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“भारत है हिंदू राष्ट्र” की जय घोष करने वाले- डॉ. हेडगेवार

भारत के सबसे बड़े समाजसेवी व राष्ट्रभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के संस्थापक डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म युगाब्द 4991 के चैत्र षुक्ल प्रतिपदा ( 1 अप्रैल 1889 /इस वर्ष 2 अप्रैल) को नागपुर के एक गरीब वेदपाठी परिवार में हुआ था। डा. हेडगेवार जी के पिता श्री बलिराम पंत व माता रेवतीबाईं थी। हेडेवार जी का बचपन बहुत ही गरीबी में बीता था। परिवार में भोजन का हाल यह था कि सुबह है तो शाम को नहीं और अगर शाम को मिल गया तो सुबह का पता नहीं पर ऐसे वातावरण में भी उन्हें कसरत, कुश्ती , अखाड़ा, लाठी आदि का शौक रहा। बचपन से ही वह अपने पिता, चाचा व भाई के साथ घूमते थे तो वह विभिन्न भवनों पर फहराते हुए यूनियन जैक को देखकर सोचते थे कि हमारे भारत वर्ष का हिन्दुओं का झंडा तो भगवा ही फिर ये यूनियन जैक क्यों ?

और इस विचार के साथ विद्यार्थी जीवन से ही वह यूनियन जैक को उतार फेंकने की योजना बनाने लगे।

उनके मन में प्रबल भाव था कि भगवान राम और कृष्ण से लेकर छत्रपति महाराज शिवाजीऔर महाराणा प्रताप,सभी की जीवन लीलाएं भगवा ध्वज की छत्रछाया में संपन्न हुई हैं। हमारे ऋषि- मुनियों की परंपरा है भगवा ध्वज ।

केशव की प्रारम्भिक शिक्षा अंग्रेजी विद्यालय नीलसिटी में हुई जहां उन्होंने महारानी विक्टोरिया के 60वें जन्म दिन पर बांटी गयी मिठाई को कूडेंदान में फेंक दिया था। सन 1901 में इंग्लैंड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के समय लोगों द्वारा ख़ुशी मनाये जाने पर भी वे बहुत दुःखी हुए। नागपुर के किले पर से अंग्रेजों के झंडे उतारकर भगवा झंडा लगाने का प्रयास भी किया।

सन 1902 में प्लेग की महामारी के कारण उनके माता पिता का देहावसान हो गया। उनके बड़े भाई क्रोधी स्वभाव के थे जिसके कारण उन्होंने घर छोड़ दिया और अपने मित्रों के साथ रहने लगे । उन्हाने लोकमान्य तिलक के पत्र के लिए धन एकत्र करने का काम प्रारंभ किया और स्वदेशी वस्तुओं की दुकान खुलवाने का प्रयास किया ।

19 सितम्बर 1905 को अंग्रेज सरकार ने बंगाल को विभाजित कर दिया जिसका पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ और पूरा भारत वंदेमातरम के नारों से गूंजने लगा उठा। इस समय विद्यालय में निरीक्षक के आने पर केशव के नेतृत्व में छात्रों ने वंदेमातरम के नारे लगाये। कुछ ही दिनों में केशव “नागपुर के तिलक” के नाम से प्रसिद्ध हो गये।

केशव ने 1906 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह अपनी पढ़ाई के लिए टयूशन और एक विद्यालय में नौकरी करने लग गये।
केशव की गतिविधियों के देखते हुए अंग्रेज सरकार ने सन 1908 में ही उनके पीछे अपने गुप्तचर लगा दिये थे।

बड़े क्रांतिकरियो के साथ सम्पर्क में आने के लिए वह 1910 में कलकत्ता आ गये। सन 1910 मे कलकत्ता में हुए दंगे के दौरान उन्होंने एक सुश्रुआ दल बनाया था। कलकत्ता में वे अनुशीलन समिति व प्रमुख क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए । कलकत्ता में जहां केशव रहते थे वहीं एक गुपतचर उनके पीछे लग गया। शंका होने पर उसकी तलाशी ली गयी और कई प्रमाण मिले जिसके बाद उन्होंने अपनी वेशभूषा बदल दी।

1913 में उन्होंने दामोदर नदी की बाढ़ में लोगों की खूब सेवा की। 12 सितम्बर को एल एल एंड संस की पदवी प्राप्त की और डाक्टर की उपाधि लेकर वापस नागपुर लौटे।

नागपुर में दोबारा प्लेग फैलने के बाद उनके भाई का भी निधन हो गया और इसके पश्चात् उन्होंने जीवन भर अविवाहित रहकर राष्ट्र कार्य करने का निश्चय किया। केशव गणोशोत्सव में खूब भाग लेते थे और गर्मागर्म भाषण देते थे। उन्होंने होमरूल आंदोलन में भी भाग लिया। वे क्रांति के लिए व्यक्ति, धन तथा शस्त्रास्त्र की व्यवस्था करते थे। केशव ने राष्ट्रीय उत्सव मंडल की स्थापना की और उनके घर पर शरद पूर्णिमा मनायी गयी। सन 1919 में उन्होंने लाहौर कांग्रेस में भी भाग लिया। केशव 20 सितम्बर 1920 को योगीराज अरविंद से मिलने पांडिचेरी गये।

केशव ने खिलाफत आंदोलन का विरोध किया और कहा कि यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा। वह हिदू मुस्लिम शब्दावली के प्रबल विरोधी थे। इस वर्ष अंग्रेज़ सरकार ने एक माह के लिए उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया।

1925 की विजयदशमी के दिन डाक्टर केशव राव ने संघ की स्थापना की घोषणा की और बाद में 17 अप्रैल 1926 को एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम तय हुआ। 1927 में पहली बार रक्षाबंधन उत्सव मनाया गया। दिसंबर 1926 में वह संघ के प्रथम सरसंघचालक बने। 1927 से डाक्टर जी अपने साथ प्रतिज्ञा, भगवाध्वज व हनुमान जी क मूर्ति रखते थे। 1928 में गुरूदक्षिणा महोत्सव प्रारम्भ हुआ। डाक्टर केशव ने प्रत्येक स्वयंसेवक को स्नातक बनने की प्रेरणा दी तथा पढ़ने के लिए अन्य प्रांतों में भेजा।

1929 में लाहौर कांग्रेस में नेहरू जी ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया और हेडगेवार जी ने सभी शाखाओं पर कांग्रेस का अभिनंदन करने के लिए कहा। 1930 में नागपुर में उनकी भेंट गुरूजी से हुई जिसने आगे चलकर संघ को अगला सरसंघचालक दिया।

सन 1936 में नासिक के शंकराचार्य ने केशव को राष्ट्र सेनापति की पदवी से विभूषित किया। डाक्टर केशव ने संघ के विकास व विस्तार के लिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों व राज्यों का भ्रमण किया। 1935 और 1936 में उन्होंने संघ कार्य में परिश्रम की पराकाष्ठ कर दी। इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी हुआ, इस समय वे नासिक आए जहां उन्हें डबल न्यूमोनिया हो गया । 6 फरवरी 1940 को उन्हें राजगिरि ले जाया गया। वह कुछ समय बाद स्वस्थ होकर पूना आए और फिर नागपुर गए, जहां उनका स्वास्थ्य फिर खराब हो गया। अस्वस्थता बढ़ती गयी और 21 जून 1940 को उनका निधन हो गया।

डाक्टर जी का स्पष्ट मत था कि परतंत्र राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के अतिरिक्त और कोई राजनीति नहीं हो सकती।

हिन्दू राष्ट्र के विचार और भगवा ध्वज के साथ संघ स्थापना करके संघ कार्य को सफल कर दिखाने वाले डॉ. हेडगेवार के प्रति कृतज्ञता का भाव मन में धारण कर संघ कार्य को आगे बढ़ाना प्रत्येक हिंदू का स्वाभाविक कर्तव्य है। संघ ने भारत को परम वैभवशाली बनाने का लक्ष्य अपनी आंखों के सामने रखा है। उसे साकार करने में सहयोग देना हिंदू और राष्ट के लिए परम कल्याणकारी होगा।

मृत्युंजय दीक्षित
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