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क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का

तस्वीर-ए-रू-ए-यार दिखाना बसंत का
अटखेलियों से दिल को लुभाना बसंत का

हर सम्त सब्ज़ा-ज़ार बिछाना बसंत का
फूलों में रंग-ओ-बू को लुटाना बसंत का

रश्क-ए-जिनाँ चमन को बनाना बसंत का
हर हर कली में रंग दिखाना बसंत का

पैग़ाम-ए-लुत्फ़-ए-ख़ास सुनाना बसंत का
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-आम बहाना बसंत का

क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का
क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का

दिल को बहुत अज़ीज़ है आना बसंत का
‘रहबर’ की ज़िंदगी में समाना बसंत का

नज़ीर अकबराबादी (१७३५-१८३०), उनका असली नाम वली मुहम्मद था। उन्हें उर्दू ‘नज़्म का पिता’ माना जाता है । उन्होंने आम जीवन, ऋतुओं, पर्वों-त्यौहारों, फलों से लेकर सब्जी बेचने वाले तक के लिए नज़्में लिखी। माना जाता है कि उनकी लगभग दो लाख रचनाएँ थी, परन्तु उनकी छह हज़ार के करीब रचनाएँ मिलती है और इन में से लगभग ६०० ग़ज़लें हैं।