
जैव विविधता की उपादेयता
वैश्विक स्तर पर मानवीय समुदाय के लिए जैव विविधता का विद्युत प्रसार और उर्जाप्राप्त उपादेयता जीवन की विशाल विविधता के व लिए किया जाता है ।जैव विविधता का अनुप्रयोग एक विविधता क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में सभी प्रजातियों को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए किया जाता है।जैव विविधता पेड़, पौधे ,जीवाणु ,पशु और मानवीय समुदाय को जीवित समूह को समेकित करता है। जैव विविधता और भारतीय संस्कृति एक दूसरे से पूरक व परस्पर समुच्चय भाव में जुड़े हैं। वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति और परंपरा जैव विविधता को सुरक्षित व संरक्षित रखता है ।भारत के लोक परंपराओं और संस्कृति के उन्नयन में जैव विविधता का संरक्षण करने का संदेश कन कन में समाहित है ।
भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मैं सृष्टि /जगत के कण-कण में समाहित हूं”.मानव जीवन के प्रति हमारे अमर्यादित आचरण करता है तो वह स्वयं मुझको कष्ट पहुंचाता है। धर्म अनुकूल आचरण एवं अहिंसा प्रकृति के साथ सनेहित संबंध है। भारत में महात्मा बुद्ध ,महावीर स्वामी और महात्मा गांधी ने अपने कार्य उपादेयता के कारण अहिंसा पर जोर दिया था। वैश्विक स्तर पर भारतीय शास्त्रों में जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रमाण मिलता है ।भारतीय शास्त्रों में लाख वर्ष पूर्व 84000 योनियों अर्थात जैवनप्रजाति का वर्णन मिलता हैं।
भारतीय संस्कृति मानव एवं प्रकृति के साहचर्य संबंध संबंध पर ज़ोर देती है ;लेकिन पाश्चात्य संस्कृति मानव व प्रकृति को विजित करना चाहती है ,जो समसामयिक मानवीय समुदाय में सभी समस्याओं का प्रबल कारक है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते हैं कि जैव विविधता में मानव की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने की पूर्ण धारिता है ,लेकिन धरती मानव के वासना(काम,क्रोध,मद एवम् लोभ) को पूरा नहीं कर सकती है ।वर्तमान मानवीय समस्या है, वह मानव का वासना है। भारतीय संस्कृति और धर्म मे स्थान – स्थान पर जीवो के प्रति दया, करुणा और उनके प्रति आत्मीय अनुभूति मनुष्य का मौलिक मानवीय आभार है, इस गुण के कारण मनुष्य और प्रकृति में परस्पर सामंजस्य स्थापित होगा।
वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में भारी गिरावट आ रही है। बीते 50 वर्षों से भी कम समय में 68% वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने का तथ्य सामने आ रहा है। इस स्थिति में वैश्विक स्तर, राष्ट्रीय स्तर एवं स्थानीय स्तर पर सतर्कता की जरूरत है। ऐसी स्थिति में जैव विविधता के संरक्षण की महती आवश्यकता है ।जैव विविधता के संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र के उत्पादकता में उन्नयन होता है ,इसमें सबकी महत्वपूर्ण उपादेयता होती है।
(लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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