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‘उदयन शर्मा ने कुछ यूं बदल दिया था हिंदी पत्रकारिता का चेहरा और अंदाज’

उदयन शर्मा का मानना था कि एक पत्रकार के काम करने का समय शाम छह बजे से रात 12 बजे तक का होता है

उदयन शर्मा को इस संसार को छोड़े हुए 18 वर्ष बीत गए। इस महीने की 11 तारीख को उनकी पुण्यतिथि थी। उदयन शर्मा का नाम पत्रकारिता के विद्यार्थी जानते हैं या नहीं, मैं नहीं जानता, लेकिन उन्हें जानना चाहिए, ऐसा मैं मानता हूं। उदयन शर्मा हिंदी पत्रकारिता का बहुत बड़ा नाम हैं, जिनकी रिपोर्ट आज भी पढ़ने पर लगता है कि वे कितनी सारगर्भित और परिपूर्ण हैं।

शुरू से बात करते हैं। उदयन शर्मा के पिता श्रीराम शर्मा हिंदी के चुनिंदा कथा लेखक थे। बचपन से ही उदयन शर्मा को लिखने का शौक जागा, जो उन्हें धर्मयुग में ले गया। प्रसिद्ध साहित्यकार और धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती को उदयन शर्मा में बहुत संभावनाएं नजर आईं और उन्हें धर्मयुग में उप संपादक की जिम्मेदारी मिल गई। उन दिनों धर्मयुग में गणेश मंत्री, योगेंद्र कुमार लल्ला और सुरेंद्र प्रताप सिंह सहित कई वरिष्ठ पत्रकार काम करते थे। उदयन शर्मा ने अपनी प्रतिभा से धर्मवीर भारती को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने उदयन शर्मा को राजनीति के साथ-साथ खेल और सिनेमा पर भी लिखने की आजादी दे दी।

धर्मवीर भारती का व्यक्तित्व इतना विराट था कि वे जब अपने केबिन से बाहर निकलते थे तो न केवल हिंदी में, बल्कि अंग्रेजी के सेक्शन में भी एक खामोशी फैल जाती थी। यह उनके डर से नहीं, बल्कि उनके सम्मान में होता था। उनके मुंह में सिगार होता था और बुद्धिजीवी की चाल होती थी, लेकिन उदयन शर्मा कुछ ऐसा करते थे कि धर्मवीर भारती मुस्कुरा देते थे। उदयन शर्मा गंभीरता से लिखते हुए भी धर्मयुग के माहौल को हमेशा हल्का और जीवंत रखते थे। आपातकाल में उदयन शर्मा दिल्ली आए और यहां उन्होंने उन सभी से संपर्क किया, जो जेल जाने से बच गए थे। वह अपने उन साथियों के यहां भी जाते थे, जो जेल चले गए थे तथा जिनके परिवार परेशानी मैं थे। उदयन शर्मा छात्र जीवन से ही समाजवादी विचारधारा के थे और डॉक्टर लोहिया का उनके ऊपर प्रभाव था।

उदयन शर्मा की शादी उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे कांग्रेसी नेता जगन प्रसाद रावत की नातिन नीलम से हुई। मुंबई में उदयन शर्मा, एसपी सिंह और एमजे अकबर की तिकड़ी बन गई। इनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि तीनों एक साथ रहते थे। उदयन शर्मा मुंबई में थे और नीलम शर्मा आगरा में थीं। एसपी सिंह नीलम शर्मा के ऊपर एक प्रयोग कर रहे थे, जिससे नीलम शर्मा, उदयन शर्मा के साथ शादी करने के लिए हां कह दें। उदयन शर्मा धर्मयुग में भविष्यफल वाला कॉलम भी देखते थे। एसपी सिंह वहां उदयन शर्मा से कहते थे कि नीलम शर्मा के ग्रह या जन्म तारीख वाले भविष्यफल में लिखो कि किसी अति प्रिय का खत आएगा या इस हफ्ते किसी अपने का शुभ समाचार मिलेगा। मुझे एसपी सिंह ने बताया था कि हमने भविष्यफल का इस्तेमाल कर उदयन की और नीलम की शादी करा दी।

आपातकाल के बाद कोलकाता से आनंद बाजार पत्रिका ने संडे अंग्रेजी में और रविवार हिंदी में दो पत्रिकाएं निकालीं। एमजे अकबर दोनों पत्रिकाओं के पहले संपादक बने, लेकिन वे रविवार के लिए हिंदी का व्यक्ति चाहते थे। उनके कहने से एसपी सिंह और उदयन शर्मा भी मुंबई छोड़कर रविवार से जुड़ गए। उदयन शर्मा ने दिल्ली में रहकर रविवार के लिए रिपोर्ट करना चुना और वे रविवार के पहले विशेष संवाददाता बने तथा सुरेंद्र प्रताप सिंह कोलकाता में रहकर रविवार के संपादक बने।

यहीं से रविवार की अनूठी यात्रा शुरू हुई, जिसने हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में अपना न मिटने वाला स्थान बना लिया। उदयन शर्मा ने फील्ड रिपोर्टिंग की शुरुआत की और वे सबसे पहले उस जगह पहुंचते थे, जहां घटना घटी थी। अब तक फील्ड रिपोर्टिंग घटना के विवरण तक सीमित रहती थी, लेकिन उदयन शर्मा ने इसका चेहरा और अंदाज बदल दिया। घटना क्या हुई के साथ घटना क्यों हुई, उसके पीछे के क्या कारण थे और कौन-कौन ताकतें इन घटनाओं को करा रही थीं तथा घटना घटने के क्या-क्या परिणाम होंगे, इन सबको मिलाकर एक संपूर्ण रिपोर्ट की परिपाटी शुरू की। वे कभी इस बात को नहीं छुपाते थे कि घटना कराने वाले सरकार के हिस्से हैं या कोई संगठन हैं या स्थानीय अधिकारी और ठेकेदार हैं, इसलिए उनका डर सत्ता प्रतिष्ठान को प्रभावित करने लगा।

उदयन शर्मा ने दंगों की रिपोर्टिंग की और दंगों को किन सांप्रदायिक ताकतों ने हवा दी, इस बारे में लिखने में कभी संकोच नहीं किया। सांप्रदायिक दंगों को रिपोर्ट करने में उदय शर्मा सीमा पार करने में भी संकोच नहीं करते थे। उन्हें विशुद्ध धर्मनिरपेक्ष पत्रकार कह सकते हैं। रिपोर्ट करने में न वे किसी जाति का पक्ष लेते थे और न किसी धर्म का, सिर्फ और सिर्फ सच्चाई बयान करते थे, लेकिन वह सच्चाई जिसके भी खिलाफ जाती थी, वह उन पर लांछन लगाने की भरपूर कोशिश करता था।

उन दिनों जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी थे। प्रभाष जोशी की टीम में हर तरह की विचारधारा वाले लोग थे। वहां राम बहादुर राय और हरिशंकर व्यास भी थे और बनवारी तथा आलोक तोमर भी थे। एक बार हरिशंकर व्यास और उदयन शर्मा में अंताक्षरी हो गई। विषय बताना महत्वपूर्ण नहीं है। दोनों अपने-अपने विचारों के ध्वजवाहक थे। जनसत्ता के गपशप कॉलम को हरिशंकर व्यास मुख्य रूप से देखते थे तथा उदयन शर्मा रविवार के कुतुबनुमा में लिखते थे। हरिशंकर व्यास के गपशप कॉलम के एक हिस्से को पढ़कर उदयन शर्मा को लगा कि यह उनके ऊपर प्रहार है। उन्होंने कुतुबनुमा में बिना नाम लिए कुछ लिखा, जिसे हरिशंकर व्यास ने अपने ऊपर प्रहार समझ लिया। जब दो महीने बीत गए, तब एक दिन प्रभाष जी का मेरे पास फोन आया और उन्होंने मुझे कहा कि इसे बंद कराओ। दरअसल, यह अंताक्षरी ऐसे मुकाम पर पहुंच गई थी, जहां उदयन शर्मा ने सीधे प्रभाष जी को अपना विषय बना लिया था। उन्होंने संभवत हरिशंकर व्यास को रोका होगा। मैंने उदयन जी से कहा कि प्रभाष जी का कहना है उदयन इसे बंद करें। उदयन जी ने मुझे कहा कि मैं इस हफ्ते नहीं लिखूंगा, लेकिन अगर जनसत्ता में कुछ छपा तो फिर मैं आजाद हूं। उदयन जी की रिपोर्टिंग को लेकर अक्सर पाञ्चजन्य में उनका नाम लेकर टिप्पणी होती रहती थी। वे इन टिप्पणियों का आनंद लेते थे और कहते थे कि जब तक मेरे ऊपर यह टिप्पणियां होती रहेंगी, तब तक मैं मानूंगा कि मैं सही लाइन पर रिपोर्टिंग कर रहा हूं।

उदयन शर्मा में खबर पहचानने की अद्भुत क्षमता थी। उनका संपर्क चौधरी चरण सिंह और राज नारायण से बहुत अंतरंग था। जॉर्ज फर्नांडिस और मधु लिमए उनके लिखे हुए को पसंद करते थे और खुद उदयन शर्मा जॉर्ज फर्नांडिस और मधु लिमए के यहां अक्सर बैठते थे। कांग्रेस के सीताराम केसरी, तारिक अनवर, गुलाम नबी आजाद उनके मुख्य सूचना स्रोत थे। अकबर अहमद डंपी और मेनका गांधी उन्हें अपना नजदीकी मित्र मानते थे। शरद यादव और केसी त्यागी उनके रोजाना मिलने वालों में थे। मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह से उनका अंतरंग रिश्ता था। उदयन शर्मा ने अपने इन संपर्कों से बातचीत दौरान खबरों के ऐसे-ऐसे विषय निकाले, जिनकी रिपोर्टिंग ने उन्हें काफी मशहूर कर दिया।

उदयन शर्मा का मानना था कि एक पत्रकार के काम करने का समय शाम 6:00 बजे से रात 12:00 बजे तक का होता है, इसलिए जो इस समय को बेकार करता है, वह अच्छा पत्रकार हो ही नहीं सकता। वे प्रेस क्लब जाना बहुत पसंद नहीं करते थे। उनका समय खबरों की तलाश में ज्यादा बीतता था। फारुख अब्दुल्ला उनके मित्र थे और उन्होंने कश्मीर को लेकर बहुत रिपोर्ट लिखी थीं। उन्होंने उस समय डिफेंस घोटाले पर भी लिखा था। उदयन शर्मा का दायरा जितना लेखन में विशाल था, उतना ही उनकी व्यक्तिगत मित्रता का भी दायरा बहुत विशाल था। उनके जितने भी मित्र थे, सब निस्वार्थ और हिम्मती थे। आगरा के विजय बाबू लखनऊ के रमेश दीक्षित और पटना के सुधीर मिश्र जैसे कुछ उदाहरण मुझे याद आ रहे हैं।

उन्होंने नए लोगों को पत्रकारिता में महत्वपूर्ण अवसर दिए। कुर्बान अली, राजेश रपरिया और अलका सक्सेना इसके कुछ उदाहरण हैं। जब सुरेंद्र प्रताप सिंह मुंबई नवभारत टाइम्स के संपादक बनकर चले गए, तब उदयन शर्मा रविवार के संपादक बने। रविवार का संपादक बनने के बाद उनकी दोस्ती तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से हुई। उन्होंने राजीव गांधी को यथासंभव व्यक्तिगत सलाह भी दी थी तथा लेखन के द्वारा भी उनका समर्थन किया था। राजीव शुक्ला की जिंदगी में उदयन शर्मा का बहुत बड़ा रोल रहा। उन्होंने राजीव शुक्ला को दिल्ली में विशेष संवाददाता बनाया तथा उनकी राजीव गांधी से दोस्ती भी कराई। राजीव शुक्ला की शादी अनुराधा प्रसाद से हो, इसके वह समर्थक भी थे और सहायक भी थे।

उदयन शर्मा बाद में धीरूभाई अंबानी के अखबार संडे ऑब्जर्वर के संपादक बने और आखिरी दिनों में वे सुब्रत राय के अखबार राष्ट्रीय सहारा से जुड़े। उदयन शर्मा और एसपी सिंह की दोस्ती में कुछ बातें बहुत कमाल की थीं। उदयन शर्मा के मन में क्या है, यह सुरेंद्र प्रताप सिंह समझ जाते थे और सुरेंद्र प्रताप सिंह क्या चाहते हैं, इसे उदयन शर्मा उनके बिना कहे ही अमल में ले आते थे। सुरेंद्र प्रताप सिंह ब्रेन स्ट्रोक के शिकार हुए और लगभग 15 दिन अपोलो अस्पताल में भर्ती रहे, दूसरी ओर उदयन शर्मा भी ब्रेन स्ट्रोक के एक अजीब तरह के प्रकार का शिकार हुए और वे पंडित पंत अस्पताल में भर्ती रहे। इसे सिर्फ संयोग कह सकते हैं.

