Saturday, April 20, 2024
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क्या है बिटकॉईन के तिलस्मी साम्राज्य की हक़ीकत

वर्चुअल मुद्रा बिटकॉइन की कीमत पहली बार 10,000 डॉलर यानी लगभग 6.5 लाख रुपये का आंकड़ा पार कर गई. इसके कुछ घंटे बाद ही यह अब तक के अपने उच्चतम स्तर 11,434 डॉलर (करीब 7.45 लाख रुपये) तक पहुंच गई. हालांकि, इसके कुछ देर बाद ही इसमें तेज गिरावट देखी गई और यह 9,000 डॉलर के स्तर तक लुढ़क गई.

इस साल की शुरुआत से बिटकॉइन की कीमत में अब तक 11 गुनी बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है. एक जनवरी, 2017 को इसकी कीमत 1,000 डॉलर (65,000 रुपये) थी. इसके बाद इसके 5,000 डॉलर का स्तर छूने में इसे करीब 10 महीने का वक्त लगा. हालांकि, इसके करीब एक महीने बाद ही बिटकॉइन ने 10,000 डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर लिया.

साल 2013 में बिटकॉइन ने पहली बार 1,000 डॉलर का स्तर हासिल किया था. हालांकि, इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई थी. इससे पहले नवंबर, 2010 में एक बिटकॉइन की कीमत 0.22 डॉलर (करीब 10 रु) थी. यानी उस वक्त किसी ने अगर बिटकॉइन में 10 रु का निवेश किया होगा तो उसकी कीमत अब करीब 6.5 लाख रुपये हो गई है.

बिटकॉइन क्या है?

बिटकॉइन एक तरह की वर्चुअल करेंसी है जिसे क्रिप्टोकरेंसी (छिपा हुआ मुद्रा) भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत 2009 में हुई थी. माना जाता है कि इसे शुरू करने के पीछे सातोशी नाकोमोटो नाम के एक शख्स का दिमाग था. हालांकि नाकामोटो के बारे में उनके नाम से अधिक कुछ भी जानकारी मौजूद नहीं है. इस बीच कई लोगों ने खुद के सातोशी होने का दावा किया है लेकिन इसकी पुष्टि करने में वे विफल रहे हैं.

वर्चुअल होने की वजह से बिटकॉइन का कोई कागजी दस्तावेज नहीं होता है. साथ ही, इसके लिए कोई केंद्रीकृत व्यवस्था नहीं है. इसके लेन-देन में सरकार, केंद्रीय बैंक या अन्य वित्तीय एजेंसियों का कोई दखल नहीं होता है. साथ ही, इसके लिए लोगों को किसी तरह का टैक्स भी नहीं चुकाना होता है. इस वजह से माना जा रहा है कि भारत सहित अन्य देशों के केंद्रीय बैंक और सरकारों के लिए यह मुद्रा एक चुनौती बना हुई है.

प्रत्येक बिटकॉइन के लिए एक कंप्यूटर कोड दर्ज होता है. हर बिटकॉइन कई हिस्सों में बंटा होता है. सातोशी नाकोमोटो के सम्मान में इन हिस्सों को ‘सातोशी’ नाम दिया गया है. प्रत्येक बिटकॉइन और इसके मालिक को प्राइवेट और पब्लिक कीज (कोड) के जरिए पहचाना जाता है. जैसा कि नाम से ही जाहिर है पब्लिक की को बिटकॉइन के लेन-देन से जुड़ा हर व्यक्ति जानता है. लेकिन प्राइवेट कोड केवल इसके मालिक के पास होता है. इसके साथ एक बड़ी समस्या इसके खो जाने को लेकर है, जिसे दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता. यानी इसे खोने का मतलब बिटकॉइन गंवाना होता है. साथ ही, यदि यह कोड किसी और के हाथ लग जाता है तो वह इसे हासिल कर सकता है.

बिटकॉइन माइनिंग क्या है?

बिटकॉइन के लेन-देन की पुष्टि करने और उसे सुरक्षित बनाने के लिए बनी प्रक्रिया को बिटकॉइन माइनिंग कहा जाता है. पूरी तरह से ऑनलाइन इस प्रक्रिया के जरिये नए बिटकॉइन भी बनाए जाते हैं. लेन-देन को ब्लॉक कहा जाता है और अतीत में हुए लेन-देन के सिलसिले को ब्लॉक चेन. यानी यह एक तरह से बिटकॉइन का ऑनलाइन बही-खाता है, जिसे कोई भी देख सकता है. बिटकॉइन की अधिकतम संख्या 2.10 करोड़ तक ही हो सकती है. बताया जाता है कि इस वक्त 1.7 करोड़ बिटकॉइन उपलब्ध हैं.

