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वेब सीरीज़ : जादुई दुनिया का नया द्वार

इन दिनों वेब सिरीज़ की काफ़ी धूम है , इसे युवाओं का नया नशा भी कहा जा रहा है .

दरअसल वेब सिरीज़ डिजिटल प्लेटफ़ार्मों के क्रमिक विकास की सहोदर ही हैं , फ़िल्म और टेलिविज़न से अलग स्पेस में रचनात्मक काम का द्वार पहली बार यूट्यूब ने खोला जहां बिना किसी बड़े बजट या बड़े नाम के भी कोई कलाकृति बननासम्भव होने लगा. लेकिन यूट्यूब पर मिलियन डालर बजट की शृंखला सोच से परे थी. इस बीच वैकल्पिक फ़ीस आधारित डिजिटल प्लेटफ़ार्म अस्तित्व में आए , वहाँ प्रतियोगिता, बाज़ार में जमने और सब्स्क्रिप्शन आधार बढ़ाने के प्रयास में एक से बढ़ कर एक कंटेंट तैयार करने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी . मुझे याद आता है अपनी २००९ के अमेरिकी प्रवास में मैं पहली वेब सिरीज़ Getting Away With Murder देखी थी जो टीवी और आइ एफ सी दोनों पर रिलीज़ हुई थी . बड़ा बजट , बड़ा सोच और बेहतर कहानी इस हिसाब से सबसे बड़ी वेब सिरीज़ Netflix की House of Card थी . इसके बादतो Stranger Things, Bojack Horseman, Big Mouth, I Think You Should Leave, Chilling Adventures of Sabrina जैसे ताँता ही लग गया. वेब पर दूसरे बड़े प्रतियोगियों में निस्संदेह अमेजन प्राइम है जिसकी The Man in the High Castle, Bosch, Mozart in the Jungle, Red Oaks ख़ासी चर्चित हो चुकी हैं.

जिस हिसाब से हाल ही में भारत में स्मार्ट फ़ोन उपयोग करने वालों की संख्या बढ़ी है एक मोटे अनुमान के आधार पर ३०करोड़ से अधिक देशवासी स्मार्ट फोन इस्तेमाल करते हैं , भला हो जीयो के मुफ़्त डेटा ( अभी पैसा देना पड़ रहा है फिर भीदूसरे देशों की तुलना में बहुत सस्ता ) का जिसके कारण लोगों की कंटेंट भूख बहुत बढ़ गयी है इस लिए भारतीय वेबसीरीज़ बाज़ार आकार भी काफ़ी बड़ा होता जा रहा है . अकेले नेटफ़्लिक्स पर Sacred Games वेब सीरीज़ देखने वालों की संख्या १ करोड़ को पार कर गयी है . अमेजन प्राइम पर मिर्ज़ापुर , टीवीएफ पर Tripling , The Timeliners काFlames कुछ ऐसे शो हैं जिन्होंने वेब बाज़ार में हंगामा मचा दिया है.

नतीजा यह है कि बॉलीवुड के नामचीन निदेशक, कलाकार इस मैदान में कूद पड़े हैं , वो चाहे फ़रहान अख़्तर हों या इम्तियाज अली या फिर संजय लीला भंसाली जैसे मंजे हुए निदेशक , एक एक कर के आ रहे हैं , कलाकारों में आपकोअमेजान प्राइम के क्राइम थ्रिलर Breathe 2 में अभिषेक बच्चन भी नज़र आ जाएँगे . एक अच्छी बात यह हुई है कि वेब सीरीज़ के लेखन में फ़िल्मी दुनिया से जुड़े बहुत से सफल लेखक आ गए हैं .

वेब लेखन के सितारों में वरुण ग्रोवर, रेशु नाथ , रेखा निगम , सुमीत व्यास , करण अंशुमान, कल्कि कोच्चीलीन, विक्रमभट्ट , निधि बिष्ट , रघु राम चंद ऐसे नाम हैं जिन्होंने लेखक के नाम को पुन: प्रतिस्थापित किया है .

मेरी चर्चा वेब लेखन के दो बड़े स्टार रेखा निगम और रेशु नाथ से हुई. रेखा इन दिनों संजय लीला भंसाली के लिए लिख रही हैं . रेखा का मानना है कि वेब सीरीज़ बिल्कुल जादुई दुनिया का दरवाज़ा हैं , लेकिन एक सीरीज़ को लिखनाएक व्यक्ति के बस की बात नहीं है क्योंकि कथा का फलक बड़ा होता है , कहानी का घटना क्रम इतनी रोचकताऔर तेज़ी से बदलने वाला हो कि दर्शक वहाँ ठहर सके नहीं तो वह पाँच मिनट देखने के बाद ही कुछ और देखना शुरू कर देगा. यही नहीं अगर उसमें कुछ हुक है तो वह एक ही रात में पूरी सीरीज़ देख डालेगा . यही कारण है कि पात्रों को कुछ इस तरफ़ से डेवलप करना पड़ेगा , घटनाक्रम को इस तरह से विकसित करना होगा कि वह दर्शक को बांध सके . फ़िल्म में तो दर्शक पाप कॉर्न, पार्किंग वग़ैरह मिला कर हज़ार रुपए तक एक बार में खर्च कर देता है इसलिए वह वहाँ बैठा रहता है उसेअगर एक गाना भी अच्छा लग गया , एक प्रहसन भी हंसा गया तो वह सोचता है कुछ तो मिल गया . पर वेब में ऐसी कोईभी बाध्यता नहीं है . इसी लिए वेब सीरीज़ में पूरा दारोमदार कंटेंट पर है लिखने के लिए लेखकों का समूह रहता है जिसे राइटर रूम कहा जाता है.

रेखा बताती हैं, इन दिनों लेखकों की इसी कारण ज़बरदस्त माँग बढ़ गयी है .

ऐएलटी बालाजी के लिए Bose Dead/Alive सीटों से इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाली रेशु नाथ भी मानती हैं किफ़िल्म और टीवी की तुलना में वेब सीरीज़ लिखना ख़ासा मुश्किल है . इसमें आगे क्या घटित होने वाला है इसके बारे में उत्सुकता बनाए रखना बहुत चुनौती भरा है नहीं तो देखने वाला दस मिनट में लैपटाप या मोबाइल छोड़ देगा. रेशु का यहभी मानना है कि वेब सीरीज़ दर्शक की अभिरुचि के साथ इवॉल्व हो रही हैं.

एक और रोचक बात वेब सीरीज़ के बारे में कही जाती है , जहां सिनेमा और टीवी लंगर के भोजन की तरह है , जो मिल रहा है वही खा सकते हैं दूसरी ओर वेब सीरीज़ बूफे भोज है जहां आप अपनी अभी रुचि के अनुसार चुन सकते हैं .

वेब सीरीज़ों पर यह भी इल्ज़ाम है कि इनमें ग्राफ़िक सेक्स , गालियों की भरमार रहती है . इस बारे में वेब वालों के अपने ही तर्क हैं . जाने माने लेखक कमलेश पाण्डेय का मानना है कि यह इस बात का नतीजा है कि आम आदमी को लम्बे समय से दबा रखा गया है . जहां सिनेमा और टीवी सार्वजनिक माध्यम है , वेब नितान्त निजी स्पेस है जिसे केवल और केवलएक आदमी को अपने चुने समय स्पेस में देखने की आजादी है . यही नहीं यह अभी सेंसर जैसे बंधनों से पूरी तरह स्वतंत्र है . नेटफ़्लिक्स के Marvel’s Jessica Jones, Being Mary Jane शो को ही ले लीजिए अच्छी पटकथा के साथ साथ निजीसम्बन्धों की खुली अंतरंगता के दर्शन भी करा देते हैं . यही वजह है कि आज की नई पीढ़ी को यदि केबल कनेक्शन हो यान हो कोई फ़रक नहीं पड़ता.

तो क्या वेब सीरीज़ की बढ़ती लोकप्रियता फ़िल्म और टीवी के माध्यमों को लील जाएगी . इसका उत्तर सहज न है , रेडियोसमाचार-पत्रों को नहीं ख़त्म कर पाता टीवी के दौर में भी रेडियो चल रहा है , टीवी सीरियल आज भी सिनेमा को रिप्लेस नहीं कर सके हैं . हाँ इतना ज़रूर है की वेब की लोकप्रियता सिनेमा और टीवी के कंटेंट को भी नए सिरे से बदलने को विवश करेगी , इससे लेखकों के लिए चुनौती बढ़ जाएँगी .