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खौफ, आतंक, रोमांच और खतरे से भरी है गौरक्षकों की कहानी

गौरक्षकों का नाम सुनते ही मीडिया द्वारा बनाया गया एक ऐसा दृश्य सामने आता है मानो गौरक्षा के नाम पर निर्दोषों को मारा जा रहा है। लेकिन तमाम कानून कायदों और नियमों के बाद भी प्रतिदिन हजारों लाखों गौवंश का कत्ल किया जा रहा है और गौवंश को जान की बाजी लगाकर बचाने वाले दुस्साहसी लोगों की मार्मिक और दिल हिला देने वाली दास्तानों पर समाज, सरकार और मीडिया ने चुप्पी सी साध रखी है। मुंबई के यतीन जैन और उनके साथी कार्यकर्ताओं से गौवंश की रक्षा को लेकर किए जा रहे उनके प्रयासों की गाथा सुनें तो ऐसा लगता है मानो किसी हैरतअंगेज, खौफनाक, रहस्य- रोमांच और खतरों से भरपूर किसी जासूसी उपन्यास को पढ़ रहे हैं।

मुंबई के बोरिवली पश्चिम में स्थित दिवा कैफे में गौरक्षक यतिन्द्र जैन और उनके साथियों का सम्मान कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कैफे की खासियत ये है कि यहाँ पिज्जा, बर्गर सभी चीजें गाय के दूध से बने उत्पादों से बनाई जाती है। यहाँ जो भी चीज बनती है पहले उसका भगवान को भोग लगाया जाता है, इसके बाद ग्राहकों को दिया जाता है। इसका संचानल लंदन से आए प्रेम कीर्तन और उनकी पत्नी श्रीमती मंजरी मिलकर चलाते हैं। यहाँ बने वाली सभी चीजों में बाजार से लाई गई कोई चीज काम में नहीं लाई जाती।

कार्यक्रम में आए एडवोकेट ने गौ हत्या और गौवंश की हत्या को लेकर देश की सरकारों द्वारा खेली जा रही चालों का पर्दाफाश किया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 48 में गौ हत्या पर प्रतिबंध है, लेकिन इसके साथ ही इसे राज्यों पर छोड़ दिया गया है कि वे गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाएँ या न लगाएँ। संविधान में ये सब प्रावधान ब्रिटिश सरकार की इच्छा के अनुसार किए गए हैं और षड़यंत्र का एक बड़ा हिस्सा है, जिसको आज तक नहीं बदला गया है।

उन्होंने बताया कि 1958 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक अजीव निर्णय दिया जिसमें कहा गया कि गाय की हत्या तो गैर कानूनी है लेकिन गौवंश की का कत्ल हो सकता है। 2005 तक जब भी किसी ने किसी भी न्यायालय में गौवंश की हत्या को लेकर कोई याचिका दायर की, इस निर्णय की आड़ में उसे खारिज किया जाता रहा। आज भी देश के 28 में से मात्र 14 राज्यों में गौहत्या निषेध का कानून है। महाराष्ट्र सरकार ने जब गौवंश हत्या के विरोध में कानून बनाया तो 34 अपीलें सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ लगा दी गई।

एडवोकेट जोशी ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी सरकारों में गौवंश की हत्या रोकने की इच्छा शक्ति ही नहीं है। सभी सरकारं 1492 में वेटिकन चर्च मे तत्कालन पोप एलेक्ज़ेंडर षष्ठम द्वारा बनाई गई रणनीति के तहतम काम कर रही है। उस समय चर्च ने ये संकल्प लिया था कि जहाँ जहाँ इसाई नहीं हैं वहाँ इसाईयों का राज स्थापित करना है। सभी धर्मों का खात्मा कर केवल इसाई धर्म को ही स्थापित काय जाए। विगत 500 सालों से सभी सरकारें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से इसी एजेंडे पर काम कर रही है।

