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पेड़-पौधे भी बचा सकते हैं कोविड के प्रकोप से

पेड़-पौधे पर्यावरण को दुरुस्‍त रखने के अलावा हमारे इलाज के लिए दवाएं भी मुहैय्या करवाते हैं। इन दिनों दुनिया-जहान को हलाकान करने वाली कोविड-19 बीमारी भी इसमें शामिल है। अब ऐसे अनेक उदाहरण सामने आ गए हैं जिनसे कोविड के इलाज में पेड़-पौधों की भूमिका पता चलती है।

बीमारियों की रोकथाम में पेड़-पौधे हमेशा ही मददगार रहे हैं। मलेरिया उपचार की प्रसिद्ध दवा क्वीनाइन (कुनेन) सिनकोना पेड़ की छाल से बनायी गयी थी। जीवाणुओं से पैदा कई प्रकार के रोगों के नियंत्रण हेतु उपयोगी प्रमुख ‘प्रति-जैविक’ (एंटीबायोटिक) पेनिसीलीन भी पौधों की फफूंद ‘कवक’ (फंजाई) के सदस्य पेनिसीलीयम से बनाया गया था। बीमारियों की रोकथाम में पौधों के योगदान को ध्यान में रखकर वैज्ञानिकों ने कोराना रोकथाम हेतु देश-विदेश में पेड़-पौधों पर प्रयोग किए हैं। कई प्रयोग प्रारम्भिक स्तर पर तो उत्साहवर्धक रहे, परंतु सही दवा (वैक्सीन) बनाने हेतु अभी आगे काफी कुछ किया जाना है। जिन पेड़ों पर प्रयोग किए गये हैं उनमें नीम, नारियल एवं सफेदा या नीलगिरी प्रमुख हैं।

देश के ‘अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान’ ने ‘निसर्ग बायोटेक’ नामक आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कम्पनी के साथ नीम (एजेडिरेक्टा इंडिका) से केप्सूल बनाकर प्रयोग किये। देश के आयुर्वेद मंत्रालय एवं हरियाणा सरकार की सहमति से फरीदाबाद के ‘इएसटीसी’ दवाखाने में 12 अगस्त 2020 को कोरोना मरीजों की देखभाल कर रहे 250 लोगों पर केप्सूल के परीक्षण किये गए थे। प्रारम्भिक तौर पर इन केप्सूलों को ‘बनारस हिन्दू विश्‍वविद्यालय’ स्थित ‘मालवीय उद्यमी, संवर्धन एवं नव-प्रवर्तक केन्द्र’ के डा. सुमित सक्सेना ने नारियल के तेल (कोकारन न्यूसीफर के तेल) से परीक्षण किया था। नारियल तेल में लगभग 50 प्रतिशत पाये जाने वाले लारिक-अम्ल को दूसरे रसायन – मोनोलॉरीन में बदलकर प्रयोग किये जाएं तो यह वायरस के प्रोटीन से बने आवरण को नष्ट कर उसकी क्रियाशीलता को रोक देता है। मोनोलॉरीन का प्रयोग अभी तक रूबेला, एचआयवी एवं हर्पीज आदि रोगों के विषाणुओं (वायरस) के विरूद्ध किया गया है।

ब्रिटेन की ‘डिफेंस साइंस एंड टेक्नालाजी प्रयोग शाला’ के वैज्ञानिकों ने पाया कि सफेदा या नीलगिरी (यूकेलिप्टस) की पत्तियों से प्राप्त रसायन सिट्रीयोडील में विषाणु विरोधी गुण होता है। इस गुण के कारण यह कोरोना के प्रभाव को रोकने की क्षमता रखता है। पेड़ों के साथ पीली कनेट, धनेरी, भांग एवं आर्टेमीसिया की झाड़ियों पर भी प्रयोग किए गए। अमेरीकी राष्ट्रपति के समर्थक व्यापारी माईक लिंडेल ने एक दवा ‘ओलिएंड्रीन,’ पीली-कनेर (थेवोशिया-परूविएम) से बनाने का दावा किया था, परंतु वे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं जुटा पाये। गोवा के डॉ. शंकर कोमारपंत के अध्ययन के अनुसार हानेरो (लेंटाना केमरा) की पत्तियों को उबालकर ली गयी भाप फेफड़ों में जमा कफ को साफ कर कोरोना का प्रवेश रोकती है। कनाडा की एक दवा-कम्पनी अकसीरा ने भांग (केनाबीस सटाईवस) से कोरोना रोकथाम की दवा बनायी है जिसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है, परंतु इसमें सायटो-एक्टिव गुण होता है। इसके परीक्षण हेतु भारत सरकार से चर्चा भी हुई थी।

‘बनारस हिन्दू विश्‍वविद्यालय’ के साइंस इंस्टीट्यूट में कार्यरत प्रोफेसर शशी पांडे ने अपने शोध में कम्प्यूटर-सिमुलेशन द्वारा पाया कि आर्टेमीसिया-एनुआ की पत्तियों में कोरोना वायरस को निष्क्रीय करने को क्षमता होती है। इसी आधार पर पत्तियों से गोलियां तैयार की गयीं जिनके प्रभाव से वायरस के बाहरी आवरण पर हमला कर उसे नष्ट करने की सम्भावना बतायी गयी। इसकी जानकारी ‘अखिल भारतीय चिकित्सा परिषद’ (आयसीएमआर) को भी दी गयी। देश के आयुष मंत्रालय ने ‘कोरोना नेशनल प्रोग्राम’ के तहत गिलोय, पीपली, अश्वगंधा व मुलेठी को कोरोना नियंत्रण हेतु चिन्हित किया था, परंतु इसके साथ कालमेह लहसून, हल्दी एवं सोंठ पावडर पर भी कार्य किया गया।

