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ट्राइफेड विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ मिलकर जनजातीय उत्पादों की जीआई टैंगिग करेगा

ट्राइफेड, जनजातीय कार्य मंत्रालय ने लाल बहादुर शास्त्री नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एकेडमी, संस्कृति मंत्रालय, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग, वाणिज्य मंत्रालय, भारतीय डाक, पर्यटन मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के सक्रिय सहयोग और समर्थन के साथ आदिवासी उत्पादों की जीआई टैंगिग का जिम्मा उठाया है। इन उत्पादों की जीआई टैगिंग के साथ साथ इन्हें के ब्रैंड के तौर पर स्थापित करना और इनका प्रचार कर आदिवासी कारीगरों के सशक्तीकरण के प्रतीक के रूप में स्थापित करना भी लक्ष्य है। ये पहल सदियों पुरानी जनजातीय परंपराओं और तरीकों को पहचानने और उन्हें बढ़ावा देने में मदद करेंगी। शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते ये जनजातीय परंपराएं खो जाने का खतरा झेल रही हैं।

संस्कृति मंत्रालय के परामर्श से ट्राइफेड ने देश भर में 8 विरासत स्थलों की पहचान की है, जहां जीआई आधारित भारतीय जनजातीय स्टोर स्थापित किए जाएंगे। इन 8 धरोहरों के बीच जल्द ही सारनाथ (उत्तर प्रदेश) हम्पी (कर्नाटक) औऱ गोलकोंडा किला (तेलंगाना) में काम शुरू होने की उम्मीद है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से दिल्ली के लाल किला में एक डिज़ाइनर लैब विकसित करने की योजना बनाई गई है, जिसमें चुनिंदा आदिवासी कारीगर अपनी समृद्ध शिल्प परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन करेंगे। आंध्र प्रदेश के पोचमपल्ली, जो अपने बेहतरीन इकत कपड़े के लिए जाना जाता है, इसको दूसरे स्थान के लिए चुना गया है जहाँ एक डिजाइनर हब विकसित किया जा सकता है। इस संबंध में प्रारंभिक कार्य वर्तमान में चल रहा है। लाइव प्रदर्शन केंद्र के अलावा इस शहर को टेक्सटाइल हब के रूप में भी स्थापित करने का प्रस्ताव पेश किया जा रहा है।

2017 में शुरू हुआ ‘आदि महोत्सव’ ट्राइफेड का देश भर में आदिवासी समुदायों के समृद्ध और विविध शिल्प, संस्कृति और भोजन से लोगों को परिचित कराने का प्रयास है। अब फरवरी 2021 में संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में जीआई आधारित आदि महोत्सव आयोजित करने का प्रस्ताव है।

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी), वाणिज्य मंत्रालय ने 370 जीआई टैग उत्पादों की पहचान की है, जिनमें से 50 आदिवासी मूल के हैं। यह निर्णय लिया गया है कि भारत अपने व्यापक नेटवर्क के माध्यम से इन सभी 370 जीआई उत्पादों का विपणन और प्रचार करेगा। जीआई के तहत 50 मूल उत्पादों को पंजीकृत करने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं और इन्हें ट्रायफेड के मौजूदा नेटवर्क ऑफ आउटलेट्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रदर्शित भी किया गया है। आगे प्रचार के लिए 50 और वस्तुओं की पहचान करने के प्रयास चल रहे हैं।

भारतीय डाक विभाग और संचार और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ साथ इन वस्तुओं को भी जनवरी 2021 में आयोजित होने वाली एक प्रदर्शनी में प्रचारित किया जाएगा। डाक विभाग 6 जीआई वस्तुओं पर डाक टिकटें तैयार कर रहा है, जिन्हें इस टिकट संग्रहण प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया जाएगा। इसके अलावा, वन धन विकास केंद्रों से इंडिया पोस्ट को लाख और गोंद की आपूर्ति करने की योजना भी बनाई गई है।

हमारी आबादी में 8 प्रतिशत से अधिक जनजातीय लोग हैं फिर भी वे समाज के वंचित वर्गों में से हैं। मुख्यधारा के उनके प्रति एक गलत धारणा व्याप्त है कि इन लोगों को सिखाने और मदद करने की जरूरत है। जबकि सच्चाई यह है कि आदिवासी समुदाए शहरी भारत को बहुत कुछ सिखाते हैं। प्राकृतिक सादगी से प्रेरित उनकी रचनाओं में एक कालातीत अपील है। हस्तशिल्प की विस्तृत श्रृंखला जिसमें हाथ से बुने हुए सूती, रेशमी कपड़े, ऊन, धातु शिल्प, टेराकोटा, मनकों से जुड़े कार्य शामिल हैं, सभी को संरक्षित और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

भौगोलिक संकेत (जीआई) को विश्व व्यापार संगठन की मान्यता मिल चुकी है। इसका उपयोग उस भौगोलिक क्षेत्र को निरूपित करने के लिए किया जाता है जहां से एक उत्पाद तैयार किया गया होता है। यह एक कृषि, प्राकृतिक या मानव निर्मित उत्पाद हो सकता है जो किसी खास क्षेत्र में अपने विशिष्ट गुणों या विशेषताओं के लिए जाना जाता है। भारत इस सम्मेलन में एक हस्ताक्षरकर्ता बन गया, जब विश्व व्यापार संगठन के सदस्य के रूप में, इसने भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम), 1999 को अधिनियमित किया, जो 15 सितंबर, 2003 से लागू हुआ।

ट्राइफेड आदिवासी सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली नोडल एजेंसी के रूप में उनके जीवन और परंपराओं के तरीके को संरक्षित करने का काम कर रही है। साथ ही आदिवासी लोगों की आय और आजीविका को बेहतर बनाने का काम भी इस संस्था के नाम है। ट्राइफेड अब जीआई टैग वाले स्वदेशी उत्पादों के लिए अपना दायरा बढ़ा रही है।

अपने इन प्रभावशाली उपक्रमों के साथ “वोकल फॉर लोकल, आदिवासी उत्पाद खरीदें’ का ध्येय प्राप्त किया जा सकता है। जिससे देश में आदिवासी लोगों के लिए सतत आय सृजन और रोजगार के क्षेत्रों में सही मायने में परिवर्तन होगा। आशा है कि ट्राइफेड के ये प्रयास इन समुदायों के आर्थिक कल्याण को सक्षम करेंगे और उन्हें मुख्यधारा के विकास के करीब लाएंगे।