पूरी दुनिया ने ये बात जान ली थी कि जब तक भारत में पशुधन है तब तक ये समृध्द रहेगा हमारे देश में भेड़-बकरियों, गायों को पशुधन माना गया है। जबकि आजादी के बाद से भारत लगातार भेड़, बकरियों, भैसों और गायों के मीट का निर्यात बढ़ाता जा रहा है। विदेशी ताकतें सरकारों को पशुधन और गौवंश को लेकर कोई नीति बनाने ही नहीं देती है। गाँवों से गौचर की भूमि बिल्डर माफियाओँ द्वारा हड़पी जा रही है। पहले गायें गोचर में चरने जाती थी और दिन भर चरती थी, गाय के मालिक को उसके खाने-पीने की ज्यादा फिक्र नहीं करना पड़ती थी। लेकिन आज किसान के पास खुद के लिए पानी नहीं है वह गायों को चारा और पानी कैसे लाकर दे।

देश की खेती के ढाँचो को भी षड़यंत्रपूर्वक तहन नहस किया जा रहा है। केमिकल खाद को सबसिडी के नाम पर 2 लाख करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं।

गौसेवा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देने वाले श्री यतिन्द्र जैन ने जब गौवंश को बचाने के अपने संघर्ष की दास्तान सुनाई तो ऐसा लगा मानों किसी जासूसी उपन्यास की कोई कहानी सुना रहे हैं।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 में वे पहली बार गौवंश बचाने के लिए पुलस थाने में रिपोर्ट लिखाने गए, मगर पुलिस ने रिपोर्ट नहीं लिखी और मुझे झूठा बताते रहे। मैं भी रात भर थाने में बैऎठा रहा। बाद में पुलिस वाले मेरे साथ गए

उन्होंने बताया कि गौवंश को बचाने के लिए सबसे पहले पुलिस को समझाना भारी पड़ता है, पुलिस इस मामले में टालमटोल करती है। फिर जब हम गौवंश को बचाने जाते हैं तो कसाईयों के इलाके इतने बदबूदार होते हैं कि अगर कुछ खाकर जाओ तो उल्टी होने लगती है। इसलिए हम भूखे ही जाते हैं। कई बार गायों को आँखों के सामने कटते देख अपना खून ही पानी हो जाता है। गाय कट रही होती है और बगल में ही उसका बछड़ा माँ माँ कहकर रंभाता रहता है।

यतीन्द्र जैन ने एक से एक खौफनाक, रोमांचक, हैरतअंगेज और कँपा देने वाले किस्से सुनाए। उन्होंने पूरे मुंबई, भिवंडी और थाणे के क्षेत्र में सैकड़ों जासूस युवा तैयार कर लिए हैं जो तस्करी कर लाए गए गौवंश की खबर देते हैं। फिर एक दूसरा दस्ता होता है जो उनको बचाने जाता है।

उन्होंने बताया कि एक जगह हमें सैकड़ों गायों को काटे जाने की सूचना मिली, और पता चला कि गौवंश को मारकर एक कोल्ड स्टोरेज में रखा गया है। हम पुलिस की मदद से वहाँ छापा मारने गए तो वहाँ कुछ नहीं मिला, लेकिन मेरी खबर पक्की थी, मैने कोल्ड स्टोरेज के पीछे के हिस्से को खुलवाया तो वहाँ गायों का चमड़ा और हड्डियों का ढेर लगा था। फिर हमने उसके पीछे खेत की तलाशी ली तो एक कुए में सैकड़ों गायें मिल। उन्होंने बताया कि मुंबई और इसके आसपास के क्षेत्र में 700 कसाईयों का एक गिरोह है जो गौवंश की तस्करी करवाता है और रातोंरात इनको मार देता है।

उन्होंने बताया कि ट्रकों, लारियों और छोटी छोटी गाड़ियों में गौवंश को ऐसे भरकर ले जाया जाता है कि उनके सींग दूसरे के पेट और आँखों मे घुस जाते हैं। पैरों की हड्डियाँ टूट जाती है, गौवंश को बचाने के बाद उनकी हालत देखकर आत्मा चीत्कार उठती है।

