Thursday, April 18, 2024
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अपने पुरुषार्थ से देश के लिए बलिदान होने वाले आर्य समाज के योध्दा

स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना कर इस संगठन की छवि समाज सुधारक संस्था के रूप में बनाई| इस हेतु अंधविश्वास, कुरीतियों तथा रुढियों के नाश के लिए स्वामी जी तथा उनके अनुगामियों ने जो जबरदस्त अभियान छेड़ा, उससे कुपित होकर पेट पंथियों ने अपने पेट मात्र के लिए आक्रमण आरम्भ किये| इनका प्रथम निशाना स्वामी जी स्वयं बने| तत्पश्चात् आर्य समाज के बलिदानियों की एक न समाप्त होने वाली परम्परा सी ही आरम्भ हो गई| इसी के अंतर्गत आर्य समाज ने अनेक शहीद पैदा किये| इन सब का विस्तार से वर्णन करें तो सैंकड़ों पृष्ट का ग्रन्थ बन जावेगा| अत: यहाँ पर केवल उन शहीदों का स्मरण मात्र करते हुए, उनका संक्षिप्त सा परिचय दिया जा रहा है, जिनके जन्मदिन अथवा बलिदान या निर्वाण दिन जून महीने में आते हैं|

जन्म पंडित तुलसीराम स्वामी:
पंडित तुलसीराम स्वामी जी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ला ३ संवत् १९२४ तदनुसार १७ जून १८६७ ईस्वी को हुआ| उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला धन्य है, जहां के परीक्षितगढ़ गाँव के निवासी पंडित हजारीलाल स्वामी को इनका पिता होने का गौरव परमपिता परमात्मा ने दिया| आप अभी ११ वर्ष के ही थे जब शीतला रोग के कारण आपकी एक आँख सदा सदा के लिए बंद हो गई| १९४० विक्रमी में आपने स्वामी दयानंद जी के लिखे ग्रन्थ पढ़े| इन ग्रन्थों को पढ़कर आप आर्य समाजियों की पंक्ति में आ खड़े हुए| मेरठ में ही पंडित घासीराम जी से आपका संपर्क हुआ और इन से प्राप्त विचारों ने आपके वैदिक विचारों को परिपक्व बनाया| पश्चिम उत्तर प्रदेश तथा अवध प्रदेश में आर्य प्रतिनिधि सभा की स्थापना में आपका अद्वितीय योगदान रहा| आपने अनेक शास्त्रार्थ किये तथा अनेक पुस्तकों की रचना भी की| अंत में आपको विशुचिका रोग हो गया और इस रोग ने १५ जुलाई सन् १९१५ ईस्वी को आपकी जान ले ली|

जन्म पंडित रामप्रसाद बिस्मिल
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी आर्य समाज को आर्य युवक समाज के माध्यम से मिले| आपका जन्म ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी संवत् १९५४ विक्रमी (१८९७ ईस्वी} को पंडित मुरलीधर ग्वालियर निवासी, जो इन दिनों शाहजहाँपुर में रहते थे, के यहाँ हुआ| आप एक उत्तम शायर थे| आजादी के दीवाने आपकी कविताओं को गाते हुए हंसते-हंसते फांसी पर झूल जाते थे| देश की आजादी के लिए आपने एक क्रान्तिकारी दल का गठन किया| काकोरी नामक केस के अंतर्गत आप साथियों सहित १९ दिसंबर १९२७ इस्वी को गोरखपुर जेल में हंसते हुए फांसी पर झूल गए| शहीद चंद्रशेखर आजाद उन्हें अपना गुरु मानते थे| पंडित जी ने फांसी की कोठारी में रहते हुए अपनी आत्मकथा लिखी| यह आत्मकथा फांसी से केवल तीन दिन पूर्व ही जेल से बाहर भेजी गई| यह आत्मकथा हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ आत्मकथा है और विश्व साहित्य में भी अपने प्रकार की प्रथम आत्मकथा है, जिसे जेल में फांसी की कोठरी में लिखा गया|
जन्म शहीद हरिकिशन

