदिर एक सुनहरे रंग की छतरी में बना है। यहां दो शिवलिंग बराबर – बराबर स्थित हैं, पूजित हैं। पार्श्व में दोनों और देवी पार्वती और मध्य में गणपति की तथा सामने एक शिव वाहन नादिया की प्रतिमाएं हैं। छतरी के बाहर दाईं और ऊपर की तरफ एक पुराने पेड़ के बीच हनुमान जी पधराए गए हैं। संगमरमर की चौंकी पर बना यह महादेव मंदिर आस्था का केंद्र है। मंदिर की देखभाल और सेवा खड़ीपुर गांव का निवासी मोहन लाल भील करता है जो सांय 5.,30 बजे अपने घर चला जाता है। मंदिर के पास ही चट्टान में एक छोटी सी कोठरी बनी हैं जिसमें वर्षो से 24 घंटे ज्योत प्रज्वलित रहती हैं। इसमें मंदिर के सबसे पुराने पुजारी गामा जी महाराज की तस्वीर लगी है जो यहीं तपस्या करते थे।

देव दर्शन कर आगे बढ़ते हैं तो चट्टानों से फूटते पानी के झरना अत्यंत मोहक लग रहा था। एक गौ मुख भी बना है जिसके मुंह से तेज जलधारा चल रही थी और आस – पास जल की धाराएं। जल की धाराएं जमीन पर गिर कर चमकते मोतियों की तरह बिखरते हुए प्रतीत होती हैं। सैलानी इन झरनों का खूब आनंद ले रहे थे। एक तरफ झरने दूसरी तरफ समुद्र तल से करीब 500 फीट गहरी हरेभरे वृक्षों से आच्छादित घाटी और अर्ध चंद्राकार आकृति में बहती चंबल नदी का नजारा देखते ही बनता है। यहां आप जितना समय चाहे बीता कर प्राकृतिक सौंदर्य का रसास्वादन कर सकते हैं।
वल्चर संरक्षण के लिए पहचान

गरडिया महादेव का यह रमणिक स्थल वल्चर संरक्षण के लिए खास पहचान बनाता है। यहां की ब्लचर कालोनी को शौकिया फोटोग्राफर विजय माहेश्वरी ने काफी नजदीक से देख कर चित्र लिए हैं। जैसा उन्होंने बताया कि यहां के वल्चर जीवन पर 2013 में सत्येन्द्र कुमार, हरिमोहन मीणा, प्रमोद कुमार जाँगीड़ और कृष्णेन्द्र सिंह नामा द्वारा गरडिया महादेव से गेपरनाथ महादेव के बीच चंबल की कराइयों में अध्ययन किया गया। अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र में 2006 से 2013 के बीचगिद्धों की संख्या में 46 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। देश में पाई जाने वाली गिद्धों की नो प्रजातियों में से कोटा के आस – पास चार प्रजातियाँ देखी गई हैं।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (सीएमपी) पर फरवरी 2020 में आयोजित 13वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी (सीओपी 13) से पहले पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया था कि पिछले तीन दशक में देश में गिद्धों की संख्या में तेजी से कमी आई है और यह 4 करोड़ से घटकर 4 लाख से भी कम रह गई है। उन्होंने कहा कि जानवरों का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा ‘डाइक्लोफेनेक’ की वजह से गिद्धों की मौत हुई क्योंकि वे मृत जानवरों को खाते हैं। इसके अलावा पर्याप्त भोजन की कमी, अनुकूल वातावरण का नहीं मिलना, विषाक्त भोजन और पेस्टीसाइड्स के दुष्प्रभाव जैसे और भी कारण हैं जिससे गिद्धों की आबादी घटी है। इसी चिन्ताजनक खबर के साथ एक तसल्ली देने वाला तथ्य यह है कि कोटा के आस- पास चंबल की कराइयों में गिद्धों की संख्या में वृद्धि हो रही है क्योंकि चंबल नदी की कराइयों में गिद्धों को अपने आवास के लिए निरापद और उपयुक्त स्थान तथा आवश्यक भोजन मिल जाता है।

बतादें वर्ष 2016 में राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान टूरिज्म के एड में इस जगह को प्रमुखता से दिखाया गया था। यहां वन विभाग ने क्षेत्र का कुछ विकास किया और कुछ जनसुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। मुकंदरा टाइगर प्रोजेक्ट्स के लिए प्रयास किए जाने वाले वाले सदस्यों में नेचर प्रमोटर ए.एच.जैदी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। वे भी कहते हैं प्रवेश बहुत महंगा हो गया है जिसे व्यवहारिक बनाया जाना चाहिए जिससे अधिक से अधिक पर्यटक देखने जा सकें।

चित्र सौजन्य : विजय माहेश्वरी

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