यतिन्द्र जैन ने बताया कि एक बार हमें कसाई मोहल्ले में गायों के होने की सूचना मिली हम आधी रात को छुपते-छुपाते पूरे कसाई मोहल्ले में सर्च करते रहे, फिर एक जगह देखा कि बहुत सी गायें एक जगह ठूँस –ठूँस कर बिठा रखी है और अंदर गायें काटी जा रही है, हमने शटर खोलकर वहाँ छापा पड़वाया और गायों को बचाया।

कई बार हम पर कसाईयों ने जान लेवा हमला किया और हम पर चाकू, छुरियाँ और तलवारें लेकर भी दौड़े मगर हम गौ माता की कृपा से हर बार बच गए।

यतिन्द्र जैन ने बताया कि उन्होंने मस्जिद के बाहर कई दिन तक भीख भी माँगी ताकि वो गौवंश के हत्यारों तक पहुँच सके। भीख मांगने के लिए भी उनको वहाँ भिखारियों का रैकेट चलाने वाले लोगों को 150 रुपये रोज देने पड़ते थे।

उन्होंने बताया कि शुरु शुरु में तो पुलिस उनको मदद नहीं करती थी, मगर अब पुलिस वाले खुद हमें गौवंश की तस्करी की खबर देते हैं।

गायों को बचाने के लिए उनके साथ कसाई समाज के ही अबरार भाई भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। अबरार भाई को अपने गाय प्रेम का खामियाजा भुगतना पड़ा और उनको अपने कारोबार में करोड़ों का घाटा तक हो गया। ईद के मौके पर उनके समाज के लोग उनका बहिष्कार ही कर देते हैं, इक्का दुक्का लोग ही उनको ईद की बधाई देने उनके घर आते हैं, जबकि बड़ी संख्या में हिंदू भाई उनको ईद की शुभकामना देने पहुँचते हैं। अबरार भाई और उनकी पत्नी ज़ीनत बेगम सब तरह के खतरे उठाकर गौवंश को कटने से बचाने की कोशिश करते हैं।

यतिन्द्र जैन ने कहा कि गायों को इस तरह बचाने से गौवंश की रक्षा नहीं हो सकेगी, जब तक सरकारें हर तरह के गौवंश को कत्लखाने में लेजाने पर रोक नहीं लगाती तब तक गायों को बचाना मुश्किल है।

गौरक्षा से जुड़े श्री उत्तम महेश्वरी ने कहा कि जब तक समाज नहीं जागेगा तब तक इस दिशा में कुछ नहीं किया जा सकता, सरकार के भरोसे हर काम होना संभव नहीं। आज जरुरत है पशु व खेती आधारित योजनाओं की जिससे भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार भी बढ़े और देश आत्मनिर्भर हो सके।

इस अवसर पर उपस्थित गौ सेवक श्री किशोर कराले ने बताया कि उन्होंने मुंबई के पास वाड़ा में गौशाला बनाई और इसके बाद अपने लिए रहने को घर बनाया। उनकी गौशाला में 127 गायें हैं और उनके प्रयासों से 12 घरों में भी लोगॆं ने गायें पाली है।

एक अन्य कार्यकर्ता हनुमंत भी वहाँ मौजूद थे, जो गौवंशो को कसाईयों से बचाने के चक्कर में अपनी कई नौकरियाँ गँवा चुके हैं, क्योंकि जैसे ही उन्हें खबर मिलती है कि गायों को कतलखाने में ले जाया जा रहा है, वे अपना काम छोड़कर दो –तीन दिन तक गायों को बचाने, पुलिस में रिपोर्ट लिखाने में व्यस्त हो जाते हैं और उनकी नौकरी चली जाती है। एक बार तो अपने घर में हो रही शादी छोड़कर वो गायों को बचाने निकल पड़े।

कार्यक्रम में यतिन्द्र जैन के कई सहयोगी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। यतिन्द्र भाई के साथ ही उनकी माताजी का सम्मान अबरार भाई ने किया। इस अवसर पर यतीने जैन को सम्मान निधि भी भेंट दी गई ताकि वो गौवंश को बचाने की अपनी लड़ाई जारी रख सके।