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क्या हमारी संताने विदेशियों की सेवा के लिए है?

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का कहना है कि हमारे बच्चे प्रतिभाशाली हैं,उन्हें विदेश भेजना, देश से प्रतिभा का निर्यात करना है।

बेटा एडिलेड में,बेटी है न्यूयार्क।

ब्राईट बच्चों के लिए,हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।

चिता जलाने बाप की, गए पडौसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई,रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में,भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की,सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला,मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी,अपना घर संसार।

जर्जर छाती गिन रही,रो-रो कर हर श्वास।
खुशियों के मृग पाल कर, कितनी हुई निराश।