Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeसोशल मीडिया सेराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या देता है ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या देता है ?

महाराष्ट्र के सतारा जिले में रहने वाले एक पिता के शब्दो में-

दसवीं की परीक्षा देने के बाद, गर्मी की छुट्टियों में संघ का पंद्रह दिन का शिक्षण समाप्त कर कल ही मेरा बेटा वापस आया ।
आठ दिन का प्राथमिक वर्ग ‘सतारा’ में हुआ फिर एक सप्ताह विस्तारक के रूप में संघ कार्य करने के लिए वह वहीँ से शिरवल चला गया।
वहाँ सात दिन में चौदह परिवारों में उसका भोजन हुआ।

एक पुराने बाड़े में पतरे की छत वाले घर में उसका निवास था। वहां उसने स्वावलम्बन सीखा। दिनभर संपर्क कर ग्रामवासियों से मिलकर उसने कई लोगो से परिचय किया, आत्मीयता बढ़ाई। शाम को बाल स्वयंसेवकों की शाखा में काम कर उसे ‘नेतृत्व’ कैसे किया जाता है यह पाठ सीखने को मिला और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि संघ का अनुशासन वह आत्मसात करने लगा। वह जब घर वापस आया तब उसकी माँ दूसरे शहर गई हुई थी इसलिए घर के हाल ‘दर्शनीय’ थे। “क्या बाबा, ये क्या हाल किया हुआ है ? घर है या …. “ऐसा कहकर वह पूरा घर अवेरने में लग गया। कुछ ही देर में सारा घर साफ-सुथरा हो गया यहाँ तक कि सारे पदवेश (फुट वियर) भी उसने करीने से जमाए उसके बाद ही चाय पी।

भीषण गर्मी के कारण वर्ग में जाने से पहले उसने कहा था, “बाबा इस बार तो एसी लेना ही है ..” उसे जब उसकी कही बात याद दिलाई तो उसकी प्रतिक्रिया एकदम उलट थी “बिलकुल नहीं बाबा ..बिलकुल नहीं, एसी की कोई ज़रूरत नहीं है कूलर भी नहीं चाहिए … *बस्तियों में रहने वाले हमारे असंख्य समाज बंधुओं के पास तो पंखा तक नहीं है!” बाथ रूम में नल टपक रहा था यह देखकर उसने खुद ही प्लम्बर को फोन किया, जैसा कि होना था प्लम्बर हाँ कहकर भी नहीं आया पर बेटे ने टपकने वाले नल के निचे बाल्टी रख दी और भर जाने पर शाम को वह पानी गमले के पौधों को डाल दिया।

मुझे बताने लगा, “बाबा हमने वर्ग में पहले दिन ३३००० लीटर पानी का उपयोग किया पर वर्ग में जब हमने पानी बचाने के उपाय सुने समझे तो अंतिम दिन केवल १२००० लीटर पानी खर्च हुआ। *हमें शिक्षकों ने सिखाया कि औरों को दोष मत दो अच्छे काम की शुरुवात खुद से और अपने घर से करो। इस लड़के को क्रिकेट मैच देखने का शौक पागलपन की सीमा तक था पर पंद्रह दिन में ही वह जैसे ख़त्म हो गया। आई.पी.एल.देखने के बजाय कुछ अच्छी किताबें पढ़ो यह बताते सुझाते मैं थक कर निराश हो गया था पर उसने कभी सुना नहीं। लेकिन अब टी.वी. की ओर उसका ध्यान तक नहीं था उलटे वर्ग में पढ़ी हुई किताबों की माहिती (जानकारी) उसने मुझे दी तथा और कौनसी पुस्तकें खरीदनी हैं इसकी एक सूची मुझे थमा दी थी।

आज अपनी आदत के अनुसार वह सुबह जल्दी जागा और तुरंत नहाकर अपने कपडे धो डाले , कहने लगा , “आई इतना सारा काम करती है उस और तकलीफ क्यूँ।”
ये सारे बदलाव कितने दिन रहेंगे, यह मैं नहीं जानता पर बदलाव ला सकने वाली इस ‘वयःसन्धि’ में संघ ने उसके अंतःकरण में जो संस्कार मिले हैं वे सरलता से मिटेंगे नहीं यह निश्चित है।
माता-पिता को अपनी संतान से और भला क्या चाहिए होता है ? *संघ ने हमारे बेटे के व्यक्तित्व निर्माण में सहायता की, यह अनमोल भेंट दी है संघ ने हमें।

—————————————-

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार