Friday, March 29, 2024
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बोस के गनर रहे जगराम बोले, ‘नेताजी की हत्या कराई गई थी’

गुड़गांव,  जंगे-ए-आजादी के महानायक रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निजी गनर रहे वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी जगराम ने खुलासा किया है कि नेता जी की विमान दुर्घटना में मौत नहीं हुई थी, उनकी हत्या कराई गई होगी। उनका कहना है कि यदि विमान हादसे में उनकी मौत होती तो कर्नल हबीबुर्रहमान जिंदा कैसे बचता। वह दिन रात साये की तरह नेताजी के साथ रहता था। आजादी के बाद कर्नल पाकिस्तान चला गया था। सौ फीसद आशंका है कि नेताजी को रूस में फांसी दी गई थी। ऐसा नेहरू के कहने पर रूस के तानाशाह स्टालिन ने किया होगा।
शनिवार को दैनिक जागरण से बातचीत में 93 वर्षीय जगराम ने बताया कि हिरोशिमा एवं नागासाकी पर बमबारी के चार साल बाद चार नेताओं को युद्ध अपराधी घोषित किया गया था। इनमें जापान के तोजो, इटली के मुसोलिनी, जर्मनी के हिटलर एवं भारत के नेताजी सुभाषचंद्र बोस शामिल थे। तोजो ने छत से कूदकर अपनी जान दे दी थी। मुसोलिनी को पकड़कर मार दिया गया और हिटलर ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। केवल नेताजी ही बच गए थे। उन्हें जापान ने रूस भेज दिया था।

नेता जी से खौफ खाते थे नेहरू
लगातार 13 महीने तक नेताजी के गनर रहे जगराम ने बताया कि देश की आजादी में नेताजी के मुकाबले पंडित नेहरू की भूमिका कुछ भी नहीं थी। महात्मा गांधी ही नहीं, बल्कि दुनिया के बड़े से बड़े तानाशाह और शासक नेताजी के सामने बौने दिखते थे। उनके परिजनों की जासूसी की खबर से इस बात पर मुहर लग गई कि नेहरू किस कदर नेताजी से खौफ खाते थे। नेहरू को हमेशा यही लगता था कि यदि नेताजी सामने आ गए तो फिर उन्हें कोई पूछने वाला नहीं।

नेहरू को नहीं सुहाते थे नेता जी
नेता जी पूरी दुनिया में लोकप्रिय थे। जहां जाते थे, वहीं लोग उनसे मिलने के लिए टूट पड़ते थे। उनके आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभालते ही जवानों की संख्या तीन लाख से ऊपर पहुंच गई थी। यह बात अपने देश के अधिकतर नेताओं को अच्छी नहीं लगती थी। इनमें सबसे ऊपर नाम पंडित नेहरू का था। यही वजह रही कि नेता जी की मौत की फाइल दबा दी गई।
सामने दिखाई देते हैं नेताजी

2 जुलाई 1943 से अगस्त 1944 तक नेताजी के गनर रहे जगराम कहते हैं कि जैसे ही नेता जी 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा' नारा लगाते थे, जवान उनके एक इशारे पर मर मिटने को तैयार हो जाते थे। उनके आह्वान पर सिंगापुर से पैदल सेना तीन महीने में वर्मा पहुंची थी।

साभार–www.jagran.com/ से 

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