‘सेंट्रल ड्रग-रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (लखनऊ) के निर्देशक डॉ. टी. कुंडू ने औषधीय पौधे काममेघ (एंड्रोग्रेफीस पेनीकुलेटा) पर अध्ययन कर पाया कि इसमें उपस्थित रसायन-एंड्रोग्राफीलाइट वायरस के बाहरी आवरण के प्रोटीन से जुड़कर उसकी क्रियाशीलता रोकता है। अश्वगंधा (मिथालीया सोमनीफेरा) पर आयआयटी-दिल्ली एवं जापान के एक प्रौद्योगिकी संस्थान ने अध्ययन कर पाया कि मधुमक्खी के छत्‍ते में पाई जाने वाली प्राकृतिक गोंद (प्रोपिलीस) के साथ इसकी दवाई बनाकर कोरोना की रोकथाम की जा सकती है। यह दवाई हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन का विकास भी बतायी गयी है। औषधीय पौधों में बहुचर्चित गिलोय (टीनोस्पोटा कार्डीफोलिया) के तने से जोधपुर स्थित ‘डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेदिक विश्‍वविद्यालय’ ने गोलियां बनायी हैं। राज्य सरकार की अनुमति से एक कोविड केन्द्र पर एक माह (30 मई से 30 जून 2020) तक इसका परीक्षण भी किया गया। परीक्षण में देखा गया कि 500 मिलीग्राम की दो-दो गोलियां सुबह-शाम देने पर 5-7 दिनों में मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव हो गयी। गिलोय में उपस्थित कौन सा सक्रिय पदार्थ वायरस पर प्रभाव डालता है, इस पर शोध जारी है।

आयुर्वेद के अनुसार मुलेठी (ग्लीस राइजा, ग्लेबरा) का उपयोग सूखी खांसी के इलाज में किया जाता है। कोविड़-19 में भी इसी प्रकार की खांसी होती है। इस आधार पर आयुष मंत्रालय में सीएसआयआर के साथ मुलेठी का परीक्षण कोविड-19 के मरीजों पर किया। चीन ने अपनी हर्बल दवाओं में मुलेठी का उपयोग कर 80 प्रतिशत मरीजों को ठीक करने का दावा किया है। ‘फ्रेंकफर्ट विश्‍वविद्यालय’ के वैज्ञानिकों ने भी वर्ष 2003 में सार्स रोग के खिलाफ मुलेठी को काफी कारगर बताया था। लखनऊ के ‘लोकबंधु अस्पताल’ के डाक्टरों ने सौंठ पावडर व लहसुन (एलियम सटाईवस) के प्रयोग से पांच दिनों में कोरोना पर नियंत्रण का दावा किया। मेरठ के ‘महावीर आयुर्वेदिक कालेज’ के प्रो.डी. भादलीकर के अगस्त 2020 में अमेरीका में प्रकाशित शोध के अनुसार हल्दी (कुरकुमा-डोमिस्टीया) व चूने को मिलाकर सेवन करने से कोरोना मरीज जल्द ठीक होने लगे थे। ये दोनों पदार्थ शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर कर खून में थक्के बनने से भी रोकते हैं।

कुछ गैर-औषधीय पौधों पर भी परीक्षण किये गये हैं। आईआईटी-दिल्ली के ‘स्कूल ऑफ बायलाजिकल साइंस’ के शोध-कर्ताओं ने पंद्रह पौधों पर प्रयोग कर पाया कि चाय (ग्रीन-टी) एवं हरड़ कोविड-19 वायरस के प्रोटीन आवरण पर प्रभाव डालकर उसकी वृद्धि रोकता है। ‘गुजरात विश्‍वविद्यालय’ के फार्मेसी विभाग के प्रो.एस.चैहान ने 5-6 महिने शोधकर कांटेदार नागफनी (केक्टस) के पौधे से ‘हेमपोमाइन’ नामक दवा बनायी थी जो कोरोना संक्रमण रोकती है। इसके परीक्षण पेटेंट हेतु प्रयास कये जा रहे हैं। औषधीय एवं गैर औषधीय पौधों के अलावा छत्तीसगढ़ के ‘गुरूघासीदास विश्‍वविद्यालय’ के वनस्पति शास्त्र विभाग ने 36 सब्जियों पर अध्ययन किया है। चौलाई, राजगिर, पोई, बथुआ, चरोटा, चेंच, करमता व सुनसुनिया में कोरोना से लड़ने की क्षमता पायी गयी है। ये सभी सब्जियां आयरन, कार्बोहाईड्रेट, रेशे, प्रोटीन्स एवं एंटी-ऑक्सीडेन्ट्स की उपस्थिती के कारण प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं।

(सप्रेस)

साभार- https://www.spsmedia.in/ से