आपका जन्म उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत की नोशहरा छावनी से कुछ ही दूर स्थित गाँव घालेढेर में दिनांक ९ जून १९०८ ईस्वी को हुआ| आपके पिता जी का नाम लाला गुरदासमल जी तलवाड तथा माता का नाम मथुरादेवी था| शहीद हरिकिशन जी का सम्बन्ध एक वैदिक आर्य परिवार से था| देश के लिए आरम्भ किये गए स्वाधीन्ता आन्दोलन में भाग लेने के लिए आपने क्रान्ति का मार्ग पकड़ा| २३ दिसंबर सन् १९३० को जब पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर के दीक्षांत समारोह में सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन् जी अपना दीक्षांत भाषण पढ़ कर बाहर आ रहे थे तो आपके साथ ही आ रहे पंजाब के क्रूर गवर्नर सर डी गोफारे डी मंटमोरेन्सी पर हरिकिशन जी ने गोलियों की बौछार कर दी| इसी केस में आपको फंसी दी गई|

पंडित चमूपति जी का देहावसान
पंडित चमूपति जी आर्य समाज के उच्चकोटि के विद्वानों मे से एक थे| आपका जन्म १५ फरवरी सन् १८९३ ईस्वी को मेहता वसंदाराम तथा माता लक्ष्मीदेवी जी के यहाँ हुआ| आरम्भ में आप सिक्ख मत की ओर आकर्षित हुए किन्तु स्वामी दयानंद जी के गर्न्थों के अध्ययन से विचार बदले और काया पलट हुआ| आपने आर्य समाज के प्रचार के लिए अनेक कष्टों को सहन किया| “आर्य पत्रिका” का सम्पादन किया| आप एक उत्तम कवि और लोखक थे| आपकी लिखी अनेक पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं| १५ जून १९३७ ईस्वी को आपका देहांत हुआ|
बलिदान हुतात्मा वैद्यनाथ जी

वैद्यनाथ जी का जन्म बिहार के नरकटियागंज में हुआ| पिता श्री धरिच्छनराम जिला चंपारण के समाज सेवियों में प्रसिद्ध थे| अभी वैद्यनाथ जी का विवाह हुआ ही था कि हैदराबाद में सत्याग्रह के लिए सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने शंखनाद कर दिया| अत: आप सत्याग्रह के लिए हैदराबाद को रवाना हुए| स्वामी स्वतान्त्रनंद जी ने आपके बारे में इस प्रकार लिखा है “आपका शौर्य व धर्मभाव मेवाड़ी वीरों का स्मरण कराता है, जो विवाह का कंगन हाथ से खुलने से पूर्व ही देश रक्षा के लिए रणभूमि में प्राण लुटा गए|” निजाम की जेल की कुव्यवस्था से आप रोग-ग्रस्त हो गए| बलिदान के कलंक से बचते हुए निजाम ने आपको जेल से रिहा करा दिया| २५ जून १९३९ ईस्वी को आपका देहांत हो गया|
जन्म शहीद रामनाथ जी

आपका जन्म ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी संवत १९७३ विक्रमी तदनुसार १६ जून १९१७ ईस्वी को अहमदाबाद के निकट असारवा कसबे में श्री मोतीभाई रणछोड़ भाई तथा माता मणि बहन के यहाँ हुआ| पिता आपको आर्य संस्कृति का अनुरागी बनाना चाहते थे| अत: आपको गुरुकुल से शिक्षा लेने के लिए गुरुकुल सुपा भेजा गया| १९३५ ईस्वी में प्लेग का रोग फूटने पर आपने अपनी बहन की सहायता से रोगियों की सेवा में जी जान लगा दिया| फिर उच्च शिक्षा के लिए गुरुकुल कांगड़ी चले गए| इन्हीं दिनों हैदराबाद के सत्याग्रह की घोषणा होते ही आप महात्मा नारायण स्वामी जी के नेतृत्व में हैदराबाद गए और वहां सत्याग्रह किया | आपको पकड़ कर पहले हैदराबाद और फिर वारंगल जेल में रखा गया| यहाँ कमरा बंद कर पुलिस की पिटाई और दारुण कष्ट दिए जाने और गंदे खाने के कारण आपका स्वास्थ्य बिगड़ गया| छ: महीने की सजा पूर्ण होने पर निजाम झुक गया और सभा से हुए समझोते के अनतर्गत आपको छोड़ दिया गया| विजेता के रूप में घर आये किन्तु विषम ज्वर को साथ लेकर आये| इसी ज्वर के कारण मात्र दो सप्ताह में ही दिनांक ८ सितम्बर १९३९ ईस्वी को आपका देहांत हो गया|
बलिदान वीर धर्मप्रकाश जी

आपका जन्म चालुक्य वंश की राजधानी कल्याणी(कर्नाटक) में हुआ| धर्मप्रकाश एक तेजस्वी, फुर्तीला तथा साहसी आर्य युवक था| सत्यार्थ प्रकाश के पठन तथा मह्रिषी दयानंद जी के जीवन का उन पर खूब प्रभाव पड़ा| उन्होंने व्यायाशाला आरम्भ की और इसमे नियमित व्यायाम करने लगे| इस व्यायाम शाला के माध्यम से उन्हें बहुत से आर्य वीर भी मिले| एक दिन धर्म प्रकाश जी व्यायाम शाला से लौट रहे थे कि पचास से अधिक सशस्त्र मुसलमानों ने निहत्थे धर्मप्रकाश पर आक्रमण कर दिया| उन्हें मुसलमान बनने को कहा गया, किन्तु स्वामी दयायंद का शिष्य झुकाने वाला नहीं था| २७ जून १९३८ ईस्वी को आपका बलिदान हुआ किन्तु निजाम ने शवयात्रा में हिन्दुओं को नहीं जाने दिया| एक तंग मार्ग से अर्थी निकाली गई| अर्थी यात्रा के पूरे मार्ग में मुस्लिम अधिकारी उन्हें गालियाँ देते रहे तथा हिन्दू लोग अपने घरों से पुष्प बरसते रहे| निजाम के रोकने पर भी एक हजार से अधिक हिन्दू आर्य स्त्री-पुरुष लोग शमशान में पहुँच गए| इस मध्य हिन्दुओं के घरों पर मुसलमान लोग पत्थर फैकते रहे|

पंडित गणपति शर्मा
पंडित गणपति शर्मा जी का जन्म राजस्थान के नगर चुरू में संवत् १९३० विक्रमी तदनुसार सन् १८७६ ईस्वी को हुआ| आपके पिताजी का नाम पंडित भानीराम जी था| आपकी गिनती आर्य समाज के उच्चकोटि के विद्वानों में होती है| आपमें आर्य समाज के लिए अनूठी तड़प थी| आपके प्रभाव से आर्य समाज के सेवकों में भरपूर वृद्धि हुई| आप एक सिद्धहस्त लेखक भी थे| २७ जून १९१२ ईस्वी को आपका देहांत हो गया|

बलिदानी भीमराव, मानिकराव,हिराबाई तथा रामचंद्र
यह सब बलिदानी महाराष्ट्र के नगर उद्गिर के निकटवर्ती गाँव हुपला के निवासी थे| यहां निजामशाही के समय मुसलमानों का आतंक छाया रहता था| मुसलमानों ने मानिकराव जी की बहन हीराबाई को जबरदस्ती मुसलमान बना लिया, किन्तु शीघ्र ही भीमराव जी ने अपने मित्र मानिकराव जी की सहायता से बहन को पुन: शुद्ध कर आर्य बना लिया| इस कारण एक दिन मुसलमानों का सशत्र झुण्ड आया| जब यह अपने पशुशाला में बैठे थे, मुसलमानों ने इन पर गोली चलाई और आग लगा दी | फिर भीमराव को पकड़ कर उनके शरीर के कई टुकडे करके जीवित ही जला दिया| हैदराबाद में जिन पांच आर्यवीरों को जीवित जला कर मारा गया , भीमराव जी उनमें से एक थे| पुन: आर्य बनने पर बहन हीराबाई को भी गोली से शहीद कर दिया गया| चारों की यह बलिदान की कथा २९ जून की है| इसी दिन आषाढ़ १९५३ विक्रमी को वीर रामचंद्र का जन्म हुआ|
वीर रामचंद्र जी

लाला खोजूराम जी निवासी हीरानगर तहसील कठुआ रियासत जम्मू के यहाँ १९ आषाढ़ संवत् १९५३ विक्रमी तदनुसार २९ जून को जन्मा बालक रामचंद्र के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ| कठुआ में आर्य समाज का काम करना मौत को बुलावा देना था, किन्तु फिर भी आपने कठुआ में आर्य समाज की स्थापना के साथ ही सेवा समिति भी स्थापित कर दी| आपने कांग्रेस का कार्य भी किया| अमृतसर में जलियांवाला बाग़ काण्ड के बाद मार्शल ला के दिनों में कांग्रेस के समाचार बाहर भेजने का कार्य आप ही करते थे| अमृतसर कांग्रेस में जाने की आज्ञा सरकार से न मिलने पर अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपात्र देने पर ही आप अमृतसर जा पाए | मेघ जाति के उत्थान के लिए आप ने पाठशाला खोली जिस का खूब विरोध हुआ तथा हमला भी हुआ किन्तु आपने कभी चिंता नहीं की| राजपूतों और मुसलमानों ने मिलकर आप पर आक्रमण किया, जिससे घायल हुए वीर रामचंद्र जी ८ माघ १९७९ विक्रमी तदनुसार २० फरवरी १९२६ ईस्वी को इस शरीर को छोड़ गए|

