Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेजलवायु के मोर्चे पर जीत के लिए पारंपरिक ज्ञान और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस...

जलवायु के मोर्चे पर जीत के लिए पारंपरिक ज्ञान और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का गठजोड़ ज़रूरी

जलवायु परिवर्तन, आज मानवता के सामने मौजूद सबसे बड़े संकटों में से एक है. पृथ्वी और यहां निवास करने वाले प्राणियों के लिए इसके गंभीर और दूरगामी प्रभाव निश्चित है. लिहाज़ा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की रोकथाम करने और उसके हिसाब से ख़ुद को ढालने की ज़रूरत आज सबसे ज़्यादा महसूस की जा रही है. हमने ऐसी धारणा बना ली है कि केवल उभरती प्रौद्योगिकियों से ही इस मसले के समाधान जुटाने में मदद मिल सकती है. हक़ीक़त ये है कि जलवायु से जुड़ी ज़्यादातर परिचर्चाओं में कुछ बिंदुओं की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता. वो कारक है- हमारी पारंपरिक समझ, जिसे देसी ज्ञान या पारंपरिक जानकारियों के तौर पर भी जाना जाता है. ये उन सूचनाओं, तौर-तरीक़ों और बोध को कहते हैं जिसे स्थानीय और मूल समुदायों की पीढ़ी दर पीढ़ी द्वारा तैयार किया गया और आगे बढ़ाया जाता रहा है. इसके दायरे में कई तरह की जानकारियां आती हैं. मसलन, पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा ख़ुद पर नियंत्रण करने की क्षमता, बदलती परिस्थितियों के हिसाब से ढलना और संतुलन और सद्भाव बनाए रखना. ऐसा मौलिक ज्ञान प्रमाणिक तौर पर कई स्वरूपों में उभरकर हमारे सामने आता है. इनमें प्रजातियों के बीच आपसी संबंधों का जटिल ताना-बाना, संसाधनों का दक्ष इस्तेमाल और बाधाओं से उबरने से जुड़ी पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमताएं शामिल है.

जलवायु के हिसाब से ढलने की क़वायदों में इनसे बेशक़ीमती सबक़ हासिल हो सकते हैं. मसलन, छत तैयार करने, जल संरक्षण करने और कृषि-वानिकी की देसी प्रक्रियाएं, जल संसाधनों के प्रबंधन में मददगार साबित हो सकती हैं. साथ ही मिट्टी का कटाव रोकने में भी इनसे सहायता मिल सकती है.

जलवायु कार्रवाई के संदर्भ में मौलिक ज्ञान कई तरीक़ों से अहम भूमिका निभा सकता है. अक्सर देसी समुदायों के पास उनके स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्रों की गहरी समझ और जानकारी होती है. इनमें पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मौसमी रुझान और प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं. इस ज्ञान से जलवायु कार्रवाई के मोर्चे पर बेशक़ीमती जानकारियां मिल सकती हैं. मिसाल के तौर पर जैव-विविधता के हिसाब से अहम क्षेत्रों की पहचान और हिफ़ाज़त करने, जलवायु प्रक्रियाओं के साथ पारिस्थितिकी तंत्र के क्रियाकलापों और संवादों को समझने और पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिए संसाधनों के प्रबंधन के टिकाऊ तौर-तरीक़ों के विकास से जुड़ी क़वायदों में ये मददगार साबित हो सकते हैं. ऐतिहासिक रूप से मूलनिवासी समुदाय, पर्यावरण के बदलते हालातों (जलवायु परिवर्तनशीलता समेत) के हिसाब से ढलने की रणनीतियां तैयार करते रहे हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी इन रणनीतियों को और संशोधित किया जाता रहा है.

जलवायु के हिसाब से ढलने की क़वायदों में इनसे बेशक़ीमती सबक़ हासिल हो सकते हैं. मसलन, छत तैयार करने, जल संरक्षण करने और कृषि-वानिकी की देसी प्रक्रियाएं, जल संसाधनों के प्रबंधन में मददगार साबित हो सकती हैं. साथ ही मिट्टी का कटाव रोकने में भी इनसे सहायता मिल सकती है. जलवायु के हिसाब से लचीली कृषि व्यवस्था के लिए ये तमाम तौर-तरीक़े बेहद अहम है.

मूल निवासी समुदायों के पास अक्सर ऐसे पारंपरिक तौर-तरीक़े होते हैं जो भूमि के टिकाऊ प्रबंधन को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों को भी कम करते हैं. मिसाल के तौर पर अग्नि प्रबंधन की पारंपरिक विधि (जैसे नियंत्रित दहन) से जंगलों में लगने वाली बेक़ाबू आग को रोका जा सकता है. इससे कार्बन उत्सर्जनों में भी कमी लाई जा सकती है. इसी प्रकार कृषि-पारिस्थितिकी के परंपरागत अभ्यासों (जैसे मिश्रित खेती और फ़सल चक्र) से मिट्टी की सेहतमंदी और मिट्टी में कार्बन ज़ब्ती को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की रोकथाम में मदद मिल सकती है. अक्सर देसी संस्कृतियों के पर्यावरण के साथ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक जुड़ाव होते है. इससे प्रकृति के साथ उनके मूल्यों और बर्तावों को आकार मिलता है. गहरे आधार वाला ऐसा ज्ञान पर्यावरण के प्रति देखरेख और सम्मान के भाव का संचार कर सकता है. इससे ऐसे टिकाऊ तौर-तरीक़ों और बर्तावों को बढ़ावा मिलता है, जो जलवायु कार्रवाई की दिशा में योगदान देते है. इनमें संरक्षण, कचरे में कटौती करना और समुदाय-आधारित प्रशासन शामिल है.

मशीन और मानव
मानवीय गतिविधियों (जैसे जंगल के कटाव, औद्योगिक उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन का उपभोग) से संचालित जलवायु परिवर्तन के गंभीर पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव होते हैं. बहरहाल, एक सतत और लोचदार भविष्य की ओर परिवर्तन में रफ़्तार भरने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) को इस्तेमाल में लाया जा सकता है. इसके लिए जलवायु परिवर्तन की रोकथाम, उसके हिसाब से ढलने और निगरानी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को जोड़ा जा सकता है. स्वचालन की चतुराई भरी क़वायदों के ज़रिए बग़ैर इंसानी बोरियत के रफ़्तार और सटीकता के साथ बेहिसाब तादाद में डेटा का प्रसंस्करण किया जा सकता है. जलवायु के मोर्चे पर ऐसे क्रियाकलापों में भी मशीनें हमारी मदद कर सकती है.

AI एल्गोरिदम्स डेटा के पेचीदा समूहों का प्रसंस्करण और विश्लेषण कर सकते हैं. इनमें जलवायु मॉडल्स, सैटेलाइट तस्वीरें, मौसमी रुझान और ऐतिहासिक डेटा शामिल हैं. इस तरह की पड़ताल से ढर्रों और रुझानों की पहचान की जा सकती है, जिससे जागरूकता पूर्ण निर्णय-प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है.

विशाल मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर बेशक़ीमती जानकारियों का निर्माण कर AI जलवायु परिवर्तन के निपटारे में योगदान दे सकता है. AI एल्गोरिदम्स डेटा के पेचीदा समूहों का प्रसंस्करण और विश्लेषण कर सकते हैं. इनमें जलवायु मॉडल्स, सैटेलाइट तस्वीरें, मौसमी रुझान और ऐतिहासिक डेटा शामिल हैं. इस तरह की पड़ताल से ढर्रों और रुझानों की पहचान की जा सकती है, जिससे जागरूकता पूर्ण निर्णय-प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है. मसलन, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से मौसमी रुझानों, ऊर्जा की मांग और ग्रिड के कार्य संचालन से जुड़े डेटा का विश्लेषण कर नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों के अधिकतम प्रयोग में मदद पहुंचाई जा सकती है. इन पड़तालों से नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों (जैसे सौर और हवा) की तैनाती और प्रबंधन को अनुकूलित किया जा सकता है. AI ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (जैसे बैटरियों) को चार्ज और डिस्चार्ज करने की क़वायदों को भी अधिकतम स्तर पर ले जा सकता है. इससे नवीकरणीय ऊर्जा का दक्ष इस्तेमाल सुनिश्चित करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है.

जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाने और उसकी सटीक तस्वीर तैयार करने की क़वायदों में सुधार लाने में भी AI अहम भूमिका निभा सकता है. जलवायु रुझानों और प्रभावों का रूपांतरण करने और उनका पूर्वानुमान लगाने में जलवायु मॉडलों का इस्तेमाल किया जाता है. ये एक पेचीदा प्रक्रिया है और इसमें गणना से जुड़ी सघन शक्तियों की दरकार होती है. AI जलवायु मॉडलों की सटीकता और कार्यकुशलता के स्तर को ऊंचा उठाने में मदद कर सकती है. इस कड़ी में डेटा के विशाल भंडारों के प्रसंस्करण और विश्लेषण के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का सहारा लिया जा सकता है.

इसके अलावा AI पारिस्थितिकी से जुड़े देसी ज्ञान (जैसे मौसम की भविष्यवाणी से जुड़े परंपरागत तौर-तरीक़ों या स्थानीय समुदायों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले परिघटना संकेतकों) को इन मॉडलों में जोड़कर स्थानीय संदर्भों में उनकी सटीकता और प्रासंगिकता को और आगे ले जा सकता है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जलवायु आपदाओं, बुनियादी ढांचे की कमज़ोरियों और सामाजिक कारकों से जुड़े डेटा का विश्लेषण करके सैलाब, सूखे या जलवायु से जुड़ी अन्य आपदाओं के ख़तरे वाले इलाक़ों की पहचान कर सकता है. लोचदार बुनियादी ढांचे के निर्माण, आपदा के वक़्त प्रतिक्रिया में सुधार लाने और नाज़ुक आबादियों के लिए बचावकारी क़वायदों से जुड़ी रणनीतियों के निर्माण में इस सूचना का इस्तेमाल किया जा सकता है. जलवायु गतिशीलता से जुड़ी हमारी समझ को सुधारने में भी इससे मदद मिल सकती है. इस तरह मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं की भविष्यवाणी करने के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्रों और इंसानी आबादियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के आकलन में भी ये प्रभावी साबित हो सकता है.

संसाधन प्रबंधन के अनुकूलन और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में भी AI से मदद मिल सकती है. मिसाल के तौर पर खेती की सूक्ष्म तकनीकों में AI का प्रयोग किया जा सकता है. इस क़वायद में सेंसर और डेटा एनालिटिक्स फ़सल प्रबंधन अभ्यासों को अनुकूलित कर सकते हैं. इसके अलावा पानी और रसायनों के इस्तेमाल में कमी लाकर कचरे में कटौती की जा सकती है. वाहनों की आवाजाही को अनुकूलित करने, गाड़ियों से उत्सर्जनों को कम करने और रसदी और आपूर्ति श्रृंखला को सुधारने की क़वायदों के ज़रिए दक्ष परिवहन प्रणालियों में भी इसको अमल में लाया जा सकता है. इससे पहले से ज़्यादा कार्यकुशल और टिकाऊ परिवहन प्रणाली हासिल की जा सकती है.

जंगलों, महासागरों और वन्य जीवन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और निगरानी में भी AI मददगार साबित हो सकती है. मिसाल के तौर पर सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण के ज़रिए AI जंगलों की कटाई का पता लगा सकता है. इसी तरह मछली पकड़ने की अवैध गतिविधियों, वन्यजीवों के प्रवास से जुड़े रुझानों पर नज़र रखने और पारिस्थितिकी तंत्रों की सेहत के आकलन के लिए भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग किया जा सकता है. संरक्षण के प्रयासों को और सूचनाप्रद बनाने, जैव-विविधता की हिफ़ाज़त करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की रोकथाम करने के लिए इन जानकारियों का प्रयोग किया जा सकता है. इसकी मिसाल के तौर पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने राष्ट्रीय कार्बन परियोजना तैयार की है. इसके तहत भारत के वन्य भूभाग का नक़्शा बनाने और उस पर निगरानी रखने के लिए AI और रिमोट सेंसिंग का प्रयोग किया जाता है. इसके ज़रिए कार्बन उत्सर्जनों और कार्बन को हटाने से जुड़ी क़वायदों का आकलन किया जाता है. इस तरह प्रमाण-आधारित वन संरक्षण और प्रबंधन निर्णयों में मदद मिलती है.

इसके साथ ही समुदायों और सरकारों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने और उसके हिसाब से प्रतिक्रिया जताने को लेकर जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ढलने में भी AI मददगार साबित हो सकता है. मिसाल के तौर पर AI तटवर्ती इलाक़ों में कटाव, समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी और तूफ़ान के आगे बढ़ने के रुझानों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण कर सकता है. इसके ज़रिए जलवायु परिवर्तन उपायों की योजना बनाने और उनके क्रियान्वयन में मदद मिलती है. इन क़वायदों में समंदर के किनारे दीवारों का निर्माण, नाज़ुक समुदायों को दूसरी जगह बसाना और अहम बुनियादी ढांचों की हिफ़ाज़त शामिल है.

प्रभावी जलवायु नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में AI तमाम किरदारों की मदद कर सकता है. ये उत्सर्जनों, आर्थिक संकेतकों और सामाजिक कारकों पर आंकड़ों का विश्लेषण कर विभिन्न नीतिगत विकल्पों के संभावित प्रभावों की तस्वीर बना सकता है. इससे नीति-निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन की रोकथाम और उस हिसाब से ढलने के उपायों पर प्रमाण-आधारित फ़ैसले लेने में मदद मिल सकती है. इस कड़ी में विभिन्न नीतिगत परिदृश्यों में लागतों, फ़ायदों और और लेन-देन से जुड़े सामंजस्य कारी उपायों पर ग़ौर करके निर्णय लिए जा सकते है. AI जलवायु प्रतिबद्धताओं (जैसा कि पेरिस समझौते में रेखांकित किया गया है) की निगरानी और सत्यापन को भी आसान बना सकता है. सैटेलाइट डेटा, रिमोट सेंसिंग और अन्य स्रोतों के विश्लेषण के ज़रिए जलवायु लक्ष्यों की ओर प्रगति का आकलन किया जा सकता है.

प्रभावी जलवायु नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में AI तमाम किरदारों की मदद कर सकता है. ये उत्सर्जनों, आर्थिक संकेतकों और सामाजिक कारकों पर आंकड़ों का विश्लेषण कर विभिन्न नीतिगत विकल्पों के संभावित प्रभावों की तस्वीर बना सकता है

जलवायु से संबंधित परियोजनाओं, जोख़िमों और पावतियों से जुड़े विशाल आकार के आंकड़ों के विश्लेषण और प्रसंस्करण के ज़रिए AI और मशीन लर्निंग (ML) जलवायु वित्त और निवेश से जुड़े निर्णयों को आसान बना सकते हैं. इससे टिकाऊ परियोजनाओं में निवेश अवसरों की पहचान करने और जलवायु कार्रवाइयों में संसाधनों के आवंटन को सहारा देने में मदद मिल सकती है. जलवायु परिवर्तन की रोकथाम करने वाले ऐसे उपायों का प्रभाव कहीं ज़्यादा होता है.

ये जलवायु कार्रवाई में नागरिकों के जुड़ाव और सशक्तिकरण की सहूलियत भी मुहैया करा सकती है. इनसे AI-संचालित प्लेटफॉर्मों के ज़रिए नागरिक सूचनाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है. साथ ही ये निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हिस्सा ले सकते हैं और जलवायु से संबंधित पहलों में योगदान दे सकते हैं. पर्यावरणीय डेटा की यथा-समय निगरानी और उसके बारे में समाचार देने की क़वायदों को भी AI के ज़रिए साकार किया जा सकता है. इस तरह व्यक्तियों और समुदायों को सशक्त बनाकर कारोबारों और सरकारों को उनकी गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सकता है. AI सोशल मीडिया के डेटा का विश्लेषण कर सकता है और जन-भावनाओं की पड़ताल कर सकता है. संचार के दूसरे ज़रियों का अध्ययन कर वो जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जन धारणाओं, तेवरों और बर्ताव की समझ हासिल कर सकता है.

निष्कर्ष
यहां ये समझना ज़रूरी है कि जलवायु कार्रवाइयों में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को एकीकृत करने की क़वायद से नैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक मोर्चे पर कई तरह की चुनौतियां पैदा होती है. इनका सतर्कतापूर्वक निपटारा किए जाने की दरकार है. आंकड़ों में पूर्वाग्रह, पारदर्शिता, जवाबदेही और निजता जैसे मसलों का पर्याप्त रूप से निपटारा किया जाना ज़रूरी है. इस तरह AI को निष्पक्ष, न्यायोचित और ज़िम्मेदार तरीक़े से तैनात किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा. साथ ही जलवायु कार्रवाइयों में AI से जुड़े फ़ायदों को विभिन्न किरदारों में समान रूप से साझा किया जा सकेगा. स्थानीय ज्ञान में पारंपरिक जानकारियों के साथ-साथ देसी और स्थानीय समुदायों के तौर-तरीक़े जुड़े होते हैं. देसी ज्ञान और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के गठजोड़ से जलवायु कार्रवाई में शक्तिशाली समाधान मुहैया कराए जा सकते हैं. आख़िरकार, स्थानीय जानकारियां सदियों के मानवीय ज्ञान का संग्रह होती हैं. ये एक ऐसा कारक है जो AI इंजनों को कहीं ज़्यादा प्रभावी बना सकता है. AI की ताक़त को स्थानीय ज्ञान के साथ जोड़कर हम प्रभावी, न्यायसंगत और टिकाऊ जलवायु कार्रवाइयां तैयार कर सकते हैं, जिससे लोगों और समूची धरती को फ़ायदा पहुंच सके.

साभार-https://www.orfonline.org/hindi से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार