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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का स्वागत योग्य निर्णय !

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग( यूजीसी )ने भारतवर्ष में विदेशी विश्वविद्यालय को अपना परिसर (campus) खोलने की अनुमति प्रदान किया है। जिन विश्वविद्यालय की एकेडमिक गुणवत्ता श्रेणी 500 के भीतर हो उन्हें परिसर खोलने की अनुमति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदान किया गया है। यूजीसी संस्तुति में इन विदेशी विश्वविद्यालयों को दाखिला प्रक्रिया व शुल्क निर्धारण के मामले में स्वतंत्रता प्राप्त है। विश्वविद्यालयों में दाखिले की प्रक्रिया अकादमिक सर्वोच्चता के आधार पर होगी ,जिससे मेधावी छात्र अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। समाज का बौद्धिक वर्ग एवं विपक्षी नेतृत्व का इस निर्णय कड़ा विरोध हैं।दुर्भाग्य से मैं कभी- कॉल अंतर्द्वंद की स्थिति में आ जाता हूं कि हमारे यहां पूर्व में सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए महोदय के पुत्र- पुत्री ,जरायम की दुनिया से बने राजनेता के पुत्र ,वर्तमान में कुछ क्षेत्रीय दल के प्रमुख( अध्यक्ष) विदेशों में विदेशी विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करके समाजवाद, लोकतांत्रिक समाजवाद एवं लोहिया के राजनीतिक विचार पर बहस (डिबेट)में भाग लेते हैं ।

1.क्या उनके लिए हमारे विश्वविद्यालय के परिसर एवं शिक्षा के योग्य नहीं थे?
2. क्या यहां के अकादमिक दर्शन की विधा उनके लिए योग्य नहीं थी?
3. क्या यहां के मौलिक ग्रंथों में अपर्याप्त ज्ञान के भंडार हैं ?

इन सवालों का उत्तर मेरी आत्मा(उचित का निर्धारण करनेवाली) दे नहीं पाती; क्योंकि मैं व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में सत्य, मूल्य, वचन के प्रति प्रतिबद्धता एवं अपने चारित्रिक स्थिरता के लिए कटिबद्ध हू।

प्रतियोगिता एवं वहस ( विचार-विमर्श) नूतन ज्ञान एवं नवीन विचारों को संप्रेषित करते हैं ;प्रतियोगिता के द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन होता है ।इस नीति से भारत के विश्वविद्यालय और विदेशी विश्वविद्यालय में प्रतिस्पर्धा से नवोन्मेष के विचार आ सकते हैं। इससे बहुत से मेधावी विद्यार्थियों को अपने ही देश( राज्य) में रहकर विदेशी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को पढ़ने की सुविधा मिल सकती है जिससे वे उन्नत अनुसंधान और नवाचार कर सकेंगे, क्योंकि पाठ्यक्रम की स्वायत्तता है।

बहुत से विद्यार्थी इसलिए भी विदेशों में जाते हैं कि उनका पाठ्यक्रम पढ़ सकें लेकिन इससे उनको वह पाठ्यक्रम अपने देश में ही उपलब्ध हो सकता है, इससे एक नूतन चेतना का मिलाजुला असर होगा कि हमारे यहां के केंद्रीय विश्वविद्यालय, सम विश्वविद्यालय और राज्य विश्वविद्यालय एवं निजी विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम की समीक्षा करके प्रतिस्पर्धी आधार पर तैयार कर सके। हमारे लिए शिक्षा पर अपेक्षित बजट न होने के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना भी चुनौती है ;इसके परिणाम स्वरूप निजी विश्वविद्यालयों को प्रोत्साहित किया जाने लगा लेकिन निजी विश्वविद्यालय के फीस संरचना कमर तोड़ देने वाली हैं। निजी विश्वविद्यालय राजस्व( धन) के स्रोत है, इन विश्वविद्यालयों के मालिक अरबपति हैं जो फैकेल्टी की समस्या और विद्यार्थी की समस्या से अनजान होते हैं। समस्या की बात दूर है उनसे मिलना भी मुश्किल होता है; क्योंकि उनकी व्यस्तता सत्ता के गलियारों में ज्यादा बढ़ जाती है।

विरोध करने वालों में विश्वविद्यालय के आचार्य भी है; क्योंकि 9 साल बाद पुनरीक्षण करके पुनः अनुमति देने की बात है जिससे भविष्य की राजनीति का डर सता रहा है। इन के आगमन से शिक्षा का अर्थ पाठ्यक्रम पूरा करने से नहीं है बल्कि वैज्ञानिक शिक्षा, कौशल विकास ,व्यवहारिक पारंगत एवं परंपरागत शिक्षा का आधुनिक से तुलनात्मक अध्ययन हो सकता है। किसी वस्तु को देखने के लिए नजर नहीं नजरिया की जरूरत होती है। विश्वविद्यालय के आगमन का समाजिक उपादेयता होगी कि हम सभी’ समतामूलक समाज’ की ओर अग्रसर होंगे, आर्थिक उपादेयता होगी कि सरकार को लाभांश प्राप्त होगा एवं शिक्षा का अभिनव अध्ययन एवं तुलनात्मक उपादेयता प्राप्त होगी। राजनीतिक उपादेयता होगी कि राजनीतिक दल अभी भी विदेशी विश्वविद्यालय से पढ़े चुनावी – रणनीतिकारों को भारी-भरकम राशि देकर चुनाव प्रबंधन का ठेका देते हैं, जिससे इस पर विमर्श हो सकता है। प्रतिभा पलायन (Brain drain)पर नियंत्रण हो सकता है ।इन विश्वविद्यालयों के आने से सच्चरित्र ,कर्मठ ,कर्तव्यनिष्ठ, समय- प्रबंधन में सिद्ध व्यक्तित्व आएंगे जिससे अकादमी गुणवत्ता एवं शुचिता में गुणात्मक प्रगति हो सकता है।

वैदेशिक परिसर खुलने से विद्यार्थियों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा जिससे शिक्षा के क्षेत्र में समग्रता, सर्वागीण एवं एकात्मक दृष्टि की अनुभूति होगी वर्तमान में 49 विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ शैक्षणिक सहयोग कर रहे हैं। यूजीसी के प्रस्तावित प्रारूप के अनुसार विदेशी उच्च शैक्षिक संस्थानों के पास अपने भर्ती मानदंडों के तहत भारत और विदेश से फैकेल्टी और कर्मचारियों की भर्ती करने की स्वायत्तता हैं।यह सर्वविदित है कि वैश्विक स्तर के सिर्फ 100 में से कोई भी भारत का विश्वविद्यालय नहीं है, ऐसे में स्वाभाविक है कि महत्वकांक्षी छात्र- छात्राएं शिक्षा हेतु विदेश का रुख कर सकते हैं। शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अकेले वर्ष 2019 में भारत के 7.5 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए हैं। यूजीसी के प्रतिवेदन के अनुसार ,विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2024 तक बढ़कर18लाख हो जाएगी जबकि उनका खर्च 80अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।

भारत सरकार के अनुसार, भारत में 1000 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं एवं इन विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विषय सामान्य हैं। जिस तरह सरकारी सेवाओं में कौशल की सेवा में बदलाव आया है, भारत में उस तरफ शैक्षणिक गुणवत्ता बदल नहीं पाया है। ऐसे में समय की मांग है कि पाठ्यक्रम निर्माण और उनके प्रतिपादन में प्रतिस्पर्धा का वातावरण बन सके। शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालय के परिसर के आगमन से भारत के विश्वविद्यालयों को प्रतिस्पर्धा होगी जिससे शैक्षणिक वातावरण में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का स्तर बढ़ेगा ।भारतीय शिक्षण व्यवस्था का प्रबंधन केंद्रीकृत नौकरशाही (प्रबुद्ध तानाशाह ),संरचनाओं ,जवाबदेही एवं पारदर्शिता की चुनौती का सामना कर रहा है; जिससे उच्च स्तर के विद्वान व शिक्षाविद अपना ध्यान अनुसंधान पर केंद्रित नहीं कर पा रहे है। उच्च शिक्षा एक ऐसी धारणा है जो हमको ज्ञान के साथ समरसता, भाईचारा (बंधुत्व) सामाजिक एवं पूर्व राजनीतिक(pre political) को सक्षम बनाने में सहयोग करता है। इन प्रज्ञावान शक्तियों का अर्जन करके हम ज्ञान आधारित जीवंत समाज और वैश्विक महाशक्ति में बदलकर भारत को विश्व गुरु/ परम वैभव बनाने में सहयोग कर सकते हैं।

(लेखक राजनीतिक, शैक्षणिक व वैश्विक विषयों पर समसामयिक लेख लिखते हैं)
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