Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeजीवन शैलीमानव सभ्यता की अनूठी पहचान है परिवार

मानव सभ्यता की अनूठी पहचान है परिवार

विश्व परिवार दिवस, 15 मई 2019 पर विशेष

विश्व परिवार दिवस हर साल 15 मई को मनाया जाता है। देश एवं दुनिया को परिवार के महत्व को बताने के लिए यह दिवस मनाया जाता हैं। परिवार दो प्रकार के होते हैं- एक एकल परिवार और दूसरा संयुक्त परिवार। एकल परिवार में पापा- मम्मी और बच्चे रहते हैं। संयुक्त परिवार में पापा- मम्मी, बच्चे, दादा दादी, चाचा, चाची, बड़े पापा, बड़ी मम्मी, बुआ इत्यादि रहते हैं। इस दिवस मानाने की घोषणा सर्वप्रथम 15 मई 1994 को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने की थी। संयुक्त परिवार टूटने एवं बिखरने की त्रासदी को भोग रहे लोगों के लिये यह दिवस बहुत अहमियत रखता है। बढ़ती जवाबदारी और जरूरतों को पूरा कर पाने का भय ही वह मुख्य कारण है जो अब संयुक्त परिवारों के टूटने का कारण बना है। जबकि वास्तव में मानव सभ्यता की अनूठी पहचान है संयुक्त परिवार और वह जहाँ है वहीं स्वर्ग है। रिश्तों और प्यार की अहमियत को छिन्न-भिन्न करने वाले पारिवारिक सदस्यों की हरकतों एवं तथाकथित आधुनिकतावादी सोच से बुढ़ापा कांप उठता है। संयुक्त परिवारांे का विघटन और एकल परिवार के उद्भव ने जहंा बुजुर्गांे को दर्द दिया है वहीं बच्चों की दुनिया को भी बहुत सारे आयोजनों से बेदखल कर दिया है। दुख सहने और कष्ट झेलने की शक्ति जो संयुक्त परिवारों में देखी जाती है वह एकल रूप से रहने वालो में दूर-दूर तक नही होती है। आज के अत्याधुनिक युग में बढ़ती महंगाई और बढ़ती जरूरतों को देखते हुए संयुक्त परिवार समय की मांग कहे जा सकते हंै।

हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में हम पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि अनुभव करते हैं।

भारत गांवों का देश है, परिवारों का देश है, शायद यही कारण है कि न चाहते हुए भी आज हम विश्व के सबसे बड़े जनसंख्या वाले राष्ट्र के रूप में उभर चुके हैं और शायद यही कारण है कि आज तक जनसंख्या दबाव से उपजी चुनौतियों के बावजूद, एक ‘परिवार’ के रूप में, जनसंख्या नीति बनाये जाने की जरूरत महसूस नहीं की। ईंट, पत्थर, चूने से बनी दीवारों से घिरा जमीं का एक हिस्सा घर-परिवार कहलाता है जिसके साथ ‘मैं’ और ‘मेरापन’ जुड़ा है। संस्कारों से प्रतिबद्ध संबंधों की संगठनात्मक इकाई उस घर-परिवार का एक-एक सदस्य है। हर सदस्य का सुख-दुख एक-दूसरे के मन को छूता है। प्रियता-अप्रियता के भावों से मन प्रभावित होता है। घर-परिवार जहां हर सुबह रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा की समुचित व्यवस्था की जुगाड़ में धूप चढ़ती है और आधी-अधूरी चिंताओं का बोझ ढोती हुई हर शाम घर-परिवार आकर ठहरती है। कभी लाभ, कभी हानि, कभी सुख, कभी दुख, कभी संयोग, कभी वियोग, इन द्वंद्वात्मक परिस्थितियों के बीच जिंदगी का कालचक्र गति करता है। भाग्य और पुरुषार्थ का संघर्ष चलता है। आदमी की हर कोशिश ‘घर-परिवार’ बनाने की रहती है। सही अर्थों में घर-परिवार वह जगह है जहां स्नेह, सौहार्द, सहयोग, संगठन सुख-दुख की साझेदारी, सबमें सबक होने की स्वीकृति जैसे जीवन-मूल्यों को जीया जाता है। जहां सबको सहने और समझने का पूरा अवकाश है। अनुशासन के साथ रचनात्मक स्वतंत्रता है। निष्ठा के साथ निर्णय का अधिकार है। जहां बचपन सत्संस्कारों में पलता है। युवकत्व सापेक्ष जीवनशैली से जीता है। वृद्धत्व जीए गए अनुभवों को सबके बीच बांटता हुआ सहिष्णु और संतुलित रहता है। ऐसा घर-परिवार निश्चित रूप से पूजा का मंदिर बनता है।

