Friday, March 29, 2024
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सरकार के नक्कारखाने में नहीं गूँजती हिंदी की आवाज़

सेवा में,
श्री नरेंद्र मोदी
भारत के माननीय प्रधानमंत्री
प्रमंका, नयी दिल्ली

विषय: आपकी वेबसाइट पर दर्ज करवाई गई ऑनलाइन शिकायतों पर अधिकारियों द्वारा कार्रवाई न करने की शिकायत

महोदय
मैंने 9 जुलाई 2017 को आपकी वेबसाइट पर शिकायत दर्ज करवाई थी जो वित्त मंत्रालय को अग्रेषित कर दी गई, उसके बाद वहाँ से उसे केन्द्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क बोर्ड को अग्रेषित किया गया और वहां से उस शिकायत को वस्तु एवं सेवा कर के महानिदेशक के पास हस्तांतरित कर दिया गया, किसी भी अधिकारी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय से आई इसलिए इसे यहाँ वहाँ भेजने के बदले कार्रवाई करनी चाहिए.

अंत में मेरी शिकायत को राजभाषा नियमावली 1976 के नियम 5 का उल्लंघन करते हुए वस्तु एवं सेवा कर के महानिदेशक ने अंग्रेजी में जवाब लिखते हुए बिना कोई समाधान किए ही बंद कर दिया. इन महोदय ने शिकायत को शिकायत मानने से इनकार करते हुए लिखा है कि आपके सुझाव को लिख लिया गया है जबकि मेरी शिकायत में लगभग 10 महत्वपूर्ण बिंदु थे जिसपर महोदय ने टिपण्णी करना भी जरूरी नहीं समझा.

राजभाषा विभाग ने भी वसेक संबंधित अधिकारियों को ऐसी शिकायतें भेजी हैं पर अब तक कोई जवाब नहीं आया है.

भारत सरकार के लगभग सभी उच्च अधिकारी हिंदी में की गई शिकायतों पर न तो ध्यान देते हैं और न ही उन पर कोई कार्रवाई करते हैं, ये एक कड़वी सच्चाई है. व्यापारियों को वसेक सम्बन्धी सभी प्रमाण-पत्र, नोटिस, पत्र, ईमेल और एसएमएस केवल अंग्रेजी में भेजे जा रहे हैं जिसे न तो वे पढ़ सकते हैं और न समझ सकते हैं, यहीं से उनके शोषण का काम शुरू हो जाता है.

वस्तु एवं सेवा कर भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वाकांक्षी सुधार है पर आपकी सरकार के अधिकारी इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि इस सुधार को केवल अंग्रेजी में लागू करने से यह विफल हो सकता है क्योंकि वसेक की सम्पूर्ण ऑनलाइन व्यवस्था, इसके ऑनलाइन फॉर्म/ऑनलाइन पंजीयन/ऑनलाइन विवरणी और सभी वेबसाइट और पोर्टल सिर्फ अंग्रेजी बनाए गए हैं जबकि भारत के करोड़ों आम व्यापारी (छोटे और मझोले व्यापारी) अंग्रेजी नहीं जानते हैं. इस जटिल और समय बर्बाद करने वाली अंग्रेजी व्यवस्था ने उनकी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है.

सरकारी अधिकारियों ने वसेक सम्बन्धी अंग्रेजी में तैयार सामान्य प्रश्नों (एफएक्यू) को निम्नस्तरीय हिंदी अनुवाद करवाके बिना उसकी जाँच किए ही करोड़ों रुपये खर्च करके हिंदी समाचार-पत्रों में छपवा दिया, जो आम व्यापारी की समझ से बाहर रहा है.

मैं अपनी शिकायत पुनः इस आशा के साथ दर्ज करवा रहा हूँ ताकि आप इस पर सभी अधिकारियों को ठोस निर्देश जारी करेंगे और वस्तु एवं सेवा कर से जुड़ी सभी ऑनलाइन सेवाओं को सभी भारतीय भाषाओ के विकल्प के साथ शुरू करवाएँगे.

आपके द्वारा कार्रवाई की आशा में भारत का एक आम नागरिक,
प्रवीण कुमार जैन (एमकॉम, एफसीएस, एलएलबी),
कम्पनी सचिव, वाशी, नवी मुम्बई – ४००७०३.

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