बिटकॉइन का लेन-देन किस तरह किया जाता है?

यदि कोई व्यक्ति बिटकॉइन खरीदना चाहता है तो इसके लिए उसे मोबाइल पर एप या फिर कंप्यूटर पर बिटकॉइन से संबंधित सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर आगे की प्रक्रिया पूरी करनी होती है. इसके बाद वह रुपये, डॉलर या अन्य करेंसी में इसे खरीद सकता है. इसके अलावा वह किसी ग्राहक जिसके पास बिटकॉइन उपलब्ध है, उसे वस्तु और सेवा देकर भी इसे हासिल कर सकता है. उदाहरण के लिए 2014 में माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी सेवाओं के लिए अमेरिकी ग्राहकों से बिटकॉइन लेना शुरू किया था.

दूसरी ओर, यदि किसी व्यक्ति के पास बिटकॉइन है और उसे वह वैध मुद्रा जैसे कि रुपये में बदलना चाहता है तो उसे यह करेंसी देकर इसे खरीदने के इच्छुक व्यक्ति को बेचना होगा. इसके अलावा जहां तक वित्तीय संस्थाओं यानी केंद्रीय और वाणिज्यिक बैंकों में बिटकॉइन को वैध मुद्रा में बदलने की बात है तो इसके रास्ते करीब-करीब बंद ही हैं.

हालांकि, दुनिया के कई देशों में बिटकॉइन जैस वर्चुअल करेंसी को लेकर रिसर्च और प्रयोग किए जा रहे हैं. चीन का केंद्रीय बैंक ‘द पीपल्स बैंक ऑफ चाइना’ इसे प्रायोगिक तौर पर शुरू करने वाला दुनिया का पहला बैंक है. इसके अलावा नीदरलैंड में इसकी कार्यप्रणाली को समझने के लिए सीमित दायरे में वर्चुअल करेंसी को लेन-देन के लिए जारी किया है. साथ ही, द बैंक ऑफ जापान और यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने इस पर रिसर्च प्रोग्राम शुरू किया है. दक्षिण कोरिया में भी बिटकॉइन के लेन-देन के लिए नियम बनाए गए हैं.

बिटकॉइन में तेजी की वजह क्या है?

आर्थिक मामलों के जानकारों के मुताबिक बिटकॉइन में तेजी के पीछे की मुख्य वजह कर चोरी, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं को लेकर विश्वास की कमी और कालेधन को सफेद करने को माना जा रहा है. साल 2009 में जब बिटकॉइन जारी किया गया था तो उस वक्त अमेरिका सहित दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बुरी तरह मंदी के जाल में फंसी हुई थी. उस दौरान बड़ी संख्या में निवेशकों की स्थिति खराब होने की खबरें सामने आईं थीं.

दूसरी ओर, बीते साल भारत सरकार द्वारा नोटबंदी के दौरान भी बिटकॉइन की कीमत में तेज बढ़ोतरी देखने को मिली थी. आठ नवंबर, 2016 के दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था तो उस वक्त एक बिटकॉइन की कीमत 48,053 रुपये थी. इसके बाद नोटबंदी के आखिरी दिन यानी 30 दिसंबर, 2016 को इसकी कीमत बढ़कर 64,050 रुपये तक जा पहुंची. हालांकि, इस बढ़ोतरी को लेकर पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इसकी वजह नोटबंदी ही थी. लेकिन उस वक्त मीडिया में आई रिपोर्ट्स की मानें तो हवाला जैसे ई अवैध रास्तों के जरिए बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद किए जाने की बातें सामने आई थीं.

इसके अलावा बिटकॉइन की कीमत में तेज उछाल के पीछे सीएमई समूह और शिकागो बोर्ड ऑप्शंस एक्सचेंज द्वारा बिटकॉइन फ्यूचर्स लाने की घोषणा को भी माना जा रहा है. बीती 31 अक्टूबर को सीएमई समूह की इस घोषणा के बाद बिटकॉइन की कीमत पहली बार 7,000 डॉलर (4.52 लाख रुपये) का आंकड़ा पार कर गई थी. इसके अलावा द वॉल स्ट्रीट जर्नल की मानें तो निवेशकों ने बिटकॉइन का आपराधिक तत्वों द्वारा इस्तेमाल किए जाने का डर अपने दिमाग से निकाल दिया है.

भारत में बिटकॉइन को लेकर सरकार और आरबीआई का रुख क्या है?

शुक्रवार को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिटकॉइन पर स्थिति साफ करते हुए कहा कि यह देश में कानूनी तौर पर वैध मुद्रा नहीं है. हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि इस बारे में सरकार सुझावों पर विचार कर रही है. इससे पहले अरुण जेटली ने इस साल मानसून सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में माना था कि देश में बिटकॉइन के लेन-देन में तेज बढ़ोतरी हुई है. बताया जाता है कि देश में प्रतिदिन 2500 से अधिक लोग बिटकॉइन के लेन-देन से जुड़ रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक इन लोगों की कुल संख्या अब तक पांच लाख से अधिक हो चुकी है. इसके बावजूद देश में बिटकॉइन को नियंत्रित करने या इस पर नजर रखने के लिए अब तक कोई नियामक व्यवस्था नहीं बनाई गई है.

हालांकि, बिटकॉइन पर बढ़ती चिंता को देखते हुए बीते महीने आर्थिक मामलों से संबंधित विभाग ने इस पर एक समिति का गठन किया है. इसमें केंद्रीय वित्त मंत्रालय से जुड़े विभागों (आर्थिक,राजस्व और वित्तीय) के साथ गृह मंत्रालय, आरबीआई, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और नीति आयोग के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है. इस समिति को देश-दुनिया में वर्चुअल करेंसी की स्थिति, इस पर निगरानी रखने के लिए ढांचे की रूप-रेखा के साथ इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.

इसके बाद बीती 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बिटकॉइन पर वित्त मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ-साथ शेयर बाजार नियामक संस्था सेबी और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी नोटिस जारी किया है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह कदम एक याचिका पर सुनवाई करते हुआ उठाया है.

उधर, आरबीआई समय-समय पर वर्चुअल करेंसियों को लेकर सरकार और लोगों को सावधान करता रहा है. केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी में सरकार से कहा था कि वे किसी ऐसे किसी संस्थान को लाइसेंस जारी न करे, जिसका बिटकॉइन या अन्य वर्चुअल करेंसी के साथ लेन-देन हो. साथ ही, आरबीआई ने बिटकॉइन में निवेश करने वालों से कहा है कि किसी भी नुकसान के लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे. इसके अलावा वर्चुअल करेंसी को लेकर आरबीआई का रुख साफ करते हुए बीते सितंबर में आरबीआई के कार्यकारी निदेशक सुदर्शन सेन ने कहा था, ‘जहां तक अवैध वर्चुअल करेंसियों की बात है. हम (आरबीआई) इस बारे में अब तक असहज हैं.’ हालांकि, इसके आगे उन्होंने वैध वर्चुअल करेंसी की संभावनाओं के बारे में कहा था कि आरबीआई ने इस पर विचार करने के लिए एक समूह गठित किया है.

बिटकॉइन को लेकर दुनियाभर की सरकारों और वित्तीय संस्थाओं की चिंता की वजह क्या है?

बिटकॉइन का लेन-देन हवाला कारोबार की तरह ही है, जिसके बारे में सरकार के पास कोई जानकारी नहीं है. साथ ही, इस तरह के अवैध लेन-देन में सरकार को टैक्स भी हासिल नहीं होता, जिससे सरकारी खजाने पर सीधे तौर पर बुरा असर पड़ता है. इसके अलावा इसके जरिए आतंकी फंडिंग की आशंका को देखते हुए इससे पैदा होने वाले खतरे की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा इसके जरिए कई तरह के अवैध कारोबारों को भी अंजाम देने की संभावना बनी हुई है. उदाहरण के लिए बीते मई में 150 से अधिक देशों में वानाक्राई रैनसमवैयर वायरस ने कंप्यूटर पर हमला बोल दिया था. इसके लिए हैकरों ने प्रभावितों से बिटकॉइन में फिरौती की मांग की थी.

उधर, बीते शुक्रवार को तुर्की के धार्मिक मामलों से संबंधित निदेशालय ने वर्चुअल करेंसी बिटकॉइन और इथेरियम के कारोबार को धर्म विरोधी करार दिया है. निदेशालय ने इसकी वजह इस पर निगरानी की कमी और इसका आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा होना बताया है.

वित्तीय मामलों के जानकारों के एक तबके का मानना है कि बिटकॉइन में यह उछाल अस्थायी है. साथ ही, कई विशेषज्ञ इसे एक तरह की जालसाजी भी मान रहे हैं. अमेरिका स्थित बहुराष्ट्रीय बैंकिंग और वित्तीय सेवा देने वाली कंपनी जेपी मॉर्गन के प्रमुख जेमी डिमन का मानना है कि इसका वास्तविक वित्तीय बाजार या अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है. इसके अलावा कई जानकार बिटकॉइन की कीमत में उछाल को गुब्बारे का फूलना मान रहे हैं जो कभी भी फट सकता है.

साभार- से

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