देहांत स्वामी ध्रुवानंद सरस्वती जी
आपका जन्म मथुरा जिले के पानी नामक गाँव के एक साधारण से परिवार में हुआ | आरम्भ में आपने पशु पालन की सेवा की और फिर गुरुकुल में पाचक का कार्य किया| इस प्रकार साधारण सी सेवा करने वाला बालक कभी समस्त भूमंडल के आर्यों का प्रतिनिधित्व करेगा, एसा तो उस समय कोई सोच भी नहीं सकता था किन्तु स्वामी ध्रुवानंद जी ने अपने परिश्रम से यह कर दिखाया| जब हैदराबाद में सत्याग्रह का शंखनाद हुआ तो आप इस आन्दोलन के चौथे सर्वाधिअकारी स्वरूप १५०० आर्यों के साथ सत्याग्रह के लिए प्रस्तुत हुए| सुयोग्य संगठनकर्ता स्वामी ध्रुवानंद जी ने अनेक देशों में जाकर आर्य समाज के लिए प्रचार किया| अनेक राजाओं से सम्मान भी मिला| अंत में २९ जून सन १९६५ ईस्वी को हृदयाघात से आपका देहांत हो गया|

जन्म दादा गणेशीलाल जी
दादा गणेशीलाल जी का जन्म पंजाब के पटियाला नगर में रेशम के व्यापारी लाला मुंशीराम जी के यहाँ सन् १९०० ईस्वी को हुआ| दो वर्ष की आयु में माता के देहांत होने पर पिताजी के सहयोगी एक मुस्लिम परिवार में आपका पालन पौषण हुआ| कुछ बड़ा होने पर शिक्षार्थ हरीयाणा के नगर कालका में निवास कर रहे अपने मामा जी के पास गए| शिक्षा कम होने पर भी वक्तृत्व कला के आप धनी हो गए| मामा जी के प्रभाव से ही आप आर्य बने| अनेक स्थानों पर रहने के बाद आप हिसार आये| लाला लाजपत राय जी से शाबाश मिलने पर अपना कारोबार छोड़ दिया और देश तथा धर्म के कार्यों में जुट गए| १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में सत्याग्रह करने पर डेढ़ वर्ष तक जेल में रहे| फिर करो या मरो सत्याग्रह में दो वर्ष तक नजरबंद किये गए| देश के आजाद होने पर आप जयप्रकाश के साथी बन गए| सन्त विनोबा भावे जी के साथ अनेक भूदान पद यात्राएं भी कीं| शराब व गोमांस पर रोक लगवाने के लिए भी जेल गए| १८ जून १९९० ईस्वी को आपका निधन हुआ|

श्री चान्द्कारण शारदा
शारदा जी का जन्म २५ जून १८८८ ईस्वी तदनुसार आषाढ़ कृष्णा तृतीया संवत १९४५ विक्रमी को अजमेर के आर्य नेता श्री रामविलास शारदा के यहाँ हुआ| आपने स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया और जेल गए| राजपुताना – मध्यभारत सभा की स्थापना की| १९३० ईस्वी में परोपकारिणी सभा अजमेर के सदस्य बने| आप सदा युवकों को आर्य समाज के लिए प्रेरित करते रहते थे| परोपकारिणी सभा के अनेक वर्ष तक प्रधान रहे| हैदराबाद सयात्ग्रह में दूसरे सर्वाधिकारी स्वरूप आपने सत्याग्रह किया और गुलबर्गा जेल गए| आपने सिंध सत्याग्रह में भी भाग लिया| टंकारा स्मारक सहयोग के लिए अफ्रिका गए| इस स्मारक समिति के मंत्री भी रहे| कार्तिक शुक्ला एकादशी २०१४ विक्रमी तदनुसार ४ नवम्बर १९५७ ईस्वी दिन सोमवार को आपका देहांत हुआ|

डॉ.अशोक आर्य
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