जिस तरह प्रसिद्ध कथा लेखक श्रीराम शर्मा के पुत्र उदयन शर्मा बड़े पत्रकार बने उसी तरह उनके बड़े बेटे कार्तिकेय शर्मा आज हिंदी और अंग्रेजी के बड़े पत्रकार हैं तथा उन्होंने प्रमुख रूप से अंग्रेजी पत्रकारिता को अपनाया और टेलिविजन के जाने-माने चेहरे बने। उनके छोटे बेटे कनिष्क शर्मा आधुनिक युद्ध कला के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध चीनी बौद्ध मठ शाओलिन टेंपल से निकलने वाले पहले भारतीय बने। वे इन दिनों सामान्य छात्रों, सिनेमा में काम करने वाले बड़े कलाकारों, जिनमें जॉन अब्राहम, शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा शामिल हैं, उन्हें एक्शन सिखाने के साथ भारतीय सुरक्षा सेनाओं को बिना हथियार दुश्मन को कैसे परास्त किया जा सकता है, इसकी ट्रेनिंग दे रहे हैं।

आज की पत्रकारिता के बहुत से बड़े नाम, जिनमें विनोद अग्निहोत्री, राम कृपालु सिंह, कमर वहीद नकवी, राजेश बादल तथा स्वर्गीय आलोक तोमर आदि के विकास में उदयन शर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा। जब मुझे लोकनायक जयप्रकाश ने कहां कि तुम पत्रकारिता करो तो मैंने सुरेंद्र प्रताप सिंह को फोन किया। उन्होंने मुझे कहा कि मैं दिल्ली जाकर उदयन शर्मा से अवश्य मिल लूं। मैं उदयन जी से गांधी पीस फाउंडेशन के लॉन मैं मिला। वह एक घंटे की मुलाकात उनकी आखिरी सांस तक जिंदा रही और आज भी जिंदा है। मेरी और उनकी रिपोर्ट को लेकर हमेशा प्रतियोगिता और छीनाझपटी चलती रही, जिसमें हमेशा उनकी जीत हुई।

वे बड़े पत्रकार थे और हमेशा बड़े पत्रकार बने रहेंगे। रिपोर्ट पर झपट पड़ने और उसकी सच्चाई किसी भी तरह सामने लाने का उनका पागलपन हिंदी के पत्रकारों के लिए हमेशा उदाहरण बना रहेगा। शुभ व्रत भट्टाचार्य जो बाद में संडे के संपादक बने और उसके बाद हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक बने, उनके सबसे गहरे मित्रों में रहे। वह हमारे बीच में हैं, उदय शर्मा को जानना हो तो शुभ व्रत भट्टाचार्य से बात करनी चाहिए। राज बब्बर जब मुंबई में संघर्ष कर रहे थे, तब उदयन शर्मा ने उनके ऊपर बड़ी कवरस्टोरी लिखी, जिसने राज बब्बर को हिंदी के क्षेत्र में बहुत सलीके से परिचित कराया। राज बब्बर आगरा के थे और समाजवादी विचारधारा के थे। उदय शर्मा चाहते थे कि राज बब्बर राजनीति में आगे आएं, इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से राज बब्बर की भरपूर मदद की।

उनके मन में भारतीय राजनीति में सार्थक हस्तक्षेप करने का विचार हमेशा घूमता था, वे आगरा से लोकसभा का चुनाव भी लड़े। एक बार वह भिंड से भी चुनाव लड़े। भले ही वे जीत नहीं पाए, लेकिन आगरा और भिंड के लोगों ने उन्हें उतना ही सम्मान दिया जो सम्मान एक सांसद को मिलना चाहिए। उदयन शर्मा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जब कभी हिंदी पत्रकारिता का इतिहास लिखा जाएगा, तो उनका नाम पत्रकारिता के शिखर पुरुष के रूप में अवश्य शामिल होगा।

साभार- https://www.samachar4media.com से