संयुक्त परिवारों की परम्परा पर आज धुंधलका छा रहा है, परिवार टूटता है तो दीवारें भी ढहती हैं, आदमी भी टूटता है और समझना चाहिए कि उसका साहस, शक्ति, संकल्प, श्रद्धा, धैर्य, विश्वास बहुत कुछ टूटता/बिखरता है। क्रांति और विकास की सोच ठंडी पड़ जाती है और जीवन के इसी पड़ाव पर फिर परिवार का महत्व सामने आता है। परिवार ही वह जगह है भाग्य की रेखाएं बदलने का पुरुषार्थी प्रयत्न होता है। जहां समस्याओं की भीड़ नहीं, वैचारिक वैमनस्य का कोलाहल नहीं, संस्कारों के विघटन का प्रदूषण नहीं, तनावों की त्रासदी की घुटन नहीं। कोई इसी परिवाररूपी घेरे के अंधेरे में रोशनी ढूंढ लेता है। बाधाओं के बीच विवेक जमा लेता है। भीड़ में अकेले रह जाता है। दुख में सुख का संवेदन कर लेता है। घर-परिवार को सिर्फ अपनी नियति मानकर नहीं बैठा जा सकता। क्योंकि इसी घर में मंदिर बनता है और कहीं घर ही मंदिर बन जाता है।

कहते हैं कि आपका काम, रबड़ की गेंद है, जिस पर जितना जोर देते हैं, वह उतना ऊंचा उठता है। पर आपका परिवार कांच की गेंदें हैं, जो हाथ से छूटती हैं तो टूट ही जाती हैं। कई बार हम सब भूल जाते हैं कि जीवन में सबसे जरूरी क्या है। हम इधर-उधर की बातों में इतना डूब जाते हैं कि जो सच में जरूरी है, उसे छोड़ देते हैं। हम परिवार की खुशियों के नाम पर सामान तो खरीदने में लगे रहते हैं, पर उन चीजों पर ध्यान नहीं देते जो परिवार में सबको संतुष्टि का एहसास कराती हैं, सबको जोड़ती है। “परिवार” शब्द हम भारतीयों के लिए अत्यंत ही आत्मीय होता है। अपने घर-परिवार में अपने आपका होना ही जीवन का सत्य है। यह प्रतीक्षा का विराम है। यही प्रस्थान का शुभ मुहूर्त है।

किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार ही हर उम्र के लोगों को सुकून पहुँचाता है। अथर्ववेद में परिवार की कल्पना करते हुए जो कहा गया है उसका सारांश है पिता के प्रति पुत्र निष्ठावान हो। माता के साथ पुत्र एकमन वाला हो। पत्नी पति से मधुर तथा कोमल शब्द बोले।’ परिवार कुछ लोगों के साथ रहने से नहीं बन जाता। इसमें रिश्तों की एक मजबूत डोर होती है, सहयोग के अटूट बंधन होते हैं, एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। हमारा यह फर्ज है कि इस रिश्ते की गरिमा को बनाए रखें। हमारी संस्कृति में, परंपरा में पारिवारिक एकता पर हमेशा से बल दिया जाता रहा है। परिवार एक संसाधन की तरह होता है। फिर क्या कारण है कि आज किसी भी घर-परिवार के वातायन से झांककर देख लें-दुख, चिंता, कलह, ईष्र्या, घृणा, पक्षपात, विवाद, विरोध, विद्रोह के साये चलते हुए दीखेंगे। अपनों के बीच भी परायेपन का अहसास पसरा हुआ होगा। विचारभेद मनभेद तक पहुंचा देगा। विश्वास संदेह में उतर आएगा। ऐसी अनकही तनावों की भीड़ में आदमी सुख के एक पल को पाने के लिए तड़प जाता है। कोई किसी के सहने/समझने की कोशिश नहीं करता। क्योंकि उस घर-परिवार में उसके ही अस्तित्व के दायरे में उद्देश्य, आदर्श, उम्मीदें, आस्था, विश्वास की बदलती परिधियां केंद्र को ओझल कर भटक जाती हैं। विघटन शुरू हो जाता है। इस बिखराव एवं विघटन पर नियंत्रण पाने के लिये हमने गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में सुखी परिवार अभियान चलाया, जिससे परिवार संस्था को मजबूती देने के व्यापक उपक्रम किये जा रहे हैं।

हमने कई बार देखा है जो व्यक्ति अकेले होते हैं या अकेले रहते हैं किसी दुःख या परेशानियों के वजह से डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर लेते हैं। क्योंकि उनके पास कोई परिवार नहीं, जिससे वह अपने दिल की बात कहें। ऐसा भी कहा गया हैं कि बातें शेयर करने से दिल हल्का हो जाता हैं और दिल को सुकून भी मिलता है। लेकिन जब परिवार ही नहीं होगा तो व्यक्ति किसे अपनी बात कहे? इसलिए परिवार का होना बहुत जरुरी होता है। परिवार के साथ रहते हुए हम बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का समाना आसानी से कर सकते हैं। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना भी दुष्कर है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परिवार का सदस्य रहा है या फिर है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा नहीं जा सकता है। हमारी संस्कृति और सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने को परिष्कृत कर ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों में परिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। हम चाहे कितनी भी आधुनिक विचारधारा में हम पल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टि अनुभव करते हैं।

संयुक्त परिवार के अनेक अनूठे उदाहरण है, जिनमें बुलंदशहर के राजगढ़ी गांव में पांच पीढियां एक छत के नीचे रह रही हैं। कुनबे में परदादा से लेकर परपोती तक 46 सदस्य हैं लेकिन उनका एक चूल्हा है। मिजोरम में एक परिवार के 181 सदस्य हैं और इस परिवार का रिकॉर्ड्स गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी शामिल है। यह विश्व का सबसे बड़ा परिवार है। इस परिवार के मुखिया का नाम जिओना चाना हैं। जिओना चाना मिजोरम के बक्तवांग गांव में चार मंजिलंे मकान में रहते हैं। इतना बड़ा परिवार होने के बावजूद चाना के परिवार वाले बड़े ही प्यार और सम्मान के साथ रहते है। इस समय चाना 72 साल के हैं और स्वयं को बेहद भाग्यशाली मानते हैं।

हालांकि भारत में एकल परिवारवाद अभी ज्यादा नहीं फैला है। आज भी भारत में ऐसे कई परिवार हैं जिनकी कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं और कदम-कदम पर साथ निभाती हैं। लेकिन दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ने लगी है। उम्मीद है जल्द ही समाज में संयुक्त परिवार की अहमियत दुबारा बढ़ने लगेगी और लोगों में जागरूकता फैलेगी कि वह एक साथ एक परिवार में रहें जिसके कई फायदे हैं। इंसानी रिश्तों एवं पारिवारिक परम्परा के नाम पर उठा जिन्दगी का यही कदम एवं संकल्प कल की अगवानी में परिवार के नाम एक नायाब तोहफा होगा।
प्रेषकः

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार