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यात्रा: पेशावर काण्ड के अमर सेनानी के गांव की- चौथा भाग

एक वृक्ष जो 50 साल तक जीवित रहता है वह 5 लाख 30 हज़ार वृक्षों के बराबर ऑक्सीजन पैदा करता है, 6 लाख 40 हजार रुपये के मूल्य के बराबर जमीन को उपजाऊ बनाता है और मिटटी के कटाव को रोकता है, 10 लाख 40 हज़ार रूपये मूल्य के बराबर वायु प्रदुषण को रोकता है और 5 लाख 30 हज़ार रुपये मूल्य के बराबर पशु तथा पक्षियों को शरण देता है | इसके अतिरिक्त फल, फूल तथा ईंधन व इमारती सामान देता है | इस प्रकार यदि एक पेड़ नष्ट होता है या किया जाता है, तो मान लो एक शहर में 30 लाख रुपये से अधिक की हानि कर दी, पेड़ काटने से पहिले सोचो | पेड़ों को लगाओ आशा और विश्वास के साथ |

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ग्राम पंचायत गडोरा धनपुर

विकास खंड मन्दाकिनी,

चमोली

इस दौरान एक स्थानीय या प्राइवेट जीप का मालिक बग्वाल (दीपावली) खापीकर रुद्रप्रयाग जाने को तैयार हुआ | काफी समय से बस की इन्तेज़ारी में खड़े सभी मुसाफिर जीप में बैठ गये और जीप रुद्रप्रयाग की और चल पड़ी | कुछ दूर चलने के बाद अलकनंदा नदी के किनारे काखड़ फाला (तिलणी) के विस्तृत तटीय भूभाग पर एक पांच सितारा होटल निर्माण कार्य, जो कि पिछले कुछ वषों से चल रहा है, को देखा |

लोगों से सुना कि अब तक इस पर 3 करोड़ के लगभग रुपया खर्च हो चूका है | बिना नाम के इस निर्माणाधीन होटल के मालिक पौड़ी के कोई भंडारी बंधू हैं | जीप के पास से गुजरते ही सड़क के नीचे बहुत ही सुन्दर विदेशी किस्म के पीले फूल खिले नज़र आये | बाकी के खाली पड़े भूभाग पर हरी दूब दिखाई दी |

काखड़ फाला पर अलकनंदा नदी ने पहाड़ को इतनी गहराई से काट रखा है कि ऊपर सड़क से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि, नदी धरती के अंदर चली गयी है और आदमी के छलांग लगाने से नदी पार की जा सकती है | पौराणिक मान्यता के अनुसार भस्मासुर दैत्य शिव जी से वरदान पा जाने के बाद उन्हीं को भस्म कर देने के विचार से उनका पीछा करते-करते यहाँ तक पहुंच गया था | आगे नदी आ जाने से शिव जी को काखड़ (मृग) का रूप धारण करना पड़ा और फिर उन्होंने नदी को छलांग लगाकर पार किया तथा अपनी जान बचाई | दैत्य नदी को पार न कर सका |

नदी के पार थोड़ा आगे जाकर कोटेश्वर महादेव नामक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है | वैसे तो यहाँ साल के हर दिन लोग स्नान करने तथा महादेव जी को बेलपत्र चढ़ाने आते हैं, लेकिन सावन के महीने श्रद्दालुओं की ज्यादा भीड़ दिखाई देती है | यहाँ बिना औलाद वाले स्त्री-पुरुष रात को खड़े रहकर 3 हाथ में जलते दिये रखकर शंकर भगवान की आराधना करते हैं | इसके एवज में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है | पंडित लोग अपने यजमानों के ग्रहों की शांति के लिये पाठ पूजा करते हैं |

जीप ने बहुत जल्दी हमें रुद्रप्रयाग पहुंचा दिया | रुद्रप्रयाग का मुख्य बाजार बहुत ही सीमित जगह पर है | वास्तव में जिसे हम रुद्रप्रयाग कहते हैं, वह तो पुनाड गांव है | असली रुद्रप्रयाग अलकनंदा नदी पर बने लोहे के पुल पार करने पर कुछ दूर पैदल चलकर बायें हाथ की तरफ आता है | यहाँ पर अलकनंदा और मन्दाकिनी नदियों का संगम है, जो बद्रीनाथ तथा केदारनाथ की घाटियों से बहकर यहाँ पर आपस में मिलती हैं | यहाँ पर स्वामी सच्चिदानन्द द्वारा निर्मित संस्कृत विद्यालय, मंदिर, दो धर्मशालायें, होटल तथा कुछ चाय पानी की दुकानें हैं | यहाँ से सुरंग पार करने पर सड़क आगे केदारनाथ को मन्दाकिनी के बायें किनारे से होकर सड़क जाती है |

पुनाड़ बाजार में कहीं पर भी एक इंच जमीन खाली नहीं है | सभी दुकानें सामान से खचाखच भरी दिखाई देती हैं | करीबन सारा बस अड्डा जीपों तथा बसों से भरा नज़र आता है | केवल बसों और जीपों को ऊपर तथा नीचे के तरफ आने-जाने के लिये थोड़ी सड़क छोड़ी रहती है, जिस पर पैदल चलने वालों की भीड़ दिखाई देती है | रुद्रप्रयाग के नया जिला बन जाने से सुनने में आया है कि इसके कार्यालय मुख्य शहर से लगभग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर पड़ने वाली सीमा में स्थापित किये जायेंगे| इनमें से सबसे नज़दीक भैंसगांव का भटवाड़ी-सौड़ शामिल है |

कुछ देर पुनाड़ (रुद्रप्रयाग) के बाजार में खरीदारी करने के बाद उस दिन मैं अपनी ससुराल सौड़ -भट्टीसेरा पहुंचा | दुसरे दिन सुबह आठ बजे की बस से श्रीनगर, ऋषिकेश होते हुये शाम को चंडीगढ़ पहुंच गया | इस तरह वर्षों पहिले की गई रुद्रप्रयाग, गढ़वाल की अधूरी यात्रा सुखद समापन हुआ |

नोट: यह लेख वर्ष 1997 में की गयी यात्रा का विवरण देता है, इसलिए पाठक इसमें दी गयी जानकारी को उस समय के सन्दर्भ में समझें |

लेखक:-

डॉ. पी. एस. रावत (जयपदम)

स्व. श्री भोलासिंह बुटोला के विषय में कुछ और जानकारी जो श्री राधाकृष्ण चौकियाल जी ने पत्र भेज कर दी है :-

श्री भोलासिंह बुटोला विख्यात पेशावर काण्ड में स्व. श्री चन्द्रसिंह गढ़वाली जी के साथी थे | उन्हें भी श्री गढ़वाली जी के साथ कालेपानी की सजा हुई थी | बाद में श्री मुकंदीलाल बैरिस्टर साहब द्वारा मुकदमे की जोरदार पैरवी करने पर सभी बागी सैनिक सजा से बरी हो गए थे | 1946 के 15 अगस्त के स्वतंत्रता समारोह के अवसर चोपड़ा तथा आसपास के ग्रामवासियों ने उन्हें समारोह का अध्यक्ष बनवाया था | उनके त्याग के उपलक्ष्य में जनता द्वारा दिया गया सम्मान से भाव विभोर होने के कारण उनकी आँखों में आसुओं की झड़ी लग गई थी और वे अपने मुंह से कुछ भी न कह सके | उनकी भक्ति भावना से हम सभी लोग गौरवान्वित हैं |

श्री राधाकृष्ण चौकियाल

अवकाश प्राप्त तहसीलदार

ग्राम व पोस्ट चोपड़ा,

नागपुर (चमोली),

जिला – रुद्रप्रयाग

गढ़वाल