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फिर चली कोटा के साड़ी बुनकरों में खुशहाली की बयार

हथकरघे पर बुनी जाने वाली विश्व प्रसिद्ध कोटा साड़ी के बुनकरों की माली हालत सुधारने की बयार एक बार फिर से चल पड़ी है। जिले के अधिकांश बुनकर कोटा से 15 किमी.दूर कैथून कस्बे में वर्षो से अपने घरों में ही हथकरघे पर साड़ी बनते आए हैं। तानेबाने पर अपनी अंगुलियों के कमाल से जादुई साड़ी बुनने में इन्हें महारथ हासिल है। बुनकरों को उनके द्वारा उत्पादित माल का पूरा मूल्य दिलाने, कच्चे माल की उपलब्धता और बिचोलियों से मुक्ति दिला कर उनकी माली हालत सुधारने के लिए समय – समय पर प्रयास किए गए। कैथून के पास बुनकरों की नई कॉलोनी बनवाई गई और सामुदायिक बिक्री केंद्र खोला गया। कौशल वृद्धि के लिए प्रशिक्षण दिलवाया गया। नकली साड़ी से बचने के लिए जी आईं चिन्ह दिलवाया गया। साड़ी बन कर बिक्री के लिए रामपुरा की भेरू गली में आती हैं जहां करीब 48 व्यापारी कोटा साड़ी का कारोबार करते हैं।

प्रयासों की कड़ी में करीब दस साल पहले रामपुरा बाजार क्षेत्र के गांधी चौक के पास इनके लिए कोटा डोरिया साड़ी बाजार का निर्माण कराया गया था। समय ने करवट ली और दस साल पहले नगरीय विकास मंत्री द्वारा बनाए गए मार्केट में उन्होंने ही स्वयं 17 जुलाई को कोटा डोरिया साड़ी बाजार में निर्मित दुकानों के आवंटन की पुस्तिका का विमोचन कर लंबे वक्त से इंतजार कर रहे कोटा साड़ी विक्रेता व्यापारियों को बड़ी सौगात दी है। दुकानों का आवंटन 4070 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से किया जाएगा। इस में कुल 65 दुकानें हैं जिन्हें लाटरी द्वारा आवंटन किया जाएगा। इसके लिए 18 जुलाई से आवेदन पत्र किए जाएंगे विक्रय किए जाएंगे और आवेदन पत्र अंतिम तिथि 29 जुलाई तक जमा कराए जा सकेंगे। नगर विकास न्यास ने यहां दो मंजिल में पार्किंग और दुकानों का निर्माण कराया है जिस पर 585.44 लाख रुपए व्यय किए गए। प्रथम तल पर 33 एवं द्वितीय तल पर 32 दुकानें है और भू – तल पर पार्किंग सुविधा रखी गई है।

आवंटन पुस्तिका के विमोचन समारोह में मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि कोटा के हर बाजार में रोनक हो इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं पर्यटन नगरी जैसे ही कोटा बनेगा तो देशी विदेशी पर्यटक कोटा के इन्हीं बाजारों में आकर खरीदारी करेंगे जिससे व्यापार भी बढ़ेगा और रोजगार में भी बढ़ोतरी होगी

उन्होंने इस दौरान व्यापारियों द्वारा कोटा डोरिया मार्केट के आवंटन को लेकर रखे गए धैर्य की सराहना की ओर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के वक्त कोटा के साड़ी व्यापारियों की ओर से यह मांग उठाई गई थी कि कोटा डोरिया साड़ी मार्केट अलग से होना चाहिए इसके लिए कार्य योजना बनाई गई और 4070 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से साड़ी व्यवसायियों को दुकानें आवंटित करने की तैयारी की गई थी। चुनाव आने से सरकार बदल गई और भाजपा सरकार ने इस मार्केट की दुकानों की कीमत 3 गुना कर 12000 रुपए प्रति वर्ग मीटर कर दी। जिस से व्यापारियों को निराशा हुई और उन्होंने दुकानों के आवंटन में कोई रुचि नहीं दिखाई। जैसे ही हमारी सरकार वापस आई हमने व्यापारियों के धैर्य का सम्मान करते हुए पुरानी 4070 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से व्यापारियों को राहत देते दुकानें आवंटित करने का निर्णय लिया और आज व्यापारियों का उत्साह देखते ही बन रहा हैं। उन्होंने आशा जताई कि यह बाजार कोटा डोरिया के प्रचार प्रसार एवं व्यापार में बढ़ोतरी का बड़ा माध्यम बनेगा।

इस मौके पर कोटा डोरिया साड़ी विकास समिति के अध्यक्ष संजय बोथरा के नेतृत्व में व्यापारियों ने मंत्री शांति धारीवाल का स्वागत कर आभार जताया। महापौर राजीव भारती मंजू मेहरा उपमहापौर पवन मीणा सोनू कुरैशी जिला अध्यक्ष रविंद्र त्यागी पूर्व जिला अध्यक्ष गोविंद शर्मा न्यास अध्यक्ष एवं कलेक्टर ओ.पी. बुनकर, सचिव राजेश जोशी सहित क्षेत्र के पार्षद, व्यापारी मौजूद रहे।

उल्लेखनीय है कि कैथून में कोटा साड़ी के बुनकर पीढ़ी दर पीढ़ी अपने हस्तशिल्प को जिंदा रखे हुए हैं। चौकोर डिजाइन में बुनी जाने वाली साड़ी अब कई रंगों और डिजाइनों में सूती धागे के साथ रेशमी धागा और जरी का उपयोग कर बनाई जाने लगी है। पहले साड़ी बुनने की खड़ी चार – पांच मीटर लम्बाई में होती थी परन्तु मशीनीकरण के प्रभाव से अब यह डेढ़ – पोने दो मीटर लंबाई में हो गई है। एक था न पांच साड़ियों का होता है जिसे बुनने में करीब 20 दिन का समय लगता है। साड़ियों के कई आकर्षक डिजाइन बुनकरों के दिमाग की उपज है। पहले लकड़ी के ठ प्पे से छपाई का काम किया जाता था जो अब बहुत सीमित हो गया है। साड़ी के साथ – साथ बुनकर चुनरी, साफा, सलवार सूट, कमीज़,कुर्ता आदि भी बनाने लगे हैं।

बताया जाता है कि 1761 ई.में तत्कालीन कोटा रियासत के प्रधान मंत्री झाला जलिमसिंह ने मैसूर से कुछ बुनकरों को बुलाया था। सबसे कुशल चंदेरी के बुनकर मेहमूद मसूरिया ने यहां अपना काम शुरू किया था। शुरू में पगडिय़ां बुनी जाती थी बाद में साड़ी बुनी जाने लगी जो मसूरिया साड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई जिन्हें कोटा साड़ी कहा जाने लगा। कुछ बुनकरों को इस हस्त शिल्प के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

इन सब प्रयासों के बावजूद बुनकरों का कहना है कि उनका पीढ़ियों का यह व्यवसाय उनके लिए लाभ का सौदा नहीं रह गया है। निर्धन बुनकरों को कच्चे माल के लिए आज भी निर्भरता बनी हुई है। बुनकरों के बच्चों ने इस व्यवसाय से मुंह मोड़ कर दूसरे व्यवसाय शुरू कर दिए हैं। कोटा साड़ी व्यवसायियों का प्रथक बाजार निश्चित ही कोटा साड़ी को नया बाजार और विपणन की सुविधा से इस शिल्प की लोक प्रियता को बढ़ाएगा, पर बुनकरों की कच्चे माल की सहज और वाजिब दामों पर उपलब्धता के समाधान की दिशा में प्रभावी प्रयास जरूरी हैं।

(लेखक कोटा में रहते हैं व ऐतिहासिक, कला व संस्कृति से जुड़े विषयों पर लिखते हैं)